--- साधना के मार्ग पर हर आयु की अनेक माताओं से मेरा परिचय हुआ है। मुझे उनकी आयु से नहीं मतलब, मैं उन सब को माता के रूप में नमन करता हूँ। वे सब मुझे अपने पुत्र के रूप में अपना आशीर्वाद प्रदान करें। साधना की जिस अवस्था में मैं हूँ, उसमें सारी मातृशक्ति माता के रूप में ही मुझे अनुभूत होती हैं।
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अब मैं सभी स्त्री-पुरुषों को नमन करते हुये उनसे अनुरोध करता हूँ कि वे साधना के समय एक तो अपनी कमर को सीधी रखने का, दूसरा अपनी ठुड्डी को भूमि के समानान्तर रखने का, और तीसरा अपनी जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालु से सटाकर अर्धखेचरी मुद्रा में रखने का अभ्यास करें। जो पूर्ण खेचरी कर सकते हैं उनकी तो बात ही अलग है। उपरोक्त तीनों बातें साधना के लिए परम आवश्यक हैं। ये आप नहीं कर सकते तो मुझे छोड़ दीजिये।
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जिनकी कमर झुक गयी हैं, जो सीधे नहीं बैठ सकते, उन्हें इस जन्म में तो कोई सिद्धि नहीं मिल सकतीं, उन्हें दुबारा जन्म लेना पड़ेगा। शिव-संहिता में बताई हुई महामुद्रा का साधना से पूर्व दो-तीन बार अभ्यास करें। साधना के मध्य में जब थक जायें, तब भी हर बार महामुद्रा का अभ्यास करने से बहुत लाभ होगा। हठयोग के पश्चिमोत्तानासन के अभ्यास से महामुद्रा सिद्ध होगी। अब इस बात का अभ्यास करें कि बिना हिले-डुले, कमर सीधी रखते हुये, एक ही आसन में आप कम से कम एक घंटे तक बैठ सकें। जो भूमि पर नहीं बैठ सकें, वे भूमि पर एक कंबल बिछा कर, उस पर बिना हत्थे की एक कुर्सी पर बैठ सकते हैं। लेकिन कमर निरंतर सीधी रहे।
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अब आप अजपा-जप और नादानुसंधान का अभ्यास कर सकते हैं। दिन में दो बार उपरोक्त अभ्यास कीजिये। श्रीमद्भगवद्गीता का नित्य थोड़ा-थोड़ा अपनी पूर्ण श्रद्धा से स्वाध्याय परम आवश्यक है।
अपना मार्गदर्शन किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से प्राप्त करें जिनकी आस्था श्रुतियों में हो। इससे आगे मैं आपका मार्गदर्शन करने में असमर्थ हूँ। मेरा स्वास्थ्य इस आयु में इसकी अनुमति नहीं देता।
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आपका जीवन कृतकृत्य और कृतार्थ हो। मंगलमय शुभ कामनाएँ।
कृपा शंकर
८ अक्तूबर २०२५
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