लखीमपुर काण्ड का मुख्य उद्देश्य :--- केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को उनके पद से हटाना, क्योंकि अजय मिश्रा ने ऐसा बयान दिया था कि तराई में अवैध कब्जेधारी भूमाफिया भयग्रस्त हो गये थे। ऐसे में राकेश टिकैत से विचार विमर्श के बाद लखीमपुर काण्ड की पटकथा लिखी गई।
Wednesday, 8 October 2025
लखीमपुर काण्ड का मुख्य उद्देश्य :----
क्रीमिया प्रायद्वीप ---
क्रीमिया प्रायद्वीप ---
सामने शांभवी मुद्रा में स्वयं वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण ध्यानस्थ बिराज रहे हैं ---
सामने शांभवी मुद्रा में स्वयं वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण ध्यानस्थ बिराज रहे हैं। वे कूटस्थ हैं। सारी सृष्टि उनका केंद्र है, परिधि कहीं भी नहीं। मेरी दृष्टि उन पर स्थिर है। उनका दिया हुआ सारा सामान -- ये मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, इन्द्रीयों की तन्मात्राऐं, भौतिक सूक्ष्म व कारण शरीर, सारे विचार व भावनाऐं -- उन्हें बापस समर्पित हैं। मैं शून्य हूँ। फिर भी एक चीज शाश्वत मेरा अस्तित्व है, वह है उनका परमप्रेम, जो मैं स्वयं हूँ। . जिस दिन ठीक से भगवान का भजन और ध्यान नहीं होता, उस दिन स्वास्थ्य बहुत अधिक खराब हो जाता है। मन को प्रसन्नता और स्वास्थ्य -- केवल भगवान के भजन और ध्यान से ही मिलता है। भगवान के भजन बिना इस शरीर को ढोने का अन्य कोई उद्देश्य नहीं है। इस संसार में कोई रस नहीं है। रस केवल भगवान में है। वे महारस-सागर और सच्चिदानंद हैं। उनसे कुछ नहीं चाहिए, जो कुछ भी उनका सामान है, वह उनको बापस लौटाना है। .
'भक्ति', 'ज्ञान' और 'वैराग्य' के वातावरण में मैं रहना चाहता हूँ ---
'भक्ति', 'ज्ञान' और 'वैराग्य' के वातावरण में मैं रहना चाहता हूँ। लेकिन पूर्व जन्मों में मैंने विशेष अच्छे कर्म नहीं किये थे, जिनका फल भुगतने के लिए मुझे सांसारिक विषमताओं में से गुजरना पड़ रहा है। परमात्मा को उपलब्ध होने की एक प्रबल अभीप्सा है। प्रार्थना है कि अगला जन्म पूर्ण रूप से -- वैराग्य, ज्ञान और भक्तिमय हो।
जिस घर में नित्य निम्न ८ चौपाइयों का पाठ होता है, उस घर में कभी दरिद्रता नहीं आती ---
राजस्थान के एक बहुत प्रसिद्ध महात्मा विजय कौशल जी महाराज के श्रीमुख से अनेक बार सुना है कि जिस घर में नित्य निम्न ८ चौपाइयों का पाठ होता है, उस घर में कभी दरिद्रता नहीं आती।
"जब तक हम अपनी कामनाओं से निःस्पृह होकर निजस्वरूप आत्मा में स्थित नहीं होते, तब तक यह जीवन कष्टमय और अशांत ही रहेगा।" .
"जब तक हम अपनी कामनाओं से निःस्पृह होकर निजस्वरूप आत्मा में स्थित नहीं होते, तब तक यह जीवन कष्टमय और अशांत ही रहेगा।"
"पूरे भारत में ही नहीं, पूरी सृष्टि में हमारी अस्मिता -- सत्य-सनातन-धर्म (हिंदुत्व) की रक्षा होगी ---
"पूरे भारत में ही नहीं, पूरी सृष्टि में हमारी अस्मिता -- सत्य-सनातन-धर्म (हिंदुत्व) की रक्षा होगी। चारों ओर छायी हुई असत्य और अंधकार की शक्तियाँ निश्चित रूप से पराभूत होंगी। भारत अपने द्विगुणित परम-वैभव के साथ एक अखंड सत्यधर्मनिष्ठ राष्ट्र बनकर उभरेगा। सारी नकारात्मकतायें भारत से समाप्त होंगी।" --- यह एक दैवीय आश्वासन है, जो कभी असत्य नहीं हो सकता।
भगवान अपनी साधना स्वयं ही करते हैं। मैं कोई साधक नहीं हूँ ---
भगवान अपनी साधना स्वयं ही करते हैं। मैं कोई साधक नहीं हूँ ---
यह ध्यान कौन कर रहा है? क्या यह मेरी "श्रद्धा और विश्वास है?" निजात्मा को प्रत्यगात्मा कहूँ या परमात्मा? वाणी मौन है।
यह ध्यान कौन कर रहा है? क्या यह मेरी "श्रद्धा और विश्वास है?" निजात्मा को प्रत्यगात्मा कहूँ या परमात्मा? वाणी मौन है।
मैं श्वास क्यों लेता हूँ? ---
मैं श्वास क्यों लेता हूँ?
हमारी समस्याएँ संसार में हैं, या हमारे मन में? ---
हमारी समस्याएँ संसार में हैं, या हमारे मन में?
साधना के समय एक तो अपनी कमर को सीधी रखने का, दूसरा अपनी ठुड्डी को भूमि के समानान्तर रखने का, और तीसरा अपनी जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालु से सटाकर अर्धखेचरी मुद्रा में रखने का अभ्यास करें।
--- साधना के मार्ग पर हर आयु की अनेक माताओं से मेरा परिचय हुआ है। मुझे उनकी आयु से नहीं मतलब, मैं उन सब को माता के रूप में नमन करता हूँ। वे सब मुझे अपने पुत्र के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान करें। साधना की जिस अवस्था में मैं हूँ, उसमें सारी मातृशक्ति माता के रूप में ही मुझे अनुभूत होती हैं।