Wednesday, 8 October 2025

हमारी समस्याएँ संसार में हैं, या हमारे मन में? ---

 हमारी समस्याएँ संसार में हैं, या हमारे मन में?

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यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है, जिसका उत्तर मैं नहीं दे सकूँगा। इसका उत्तर आप ही देकर मुझे अनुग्रहित कीजिये।
(१) आध्यात्मिक दृष्टी से तो सब समस्याएँ हमारे मन में हैं।
(२) सांसारिक दृष्टी से सब समस्याएँ हमारे चारों ओर की परिस्थितियों में हैं।
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मैनें एक जर्मन यहूदी की आत्मकथा पढी थी जिसकी आँखों के सामने ही उसके माता-पिता और भाई-बहिनों की हत्या कर दी गयी थी। उसके सारे सम्बन्धी प्रताड़ित और यंत्रणा देकर मार दिये गए थे। यंत्रणा शिविर में उसके सारे मित्र पागल होकर मर गये थे। सब तरह की यंत्रणाओं को सहकर और कई दिनों की भूख-प्यास के बावजूद भी उसने अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया, और दृढ़ मनोबल और परमात्मा में आस्था के कारण तब तक जीवित रहा जब तक जर्मनी की हार हुई और अमेरिकी सेनाओं द्वारा जीवित बचे यहूदी बंदियों को बचाया गया।
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भारत के विभाजन के समय हजारों हिन्दू महिलाओं ने नदी में या कुएँ में कूद कर अपने प्राण दे दिए, लाखों हिन्दुओं की हत्याएँ हुईं, रेलगाड़ियों में हज़ारों हिन्दुओं की लाशों को भरकर पकिस्तान से भारत भेजा गया। ऐसे दृश्य देखकर भी अनेक लोग विचलित नहीं हुए। इसके पीछे उनकी आस्था ही थी। यहाँ समस्या मन में नहीं परिस्थितियों में थीं।
किसी भी तरह की विकट से विकट परिस्थिति का हम बिना विचलित हुए सामना तभी कर सकते हैं जब हमारी परमात्मा में अति गहन आस्था हो, अन्यथा नहीं।
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यह संसार परमात्मा की रचना है। उसी के बनाये नियमों से और उसी की इच्छा से यह संसार चल रहा है और चलता रहेगा। बिना किसी अपेक्षा के जीवन में जो भी सर्वश्रेष्ठ हम कर सकते हैं वह ही हमें करना चाहिए और अन्य सब बातों की चिंता छोड़कर परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए। तभी हम सुखी हो सकते हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ अक्तूबर २०२५

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