Saturday 30 June 2018

माया के विक्षेप से कैसे बचें ? ...

माया के विक्षेप से कैसे बचें ? .....
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माया की दो शक्तियाँ हैं .... आवरण और विक्षेप| आवरण तो अज्ञान का पर्दा है जो सत्य को ढके रखता है| विक्षेप कहते हैं उस शक्ति को जो भगवान की ओर से ध्यान हटाकर संसार की ओर बलात् प्रवृत करती है| इस से मुक्त होना बड़ा कठिन है| दुर्गा सप्तशती में लिखा है ...

"ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा| बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति||
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बड़े बड़े ज्ञानियों को भी यह महामाया बलात् मोह में पटक देती है फिर मेरे जैसा सांसारिक प्राणी तो किस खेत की मूली है? परब्रह्म परमात्मा की परम कृपा से ही हम माया से पार पा सकते हैं, निज बल से नहीं| इसके लिए पराभक्ति, सतत निरंतर अभ्यास और वैराग्य की आवश्यकता है| गीता में भगवान कहते हैं .....


शनैः शनैरुपरमेद्‍बुद्धया धृतिगृहीतया| आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत्‌||६:२५||
यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्‌| ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्‌||६:२६||

अर्थात् शनैः शनैः अभ्यास करता हुआ उपरति यानी वैराग्य/उदासीनता को प्राप्त हो तथा धैर्ययुक्त बुद्धि द्वारा मन को परमात्मा में स्थित करके परमात्मा के सिवा और कुछ भी चिन्तन न करे|| यह स्थिर न रहने वाला और चंचल मन जिस जिस विषय के लिए संसार में विचरता है, उस उस विषय से हटाकर इसे बार बार परमात्मा में ही निरुद्ध करे|
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भगवान को पूर्ण रूप से हृदय में बैठाकर, प्रयास पूर्वक अन्य सब ओर से ध्यान हटाने का अभ्यास करें| किसी भी अन्य विचार को मन में आने ही न दें| पूर्ण रूप से मानसिक मौन का अभ्यास करें| स्वयं को ही देवता बनाना होगा, ‘देवो भूत्वा देवं यजेत्’ ‘देवता होकर देवताका पूजन करे|’ परमात्मा को छोडकर अन्य सब प्रकार के चिंतन को रोकने का अभ्यास करना होगा| बाहरी उपायों में बाहरी व भीतरी पवित्रता का ध्यान रखना होगा, विशेषकर के भोजन सम्बन्धी|
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जिस मार्ग पर मैं चल रहा हूँ वह कठोपनिषद के अनुसार "क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत् कवयोवदन्ति" वाला मार्ग है| अब जब इस तीक्ष्ण छुरे की धार वाले मार्ग का चयन कर ही लिया है तो पीछे नहीं हटना है| अनुद्विग्नमना, विगतस्पृह, वीतराग, और स्थितप्रज्ञ मुनि की तरह निर्भय होकर चलते ही रहना है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० जून २०१८
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(यह लेख मैनें अपने स्वयं के कल्याण के लिए लिखा है, किसी अन्य के लिए नहीं. यह उपदेश मेरे स्वयं के लिए है क्योंकि मैं स्वरचित माया के विक्षेप से पीड़ित हूँ जिसके समक्ष मेरी सारी अभीप्सा विफल हो रही है. अतः हरिकृपा का प्रार्थी हूँ. ॐ ॐ ॐ)

भारतवर्ष को संस्कृत भाषा और ब्राह्मणों की संस्था ने जीवित रखा .....

भारतवर्ष को संस्कृत भाषा और ब्राह्मणों की संस्था ने जीवित रखा .....
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भारतवर्ष को शक्ति मिलती थी ..... संस्कृत भाषा से और ब्राह्मणों की संस्था से| ये नष्ट हो जायेंगी तो भारत ही नष्ट हो जाएगा, संस्कृत भाषा और ब्राह्मणों की संस्था .... दोनों ही नष्ट हो रही हैं तो भारत भी नष्ट हो रहा है| वर्त्तमान धर्मनिरपेक्ष शिक्षा पद्धति, विदेशी प्रभाव और मार्क्सवादी समाजवाद भारत को नष्ट कर रहा है| यह मेरी ही नहीं, सभी निष्ठावान व समझदार भारतीयों की पीड़ा है|
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भारत के वर्तमान समाज को देखते हैं तो निराशा ही निराशा मिलती है| भारत में आजकल का सबसे बड़ा व्यवसाय तो है भ्रष्ट राजनीति, दूसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है मनचाहा स्थानान्तरण व नियुक्तियाँ करवाने का धंधा, फिर घूसखोरी, कर चोरी, बिजली व पानी की चोरी, और ठगी| समाज में हम जिनको आदर्श कह सकें ऐसे व्यक्ति नगण्य हैं| उनके अतिरिक्त कुछ भी आदर्श नहीं है समाज में| ऐसी सभ्यता नष्ट भी हो जाए तो मुझे कोई अफसोस नहीं होगा|
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मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूँ कि मेरा संपर्क ऐसे अनेक व्यक्तियों से हैं जिनका जीवन धर्ममय और आध्यात्मिक हैं| परमात्मा से प्रेम और आस्था व विश्वास ने ही सदा मेरी रक्षा की है| यह आस्था और विश्वास ही सदा रक्षा करेंगे| मेरा यह मानना है कि परमात्मा के सहारे से ही प्रकृति के बंधनों से छुटकारा पा सकते हैं| गीता में भगवान कहते हैं .....
"ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति| भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया||१८:६१||
जब सबको चलाने वाला परमात्मा ही है तो रक्षा भी वो ही करेगा|
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भारतवर्ष व सनातन धर्म की भगवान रक्षा करें, इस प्रार्थना के अतिरिक्त और कुछ कर भी नहीं सकते| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० जून २०१८

गुरु पूजा के बारे में मेरे विचार .....

गुरु पूजा के बारे में मेरे विचार .....
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मेरे विचार पूर्ण रूप से गहन ध्यान साधना में हुई मेरी निजी अनुभूतियों पर आधारित हैं, किसी की नक़ल नहीं है| साधनाकाल के आरम्भ में गुरु और मैं दोनों ही पृथक पृथक थे| पर जैसे जैसे ध्यान साधना का अभ्यास बढ़ता गया मैनें पाया कि गुरु कोई देह नहीं हैं, तत्त्व रूप में वे नाम और रूप से परे मेरे साथ एक हैं| वास्तव में मैं तो हूँ ही नहीं, वे ही वे हैं| भौतिक देह तो उनका एक वाहन मात्र रहा है जिस पर उन्होंने अपनी लोकयात्रा पूरी की| वे वह वाहन नहीं, एक शाश्वत दिव्य चेतना हैं| मैनें अज्ञानतावश अपनी कल्पना में उन्हें देह की सीमितता में बाँध रखा था, पर वास्तव वे अति विराट और सर्वव्यापक हैं|
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ध्यान में अनुभूत होने वाले कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म भी वे ही हैं, ध्यान में सुनाई देने वाली कूटस्थ अक्षर प्रणव की ध्वनी भी वे ही हैं| अब तो उपासक भी वे ही हैं, उपासना और उपास्य भी वे ही हैं| उन्हें देह की सीमितता में मैं नहीं बाँध सकता| वे परमात्मा की अनंतता और पूर्णता हैं| उनसे पृथकता की कल्पना ही बहुत अधिक पीड़ादायक है|
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वर्तमान में सहस्त्रार ही मेरे लिए श्रीगुरु के चरण कमल हैं| सहस्त्रार में ध्यान ही गुरु की पूजा है, सहस्त्रार में ध्यान ही श्रीगुरुचरणों में आश्रय है| वे परमप्रेममय और परमानन्दमय हैं|
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सहस्त्रार से परे अनंताकाश के रूप में वे ही परमशिव हैं| वह अनंताकाश ही मेरा उपास्य देव परमशिव है| मुझे सुख, शांति, सुरक्षा और आनंद उस अनंताकाश में ही मिलता है| उस अनंताकाश में ही एक नीले रंग का प्रकाश है जो मेरे लिए एक रहस्य है| उससे भी परे एक अति विराट श्वेत ज्योति है जो और भी बड़ा रहस्य है| उस विराट श्वेत ज्योति से भी परे भी एक श्वेत नक्षत्र है जो सारे रहस्यों का भी रहस्य है| जब भी कभी पूर्ण गुरुकृपा होगी वे सारे रहस्य भी अनावृत हो जायेंगे| अभी तो मुझे कुछ भी नहीं पता| गुरु महाराज ने उस अनंत महाकाश में अपने परमप्रेम रूप के ध्यान में ही लगा रखा है| उस से परे की झलक मिल जाती है कभी कभी, पर उसका ज्ञान तो गुरु की पूर्ण कृपा पर ही निर्भर है जो कभी न कभी तो हो ही जायेगी, अतः उसकी कोई कामना भी नहीं रही है, जैसी उनकी इच्छा|
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मेरे लिए गुरु की सेवा का अर्थ है .... भक्ति द्वारा अपने अंतःकरण यानि मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार का उनके श्री चरणों में पूर्ण समर्पण व आत्मतत्व में स्थिति की निरंतर साधना| यही गुरु की वास्तविक सेवा है| "गु" का अर्थ है अज्ञान रुपी अन्धकार, और "रू" का अर्थ है मिटाने वाला| गुरु हमारे अज्ञान रुपी अन्धकार को मिटा देते हैं| "गु" का अर्थ है गुणातीत होना, और "रू" का अर्थ है रूपातीत होना| गुरु सभी गुणों (सत, रज व तम), रूपों व माया से परे है| "गु" माया का भासक है, "रू" परब्रह्म है जो माया को मिटा देते हैं|
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उन गुरुरूप परब्रह्म को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जून २०१८

सनातन धर्म भगवान के संकल्प से ही जीवित है .....

सनातन धर्म भगवान के संकल्प से ही जीवित है .....
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सनातन वैदिक हिन्दू धर्म भगवान की परम कृपा से ही जीवित है, और भगवान की परम कृपा से ही जीवित रहेगा| स्वयं भगवान ही इसकी रक्षा करेंगे| वर्त्तमान में मुझे तो किसी भी व्यक्ति या संगठन में भरोसा नहीं है| यदि इसे नष्ट ही होना होता तो अब से बारह-तेरह सौ वर्ष पूर्व ही नष्ट हो जाता| परिस्थितियाँ कई शताब्दियों से प्रतिकूलतम ही हैं| पर समय समय पर महान युगपुरुष आत्माओं ने अवतरित होकर इसमें नए प्राण फूंककर इसे जीवित रखा है|
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यदि इस धर्म में दस लोग भी ऐसे हैं जो भगवान से जुड़े हुए हैं तो यह धर्म कभी नष्ट नहीं हो सकता| धर्म की रक्षा, धर्म के पालन से ही होती है, अन्यथा नहीं| भगवान ने ही इसकी रक्षा की है और वे ही करेंगे| इसके शत्रु चर्च, जिहाद और मार्क्सवाद हैं|
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चर्च के पीछे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया, वेटिकन और भारत की बिकी हुई मीडिया की शक्ति है| इनका घोषित उद्देश्य है सारे हिन्दुओं को ईसाई बनाकर हिंदुत्व को नष्ट करना| इस दिशा में ये पिछले छहः सौ वर्षों से प्रयत्नशील हैं| भारत में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी चर्च के हाथ में है| भारत का संविधान और शिक्षा व्यवस्था दोनों ही हिन्दू द्रोही हैं| ऐसे ही जिहादी संगठन हैं जिनका उद्देश्य भी हिन्दुओं का मतांतरण या उनकी ह्त्या करना है| ऐसे ही नास्तिक मार्क्सवादी हैं|
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भारत में सनातन हिन्दू धर्म बचा हुआ है तो सिर्फ परमात्मा की कृपा से ही| भगवान इसे कभी नष्ट नहीं होने देंगे| मुझे तो उन्हीं पर आस्था है, किसी अन्य पर नहीं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जून २०१८

अब तक के अनुभूत किये हुए सारे उपदेशों का व जीवन का सार .....

इस जीवन में मेरे अब तक के अनुभूत किये हुए सारे उपदेशों का व जीवन का सार जो मेरी अत्यल्प सीमित बुद्धि से मुझे अब तक समझ में आया है, वह निम्न है .....
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"समभाव में स्थिति का निरंतर प्रयास ही सारी साधनाओं का सार है| अहंकारवृत्ति नहीं, बल्कि परमात्मा ही हमारा स्वरुप है| परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति और परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है| गुरु रूप परब्रह्म निरंतर मेरे कूटस्थ में स्थायी रूप से बिराजमान हैं| वे ही एकमात्र कर्ता, भोक्ता व मेरा अस्तित्व हैं|"
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मेरे लिए यही अब तक के अनुभूत किये हुए सारे उपदेशों का सार है| इसके अतिरिक्त और कुछ भी सुनने या जानने की मेरी अब कोई इच्छा नहीं है|
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जब मैं इस तथाकथित मेरी देह को देखता हूँ तब स्पष्ट रूप से यह बोध होता है कि यह मूल रूप से एक ऊर्जा-खंड है, जो पहले अणुओं का एक समूह बनी, फिर पदार्थ बनी| फिर इसके साथ अन्य सूक्ष्मतर तत्वों से निर्मित मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार रूपी अंतःकरण जुड़ा| इस ऊर्जा-खंड के अणु निरंतर परिवर्तनशील हैं| इस ऊर्जा-खंड ने कैसे जन्म लिया और धीरे धीरे यह कैसे विकसित हुआ इसके पीछे परमात्मा का एक संकल्प और विचार है| ये सब अणु और सब तत्व भी एक दिन विखंडित हो जायेंगे| पर मेरा अस्तित्व फिर भी बना रहेगा, क्योंकि परमात्मा ही मेरा अस्तित्व है| यह शरीर और पृथकता का बोध तो परमात्मा के मन का एक विचार मात्र है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपाशंकर
२७ जून २०१८

इन्द्रिय सुखों की व अहंकार की कामना पूर्ती का हर प्रयास एक धोखा है.....

इन्द्रिय सुखों की व अहंकार की कामना पूर्ती का हर प्रयास एक धोखा है| हमारा मन सदा इन्द्रीय सुखों व अहंकार की कामना पूर्ती का प्रयास करता है, इससे तृष्णा ही बढती है| स्वादिष्ट भोजन करते करते हमारा सारा जीवन बीत गया पर स्वादिष्ट भोजन की भूख अभी तक मिटी ही नहीं है| मनुष्य का शरीर बूढा और अशक्त हो जाता है, पर वासनाओं का अंत कभी नहीं होता| इस दुश्चक्र से मुक्ति का एक ही उपाय है, और वह है कामनाओं से मुक्ति| एक ऐसी भी कामना भी है जिसमें अन्य सब कामनाओं का अंत हो जाता है, वह है भगवान के लिए अभीप्सा और परमप्रेम|
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मुक्ति के विषय पर कठोपनिषद में खूब लिखा है| उसका गहन स्वाध्याय सभी को खूब करना चाहिए| श्रुति भगवती स्पष्ट आदेश देती है जीव को सारी कामनाओं से मुक्त होने की| वेदों का वाक्य ही प्रमाण है, अतः इस विषय पर आगे कुछ भी लिखना मेरे लिए अनुचित होगा| उपनिषदों व गीता का स्वाध्याय स्वयं करें वैसे ही जैसे भूख लगने पर भोजन स्वयं करते हैं| दूसरों के भोजन से हमारी भूख नहीं मिटती|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जून २०१८

Tuesday 26 June 2018

"काम वासना" ही "शैतान" है .....

"काम वासना" ही "शैतान" है .....
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इब्राहिमी मज़हबों (Abrahamic Religions) में जिसे "शैतान" कहा गया है, वह वास्तव में "काम वासना" ही है| "शैतान" का अर्थ लोग लगाते हैं कि वह कोई राक्षस या बाहरी शक्ति है, पर यह सत्य नहीं है| "शैतान" कोई बाहरी शक्ति नहीं अपितु मनुष्य के भीतर की कामवासना है जो कभी तृप्त नहीं होती और अतृप्त रहने पर क्रोध को जन्म देती है| क्रोध बुद्धि का विनाश कर देता है और मनुष्य का पतन हो जाता है| यही मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है|
इससे बचने का एक ही मार्ग है और वह है साधना द्वारा स्वयं को देह की चेतना से पृथक करना| यह अति गंभीर विषय है जिसे प्रभु-कृपा से ही समझा जा सकता है| स्वयं के सही स्वरुप का अनुसंधान और दैवीय शक्तियों का विकास हमें करना ही पड़ेगा जिसमें कोई प्रमाद ना हो| यह प्रमाद ही मृत्यु है जो हमें इस शैतान के शिकंजे में फँसा देता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०१६

भगवान की कृपा ही सब कुछ है (यही हमारा सहारा है, और कुछ भी नहीं) .....

भगवान की कृपा ही सब कुछ है (यही हमारा सहारा है, और कुछ भी नहीं) .....
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भगवान की कृपा से ही शाश्वत नित्य-अविनाशी पद प्राप्त होता है| यही मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है| गीता में भगवान कहते हैं .....
सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः | मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् ||१८:५६||
अर्थात् मेरा आश्रय लेनेवाला भक्त सदा सब कर्म करता हुआ भी मेरी कृपासे शाश्वत अविनाशी पदको प्राप्त हो जाता है|
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अपनी अति अल्प और सीमित बुद्धि से समझ में तो यही आया है कि सदा सब कर्मोंको करने वाला भी जब भगवान को सब कुछ अर्पित कर देता है और उनका आश्रय ले लेता है तब वह भी भगवान के अनुग्रह से उन्हीं का हो जाता है|
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और तो हमें कुछ आता जाता नहीं है| अपने बुद्धिबल और विवेक पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है| न तो कोई साधना करने की शक्ति है, और न ही इस जीवन में और पूर्व जन्मों में कुछ उपलब्ध किया है| एकमात्र पूँजी है वह भगवान के प्रति ह्रदय में छिपा हुआ परम प्रेम है, और कुछ भी नहीं है| वह प्रेम ही भगवान को अर्पित है| भगवान से उनके प्रेम के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं चाहिए|
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अवचेतन मन में छिपे राग-द्वेष और पता नहीं कितनी कलुषता है जो मिटती नहीं है, वह भी भगवान को अर्पित है| अपने अच्छे-बुरे कर्म और उनके फल .... सब भगवान को समर्पित हैं| कुछ भी नहीं चाहिए| उनके चरणों में आश्रय मिल गया है जो सदा बना रहे|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ जून २०१८

हमारी सोच बड़ी विचित्र है .....

हमारी सोच बड़ी विचित्र है .....

(१) जब हम कोई अच्छा काम करते हैं तो भावना करते हैं कि भगवान उसे देख रहे हैं| उस समय भाव रखते हैं कि धर्म का काम कर रहे हैं तो इसका पुण्य अवश्य मिलगा|
(२) पर जब हम घूस लेते हैं, दूसरों को ठगते हैं, चोरी करते हैं, और झूठ बोलते हैं तब यह भाव रखते हैं कि किसी को कुछ नहीं पता, भगवान को भी नहीं मालुम है| स्वयं को न्यायोचित ठहराने के लिए स्वयं के गलत कृत्य को भगवती की लीला बताते हैं, और मानते हैं कि भगवान ही इसे करवा रहे हैं| अति धन्य हैं हम ! वाह ! वाह ! भगवान को भी अपने गलत काम में सहभागी बना लेते हैं|
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(३) सन १९९० के दशक में जब सभी सरकारी कार्यालयों में, बैंकों में और रेलवे आरक्षण में कंप्यूटर लगने आरम्भ हुए थे तब सभी कर्मचारियों ने पूरी शक्ति से इसका बिरोध किया था| कर्मचारियों ने कंप्यूटर खराब कर दिए थे और कम्प्युटरीकरण में कोई सहयोग नहीं दिया| पर समय की मांग के आगे हमें कंप्यूटर लगाने ही पड़े| अब तो बिना कंप्यूटर के काम करने की कोई सोच ही नहीं सकता| उस जमाने में बिना घूस दिए रेलवे में आरक्षण प्रायः नहीं ही मिलता था, बिना घूस लिए टेलीफोन ऑपरेटर ट्रंक कॉल नहीं मिलाते थे| टेलिफोन के अनाप-शनाप बढे हुए बिल आते थे, कहीं कोई सुनवाई नहीं होती थी| पूरे भारत में घूस देना एक शिष्टाचार हो गया था| कम्प्यूटरीकरण से बहुत अधिक लाभ हुआ है| भ्रष्टाचार में बहुत अधिक कमी आई है|
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(४) मोबाइल फ़ोन आये तब भी लोगों ने खूब हँसी उड़ाई थी और तत्कालीन केन्द्रीय संचार मंत्री पं.सुखराम के बारे में बहुत अधिक ही अपशब्दों का प्रयोग हुआ था| कुछ भी हो मोबाइल फोन के प्रयोग को सामान्य बनाने में पं.सुखराम का बहुत बड़ा हाथ था| हालाँकि उन्हें बहुत अधिक ही अपमानित होना पड़ा था| अब तो मोबाइल फोन के बिना जीवन की कोई कल्पना ही नहीं कर सकता|
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(५) यही बात GST की है| GST का महत्त्व दो साल बाद लोगों की समझ में आयेगा| करों की चोरी इस देश का सबसे बड़ा व्यवसाय है| करों की चोरी भारत में इतनी अधिक है कि कोई भी व्यापारी ईमानदारी का व्यापार आरम्भ कर ही नहीं पाता| GST से इसी चोरी के धंधे पर चोट पड़ने वाली है, इसीलिए हायतौबा इतनी अधिक मची हुई है| सभी सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को घूस लेने की आदत पडी हुई है, बिना घूस लिए किसी का काम करने की वे सोच ही नहीं सकते| यदि हमें कर चोरी का अधिकार है तो .... पुलिस, न्यायपालिका व कार्यपालिका को भी घूस लेने का अधिकार है| यह सभ्यता विनाश की ओर तेजी से जा रही है| इसका नष्ट होना निश्चित है|
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(६) जब पंजाब में आतंकवाद समाप्त हुआ तब सभी ईमानदार पुलिस अधिकारियों को मानवाधिकार के नाम पर बहुत अधिक अपमानित होना पड़ा था| कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तो आत्म-ह्त्या करने को बाध्य हो गए थे| उनके प्रशंसनीय कार्यों की सरकार ने ही सराहना नहीं की थी| इससे किसको लाभ हुआ?
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(७) भारत में आज परिस्थिति ऐसी बन रही है कि सरकारी लूट-खसोट करने वाले राजनेताओं व अधिकारियों को देश को लूटने के अवसर दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं| इसलिए वे प्रसन्न नहीं हैं| इसलिए वे संगठित होकर इस व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं| यह पहली बार है कि भारत में एक ऐसी केन्द्रीय सरकार है जो गम्भीरता से जनता के लिए कार्य कर रही है, और भ्रष्ट नहीं है|
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फिर भी मैं आशावादी हूँ| यह चोरी, बेईमानी और अधर्म अधिक समय तक नहीं टिकेगा| भगवान की सृष्टि में अधर्म अधिक समय तक नहीं रहेगा|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ जून २०१८

जब भी याद आये तब भगवान का ध्यान करो .....

जब भी भगवान कि गहरी स्मृति आये और भगवान पर ध्यान करने कि प्रेरणा मिले तब समझ लेना कि प्रत्यक्ष भगवान वासुदेव वहीँ खड़े होकर आदेश दे रहे हैं| उनके आदेश का पालन करना हमारा परम धर्म है| सारी शुभ प्रेरणाएँ भगवान के द्वारा ही मिलती हैं| जब भी मन में उत्साह जागृत हो उसी समय शुभ कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिये| भगवान ने जो आदेश दे दिया उसका पालन करने में किसी भी तरह के देश-काल शौच-अशौच का विचार करने की आवश्यकता नहीं है| शुभ कार्य करने का उत्साह भगवान् की विभूति ही है| निरंतर भगवान का ध्यान करो| कौन क्या कहता है और क्या नहीं कहता है इसका कोई महत्व नहीं है| हम भगवान कि दृष्टी में क्या हैं ....महत्व सिर्फ इसी का है|
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परमात्मा की परोक्षता और स्वयं की परिछिन्नता को मिटाने का एक ही उपाय है ... परमात्मा का ध्यान| परम प्रेम और ध्यान से पराभक्ति प्राप्त होती है, जिसकी परिणिति ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति है, जिससे ऊँचा अन्य कुछ है ही नहीं| यहाँ तक पहुँचते पहुँचते सब कुछ निवृत हो जाता है| फिर त्याग करने को कुछ अवशिष्ट ही नहीं रहता| यह धर्म और अधर्म से परे की स्थिति है| ज्ञाननिष्ठालक्षणा भक्ति में भक्त और भगवान में कोई भेद नहीं रहता|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ जून २०१८

भक्ति द्वारा ही भगवान को तत्त्वतः जाना जा सकता है, अन्यथा नहीं ....

भक्ति द्वारा ही भगवान को तत्त्वतः जाना जा सकता है, अन्यथा नहीं ....
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भगवान कहते हैं ..... "भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः| ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्||" १८:५५||

उपरोक्त श्लोक की अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने बहुत बड़ी बड़ी व्याख्याएँ की हैं| इस छोटे से पृष्ठ पर उन्हें उतारना असंभव है| भक्तिपूर्वक भगवान का ध्यान करने से ही यह समझ में आयेगा, बुद्धि से नहीं| जब भगवान स्वयं कह रहे हैं कि उन्हें सिर्फ भक्ति से ही जाना जा सकता है तो उसमें बुद्धि लगाने का कोई औचित्य नहीं है| मैं आचार्य शंकर, और आचार्य श्रीधर स्वामी जैसे अनेक सभी महान आचार्यों की वन्दना करता हूँ जो गीता का सही अर्थ जनमानस को समझा पाये|

हे भगवान वासुदेव, आप मेरे ह्रदय में स्थायी रूप से निरन्तर बिराजमान हैं| जब आप स्वयं प्रत्यक्ष यहाँ हैं तो मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए| कुछ भी जानने और समझने की मुझे अब कोई आवश्यकता नहीं है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जून २०१८

एक पुरानी स्मृति .....

एक पुरानी स्मृति .....
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३८ वर्ष पूर्व आज २३ जून ही के दिन सन १९८० में  तत्कालीन यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष संजय गांधी की हवाई दुर्घटना में रहस्यमय मृत्यु हुई थी| इस से भारतीय राजनीति के सारे समीकरण बदल गए थे| संजय गाँधी का इंदिरा गाँधी के स्थान पर प्रधान मंत्री बनाना उस समय तय था| आपातकाल में हुए अत्याचारों की जांच कर रहे शाह आयोग को संजय गाँधी ने काम ही नहीं करने दिया था| चौधरी चरण सिंह की सरकार को बिना पार्लियामेंट का मुंह देखे ही गिरा देने का श्रेय भी संजय गाँधी की कूटनीति को ही जाता है| आपातकाल के बाद दुबारा इंदिरा गाँधी को सत्ता में लाने का श्रेय भी उन को जाता है| वे भारत की राजनीति के सर्वाधिक दबंग व्यक्तित्व थे| सारा सरकारी प्रशासन उनकी जेब में रहता था| पूरे आपातकाल में भारत का पूरा प्रशासन उनके इशारों पर काम करता था| राज्यों के मुख्यमंत्री लोग उनके जूते हाथ में लिए लिए पीछे पीछे चलते थे| जयपुर में वे हाथी से नीचे उतरते तो वहाँ के मुख्यमंत्री उनको नीचे उतारने के लिए अपना कंधा उनके पैरों के नीचे लगा देते थे| भारत के राष्ट्रपति से लेकर सारे वरिष्ठ मंत्री उनके समक्ष झुकते थे| ऐसे व्यक्तित्व के असामयिक निधन ने पूरे भारत को स्तब्ध कर दिया था|
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तरह तरह के समाचार उन दिनों आये थे, तरह तरह की अफवाहें उडी थीं| कुछ लोगों ने कहा कि वायुयान में विस्फोट हुआ था जो उन्होंने देखा| कुछ लोगों ने कहा कि वायुयान का तेल समाप्त हो गया था| आधिकारिक रूप से आज तक किसी को नहीं पता कि उस दिन वास्तव में क्या हुआ था| कई ऐसी भी बातें उड़ी थीं जो लिखने योग्य नहीं हैं|
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मैं उस समय भारत में नहीं था| कुछ दिनों के लिए उत्तरी कोरिया गया हुआ था जहाँ न तो कोई विदेशी रेडियो प्रसारण सुनता था और न कोई अंग्रेजी का अखबार छपता था| वहाँ काम करने वाले कुछ रूसी लोगों से मुझे यह समाचार मिला जिन्होंने एक रूसी भाषा में छपे अखवार में दुर्घटना का समाचार दिखाया था| उसके बाद मैं कुछ महीनों तक विदेशों में ही रहा| उस घटना के कई महिनों बाद मैं अपने परिवार से मिलने दिल्ली से बीकानेर ट्रेन से जा रहा था| प्रथम श्रेणी के उस डिब्बे में संयोग से मेरे सामने वाली दो बर्थों पर श्री राजेश पायलट और उनकी पत्नी भी बीकानेर जा रहे थे| पूरी रात हमारी बातचीत होती रही| उनसे हुई बातचीत से भी कुछ स्पष्ट नहीं हुआ कि संजय गाँधी के विमान की दुर्घटना कैसे हुई| लगता है यह रहस्य एक रहस्य ही रहेगा|
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कृपा शंकर
२३ जून २०१८

भगवान की पराभक्ति के लिए समत्व में स्थित होना आवश्यक है .....

भगवान की पराभक्ति के लिए समत्व में स्थित होना आवश्यक है .....
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भगवान की पराभक्ति के लिए भी अति गहन साधना करनी पड़ती है| सिर्फ पढने या इच्छा करने मात्र से वह नहीं मिलती| साधना व उसका फल .... दोनों ही भगवान की कृपा पर निर्भर हैं| गीता में भगवान कहते हैं .....
"ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति| समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्"||१८:५४||
अर्थात् ..... जो साधक ब्रह्ममय बन गया है, वह प्रसन्नमना न आकांक्षा करता है और न शोक| समस्त भूतों के प्रति सम होकर वह मेरी परा भक्ति को प्राप्त करता है ||
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यह श्लोक और इसका भावार्थ दोनों ही अति सरल हैं| निज विवेक से कोई भी इनका अर्थ समझ सकता है| पर दूसरी पंक्ति में लिखा .... "समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्" वाक्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है| इस पर गहन चिंतन की आवश्यकता है|
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समत्व के बारे में भगवान कह चुके हैं .....
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय | सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते" ||२:४८||
अर्थात् .... हे धनंजय आसक्ति को त्याग कर तथा सिद्धि और असिद्धि में समभाव होकर योग में स्थित हुये तुम कर्म करो, यह समभाव ही योग कहलाता है|
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भगवान के अनुसार समत्व ही योग है| जो समत्व को उपलब्ध हो चुका है वही पराभक्ति को प्राप्त होता है| यहाँ यह विषय बहुत जटिल हो गया है| तीन-चार बार मनन करेंगे तो भगवान की कृपा से समझ में आ जाएगा|
आप सब को सादर सप्रेम नमन ! शुभ कामनाएँ !!
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जून २०१८

निर्जला एकादशी .....

आज निर्जला एकादशी है जिसे भीम एकादशी भी कहते हैं| आज का दिन बड़ा शुभ है क्योंकि यह पूर्ण रूपेण भगवान विष्णु को समर्पित है| आज के दिन विधि-विधान से व्रत करें, व भगवान विष्णु की आराधना करें| भगवान विष्णु आपकी हर मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे| यदि निर्जला न हो सके तो सजला कर लें, पर व्रत अवश्य करें| बीमार, अशक्त, वृद्ध और बालक, भी व्रत तो अवश्य करें, वे फलाहार दिन में दो तीन बार कर सकते हैं| यदि भूखे न रह सकें तो दूध पी लें, पर अन्न ग्रहण न करें| इस व्रत का पारण अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के पश्चात किया जाता है| जो श्रद्धालु शालिग्राम की पूजा करते हैं वे शालिग्राम की पूजा करें| विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ सब लोग दिन में कम से कम एक बार तो अवश्य करें और द्वादसाक्षरी भागवत मन्त्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" का यथासंभव खूब जप करें|
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इस एकादशी को दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है| एक बिलकुल नए मिटटी के घड़े को अच्छी तरह धोकर उसमें स्वच्छ जल भरें, घड़े की गर्दन पर पर मौली बांधें, घड़े पर रोली से स्वस्तिक का निशान बनाएँ और उस पर फल, गुड़ और दक्षिणा रखकर किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान करें| संभव हो तो एक छाते व श्वेत वस्त्र का भी दान करें| ज़रूरतमंदों को शुद्ध पानी पिलायें| इस का आज के दिन बड़ा महत्त्व है|
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आज के शुभ दिन होने का निजानुभूती से प्रमाण दे रहा हूँ| आज प्रातः जब मैं उठा तो उठते ही भगवान वासुदेव का स्वतः ही बहुत गहरा ध्यान हुआ| मन आनंद से भर कर प्रफुल्लित हो गया और भगवान वासुदेव की बहुत गहरी अनुभूतियाँ हुईं| तब याद आया कि आज निर्जला एकादशी है|
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एक पौराणिक कथा है कि द्रौपदी और पांडव एकादशी का व्रत बड़ी श्रद्धा से करते थे, पर भीम को बड़ी भूख लगती थी और व्रत करने में बड़ी कठिनाई होती थी| वे अपनी समस्या का हल ढूँढने महर्षि व्यास के पास पहुँचे और सारी बात बताई| तब महर्षि ने भीम को सलाह दी कि वे ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को व्रत और पूजन करें, इससे वर्ष में पड़ने वाली सभी एकादशियों का फल उन्हें एक बार में ही प्राप्त जाएगा| भीम ने महर्षि की बात मान कर निर्जला एकादशी का व्रत पूरे विधि विधान से किया और सभी २४ एकादशियों का फल एक ही बार में प्राप्त कर लिया| तब से निर्जला एकादशी को भीम एकादशी भी कहा जाता है|
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भगवान से उनकी भक्ति ही माँगें| भक्ति मिल गयी तो सब कुछ मिल गया| भगवान वासुदेव सब का कल्याण करें|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ जून २०१८

ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो ? .....

ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो ? .....
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कल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मैनें लिखा था ...."योग का लक्ष्य है ब्रह्मभाव की प्राप्ति| वह पूर्ण रूप से मेरा निजी अनुभव और व्यक्तिगत मत था| अब प्रश्न यह है कि ब्रह्मभाव की प्राप्ति कैसे हो? गीता में भगवान कहते हैं .....
"अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् | विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते" ||१८:५३||
अर्थात् .... अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग कर ममत्वभाव से रहित और शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य बन जाता है|
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यह संकल्प शक्ति के द्वारा या बुद्धिबल से कभी संभव नहीं हो सकता| इसके लिए किसी ब्रह्मनिष्ठ, श्रौत्रीय, सिद्ध, योगी आचार्य महात्मा के सान्निध्य में गहन ध्यान साधना करनी होगी| परब्रह्म परमात्मा की कृपा के बिना यह संभव नहीं है|
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अतः इस विषय पर अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है| जिस पर भगवान की कृपा होगी उसे भगवान स्वयं मार्गदर्शन प्रदान करेंगे| यह विषय ऐसा है जिसे गुरु महाराज अपने चेले को प्रत्यक्ष रूप से अपने सामने बैठाकर ही समझा सकते हैं| अपने आप यह समझ में नहीं आयेगा| वैराग्य, निरंतर अभ्यास और गुरुकृपा इसके लिए आवश्यक है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०१८

ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनें .....

ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनें .....
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गीता के निम्न श्लोक पर कुछ दिनों पूर्व बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी .....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन| निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्"||२:४५||
अब यहाँ हम उस पर कोई चर्चा नहीं कर रहे हैं| पर दूसरी पंक्ति के चार शब्दों के महत्त्व पर पुनश्चः विचार कर रहे हैं| दूसरी पंक्ति के ये चार शब्द हैं .....
(१) निर्द्वंद्व (२) नित्यसत्त्वस्थ (३) निर्योगक्षेम (४) आत्मवान |
भगवान अर्जुन को निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बनने को कहते हैं| भगवान यह आदेश सिर्फ महाभारत के अर्जुन को ही नहीं दे रहे, हम सब को दे रहे हैं|
मेरा आप सब से अनुरोध है कि पहले तो हम स्वाध्याय द्वारा इन शब्दों के अर्थ को समझें और फिर गहन मनन चिंतन और ध्यान द्वारा इन्हें निज जीवन में पूर्ण निष्ठा से अवतरित करें| हम निर्द्वन्द्व, नित्यसत्त्वस्थ, निर्योगक्षेम और आत्मवान् बन कर ही ब्रह्मनिष्ठ हो सकेंगे|
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भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर ने इन शब्दों के बारे में लिखा है .....
(१) निर्द्वन्द्वः सुखदुःखहेतू सप्रतिपक्षौ पदार्थौ द्वन्द्वशब्दवाच्यौ ततः निर्गतः निर्द्वन्द्वो भव |
(२) नित्यसत्त्वस्थः सदा सत्त्वगुणाश्रितो भव |
(३) निर्योगक्षेमः अनुपात्तस्य उपादानं योगः उपात्तस्य रक्षणं क्षेमः
योगक्षेमप्रधानस्य श्रेयसि प्रवृत्तिर्दुष्करा इत्यतः निर्योगक्षेमो भव |
(४) आत्मवान् अप्रमत्तश्च भव |
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हम सब द्वन्द्वातीत, नित्यसत्वस्थ, निर्योगक्षेम व आत्मवान हों| इसके लिए गहन ध्यान साधना करनी होगी| योगक्षेम की चिन्ता यानि अप्राप्त पदार्थ की प्राप्ति की कामना व प्राप्त पदार्थ के संरक्षण की कामना भी छोड़नी होगी| इसके लिए सदा सतोगुण में स्थित होना होगा, और सभी द्वंद्वों से परे जाना होगा| यह भगवान की परम कृपा पर ही निर्भर है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जून २०१८

योग का लक्ष्य है "ब्रह्मभाव की प्राप्ति". अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (२१ जून) पर शुभ कामनाएँ.......

योग का लक्ष्य है "ब्रह्मभाव की प्राप्ति".
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (२१ जून) पर शुभ कामनाएँ.......
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आध्यात्मिक रूप से योग है अपने अहंभाव का परमात्मा में पूर्ण विसर्जन| हठयोग तो उसकी तैयारी मात्र है क्योंकि साधना के लिए चाहिए एक स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन| तंत्र की भाषा में योग है कुण्डलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन| योगदर्शन का चित्तवृत्तिनिरोध भी एक साधन मात्र है, उसके लिए भी एक स्वस्थ शरीर चाहिए| पर परमात्मा से परम प्रेम और सदाचार के बिना योग साधक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता क्योंकि योग का लक्ष्य है ... ब्रह्मभाव की प्राप्ति|
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गीता में भगवान कहते हैं ....
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः | कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ||६:४६||
अर्थात् .... क्योंकि योगी तपस्वियों से श्रेष्ठ है और ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है, तथा कर्म करने वालों से भी योगी श्रेष्ठ है इसलिए हे अर्जुन तुम योगी बनो||
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ब्रह्मभाव की प्राप्ति किसे होती है? गीता में भगवान कहते हैं ....
विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः| ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः||१८:५२||
अर्थात् विविक्त सेवी (एकान्तप्रिय), लघ्वाशी (अल्पाहारी) जिसने अपने शरीर, वाणी और मन को संयत किया है| ध्यानयोग के अभ्यास में सदैव तत्पर तथा वैराग्य पर समाश्रित है| (ऐसा साधक ही ब्रह्मभाव पाने में समर्थ होता है)
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जो मैं कहना चाहता हूँ वह बात .....
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(१) भगवान से खूब प्रेम करो| जितना आवश्यक हो उतना ही पढ़ो, उससे अधिक नहीं, वह भी सिर्फ प्रेरणा प्राप्त करने के लिए ही, पर थोड़ा-बहुत गीता पाठ नित्य करो| गीता पाठ से पूर्व और पश्चात वैदिक शान्तिपाठ अवश्य करो|

(२) खूब ध्यान करो| ध्यान के लिए शक्तिशाली देह, दृढ़ मनोबल, प्राण ऊर्जा और आसन की दृढ़ता चाहिए | साथ साथ परमात्मा से परम प्रेम, और शुद्ध आचार-विचार भी चाहिए|
(३) सर्वदा निरंतर परमात्मा का चिंतन करो| हर समय भगवान को अपनी स्मृति में रखो | सबसे बड़ी आवश्यकता भगवान की भक्ति है जिसके बिना कोई योगी नहीं हो सकता| हर समय अपने विचारों के प्रति सचेत रहें और चिंतन सदा परमात्मा का ही रहे| मन में आने वाले दूषित विचारों पर यदि लगाम नहीं लगाई जाए तो सुषुम्ना में कुण्डलिनी का ऊर्ध्वगमन थम जाता है, सहस्त्रार में आनंद रूपी अमृत का प्रवाह बंद हो जाता है, सारे आध्यात्मिक अनुभव स्मृति से लुप्त होने लगते हैं, और उन्नति के स्थान पर अवनती आरम्भ हो जाती है|
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जिनके एक भृकुटी विलास मात्र से हज़ारों करोड़ ब्रह्मांडों की सृष्टि, स्थिति और विनाश हो सकता है, वे जब आपके ह्रदय में होंगे तो क्या संभव नहीं है|
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मैं उन सब महान योगियों को नमन करता हूँ जो दिन-रात निरंतर परमात्मा के चैतन्य में रहते हैं| उन सब भक्तों को भी नमन करता हूँ जिनके हृदय में प्रभु को पाने की प्रचंड अग्नि सदा प्रज्ज्वलित रहती है| उनकी चरण रज मेरे माथे की शोभा है| इस सृष्टि में जो कुछ भी शुभ है वह उन्हीं के पुण्यप्रताप से है|
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आप सब महान आत्माओं को नमन !
ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ जून २०१८

हमारी जाति कौन सी है ? .....

हमारी जाति कौन सी है ? .....
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जो वास्तव में अपने पूर्ण हृदय से भगवान को प्रेम करते हैं, उन सब की एक ही जाति है और वह है .... "अच्युत" | एक महिला का विवाह होता है तब विवाहोपरांत उसकी जाति, कुल व गौत्र वही हो जाता है, जो उसके पति का है|

वैसे ही जब हमने अपना जीवन भगवान को सौंप दिया है तो हमारी जाति वही हो जाती है जो भगवान की है| सांसारिक जातियाँ तो इस नश्वर देह की हैं, इस शाश्वत जीवात्मा की नहीं| इस नश्वर देह के अवसान के उपरांत यह नश्वर जाति भी नष्ट हो जायेगी| साथ सिर्फ परमात्मा का ही होगा| अतः भगवान ही हमारी जाति हैं जो अच्युत हैं| इस संसार में सब अपने प्रारब्ध कर्मों का भोग भोगने के लिए ही बाध्य होकर आये हैं| तब कोई विकल्प नहीं था| पर अब तो भगवान ने हमें यह विकल्प दिया है .....

"जाति हमारी ब्रह्म है, माता-पिता हैं राम |
घर हमारा शुन्य में, अनहद में विश्राम ||"

परमात्मा की अनंतता ही हमारा घर है और प्रणव रूपी अनाहत नाद का श्रवण ही विश्राम है| परमात्मा का और हमारा साथ शाश्वत है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२० जून २०१८

मन में किसी कुंठा को जन्म न लेने दें .....

मन में किसी कुंठा को जन्म न लेने दें .....
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मुझे यह प्रेरणात्मक आभास होता है कि जीवन में मिलने वाले प्रगति के सारे अवसर, संयोग से नहीं, पुरुषार्थ से मिलते हैं| संयोग से मिले अवसर भी, पूर्व में अर्जित हमारे अच्छे कर्मों के फल होते हैं| हमारी क्षमता, कार्यकुशलता, दक्षता और सहायक वातावरण भी हमारे पूर्व में अर्जित अच्छे कर्मों के फल हैं| मुझे जीवन में अनेक सुअवसर मिले पर मैं उनका लाभ नहीं ले पाया क्योंकि मेरे पास उनका उपयोग करने की दक्षता व क्षमता नहीं थी| पर मैं किसी को दोष नहीं देता, क्योंकि यह मेरा प्रारब्ध था जो कि मेरे पूर्व कर्मों का फल था|
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किसी भी तरह की महत्वाकांक्षा हमारे मानस में गहराई से आये, उससे पूर्व ही हमें अपने पास उपलब्ध साधनों और अपनी निज क्षमता का आंकलन कर लेना चाहिए| इससे किसी कुंठा का जन्म नहीं होगा| कुंठित व्यक्ति कभी सुखी नहीं होते| हमारे विचार और संकल्प सदा शुभ हों| हमारे विचार और संकल्प ही हमारे कर्म होते हैं, जिनका फल भविष्य में निश्चित रूप से मिलता है|
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सारी कुंठाओं का एकमात्र कारण हमारी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का साकार नहीं होना है| आकांक्षाओं और अपेक्षाओं से मुक्ति तो भगवान की कृपा से ही मिलती है|
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सब को नमन और शुभ कामनाएँ ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० जून २०१८

अंतरिक्ष सेना .....

अंतरिक्ष सेना :--

अंतरिक्ष में युद्ध के लिए एक अंतरिक्ष सेना (Space Force) के गठन का आदेश अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने दिया है| यह अमेरिका की सबसे अधिक शक्तिशाली सेना होगी| डोनाल्‍ड ट्रंप ने अंतर‍िक्ष में अमेरिकी दबदबे को बनाए रखने के लिए Space Force नाम के नए सैन्‍य यूनिट के गठन को अनुमति दे दी है| ट्रंप ने अंतरिक्ष को भी राष्‍ट्र‍ीय सुरक्षा की श्रेणी में डाल दिया है| ट्रंप के अनुसार अंतरिक्ष सेना को आधुनिक शक्‍त‍ियों और टेक्‍नॉलजी से लैस किया जाएगा| इसकी संहारक शक्‍त‍ि अभी मौजूद किसी भी सैन्‍य विभाग से ज्‍यादा होगी|
ट्रंप के अनुसार वे नहीं चाहते कि चीन और रूस या कोई और देश इस क्षेत्र में अमेरिका से आगे निकले| ट्रंप ने साथ ही दोबारा शीघ्र ही चन्द्रमा और मंगल ग्रह पर पहुँचने के अभियान को पूरा करने को कहा है| अंतरिक्ष सेना के गठन का कार्यभार जनरल जोसेफ डनफोर्ड को सौंपा गया है|
Space Force अमेरिकी सैन्‍य शक्‍त‍ि की छठी शाखा होगी| अमेरिका की यह अंतरिक्ष सेना अंतरिक्ष में लड़ी जाने वाली किसी भी संभावित लड़ाई के लिए तैयार रहेगी|
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मुझे उपरोक्त समाचार से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है| हमारे पुराणों में अंतरिक्ष सेनाओं और अंतरिक्ष में हुए युद्धों के अनेक वर्णन है| भारत में भी प्राचीन काल में अंतरिक्ष सेनाएँ होती थीं| देवताओं और असुरों के मध्य अंतरिक्ष में भी युद्ध होते थे| त्रिपुरासुर ने तो एक पूरा नगर ही अंतरिक्ष में बसा रखा था| देवताओं के सेनापति रहे कार्तिकेय द्वारा अंतरिक्ष में वेलायुध नाम के एक अस्त्र के प्रयोग का भी वर्णन आता है|
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कृपा शंकर
२० जून २०१८

राष्ट्रहित सर्वोपरी है ....

राष्ट्रहित सर्वोपरी है ....
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भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है जो हमें परमात्मा की ओर उन्मुख करती है| परमात्मा की सर्वाधिक व सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारतवर्ष में हुई है| धर्म की अवधारणा का यहीं जन्म हुआ जो सनातन वैदिक है| महर्षि श्रीअरविंद के अनुसार भारत ही सनातन धर्म है और सनातन धर्म ही भारत है| सनातन वैदिक धर्म ही भारत का प्राण और आत्मा है जिसके बिना भारत, भारत नहीं है| भारत, भारत इसीलिए है कि सनातन वैदिक धर्म यहाँ का प्राण है| यदि सनातन वैदिक धर्म नष्ट हो गया तो भारत भी नष्ट हो जाएगा|
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भारत की अस्मिता पर सबसे भयंकर प्रहार सन २०१९ ई.के चुनावों में होने वाला है| वेटिकन, जिहादी, मार्क्सवादी, सेकुलर और निहित स्वार्थ वाले राजनेताओं का एक गठबंधन बनेगा जिसका समर्थन अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन व पाकिस्तान करेंगे| इनका लक्ष्य यही होगा कि कोई शक्तिशाली राष्ट्रवादी सरकार भारत में सत्तासीन न हो| कोई कमजोर शासन आये जो उन के हितों का समर्थक हो|
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यदि ये लोग विशेषकर के नेहरु-गाँधी परिवार सता में आ गया तो हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य और विनाश काल होगा| सुव्यवस्थित ढंग से इन्होनें भारत से हिंदुत्व का नाश पिछले ७० वर्षों में किया है, और अब की बार तो ये पूरे भारत को हिन्दू-विहीन कर देंगे| ऐसे ही ये अन्य सारे क्षेत्रीय दल हैं|
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अमेरिका तो कभी भी नहीं चाहेगा कि भारत में राष्ट्रवादी सत्तासीन हों| ये मानवाधिकार आदि की बातें अमेरिका का सबसे बड़ा शस्त्र है| अमेरिका वेटिकन का समर्थक है| भारत की रक्षा भगवान करेंगे| वर्त्तमान परिस्थितियों में भाजपा का दुबारा पूर्ण बहुमत के साथ सता में आना अति आवश्यक है| माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के अलावा अन्य कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो २०१९ में भारत का नेतृत्व कर सके|
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अभी से मैं तो यह अंतिम रूप से स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भाजपा में चाहे लाख कमियाँ हों पर वह अन्य सब दलों से श्रेष्ठ है| माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी में चाहे लाख कमियाँ हों पर वे अन्य सारे राजनेताओं से लाख गुना अधिक अच्छे हैं| मैं जमीनी वास्तविकता को समझता हूँ, और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को भी बहुत अच्छी तरह समझता हूँ| श्री नरेन्द्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है| लोग उनकी बुराई जातिगत आरक्षण के ऊपर करते हैं| वास्तविकता यह है कि जब तक भारत में लोकतंत्र है, जातिगत आरक्षण को कोई भी समाप्त नहीं कर सकता| जातिगत आरक्षण कोई सैनिक तानाशाही ही बन्दूक की नोक पर समाप्त कर सकती है| इसकी जड़ें इतनी गहरी फ़ैल गयी हैं कि इसे बंद करने का प्रयास भारत को गृहयुद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर देगा|
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मेरा पूर्ण समर्पण भाजपा और श्री नरेन्द्र मोदी को होगा| मेरा वोट भी कमल के निशान पर ही पड़ेगा| इस निर्णय में कोई परिवर्तन नहीं होगा| यह अंतिम निर्णय है| यह सुनिश्चित है कि २०१९ में भाजपा पूर्ण बहुमत से जीतेगी और देश के अगले प्रधानमंत्री भी श्री नरेन्द्र मोदी ही होंगे|
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जय जननी ! जय भारत ! वन्दे मातरं ! भारत माता की जय !
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ जून २०१८

Tuesday 19 June 2018

ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति .....

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे। ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥
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जो कुछ भी माँ के पास है, बालक का उस पर जन्मसिद्ध अधिकार होता है| आत्मा नित्य मुक्त है, बंधन एक भ्रम है| पर मुक्त आत्मा भी कभी कभी मायावश भ्रमित हो जाती है ....
"ज्ञानिनामपि चेतांसी देवी भगवती ही सा बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति"
उस मुक्त आत्मा को भी उस परिस्थिति में "ज्ञान" और "वैराग्य" की भिक्षा जगन्माता से माँगनी ही पड़ती है जो माँ उसे सहर्ष प्रदान करती है|
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इस बालक को भी अपनी पूर्ण भक्ति यानी परम प्रेम से इसी क्षण "ज्ञान" और "वैराग्य" की भिक्षा जगन्माता से चाहिए जो उसका जन्मसिद्ध अधिकार है| प्रेममयी करुणामयी माँ कभी ना नहीं करती|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ जून २०१८

माँ को तो सब कुछ करना ही पड़ेगा .....

माँ को तो सब कुछ करना ही पड़ेगा .....
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माँ अपनी ममता से बाध्य है, उसे अपने शिशु को दूध पिलाना ही पड़ता है| शिशु को दूध न मिलने की पीड़ा माँ से सहन नहीं होती| अपने शिशु को दूध न पिलाने पर माँ के स्तनों में घाव हो जाते हैं, माँ ऐसी स्थिति कभी सहन नहीं कर सकती| शिशु असमर्थ है तो भी माँ कैसे भी उसे दूध पिलाती ही है| बालक अपनी माँ की गोद में निर्भय है| माँ बालक को अभय प्रदान करती है, उसके लिए वह अभयंकरी है| कोई बालक को हानि पहुंचाता है तो माँ उसके लिए भयंकरी और विकराल हो जाती है|
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यह तो हुई संसारी माँ की बात, पर हमारी उस से भी बड़ी एक माँ और भी है, वह है जगन्माता जो सारी सृष्टि की माँ है| वह इस बालक को ज्ञान रूपी दुग्ध पिलाना चाहती है, पर इस बालक की असमर्थता से वे पीड़ित है| यह बालक तो माँ की गोद में निश्चिन्त और निर्भय है क्योंकि माँ ने इसके योग-क्षेम और परम कल्याण का दायित्व अपने ऊपर ले लिया है| इसे कोई चिंता नहीं है, चिंता तो माँ को है| अब माँ को ही सब कुछ करना होगा क्योंकि यह बालक तो असमर्थ है| परम करुणामयी माँ कैसे भी इसे जीव से शिव बनाकर ही दम लेगी|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जून २०१८
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अन्नपूर्णा स्तोत्र :--
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥१॥
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥२॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥३॥
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥४॥
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥५॥
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥६॥
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥७॥
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥८॥
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥९॥
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी॥१०॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥११॥
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्॥१२॥
श्री शङ्कराचार्य कृतं!

साधनाकाल की अनुभूतियों को वहीं विसर्जित कर देना चाहिए .....

साधनाकाल की अनुभूतियों को वहीं विसर्जित कर देना चाहिए, वे एक मील के पत्थर की तरह ही होती हैं जो पीछे छूटती जाती हैं, उन के बारे में सोचना ही नहीं चाहिए, अन्यथा आगे की सारी प्रगति रुक जाती है|
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लगभग चालीस-पैंतालिस वर्ष पूर्व गणेशपुरी के स्वामी मुक्तानंद जी की लिखी एक पुस्तक "चित्तशक्तिविलास" पढी थी| उस जमाने में वह पुस्तक बहुत अधिक लोकप्रिय हुई थी| उसमें उन्होंने अपने कुछ दिव्य अनुभव लिखे थे जो एक नए साधक के लिए बड़े प्रेरणादायक होते हैं| मेरे भी मानस में भी कुछ अनुभव लेने की इच्छा जागृत हुई जो सही नहीं थी| कुछ वर्षों बाद मुझे परमहंस योगानंद की पुस्तक "Autobiography of a Yogi" पढने को मिली| उस पुस्तक को पढने मात्र से ही मुझे बड़ी दिव्य और विचित्र अनुभूतियाँ हुईं| फिर साधना काल में ही अनेक विचित्र अनुभूतियाँ होने लगीं| मैंने उत्सुकतावश उन अनुभवों के बारे में एक-दो बार किसी से चर्चा कर ली जो नहीं करनी चाहिए थीं| फिर वे अनुभूतियाँ होनी ही बंद हो गईं| मुझे ध्यान में ही किसी अदृश्य शक्ति ने कड़ी चेतावनी दे दी थी किसी से भी चर्चा न करने के लिए| अब अनेक अनुभूतियाँ होती है जिनका मेरे लिए कोई महत्त्व नहीं रहा है| एक स्वप्न की तरह ही उनकी उपेक्षा कर दी जाती है|
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आध्यात्मिक अनुभूतियाँ ..... दिव्य ज्योति, दिव्य दृश्य, दिव्य ध्वनि व दिव्य स्पंदन जैसे आनंद की अनुभूतियों आदि के रूप में आती हैं| आनंद की अनुभूतियों को तो पकड़ के रखना चाहिए, बाकि सब की उपेक्षा कर देनी चाहिए| इस से कोई भटकाव नहीं होगा|
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हमारा लक्ष्य परमात्मा है, न कि कोई छोटे-मोटे अनुभव| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! 

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जून २०१८

बदलता हुआ युग .....

बदलता हुआ युग .....
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वर्तमान युग एक तरह की सूचना प्रोद्योगिकी का युग है| कोई भी रहस्य अब रहस्य नहीं रहा है| पहले घर से कुछ किलोमीटर दूर ही क्या होता था इसका पता लगने में कई दिन लग जाते थे, पर अब विश्व के किस कोने में क्या हो रहा है, तुरंत पता लग जाता है|
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किशोरावस्था तक मुझे भारत के भूगोल का ही ज्ञान नहीं था| पर युवावस्था आते आते पूरी पृथ्वी का भूगोल व सारा राजनीतिक मानचित्र दिमाग में आ गया| दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव तक का सारा विश्व .... यानि कौन सा देश कहाँ है, धरती के किस भाग में किस समय कैसी जलवायु है, कहाँ कैसा जीवन है, कहाँ कैसी भौगोलिक व सामाजिक परिस्थितियाँ हैं, आदि आदि, व विगत कुछ सौ वर्षों तक का विश्व का सारा महत्वपूर्ण इतिहास अवगत हो गया| भारत में अंग्रेजों के मानसपुत्रों व मार्क्सवादियों द्वारा लिखा गया भारत का सारा इतिहास प्रायः झूठा और दुराग्रहग्रस्त है, वही हम ने पढ़ा था| पर अब वास्तविकता का पता लगने लगा है| ऐसे ही विश्व के सभी प्रमुख धर्मों व भारत के आध्यात्म का भी तुलनात्मक थोड़ा-बहुत ज्ञान ईश्वर की कृपा से हुआ| विश्व के प्रायः हर भाग के अनेक देशों में जाने का अवसर मिला और चिंतनधारा यानि सारी सोच ही बदल गयी|
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अंततः मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सारी सृष्टि ईश्वर के मन की एक कल्पना मात्र है| संसार में सुख की खोज ही दुःख का कारण है| हमारी सारी पीड़ाओं व विषमताओं का कारण परमात्मा से हमारी दूरी है| हम परमात्मा का ध्यान करते हैं यह सबसे बड़ी सेवा है जो हम समष्टि की कर सकते हैं| मनुष्य जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य आत्मज्ञान है| आत्मज्ञान ही ईश्वर की प्राप्ति है| यही मेरा जीवन के सारे अनुभवों का निचोड़ है| मनुष्य को हर कार्य अपने विवेक के प्रकाश में करना चाहिए| किसी भी तरह का दुराग्रह नहीं होना चाहिए| पर यह मेरा अनुभव है जो मेरे ही काम का है| सभी को ध्यान की गहराइयों में जाकर परमात्मा का निजी अनुभव लेना चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जून २०१८

गुरु अर्जुनदेव जी सहित सभी दसों गुरुओं को नमन .....

गुरू अर्जुन देव (१५ अप्रेल १५६३ -- ३० मई १६०६) एक ब्रह्मज्ञानी महापुरुष थे| उनकी सबसे बड़ी देन गुरुग्रंथ साहिब में ३६ महान संतों की वाणियों का संकलन है| ये वाणियाँ तीस रागों में हैं जिनका संकलन रागों के हिसाब से किया गया है| सर्वाधिक वाणी उन्हीं की है| यह उनकी महान विद्वता और अंतर्ज्ञान को दिखाता है|

उनका जीवन परम त्यागमय आदर्श से भरपूर है जिसका अध्ययन सभी को करना चाहिए| गुरु नानकदेव जी से गुरु गोविन्दसिंह जी तक से सभी दसों गुरुओं की जीवनी का अध्ययन मैनें कई बार किया है जिस से जीवन में बहुत प्रेरणा मिली है| सभी गुरुओं को नमन !

आज अनायास ही गुरु अर्जुन देव जी से सम्बंधित एक लेख पढने के बाद ये पंक्तियाँ स्वतः ही लिखी गईं| सभी गुरुओं की जय हो !

Saturday 16 June 2018

फेसबुक से विरक्ति .....

पिछले कई वर्षों से इस अतिअल्प और सीमित बुद्धि से जैसा भी समझ में आया और जैसी भी अंतर्प्रेरणा मिली उसी के अनुसार मुझसे कई लेख लिखे गए| मैं तो एक निमित्त मात्र ही था| एक अति अल्प और सीमित बुद्धि की भी एक सीमा होती है| मनुष्य की बुद्धि उसके अन्तःकरण का एक भाग है| जैसा अंतःकरण होता है वैसी ही बुद्धि हो जाती है| मैं मूल रूप से आध्यात्म मार्ग का एक अकिंचन साधक हूँ| साधना मार्ग ही मेरा पथ है जिस पर चल रहा हूँ और चलता रहूँगा|
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फेसबुक पर किसी भी अच्छे लेख को टाइप करने में बहुत समय लगता है| दिन में तीन-चार घंटे खर्च हो जाना तो सामान्य बात है| इस समय अंतर्प्रेरणा तो यही मिल रही है कि इस समय का उपयोग ध्यान साधना में किया जाए| ७० वर्ष की इस आयु में प्रतिदिन मुझे कम से कम कुल नित्य छः घंटे और सप्ताह में एक दिन तो कम से कम आठ घंटे भगवान का ध्यान करना चाहिए| यही सबसे बड़ी सेवा है जो मैं समष्टि और व्यष्टि के लिए कर सकता हूँ| अतः जब भी प्रेरणा मिलेगी, फेसबुक पर लिखूंगा अवश्य, पर अधिक से अधिक समय अन्यत्र व्यस्त रहूँगा|
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आप सब से जो प्यार और स्नेह मुझे मिला है उसके लिए मैं आप सब का आभारी हूँ| आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हो| आप सब को साभार सप्रेम सादर नमन !
ॐ नमो नारायण ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ जून २०१८

वास्तविक प्रेम तो परमात्मा से ही होता है .....

वास्तविक प्रेम तो परमात्मा से ही होता है| परमात्मा का प्रेम प्राप्त हो जाए तो और पाने योग्य कुछ भी नहीं है| यह ऊँची से ऊँची और बड़ी से बड़ी उपलब्धि है| इससे बड़ा और कुछ भी नहीं है| प्रेम मिल गया तो सब कुछ मिल गया| प्रेम में सिर्फ देना ही देना होता है, लेना कुछ भी नहीं| लेने की भावना ही नष्ट हो जाती है| प्रेम उद्धार करता है क्योंकि प्रेम में कोई कामना या अपेक्षा नहीं होती| प्रेम में कोई भेद भी नहीं होता| भक्ति सूत्रों में परम प्रेम को ही भक्ति बताया गया है|
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परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी भी वस्तु या प्राणी से राग आसक्ति है, प्रेम नहीं| आसक्ति में सिर्फ लेना ही लेना यानि निरंतर माँग और अपेक्षा ही रहती है| आसक्ति पतन करने वाली होती है| आसक्ति अपने सुख के लिए होती है, जब कि परमात्मा से प्रेम में कोई शर्त नहीं होती|
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जब भी अवसर मिले नारद भक्ति सूत्रों व शांडिल्य सूत्रों का अध्ययन करना चाहिए| ये हर धार्मिक पुस्तकों की दूकान पर मिल जाते हैं|

१५ जून २०१८

हमारा निवास कल्पवृक्ष के नीचे है, फिर भी हम ये दुःख क्यों सह रहे हैं?.....

हमारा निवास कल्पवृक्ष के नीचे है, फिर भी हम ये दुःख क्यों सह रहे हैं?.....
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यदि अति गहरी नींद में हमें स्वप्न आये कि किसी ने हमारी ह्त्या कर दी है व हम बहुत अधिक व्याकुल और दुखी हैं, तो उस दुःख से निवृत होने के लिए हमें उस स्वप्न से जागना ही होगा| जागने पर ही पता चलेगा कि वह अनुभव एक दुःस्वप्न था| वैसे ही इस संसार रूपी दुःखमय भवसागर को पार हम परमात्मा में जागृत होकर ही कर सकते हैं| परमात्मा में जागने पर पता चलेगा कि यह भवसागर एक दुःस्वप्न मात्र ही था|
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गुरु महाराज के चरण कमल कल्पवृक्ष हैं| सूक्ष्म देह में हमारा सहस्त्रार गुरु महाराज के चरण कमल हैं जहाँ हमें ध्यान करना चाहिए| उसमें स्थिति गुरुचरणों में आश्रय है| उसके नीचे आज्ञाचक्र में जीवात्मा का निवास है| उस कल्पवृक्ष के नीचे गुरु आश्रित रहकर भी यदि हम आध्यामिक दरिद्रता से उत्पन्न दुःख को सह रहे हैं तो वास्तव में बड़े अभागे हैं| वहाँ तो कोई दुःख हमें विचलित ही नहीं करना चाहिए| गीता में भगवान कहते हैं ...
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः| यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ||६:२२||"
उसके लिए हमें भगवान की चेतना में निरंतर रहना पड़ेगा| भगवान तो सर्वत्र हैं| गीता में ही भगवान कहते हैं ...
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति | तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||६:३०||
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रामचरितमानस के बालकाण्ड में ब्रह्म के उस रूप का बड़ा सुन्दर वर्णन भगवान शिव, जगन्माता पार्वती जी को सुनाते हैं.....

"बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना | कर बिनु करम करइ बिधि नाना ||
आनन रहित सकल रस भोगी | बिनु बानी बकता बड़ जोगी ||
तन बिनु परस नयन बिनु देखा | ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ||
असि सब भाँति अलौकिक करनी | महिमा जासु जाइ नहिं बरनी ||"
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उपरोक्त छंद में विभावना अलंकार का बड़ा सुन्दर प्रयोग है| यहाँ मैं लिखते लिखते भटक गया हूँ, अतः बापस मूल विषय पर आ रहा हूँ|
जब भी समय मिले, पूर्ण प्रेम, श्रद्धा और विश्वास से गुरु महाराज के चरण कमलों का ध्यान करें (यानी सहस्त्रार में ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें)| आगे का सारा मार्गदर्शन भगवान स्वयं करते हैं, और अनंताकाश में सूक्ष्म जगत के दर्शन और उसमें प्रवेश भी भगवान की कृपा से ही होगा|
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आप सब महान आत्माओं को मेरा नमन ! आप सब परमात्मा के सर्वश्रेष्ठ साकार रूप हैं| शिवमस्तु ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जून २०१८

भगवान को हम कैसे जानें ? ....

प्रश्न : भगवान को हम कैसे जानें ?
उत्तर : भगवान "है". उस "है" में स्थित हो कर ही हम भगवान को जान सकते हैं....
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ....
न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः| अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः||१०:२||
अर्थात् मेरे प्रकट होनेको न देवता जानते हैं और न महर्षि क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियोंका आदि हूँ|
भगवान ही देवों, महर्षियों व हम सब के मूल कारण हैं| इसलिए हम भगवान के प्रभव को नहीं जानते|
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हम भगवान को कैसे जानें ? क्योंकि उनको जानने की शक्ति किसी में भी नहीं है|
गीता में भगवान कहते हैं .....
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः| तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता||१४:४||
अर्थात् हे अर्जुन, नाना प्रकार की सब योनियों में जितनी मूर्तियाँ अर्थात शरीरधारी प्राणी उत्पन्न होते हैं, प्रकृति तो उन सबकी गर्भधारण करने वाली माता है और मैं बीज को स्थापन करने वाला पिता हूँ|
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अतः हम भगवान को कैसे जानें ? इसका उत्तर रामचरितमानस में है ....
"सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥"

भावार्थ:-वही आपको जानता है, जिसे आप जना देते हैं और जानते ही वह आपका ही स्वरूप बन जाता है। हे रघुनंदन! हे भक्तों के हृदय को शीतल करने वाले चंदन! आपकी ही कृपा से भक्त आपको जान पाते है||
सार की बात :-- भगवान की कृपा से ही हम भगवान को जान सकते हैं, अन्यथा नहीं| और कोई मार्ग नहीं है| भगवान की कृपा भी उनके प्रति परम प्रेम से होती है|
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कल मैनें एक लेख में लिखा था .....
संसार में कोई भी चीज "है" के बिना नहीं मिलती| मिठाई है, फल है, खाना है, ठण्ड है, गर्मी है, सुख है, दुःख है, फलाँ फलाँ व्यक्ति है, ..... हर चीज में "है" है| वैसे ही भगवान भी "है", यहीं "है", इसी समय "है", सर्वदा "है", और सर्वत्र "है"| यही "ॐ तत्सत्" "है"| हमेशा याद रखो कि भगवान हर समय हमारे साथ "है"| मेरे पास इसका पक्का सबूत है .... वह मेरी आँखों से देख रहा है, मेरे पैरों से चल रहा है, मेरे हाथों से काम कर रहा है, मेरे हृदय में धड़क रहा है, और मेरे मन से सोच रहा है| मेरा अलग से कुछ होना एक भ्रम है| वास्तव में वह ही है| इस से बड़ा सबूत और दूसरा कोई नहीं हो सकता| हे प्रभु, आप ही आप रहो| यह मैं होने का भ्रम नष्ट हो जाए|
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अजपा-जप में हम अन्दर जाती सांस के साथ "सो" और बाहर आती सांस के साथ "हं" का मानसिक जप करते हैं| और भाव करते हैं कि यह अनंत समष्टि हम ही हैं| वह यही "है" की साधना है| साथ साथ भीतर बज रही प्रणव की ध्वनि यानि अनाहत नाद को भी सुनते रहें|
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आप सब को सादर सप्रेम नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०१८

परमशिव ही मेरी गति हैं .....

परमशिव ही मेरी गति हैं .....
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अब सब तरह का अध्ययन और स्वाध्याय आदि सब कुछ छोड़ दिया है| इस आयु में अब इतना स्वतंत्र समय नहीं है, पता नहीं कौन सा क्षण अंतिम क्षण हो जाए| एक-एक क्षण अति मूल्यवान है| भगवान अपनी परम कृपा से जो कुछ भी सिखा दें, वह ही स्वीकार्य है, अन्य कुछ भी नहीं| जो जाना हुआ है वह भी रुचिकर नहीं रहा है| सिर्फ शिव, शिव, और शिव, उन्हीं की गहनतम चेतना हर क्षण रहे, बाकि कुछ भी नहीं|
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भगवान से निरंतर प्रेरणा मिलती रहती है कि हर क्षण अपनी चेतना को कूटस्थ में रखो| कूटस्थ में ही अवर्णनीय महाशक्ति व परमशिव की अनुभूतियाँ होती हैं| वे परमशिव ही मेरे प्राण हैं, व वे ही मेरे परमेष्टि गुरु है| आगम का रहस्य भी भगवान शिव वहीं अनावृत करते हैं| सब कुछ विलीन भी उन्हीं में होता है| वे जब प्रत्यक्ष हैं तो अन्य कोई कामना ही नहीं रही है| उन्हीं को निरंतर निहारते रहो, और इधर-उधर अब क्या देखना है?
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अब हर समय परावास्था में ही रहने का अभ्यास करने का आदेश मिल रहा है| बालक कुछ करने में कमजोर हो तो उसकी माता ही उसका कार्य कर देती है| वही यहाँ हो रहा है| सारी कमियाँ जगन्माता अपनी दिव्य उपस्थिति से भर रही हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०१८

संविधान के बारे में मैं अपनी कुछ शंकाएँ दूर करना चाहता हूँ .....

संविधान के बारे में मैं अपनी कुछ शंकाएँ दूर करना चाहता हूँ|
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(१) भारत का संविधान हिन्दू द्रोही क्यों है? हिन्दुओं को समानता का अधिकार क्यों नहीं देता? समान नागरिक संहिता क्यों नहीं है? हिन्दू क़ानून अलग से क्यों हैं? अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की अवधारणा क्यों है? अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक को भारत का संविधान कैसे परिभाषित करता है? जो तथाकथित अल्पसंख्यक हैं, उनको तो अपने धर्म को पढ़ाने की छूट है पर हिन्दुओं को क्यों नहीं? हिन्दुओं के मंदिरों पर सरकार का अधिकार क्यों है? क्या एक भी मस्जिद या चर्च पर सरकार का अधिकार है? हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट क्यों? मंदिरों का धन धर्म-प्रचार के लिए है, न कि सरकारी लूट के लिए|
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(२) भारत का संविधान जातिवाद को क्यों बढ़ावा देता है? संविधान ने चार-पांच स्थायी जातियाँ बना दी हैं जैसे SC, ST, OBC, SBC आदि आदि आदि| हर सरकारी पन्ने पर जाति का उल्लेख क्यों होता है? अगर सरकारी दस्तावेजों में जाति का उल्लेख प्रतिबंधित हो जाता तो जातिवाद अब तक समाप्त हो जाता| जाति के आधार पर आरक्षण क्यों है?
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(३) क्या आपने संविधान की धारा 147 (आर्टिकल 147) का अध्ययन किया है? कृपा कर के उसका सार बता दीजिये| मैंने तो मेरा पूरा दिमाग खपा दिया, पर कुछ भी समझ में नहीं आया| मेरे एक मित्र ने जो बड़े विद्वान् हैं, और एक सेवानिवृत वरिष्ठ IAS अधिकारी भी हैं, ने भी अपना पूरा दिमाग लगा दिया पर कुछ भी समझ में नहीं आया| उसकी भाषा आपके जैसा कोई विशेषज्ञ ही समझ सकता है| क्या संविधान की इस धारा के अंतर्गत हम अभी भी अंग्रेजों के गुलाम हैं? क्या भारत सरकार ब्रिटिश पार्लियामेन्ट और ब्रिटेन की रानी द्वारा दिए गए आदेश को मानने के लिये बाध्य है? क्या ब्रिटेन की रानी आज भी कानुनी तौर पर भारत की रानी है? क्यों वो अपनी मर्जी से और बिना पासपोर्ट के भारत आ सकती है? हम अभी भी कॉमनवेल्थ में क्यों है? क्या संविधान का आर्टिकल 147 कहता है कि यदि ब्रिटिश पार्लियामेंट कोई रेसोल्युशन पास कर दे तो वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय के लिए मान्य होगा? यदि ब्रिटेन का पार्लियामेंट भारत की सत्ता वापस अपने हाथ लेने का कानून पास कर दे तो क्या वह पूर्णतया कानूनी होगा और भारत सरकार को कानूनी तौर पर इसे मानना ही होगा?
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(४) भारत का संविधान क्या इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट १९३५ की नकल ही तो नहीं है? भारत का संविधान यदि भारत का धर्म-ग्रन्थ है तो उसकी भाषा इतनी घोर क्लिष्ट क्यों है जिसे बहुत अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी नहीं समझ सकते? सारे राजनेता कहते हैं कि भारत का संविधान डा.बाबा साहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर ने लिखा है| उन लोगों ने या तो डा.आंबेडकर का साहित्य नहीं पढ़ा है, या संविधान नहीं पढ़ा है, या दोनों ही नहीं पढ़े हैं| डा.आंबेडकर के साहित्य की भाषा बहुत सरल और स्पष्ट है| संविधान उनकी भाषा लगता ही नहीं है| उन्होंने इसे compile किया था या लिखा था? ऐसी बहुत सारी धाराएं हैं और उनके बहुत सारे क्लॉज़ हैं जो कोई समझ ही नहीं सकता|
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मेरे विचार से भारत के संविधान की दुबारा समीक्षा होनी चाहिए| क्या इसे भारत की लोकसभा और राज्यसभा ने पास किया था? भारत के कितने सांसद इस संविधान को समझते हैं? और भी बहुत सारे प्रश्न होंगे| अभी तो इतने ही बहुत हैं|
साभार धन्यवाद ! सप्रेम सादर नमन और राम राम !
१२ जून २०१८

Tuesday 12 June 2018

"है" .....

"है" .....
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संसार में कोई भी चीज "है" के बिना नहीं मिलती| मिठाई है, फल है, खाना है, ठण्ड है, गर्मी है, सुख है, दुःख है, फलाँ फलाँ व्यक्ति है, ..... हर चीज में "है" है| वैसे ही भगवान भी "है", यहीं "है", इसी समय "है", सर्वदा "है", और सर्वत्र "है"| यही "ॐ तत्सत्" "है"| हमेशा याद रखो कि भगवान हर समय हमारे साथ "है"|
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मेरे पास इसका पक्का सबूत है .... वह मेरी आँखों से देख रहा है, मेरे पैरों से चल रहा है, मेरे हाथों से काम कर रहा है, मेरे हृदय में धड़क रहा है, और मेरे मन से सोच रहा है| मेरा अलग से कुछ होना एक भ्रम है| वास्तव में वह ही है| इस से बड़ा सबूत और दूसरा कोई नहीं हो सकता|
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हे प्रभु, आप ही आप रहो| यह मैं होने का भ्रम नष्ट हो जाए|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०१८

गीता के अनुसार ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म .....

गीता के अनुसार ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म .....
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भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं .....

"शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च | ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||१८:४२||
अर्थात् शम? दम? तप? शौच? क्षान्ति? आर्जव? ज्ञान? विज्ञान और आस्तिक्य ये ब्राह्मण के स्वभाविक कर्म हैं ||
और भी सरल शब्दों में ब्राह्मण के स्वभाविक कर्म हैं ..... मनोनियन्त्रण, इन्द्रियनियन्त्रण, शरिरादि के तप, बाहर-भीतर की सफाई, क्षमा, सीधापन यानि सरलता, शास्त्र का ज्ञान और शास्त्र पर श्रद्धा|
इनकी व्याख्या अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने की है| इनके अतिरिक्त ब्राह्मण के षटकर्म भी हैं, जो उसकी आजीविका के लिए हैं| पर यहाँ हम उन स्वभाविक कर्मों पर ही विचार कर रहे हैं जो भगवान श्रीकृष्ण ने कहे हैं|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०१८

दिव्यप्रेम और शांति की अनुभूति का आनंद लीजिये .....

दिव्यप्रेम और शांति की अनुभूति का आनंद लीजिये .....
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एक बार हम ध्यान में बैठ जाएँ तो जब तक भरपूर दिव्य प्रेम और शान्ति की अनुभूति न हो तब तक उठना नहीं चाहिए| जप व ध्यान साधना के पश्चात मिलने वाली शान्ति और प्रेम की अनुभूति सबसे अधिक महत्वपूर्ण है| यह साधना का प्रसाद है| उस शान्ति और प्रेम का का भरपूर आनंद लीजिये| उसका आनंद लिए बिना उठ जाना ऐसे ही है जैसे आपने एक दूध की बाल्टी भरी और उसको ठोकर मार कर चल दिए| जब भी शान्ति और प्रेम की अनुभूति हो उसका पूरा आनंद लीजिये| कर्ताभाव से मुक्त रहें|
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परस्त्री और पर धन की कामना, दूसरो का अहित और अधर्म की बाते सोचना हमारे मन के पाप हैं, जिनका दंड भुगतना ही पड़ता है| ऐसे ही असत्य और अहंकार युक्त वचन, पर निंदा, हिंसा, अभक्ष्य भक्षण, और व्यभिचार हमारे शरीर के पाप हैं, जिनका भी दंड भुगतना ही पड़ता है|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०१७

भारत-चीन सीमा विवाद, भारत की रक्षा व्यवस्था, भारत में सुराज और भारत का आत्म-सम्मान ......

भारत-चीन सीमा विवाद, भारत की रक्षा व्यवस्था, भारत में सुराज और भारत का आत्म-सम्मान ......
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भारत-चीन सीमा विवाद एक अत्यधिक जटिल समस्या है जिसे एक सामान्य नागरिक नहीं समझ सकता| चीन का राजनीतिक नेतृत्व भी चाहे तो किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकता| दोनों ओर से जन-भावनाएँ अति प्रबल हैं| अपने अपने आत्म-सम्मान के साथ इस समस्या को सुलझाना अति कठिन है| हमारे से भी बड़ी भयंकर भूलें हुई हैं जिन के कुप्रभाव को मिटाना असंभव है| चीन के लिए भी पीछे हटना असम्भव ही है| पर एक उम्मीद है| अगर दोनों देशों के दो महान नेता सद्भावना से मिलकर समस्या को सम्मानपूर्वक निपटाना चाहें तो निपटा सकते हैं| वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपती श्री शी जिनपिंग दोनों में बड़ी सदभावना है और दोनों ही चाहते हैं कि इस समस्या का शांतिपूर्ण समाधान हो| वे प्रयास भी कर रहे हैं|
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मैं तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि इस समस्या का समाधान इन दो महान नेताओं के अतिरिक्त अन्य किसी के वश की बात नहीं है| तिब्बत में सामान्य स्थिति लाना, तिब्बती शरणार्थियों व दलाई लामा को बापस ससम्मान तिब्बत भेजना .... यह कार्य भी ये दोनों नेता ही कर सकते हैं| इसके अतिरिक्त तिब्बत से आने वाली नदियों के जल पर भी कोई समझौता भी ये दोनों नेता ही कर सकते हैं|
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भारत की रक्षा व्यवस्था को इतना सुदृढ़ करना, भारत में सुराज लाने का ईमानदारी से प्रयास और भारत का आत्म-सम्मान पुनर्स्थापित करने का श्रेय मैं प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम को देता हूँ| भारत का गौरव उन्होंने पूरे विश्व में बढ़ाया है|
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मैं पूरी निष्ठा से भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि २०१९ के आम चुनावों में वे सम्पूर्ण बहुमत के साथ विजयी बन कर आयें और भारत माता को परम वैभव प्रदान करें| मैं सदा उनकी विजय के लिए भगवान से प्रार्थना करूँगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ जून २०१८

Sunday 10 June 2018

भगवान किसी की कामना पूरी करे ही नहीं .....

अपनी कामनाओं की पूर्ती के लिए ही मनुष्य दर दर भटकता है| पता नहीं कितनी मनौतियाँ करता है, कितनी दरगाहों में, मजारों पर, समाधियों पर और न जाने कितने देवस्थानों पर जाकर प्रार्थना और दुआएँ करता है| संयोगवश जहाँ उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है उस स्थान को वह दैवीय उपस्थिति वाला मान लेता है|

मुझे अब एक बात समझ में आने लगी है है कि ये मनोकामनायें किसी देवी-देवता, पीर-फ़कीर, या किसी मज़ार पर जाने से नहीं, बल्कि अपने स्वयं के विश्वास द्वारा ही पूरी होती है| भगवान कभी किसी की इच्छा यानि कामनाओं की पूर्ति नहीं करते| कामनाओं की पूर्ती स्वयं के विश्वास से होती हैं| एक पूरी हुई कामना तुरंत अन्य अनेक कामनाओं को जन्म दे देती है, और हमारे दुःख का कारण बनती है| कामना की अपूर्ति से हमें कोई हानि नहीं होती| 

मेरी तो सोच यह है कि भगवान किसी की कामना पूरी करे ही नहीं| इससे संसार का बहुत अधिक भला हो जाएगा| कई भ्रम इससे टूटेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
९ जून २०१८

मेरी कमी और विफलता .....

मेरी कमी और विफलता .....
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अगर मुझ में कोई कमी है व मेरी कोई विफलता है तो मुझे वह छिपानी नहीं चाहिए| उस को छिपाना स्वयं को धोखा देना है| मैं भक्ति और आध्यात्म के ऊपर लिखता हूँ, बड़ी बड़ी बातें करता हूँ, पर उसकी कितनी पात्रता मुझमें है, इसका भी विचार मुझे करना चाहिए| मैं अगर अपनी कमियों व विफलताओं का विश्लेषण करूँ तो मेरी सबसे बड़ी विफलता और सबसे बड़ी कमी यह है ...... " मेरी भक्ति अभी भी व्यभिचारिणी है, और अनन्य भक्ति की प्राप्ति मुझे अभी तक नहीं हुई है|"
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भक्ति जब अव्यभिचारिणी और अनन्य हो जाए तभी भगवान उपलब्ध होते हैं| गीता के तेरहवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक में भगवान ने अव्यभिचारिणी भक्ति का उल्लेख किया है| अनेक स्वनामधन्य आचार्यों ने इसके ऊपर भाष्य लिखे हैं| पर भगवान की कृपा से जो मुझे समझ में आया है वह ही यहाँ लिख रहा हूँ|
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भगवान के सिवाय अन्य कहीं भी किसी से भी कोई अनुराग है तो वह भक्ति व्यभिचारिणी है| भगवान के सिवाय हमें अन्य किसी की भावना होनी ही नहीं चाहिए| दूसरी बात यह है कि भगवान से प्रेम करते करते जब पृथकता न रहे, पूर्ण एकत्व हो जाए, व किसी अन्य का कोई बोध ही न रहे तब वह भक्ति अनन्य भक्ति होती है|
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जब तक भक्ति अनन्य व अव्यभिचारिणी न हो तब तक मुझे सब प्रपंचों से दूर असम्बद्ध ,अप्रतिबद्ध, निःसंग और पूर्ण निष्ठापूर्वक अपनी गुरु प्रदत्त उपासना करनी चाहिए| भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण के अतरिक्त अन्य कोई लक्ष्य न हो| किसी भी तरह का कोई अहंकार न हो|
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अतः स्वयं को व्यवस्थित करने के लिए वाणी व मन के मौन का अभ्यास व खूब ध्यान साधना करनी चाहिए| वास्तव में कर्ता तो स्वयं भगवान हैं, मैं तो निमित्त मात्र हूँ| पर भगवान को मुझ में प्रवाहित होने का अवसर तो मुझे देना ही पड़ेगा|
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आप सब महान दिव्यात्माओं को नमन ! आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ हो| आप सब के हृदय में भगवान नारायण प्रत्यक्ष बिराजमान हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ जून २०१८

हिन्दू जाति कभी कायर नहीं हो सकती .....

हिन्दू जाति कभी कायर नहीं हो सकती .....

अब तो उत्थान का काल आ गया है| पतन के काल में भी जिस हिन्दू जाति ने गोरा, बादल, राणा सांगा और प्रताप, जयमल और फत्ता, बप्पा रावल, दुर्गादास और शिवाजी, गुरू अर्जुनदेव, गुरू तेगबहादुर, गुरू गोविंद सिंह, महाराजा रणजीत सिंह और हरि सिंह नलवा जैसे हजारों शूरवीरों को उत्पन्न किया वह जाति कभी कायर नहीं हो सकती|

जिस हिन्दू जाति की सैकड़ों स्त्रियों ने अपने हाथों से अपने भाईयों, पतियों और पुत्रों की कमर में शस्त्र बांधे और उनको युद्ध में भेजा, जिस हिन्दू जाति की अनेक स्त्रियों ने स्वयं पुरूषों का वेश धारण कर अपने धर्म व जाति की रक्षा के लिए युद्ध क्षेत्र में लड़ कर सफलता पायी, अपनी आंखों से एक बूंद भी आंसू नही गिराया, जिन्होंने अपने पातिव्रत्य धर्म की रक्षा के लिए दहकती प्रचण्ड अग्नि में प्रवेश किया, वह जाति कभी कायर नहीं हो सकती|

भारत के प्राण ..... वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, स्मृति, पुराण आदि हैं, न कि सेकुलरों द्वारा लिखा गया झूठा इतिहास|
७ जून २०१८

माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं .....

माता पिता दोनों ही प्रथम परमात्मा हैं| किसी भी परिस्थिति में उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि उनका आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में हम उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं, पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार हमें नहीं है| उनका पूर्ण सम्मान करना हमारा परम धर्म है| श्रुति कहती है ..... "मातृदेवो भव, पितृदेवो भव|" उनके अपमान से भयंकर पितृदोष लगता है| पितृदोष जिन को होता है, या तो उनका वंश नहीं चलता या उनके वंश में अच्छी आत्माएं जन्म नहीं लेती| पितृदोष से घर में सुख शांति नहीं होती और कलह बनी रहती है| आज के समय अधिकांश परिवार पितृदोष से दु:खी हैं| वे प्रत्यक्ष रूप से आपके सम्मुख हैं तो प्रत्यक्ष रूप से, और नहीं भी हैं तो मानसिक रूप से उन देवी-देवता के श्री चरणों में प्रणाम करना हमारा धर्म है|
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(१) "ॐ ऐं" .... मानसिक रूप से जपते हुए इस मन्त्र से अपने पिता को प्रणाम करना चाहिए| यह मन्त्र स्वतः चिन्मय है| "ॐ" तो प्रत्यक्ष परमात्मा का वाचक है| "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह वाग्भव बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है .... हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|

(२) "ॐ ह्रीं" .... मानसिक रूप से जपते हुए इस मन्त्र से अपनी माता को प्रणाम करना चाहिए यह माया, महालक्ष्मी और माँ भुवनेश्वरी का बीज मन्त्र है जिनका पूर्ण प्रकाश स्नेहमयी माता के चरणों में प्रकट होता है| प्रथम गुरु और जगन्माता के रूप में अपनी माता को प्रणाम करने का अर्थ है ... हे माता मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
५ जून २०१३

एक अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र के अंतर्गत भारत से गौवंश समाप्त किया जा रहा है ....

एक अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र के अंतर्गत भारत से गौवंश समाप्त किया जा रहा है, ताकि .....
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(१) भारत को यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से उनके दूध का आयात करना पड़े| चीन में गौवंश पूरी तरह समाप्त हो गया है| वहाँ गायें बची ही नहीं है| सोयाबीन से दूध बनाते हैं, और बाहर से मिल्क पाउडर का आयात करते हैं| बिलायती गायों का दूध गुणवत्ता में अच्छा नहीं होता| भारत की देशी नस्ल की गायों को अमेरिका ने अच्छी खुराक देकर अधिक दूध देने वाली गाय बना दिया है जिसका दूध और गायों के दूध से चार गुना अधिक मंहगा है| पकिस्तान में भी सब गायों को मारकर खा गए हैं| अब वहाँ के बच्चों को दूध ही नहीं मिलता| ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क से मिल्क पाउडर आयात कर के पाउडर को घोल कर घोलकर दूध बना कर बच्चों को पिलाते हैं|
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(२) बिलायती गायों के बैल किसी काम के नहीं होते| उनको खेती के काम में नहीं ला सकते| देशी गौवंश समाप्त हो जाएगा तो खेती के लिए बैल ही नहीं मिलेंगे| फिर डीजल इंजनों से चलने वाले ट्रेक्टरों से ही खेती करनी पड़ेगी, जिसके लिए तेल अरब देशों से खरीदना पडेगा| दुनिया से तेल भी बीस-तीस साल में समाप्त होने वाला है| फिर भारत की कमर टूट जायेगी, ऐसी उनकी सोच है|

मेरे प्राण भगवान परम शिव हैं .....

मेरे प्राण भगवान परम शिव हैं| वे ही सभी जड़, चेतन, व प्राणियों की देहों में प्राण रूप में गतिशील हैं| सारी सृष्टि के वे प्राण हैं| आकाश तत्व भी वे ही हैं| एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है| उनके सिवा अन्य सब मिथ्या है|

इस सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी में मूलाधार चक्र से सहस्त्रार तक एक ध्यान लिंग है| वह ध्यान लिंग ही मेरा साधना स्थल है| इस ध्यान लिंग के भीतर ही प्राण रूप में मेरे इष्ट देव सभी सातों चक्रों की परिक्रमा करते रहते हैं| इसी से यह देह जीवंत है|

कूटस्थ में इस ध्यान लिंग से ऊपर अनंताकाश है, जिससे भी परे एक विराट श्वेत ज्योतिषांज्योति से आलोकित क्षीर सागर है जहाँ भगवान नारायण का निवास है| वे भगवान नारायण ही पंचमुखी महादेव हैं| उनका प्रबल आकर्षण ही साधना पथ पर भटकने नहीं देता| भटक जाते हैं तो उनकी कृपा बापस सही मार्ग पर ले आती है| वे ही परम शिव हैं, वे ही परात्पर गुरु हैं, और वे ही मेरे परम उपास्य देव और जीवन के उद्देश्य हैं| 

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जून २०१८

भावनात्मक जुड़ाव क्या एक बंधन है ? .....

भावनात्मक जुड़ाव क्या एक बंधन है ? .....

किसी भी वस्तु या व्यक्ति से भावनात्मक जुड़ाव को ही हम "मोह" या "राग" कह सकते हैं| भावनात्मक जुड़ाव को भी एक बंधन बताया गया है| यदि यह एक बंधन है तो इसे तोड़ना सांसारिक व्यक्ति के लिए तो असम्भव है|

वास्तविक "निर्मोही" या "वैरागी" होना एक बहुत ही उच्च स्तर की बात है| यह उसी के लिए संभव है जो एक अवधूत परमहंस अवस्था में पहुँच चुका हो| इसके लिए तो बहुत अधिक आध्यात्मिक साधना करनी होती है| संकल्प मात्र से इस बंधन से मुक्त होना असंभव है| सब तरह की कामनाओं का त्याग करना होता है|

अपने नाम के साथ कुछ भी लिखना या स्वयं को कुछ भी घोषित करना एक धोखा भी हो सकता है यदि हमारा आचरण वैसा न हो| किसी की बड़ी बड़ी बातें सुनकर, किसी का नाम देखकर या किसी का आवरण देखकर ही हमें प्रभावित नहीं होना चाहिए| आवरण नहीं, आचरण से हम मनुष्य को पहिचानें, नहीं तो धोखा ही धोखा है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ जून २०१८

Saturday 2 June 2018

लोकतंत्र अंततः विफल होगा, कोई और ही व्यवस्था आयेगी .....

लोकतंत्र अंततः विफल होगा, कोई और ही व्यवस्था आयेगी .....
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लोकतंत्र में नेतृत्व को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता नहीं के बराबर है| एक नेता के लिए स्वतंत्र निर्णय लेना वास्तव में सर्वाधिक कठिन कार्य है| उसे हर समय चिंता रहती है कि मेरे मतदाता कहीं मेरे विरुद्ध न हो जाएँ और मैं कहीं अगला चुनाव हार न जाऊँ| चाहे वह कितना भी अच्छा काम करे, बुराई तो उसकी होगी ही| अतः वह लोक-लुभावन फैसले लेता है| साथ साथ अगला चुनाव जीतने के लिए और पिछले चुनाव में हुए खर्चे की पूर्ति के लिए रुपयों की व्यवस्था करने की चिंता में भी रहता है, जो सब घोटालों और भ्रष्टाचार की जड़ है|
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इसका कोई समाधान नहीं है| भारत की प्राचीन राज्य व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ थी|

१ जून २०१८

इस समय हमारा भारतीय समाज गतिहीन और निश्चेष्ट क्यों है ?.....

इस समय हमारा भारतीय समाज गतिहीन और निश्चेष्ट क्यों है ?.....
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यह एक गंभीर चिंतन का विषय है| इस समय कोई पथप्रदर्शक और मार्गदर्शक नहीं है| आत्मा की उन्नति ही वास्तविक उन्नति है ... यह बताने वाला कोई नहीं है| आत्मा की उन्नति होगी तो सारी ही उन्नति होगी| मेरे विचार से सामूहिक उन्नति कभी नहीं हो सकती|
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हर व्यक्ति स्वयं को महत्वपूर्ण समझे| इस भावना से कार्य करे कि मेरे ऊपर ही सारी सृष्टि का भार है| ये सारी भौतिक व्यवस्थाएँ जैसे समाजवाद, सेकुलरवाद आदि भ्रामक हैं| ये व्यक्ति को पिछलग्गू बनाती हैं| इनमें कोई सफल नहीं हो सकता| साम्यवाद और सेकुलरवाद की विफलता मैं प्रत्यक्ष देख चुका हूँ|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने हमें निमित्त मात्र बनकर, परमात्मा को कर्ता बनाकर कर्म करने को कहा है .....

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ||११:३३||
शंकर भाष्य के अनुसार इसका अर्थ है ..... "तस्मात् त्वम् उत्तिष्ठ भीष्मप्रभृतयः अतिरथाः अजेयाः देवैरपि अर्जुनेन जिताः इति यशः लभस्व केवलं पुण्यैः हि तत् प्राप्यते। जित्वा शत्रून् दुर्योधनप्रभृतीन् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् असपत्नम् अकण्टकम् | मया एव एते निहताः निश्चयेन हताः प्राणैः वियोजिताः पूर्वमेव | निमित्तमात्रं भव त्वं हे सव्यसाचिन् सव्येन वामेनापि हस्तेन शराणां क्षेप्ता सव्यसाची इति उच्यते अर्जुनः||"
अर्थात् ..... क्योंकि ऐसा है --, इसलिये तू खड़ा हो और देवोंसे भी न जीते जानेवाले भीष्म द्रोण आदि महारथियोंको अर्जुनने जीत लिया ऐसे निर्मल यशको लाभ कर| ऐसा यश पुण्योंसे ही मिलता है| दुर्योधनादि शत्रुओंको जीतकर समृद्धिसम्पन्न निष्कण्टक राज्य भोग| ये सब ( शूरवीर ) मेरेद्वारा निःसन्देह पहले ही मारे हुए हैं अर्थात् प्राणविहीन किये हुए हैं| हे सव्यसाचिन् तू केवल निमित्तमात्र बन जा| बायें हाथसे भी बाण चलानेका अभ्यास होनेके कारण अर्जुन सव्यसाची कहलाता है|
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यह सोच भारत की प्राण है| पर दुर्भाग्य से धर्मनिरपेक्षता के तुष्टिकरण में हम भारत की आत्मा से दूर जा रहे हैं| इसी कारण हमारा समाज गतिहीन और निःचेष्ट है| हर एक व्यक्ति को अपनी प्रधानता का बोध हो| भगवान की कृपा हम सब पर हो|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ जून २०१८

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वय को यज्ञों में जप यज्ञ कहा है | अब प्रश्न यह उठता है कि हम इसे यज्ञ की भाँति कैसे करें ? .....

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वय को यज्ञों में जप यज्ञ कहा है | अब प्रश्न यह उठता है कि हम इसे यज्ञ की भाँति कैसे करें ? .....
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महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ||१०:२५||
शंकर भाष्य में इसका अर्थ दिया है ..... महर्षीणां भृगुः अहम् | गिरां वाचां पदलक्षणानाम् एकम् अक्षरम् ओंकारः अस्मि | यज्ञानां जपयज्ञः अस्मि ? स्थावराणां स्थितिमतां हिमालयः ||
अर्थात् ..... महर्षियोंमें मैं भृगु हूँ, वाणी सम्बन्धी भेदों में ... पदात्मक वाक्योंमें एक अक्षर ओंकार हूँ | यज्ञोंमें जपयज्ञ हूँ और स्थावरों में अर्थात् अचल पदार्थोंमें हिमालय नामक पर्वत हूँ ||
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अग्नि पुराण के अनुसार ..... जकारो जन्म विच्छेदः पकारः पाप नाशकः | तस्याज्जप इति प्रोक्तो जन्म पाप विनाशकः || इसका अर्थ है .... ‘ज’ अर्थात् जन्म मरण से छुटकारा, ‘प’ अर्थात् पापों का नाश ..... इन दोनों प्रयोजनों को पूरा कराने वाली साधना को ‘जप’ कहते हैं|
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मेरी सोच है कि कोई भी साधना जितने सूक्ष्म स्तर पर होती है वह उतनी ही फलदायी होती है| जितना हम सूक्ष्म में जाते हैं उतना ही समष्टि का कल्याण कर सकते हैं| जप यज्ञ भी सूक्ष्म में होना चाहिए | वह कैसे हो इसकी विधि मुझे समझ में तो पूरी तरह आ रही है पर उसे शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ हूँ| आप स्वयं ही अपने अंतर में इसका अर्थ स्पष्ट कीजिये| धन्यवाद!

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ जून २०१८

गर्मी का खूब आनंद लें .....

गर्मी का खूब आनंद लें .....

इस गर्मी के मौसम में प्रातःकाल साढ़े तीन बजे उठें और उषःपान व शौचादि से निवृत होकर चार बजे से साढ़े पाँच बजे तक बाहर खुले में बैठकर भगवान का ध्यान या नामजप करें| इतना आनंद आयेगा जो अवर्णनीय है| साढ़े पाँच से साढ़े छः बजे तक किसी बगीचे मे या बाहर कहीं शुद्ध हवा में लम्बे लम्बे साँस लेते हुए घूमने के लिए जाएँ| जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए| हर क्षण का आनंद लें| सुख और दुःख एक मानसिक अवस्था मात्र है| खूब प्रसन्न रहें और जीवन को आनंदमय बना लें|
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आजकल दिन में जहाँ तक हो सके धूप में बाहर ना निकलें| यदि निकलना ही पड़े तो सिर को मोटे सूती कपडे से अच्छी तरह ढक लें| छाते का भी प्रयोग करें| गर्म हवा से देह को बचाएं| सफ़ेद सूती वस्त्र पहिनें| नंगे पाँव गर्म भूमि पर न चलें| घर से बाहर लिकलने से पूर्व खूब पानी पीकर चलें| प्यास लगते ही खूब पानी पीएँ| अनावश्यक बाहर खुले में ना रहें| किसी को लू लग जाना एक मेडिकल आपत्काल होता है| तुरंत उपचार न मिलने से मृत्यु हो सकती है| इसलिए सभी को इसका प्राथमिक उपचार सीख लेना चाहिए|
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इस मौसम में छाछ, बील का शरबत, नीबुपानी, कच्चे आम का पना और तरबूज का सेवन बहुत लाभदायक और मजेदार भी होता है| प्याज भी दवा का काम करता है| राजस्थान और हरयाणा में छाछ और बाजरे के आटे से एक विशेष विधि से एक पेय बनाते हैं जिसे 'राबड़ी' कहते हैं| यह राबड़ी पीने से लू और गर्मी से रक्षा होती है| जितनी लू चलती है, खरबूजा उतना ही मीठा होता है| आजकल लू चल रही है तो खरबूजे भी बहुत मीठे आ रहे हैं| दूध और आम के रस को मिलाकर एक पेय 'अमरस' बनाया जाता है जिसको ठंडा कर के रात्रि में पीने का आनंद अमृततुल्य है|
 कृपा शंकर
३१ मई २०१८

हमारा मन शान्त, शुभ तथा कल्याणप्रद विचारों वाला हो .....

हमारा मन शान्त, शुभ तथा कल्याणप्रद विचारों वाला हो .....

सारी साधनाओं का और सारे दर्शन शास्त्रों का सार तत्व जो मुझे समझ में आया है, सरलतम और न्यूनतम शब्दों में वह है .... जैसे हमारे विचार हैं, जैसा हम सोचते हैं, वही हम बन जाते हैं| सारी सृष्टि हमारे ही विचारों का घनीभूत रूप है| हमारे सामूहिक संकल्प ही हमारे संसार का निर्माण करते हैं|

उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते, इसीलिए हम ईश्वर की उपासना करते हैं| हमारे संकल्प यदि शिव-संकल्प होंगे तो हम भी शिव होंगे|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० मई २०१८