Saturday, 2 June 2018

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वय को यज्ञों में जप यज्ञ कहा है | अब प्रश्न यह उठता है कि हम इसे यज्ञ की भाँति कैसे करें ? .....

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वय को यज्ञों में जप यज्ञ कहा है | अब प्रश्न यह उठता है कि हम इसे यज्ञ की भाँति कैसे करें ? .....
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महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ||१०:२५||
शंकर भाष्य में इसका अर्थ दिया है ..... महर्षीणां भृगुः अहम् | गिरां वाचां पदलक्षणानाम् एकम् अक्षरम् ओंकारः अस्मि | यज्ञानां जपयज्ञः अस्मि ? स्थावराणां स्थितिमतां हिमालयः ||
अर्थात् ..... महर्षियोंमें मैं भृगु हूँ, वाणी सम्बन्धी भेदों में ... पदात्मक वाक्योंमें एक अक्षर ओंकार हूँ | यज्ञोंमें जपयज्ञ हूँ और स्थावरों में अर्थात् अचल पदार्थोंमें हिमालय नामक पर्वत हूँ ||
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अग्नि पुराण के अनुसार ..... जकारो जन्म विच्छेदः पकारः पाप नाशकः | तस्याज्जप इति प्रोक्तो जन्म पाप विनाशकः || इसका अर्थ है .... ‘ज’ अर्थात् जन्म मरण से छुटकारा, ‘प’ अर्थात् पापों का नाश ..... इन दोनों प्रयोजनों को पूरा कराने वाली साधना को ‘जप’ कहते हैं|
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मेरी सोच है कि कोई भी साधना जितने सूक्ष्म स्तर पर होती है वह उतनी ही फलदायी होती है| जितना हम सूक्ष्म में जाते हैं उतना ही समष्टि का कल्याण कर सकते हैं| जप यज्ञ भी सूक्ष्म में होना चाहिए | वह कैसे हो इसकी विधि मुझे समझ में तो पूरी तरह आ रही है पर उसे शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ हूँ| आप स्वयं ही अपने अंतर में इसका अर्थ स्पष्ट कीजिये| धन्यवाद!

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ जून २०१८

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