हमारा मन शान्त, शुभ तथा कल्याणप्रद विचारों वाला हो .....
सारी साधनाओं का और सारे दर्शन शास्त्रों का सार तत्व जो मुझे समझ में आया है, सरलतम और न्यूनतम शब्दों में वह है .... जैसे हमारे विचार हैं, जैसा हम सोचते हैं, वही हम बन जाते हैं| सारी सृष्टि हमारे ही विचारों का घनीभूत रूप है| हमारे सामूहिक संकल्प ही हमारे संसार का निर्माण करते हैं|
उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते, इसीलिए हम ईश्वर की उपासना करते हैं| हमारे संकल्प यदि शिव-संकल्प होंगे तो हम भी शिव होंगे|
सारी साधनाओं का और सारे दर्शन शास्त्रों का सार तत्व जो मुझे समझ में आया है, सरलतम और न्यूनतम शब्दों में वह है .... जैसे हमारे विचार हैं, जैसा हम सोचते हैं, वही हम बन जाते हैं| सारी सृष्टि हमारे ही विचारों का घनीभूत रूप है| हमारे सामूहिक संकल्प ही हमारे संसार का निर्माण करते हैं|
उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते, इसीलिए हम ईश्वर की उपासना करते हैं| हमारे संकल्प यदि शिव-संकल्प होंगे तो हम भी शिव होंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० मई २०१८
कृपा शंकर
३० मई २०१८
अधिक बोलने से और अधिक विचारों से मन चंचल होता है| इसलिए .....
ReplyDelete(१) अपनी वाणी के मौन का अभ्यास करें| जितना आवश्यक है उतना ही बोलें|
(२) अपने मन के मौन का अभ्यास करें| मन में अनावश्यक विचार न आने दें| सारे विचारों का समर्पण सिर्फ परमात्मा के चिंतन में ही कर दें|
(३) परमात्मा के ध्यान में महा-मौन की अनुभूति होती है| जब महा-मौन की अनुभूति हो तब उस महा-मौन में ही रहने का अभ्यास करें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मई २०१८
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् | यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ||
ReplyDeleteशुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः | सन्न्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥
(गीता ९ : २७-२८)
'हे कुन्तीपुत्र ! तू जो कुछ करता है, जो कुछ भोजन करता है, जो कुछ यज्ञ करता है, जो कुछ दान देता है और जो कुछ तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर दे | इस प्रकार मेरे अर्पण करनेसे कर्मबन्धनसे और शुभ (विहित) और अशुभ (निषिद्ध) सम्पूर्ण कर्मोंके फलोंसे तू मुक्त हो जायगा | ऐसे अपने-सहित सब कुछ मेरे अर्पण करनेवाला और सबसे सर्वथा मुक्त हुआ तू मुझे ही प्राप्त हो जायगा |’
इस व्यक्ति के कई मित्र हैं जो नित्य कम से कम छः घंटे या इस से भी अधिक समय तक भगवान के ध्यान में रहते हैं| सप्ताह में एक दिन तो वे यह समय बढ़ा कर कम से कम आठ घंटे या इस से अधिक भी कर देते हैं| भक्ति यानि भगवान से परम प्रेम तो उनमें कूट कूट कर भरा हुआ है| इस व्यक्ति को ऐसे मित्रों पर बहुत अभिमान है|
ReplyDeleteवैसे इस व्यक्ति के सबसे बड़े और सबसे परम मित्र तो स्वयं भगवान हैं जो सदा इसे प्रेरणा देते रहते है और इस की रक्षा भी करते हैं| इसे आजकल उनसे सदा प्रेरणा मिलती रहती है अधिक से अधिक उन पर समर्पण में पूर्णता लाने के प्रयास करने की| अपनी जी जान लगाकर निमित्त मात्र बनने की चेष्टा इस व्यक्ति से भी अब होती रहेगी|
इस व्यक्ति को ध्यान में एक अति प्रबल अनिर्वचनीय दिव्य आकर्षण समय समय पर अपनी ओर खींचता रहता है| वह आकर्षण इस भौतिक जगत का नहीं, बल्कि एक विराट सूक्ष्म जगत का है जो सहस्त्रार से बहुत ऊपर अनंत ब्रह्मांड में है| उसे सिर्फ स्वानुभूति से वे ही साधक समझ सकते हैं जो कूटस्थ में नित्य नियमित ध्यान करते हैं| पहले जब इसे इसके बारे में बताया गया था तब वह इस तरह के किसी अस्तित्व पर विश्वास नहीं करता था, पर अब तो प्रत्यक्ष नित्य ही अनुभूत कर रहा है|
उसे अनुभूत करने में ही आनंद है| शब्दों में बाँधने का प्रयास निरर्थक होगा| भगवान की सर्वश्रेष्ठ साकार अभिव्यक्तियाँ आप सब को नमन|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१ जून २०१८