Wednesday, 8 October 2025

सामने शांभवी मुद्रा में स्वयं वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण ध्यानस्थ बिराज रहे हैं ---

सामने शांभवी मुद्रा में स्वयं वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण ध्यानस्थ बिराज रहे हैं। वे कूटस्थ हैं। सारी सृष्टि उनका केंद्र है, परिधि कहीं भी नहीं। मेरी दृष्टि उन पर स्थिर है। उनका दिया हुआ सारा सामान -- ये मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, इन्द्रीयों की तन्मात्राऐं, भौतिक सूक्ष्म व कारण शरीर, सारे विचार व भावनाऐं -- उन्हें बापस समर्पित हैं। मैं शून्य हूँ। फिर भी एक चीज शाश्वत मेरा अस्तित्व है, वह है उनका परमप्रेम, जो मैं स्वयं हूँ। . जिस दिन ठीक से भगवान का भजन और ध्यान नहीं होता, उस दिन स्वास्थ्य बहुत अधिक खराब हो जाता है। मन को प्रसन्नता और स्वास्थ्य -- केवल भगवान के भजन और ध्यान से ही मिलता है। भगवान के भजन बिना इस शरीर को ढोने का अन्य कोई उद्देश्य नहीं है। इस संसार में कोई रस नहीं है। रस केवल भगवान में है। वे महारस-सागर और सच्चिदानंद हैं। उनसे कुछ नहीं चाहिए, जो कुछ भी उनका सामान है, वह उनको बापस लौटाना है। .

जो भी जीवन हमने जीया है, वह लौट कर कभी बापस नहीं आ सकता। परमात्मा नित्य नवीन, नित्य सचेतन, और नित्य अस्तित्व हैं। परमात्मा स्वयं ही यह सृष्टि बनकर अंधकार और प्रकाश के रूप में व्यक्त हो रहे हैं। जीवन की सार्थकता प्रति क्षण परमात्मा की चेतना में बने रहना है। उनकी विस्मृति ही मृत्यु है, और स्मृति ही जीवन है। मैं केवल उन्हीं के साथ हूँ, जो परमात्मा को समर्पित हैं। ॐ तत्सत्!! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ अक्तूबर २०२४



1 comment:

  1. अपने निजी जीवन में मैं परमात्मा के विषय पर किसी से भी कोई बात नहीं करता, जब कि मेरी चेतना में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है। परमात्मा की एक अदृश्य प्रभा मेरे चारों ओर एक चुम्बकत्व (magnetism) की तरह हर समय रहती है। वह अदृश्य चुम्बकत्व ही सारी बात करता है, मैं नहीं। वह अदृश्य चुम्बकत्व ही मुझे परमात्मा से हर समय जोड़े रखता है। परमात्मा ही मेरा स्वभाव, और एकमात्र अस्तित्व बन गया है। अब परमात्मा कोई जानने का या चर्चा का विषय नहीं, स्वभाव का विषय है।
    ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    ९ अक्तूबर २०२३

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