"पूरे भारत में ही नहीं, पूरी सृष्टि में हमारी अस्मिता -- सत्य-सनातन-धर्म (हिंदुत्व) की रक्षा होगी। चारों ओर छायी हुई असत्य और अंधकार की शक्तियाँ निश्चित रूप से पराभूत होंगी। भारत अपने द्विगुणित परम-वैभव के साथ एक अखंड सत्यधर्मनिष्ठ राष्ट्र बनकर उभरेगा। सारी नकारात्मकतायें भारत से समाप्त होंगी।" --- यह एक दैवीय आश्वासन है, जो कभी असत्य नहीं हो सकता।
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हमारे निज जीवन में हम परमात्मा को निश्चित रूप से अवतरित करेंगे। हरिःकृपा भी निश्चित रूप से हमारे ऊपर फलीभूत होगी। हमारा जीवन परमात्मा को समर्पित है। परमात्मा से पृथक हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। हर समय (दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सातों दिन) सूक्ष्म जगत में आज्ञाचक्र से बहुत ऊपर एक श्वेत ज्योतिः के प्रति सजग रहें। समय के साथ शनैः शनैः वह ज्योतिः एक अति प्रखर और विराट पंचकोणीय नक्षत्र के रूप में व्यक्त होगी जिसके चारों ओर फैला हुआ श्वेत प्रकाश एक नीले आवरण से ढका हुआ होगा। वह नीला आवरण भी एक स्वर्णिम आवरण से ढका हुआ होगा। यह सर्वव्यापी कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म है जिसकी ज्योतिः से प्रणव की ध्वनि भी धीरे धीरे निरंतर निःसृत हो रही है। सारी सृष्टि इनके भीतर और ये सारी सृष्टि के भीतर हैं।
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ये ही मेरी चेतना के केन्द्रबिन्दु और ध्यान के विषय हैं। इनके प्रति सजग रहते हुए ही "अजपा-जप" और "नादानुसंधान" करें। इसके अतिरिक्त मुझे कुछ भी अन्य नहीं कहना है। अंत में सदा एक बात याद रखें कि एकमात्र कर्ता वे परमात्मा ही हैं, हम केवल एक सतत् साक्षी और निमित्त मात्र हैं। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२६ सितंबर २०२५
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