लोकतंत्र अंततः विफल होगा, कोई और ही व्यवस्था आयेगी .....
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लोकतंत्र में नेतृत्व को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता नहीं के बराबर है| एक नेता के लिए स्वतंत्र निर्णय लेना वास्तव में सर्वाधिक कठिन कार्य है| उसे हर समय चिंता रहती है कि मेरे मतदाता कहीं मेरे विरुद्ध न हो जाएँ और मैं कहीं अगला चुनाव हार न जाऊँ| चाहे वह कितना भी अच्छा काम करे, बुराई तो उसकी होगी ही| अतः वह लोक-लुभावन फैसले लेता है| साथ साथ अगला चुनाव जीतने के लिए और पिछले चुनाव में हुए खर्चे की पूर्ति के लिए रुपयों की व्यवस्था करने की चिंता में भी रहता है, जो सब घोटालों और भ्रष्टाचार की जड़ है|
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इसका कोई समाधान नहीं है| भारत की प्राचीन राज्य व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ थी|
१ जून २०१८
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लोकतंत्र में नेतृत्व को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता नहीं के बराबर है| एक नेता के लिए स्वतंत्र निर्णय लेना वास्तव में सर्वाधिक कठिन कार्य है| उसे हर समय चिंता रहती है कि मेरे मतदाता कहीं मेरे विरुद्ध न हो जाएँ और मैं कहीं अगला चुनाव हार न जाऊँ| चाहे वह कितना भी अच्छा काम करे, बुराई तो उसकी होगी ही| अतः वह लोक-लुभावन फैसले लेता है| साथ साथ अगला चुनाव जीतने के लिए और पिछले चुनाव में हुए खर्चे की पूर्ति के लिए रुपयों की व्यवस्था करने की चिंता में भी रहता है, जो सब घोटालों और भ्रष्टाचार की जड़ है|
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इसका कोई समाधान नहीं है| भारत की प्राचीन राज्य व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ थी|
१ जून २०१८
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