Wednesday, 26 February 2025

सनातन-धर्म (हिन्दू-धर्म) ही भारत की विराट एकता का आधार है, जिसे विदेशी शक्तियाँ नष्ट कर देना चाहती हैं ---

 सनातन-धर्म (हिन्दू-धर्म) ही भारत की विराट एकता का आधार है, जिसे विदेशी शक्तियाँ नष्ट कर देना चाहती हैं ---

.
श्रीअरविंद के शब्दों में -- "सनातन धर्म ही भारत है, और भारत ही सनातन धर्म है"। सनातन-धर्म ही भारत की राजनीति हो सकता है। जिस दिन भारत से हिन्दू धर्म समाप्त हो जाएगा, उस दिन भारत ही समाप्त हो जाएगा। इस्लाम, ईसाईयत, मार्क्सवाद -- चाहते हैं कि हिन्दुत्व समाप्त हो ताकि भारत के टुकड़े-टुकड़े हो जायें।
.
वर्तमान समय में हम हिंदुओं की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम भगवान से प्रार्थना तो करते हैं, लेकिन भगवान की साधना/उपासना के लिए अपने मन और शरीर को तैयार नहीं करते।
आत्मा की शाश्वतता और कर्मफलों व पुनर्जन्म के सिद्धान्तों को जो मानता है, वह हिन्दू ही है, चाहे वह पृथ्वी के किसी भी भाग पर रहता है। "आत्मा की अभीप्सा है परमात्मा को प्राप्त करना" -- वास्तव में यही सनातन धर्म है। सनातन धर्म है -- परमात्मा से परमप्रेम और उनमें समर्पित होने की अभीप्सा।
.
हमारे अवचेतन मन की वासनाएँ ही बार-बार पुनर्जन्म का मुख्य कारण हैं। इनसे मुक्त होने के लिए बहुत गहन और दीर्घ ध्यान-साधना करनी पड़ती है। ये वासनाएँ सतोगुणी भी हो सकती हैं, और रजोगुणी या तमोगुणी भी। इन सबके फल/परिणाम भी अलग-अलग होते हैं। जब तक हम इन वासनाओं के पाशों में बंधे होते हैं, तब तक हमारा पशुत्व समाप्त नहीं हो सकता।
.
सनातन धर्म ही हमें सिखाता है की हम सब तरह के पाशों-बंधनों से मुक्त होकर भगवान को कैसे उपलब्ध हों। भगवान को उपलब्ध होने के लिए निम्न का होना आवश्यक है --
(१) भक्ति यानि परम प्रेम। (२) परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा। (३) दुष्वृत्तियों का त्याग। (४) शरणागति और समर्पण। (५) आसन, मुद्रा और यौगिक क्रियाओं का ज्ञान। (६) दृढ़ मनोबल और बलशाली स्वस्थ शरीर रुपी साधन।
यदि हम सत्यनिष्ठ हैं तो निश्चित रूप से अभ्युदय व निःश्रेयस को सिद्ध कर जीवन के उद्देश्य - "परमात्मा" को प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मई २०२३

मेरे लिए हिन्दुत्व है -- "भगवत्-प्राप्ति" ---

मेरे लिए हिन्दुत्व है -- "भगवत्-प्राप्ति"। सनातन धर्म का लक्ष्य ही है -- "भगवत्-प्राप्ति"। "भगवत्-प्राप्ति" ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है। यही परम-पुरुषार्थ है, और यही मोक्ष है। जब तक भारत में दस पुण्यात्मायें भी ऐसी हैं जो भगवान के साथ एक हैं, तब तक भारत नष्ट नहीं हो सकता। भारत का पुनरोत्थान एक आध्यात्मिक शक्ति कर रही है, जिसे रोकने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं है।
.
सम्पूर्ण समष्टि की पीड़ा - मेरी पीड़ा है। लेकिन भारत और सनातन धर्मावलम्बी सत्यनिष्ठ हिंदुओं की पीड़ा, विशेष रूप से मेरी ही पीड़ा है। बहुत सारे संकल्प, बहुत सारी समस्याएँ, बहुत सारे प्रश्न, बहुत सारी आकांक्षाएँ, मेरे मानस में हैं, जिनका कोई समाधान मेरे पास नहीं है। सबको एक साथ समेट कर, भगवान को दे दिया था, जिनका उत्तर भी भगवान ने दे दिया है। लेकिन वह उत्तर एक ही है, और व्यक्तिगत है।
लेकिन एक बात सुनिश्चित है कि भगवान भारत के साथ हैं, और भारत की विजय भी सुनिश्चित है। हर हर महादेव !! 27 अक्तूबर 2021 . पुनश्च: --- हिन्दुत्व और भारत आज जीवित है तो इसका पूरा श्रेय दैवीय शक्तियों व सनातन धर्म की शाश्वतता को ही जाता है। भारत की अस्मिता पर जितना प्रहार हुआ है उसके दस लाखवें भाग जितना भी प्रहार किसी अन्य संस्कृति पर होता तो वह नष्ट हो जाती।
जहां तक मैं समझता हूँ, सनातन धर्म का उद्देश्य ही है कि सभी को भगवत्-प्राप्ति हो, और हम जीव से शिव बनें।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!

सत्य-सनातन-धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार (पुनःप्रतिष्ठा) और वैश्वीकरण इस समय बहुत अधिक आवश्यक है ---

 सत्य-सनातन-धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार (पुनःप्रतिष्ठा) और वैश्वीकरण इस समय बहुत अधिक आवश्यक है। सबसे बड़ी आवश्यकता तो सारे हिंदुओं को तमोगुण से मुक्त करने की है। हिन्दू राजसिक व सात्विक ही हों। धर्मशिक्षा के अभाव में हिन्दू समाज में तमोगुण बहुत अधिक बढ़ गया है। यह तमोगुण ही हिंदुओं के पतन का कारण है।

.
हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ाना भी बहुत आवश्यक है। हिन्दुत्व को भौगोलिक सीमाओं से मुक्त कर, आस्था-प्रधान बनाना होगा। जो भी व्यक्ति हिन्दू आस्थाओं को स्वीकार करता है, हिन्दुत्व में उसको स्वीकार किया जाना चाहिए। विश्व में लाखों ऐसे ईसाई हैं जिनकी आस्था ईसाईयत से समाप्त हो गई है, और वे नियमित रूप से प्राणायाम और ध्यान करते हैं, व गीता का अध्ययन करते हैं। जैसे जैसे चेतना का उत्थान होगा, व ज्ञान का प्रचार-प्रसार होगा, बहुत बड़ी संख्या में लोग ईसाईयत छोड़कर हिन्दू बनेंगे। उनको हिन्दुत्व में स्वीकार करना ही होगा।
.
इसमें समस्या कुछ भी नहीं है। सनातन हिन्दू धर्म के चार स्तम्भ हैं -- आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों का सिद्धान्त, पुनर्जन्म, और ईश्वर के अवतारों में आस्था। जो भी इनको मानता है, वह स्वतः ही हिन्दू है। हमें यह स्वीकार्य होगा, तभी हिन्दुत्व का वैश्वीकरण होगा। हमारे शास्त्रों में धर्म के लक्षण दिये हैं, जिनको धारण करना धर्म है, और उनका विलोम अधर्म है।
.
सरकारों पर दबाव डालकर उन सब प्रावधानों को संविधान से हटवाना होगा जो हिंदुओं को अपने धर्म की शिक्षा नहीं देने देते। हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट को भी बंद करवाना होगा। समान नागरिक संहिता लागू करवानी होगी, व सारे हिन्दू विरोधी कानूनी प्रावधान हटवाने होंगे। जो देशद्रोही हैं, उनको मतदान के अधिकार से वंचित करना होगा, तभी यह तुष्टीकरण बंद होगा।
.
हिन्दू बालकों को आठ वर्ष की आयु से ही हठयोग व ध्यान आदि की शिक्षा देनी होगी। उन्हें हिन्दू संस्कारों, व धर्म के लक्षणों का ज्ञान देना होगा। धर्मग्रंथों का ज्ञान कहानियों के माध्यम से देना होगा।
.
गीता का ज्ञान देना इतना आसान नहीं है। गीता में तीन ही विषय है -- कर्म, भक्ति और ज्ञान। भक्ति और ज्ञान तो वे ही समझ सकते हैं जिनमें सतोगुण प्रधान है। जिनमें रजोगुण प्रधान है, वे कर्म को ही समझ सकते हैं। जिनमें तमोगुण प्रधान है, वे गीता को कभी भी नहीं समझ सकते। उन्हें अन्य ऊर्ध्वमुखी शिक्षाएं देनी होंगी।
.
हम हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली और सत्यनिष्ठ बनें। सत्यनिष्ठा ही धर्मनिष्ठा है। हम शक्तिशाली होंगे तो समाज भी शक्तिशाली होगा। समाज शक्तिशाली होगा तो राष्ट्र भी शक्तिशाली होगा। निरंतर ईश्वर की चेतना में रहें। सबका कल्याण होगा।
कोई चाहे या न चाहे, यह राष्ट्र धर्मनिष्ठ होगा। अधर्म का नाश होगा। असत्य का अंधकार स्थायी नहीं है। धर्म की विजय होगी।
.
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१ जुलाई २०२२

सनातन धर्म जिसे हम हिन्दुत्व कहते हैं, ही इस राष्ट्र की अस्मिता है जिसकी रक्षा करना हमारा दायीत्व है ---

सनातन धर्म जिसे हम हिन्दुत्व कहते हैं, ही इस राष्ट्र की अस्मिता है जिसकी रक्षा करना हमारा दायीत्व है ---
.
हमारे राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मांतक प्रहार हो रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम इतने सक्षम बनें कि राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए यदि शस्त्र भी धारण करने पड़ें, तो धारण करें, और अहंभाव से मुक्त होकर, युद्ध करते हुए शत्रुओं का संहार करें। यह हमारा धर्म है। अहंभाव से मुक्त होकर यदि हम राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए इस लोक का भी नाश कर देते हैं तो कोई पाप हमें नहीं लगेगा। गीता में भगवान कहते हैं --
"यस्य नाहङ्कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।
हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते॥१८:१७॥"
अर्थात् - जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है, और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न मरता है और न (पाप से) बँधता है॥
भगवान का आदेश है --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् - इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
.
पहले हम भीतर के शत्रुओं का नाश कर, परमात्मा को समर्पित होकर, उनके साथ एक होंगे तब हमारे में एक ब्रह्मतेज जागृत होगा। जब हमारे में ब्रह्मत्व जागृत होगा तो क्षत्रियत्व आदि अन्य सभी गुण भी राष्ट्र में जागृत होंगे। हमारे में भुवनभास्कर की सी प्रखरता होगी तो हमारे मार्ग में तिमिर का कोई अवशेष नहीं रहेगा। परमात्मा के अलावा हमारा साथ कोई नहीं देगा। किसी अन्य पर आश्रित न रहें।
.
हमारे विचार ऊर्जावान हैं, इनमें बहुत अधिक शक्ति है, ये ही हमारे कर्म हैं। चारों और का विश्व हमारे विचारों का ही घनीभूत रूप है। धन्य है भारत भूमि जहाँ महान तपस्वी योगी संत महात्मा जन्म लेते हैं। सुख, शांति और सुरक्षा -- परमात्मा की उपासना से ही मिलते हैं। अन्यत्र भटकाव ही भटकाव है। कुतर्की व अधर्मियों से दूर ही रहना ठीक है।
.
भारतवर्ष एक आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र बने, जहाँ की राजनीति सत्य सनातन धर्म हो। भारत माता अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान हों, और पूरे भारत में छाए हुए असत्य के अंधकार का पराभव हो। यही मेरे जैसे अनेक साधकों की आध्यात्मिक उपासना का उद्देश्य है। आत्मा नित्यमुक्त है, हमें कोई मुक्ति या मोक्ष नहीं चाहिए। जब तक हमारा संकल्प पूर्ण नहीं होता हम बार-बार इसी धरा पर जन्म लेंगे और इस संकल्प की पूर्ति के लिए उपासना करेंगे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर

२० जुलाई २०२२ 

एक अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र चल रहा है भारत से हिन्दुत्व (सनातन धर्म) को समाप्त करने का ---

एक अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र चल रहा है भारत से हिन्दुत्व (सनातन धर्म) को समाप्त करने का। बहाना तो है सभी राष्ट्रनिष्ठ हिन्दू उद्योगपतियों, प्रधानमंत्री व केंद्र में सत्तासीन दल को हटा कर विदेश नियंत्रित सरकार की स्थापना करने का, लेकिन असली उद्देश्य है भारत से सनातन (हिन्दू) धर्म को नष्ट करने का। सनातन धर्म ही भारत की रक्षा कर रहा है। सनातन धर्म ही नहीं रहेगा तो भारत, भारत ही नहीं रहेगा।

.
जब तक देह में प्राण है तब तक सनातन धर्म की तो रक्षा करेंगे। भौतिक, मानसिक, व बौद्धिक क्षमता नहीं है तो क्या हुआ, पूर्णतः समर्पित होकर आध्यात्मिक साधना द्वारा धर्म की रक्षा करेंगे। जीवन का अन्य कोई उद्देश्य भी नहीं है। हमारी सारी साधना सनातन धर्म को समर्पित है।
.
'धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥"
मरा हुआ धर्म -- मारने वाले का नाश, और रक्षित धर्म -- रक्षक की रक्षा करता है। इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले।
.
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१३ मार्च २०२३

एक ऐसी गुफा जिसमें वह समस्त खजाना छिपा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं ---

एक ऐसी गुफा जिसमें प्रवेश से आप भयभीत होते हो, पर जिसमें वह समस्त खजाना छिपा है, जिसे आप ढूंढ रहे हो ---

.
हमारी सूक्ष्म देह में एक बिंदु है जिसका नाम है --"भ्रामरी गुहा"| इसके द्वार पर "आवरण" और "विक्षेप" नाम की दो आसुरी शक्तियां बैठी हैं, जो हर किसी को अन्दर प्रवेश नहीं करने देती| उन पर विजय प्राप्त करनी पडती है तभी आप अन्दर प्रवेश कर सकते हैं| उस गुहा में वह समस्त खज़ाना छिपा है जिसे प्राप्त करना जीवन का लक्ष्य है|

वह गुफा है आपका कूटस्थ बिंदु यानि आज्ञाचक्र जिसके भेदन के प्रयास में निरंतर आवरण और विक्षेप आते हैं| पर अनवरत साधना और गुरुकृपा से उसका भेदन कर आप सहस्त्रार में प्रवेश करते हैं तो पाते हैं कि समस्त ज्ञान तो आप स्वयं ही हैं| वह सब कुछ जिसे आप ढूंढ रहे हो वह तो आप स्वयं ही हैं| आप से पृथक कुछ भी नहीं है| ॐ तत्सत्| २७ फरवरी २०१३

हिंदुत्व आध्यात्म पर आधारित ईश्वरीय व्यवस्था है ---

 हिंदुत्व आध्यात्म पर आधारित ईश्वरीय व्यवस्था है ---

.
हिंदुत्व आध्यात्म पर आधारित वह ईश्वरीय व्यवस्था है जो व्यावहारिक रूप से नर को नारायण बनाती है, वानर को हनुमान बनाती है, एक सामान्य बालक को शौर्य से सुसज्जित वीर शिवाजी बनाती है, स्वधर्म स्वाभिमान शौर्य संस्कारवान महाराणा प्रताप बनाती है, जल जमीन और जंगल को पूजनीय बनाती है, और प्राणी मात्र में अपनत्व जगाती है। एकात्मता का मंत्र है हिंदुत्व।
.
हिंदुत्व वह मूल आध्यात्मिक तत्व है जो सतयुग में वेद तत्व, वेदांत तत्व एवं उपनिषद तत्व के रूपमें अभिव्यक्त हुआ, वही मूल अध्यात्मिक तत्व त्रेता युग में राम तत्व के रूपमें अभिव्यक्त हुआ, पुनश्च द्वापरयुग में कृष्ण तत्व, भागवत तत्व के रूपमें अभिव्यक्त हुआ व इस युग में हम सब में वही तत्व अभिव्यक्त हो ,सम्पूर्ण विश्व चैतन्य हो|
जय जय हिंदू संस्कृति ! जय जय श्री राम !
२७ फरवरी २०१३