सत्य-सनातन-धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार (पुनःप्रतिष्ठा) और वैश्वीकरण इस समय बहुत अधिक आवश्यक है। सबसे बड़ी आवश्यकता तो सारे हिंदुओं को तमोगुण से मुक्त करने की है। हिन्दू राजसिक व सात्विक ही हों। धर्मशिक्षा के अभाव में हिन्दू समाज में तमोगुण बहुत अधिक बढ़ गया है। यह तमोगुण ही हिंदुओं के पतन का कारण है।
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हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ाना भी बहुत आवश्यक है। हिन्दुत्व को भौगोलिक सीमाओं से मुक्त कर, आस्था-प्रधान बनाना होगा। जो भी व्यक्ति हिन्दू आस्थाओं को स्वीकार करता है, हिन्दुत्व में उसको स्वीकार किया जाना चाहिए। विश्व में लाखों ऐसे ईसाई हैं जिनकी आस्था ईसाईयत से समाप्त हो गई है, और वे नियमित रूप से प्राणायाम और ध्यान करते हैं, व गीता का अध्ययन करते हैं। जैसे जैसे चेतना का उत्थान होगा, व ज्ञान का प्रचार-प्रसार होगा, बहुत बड़ी संख्या में लोग ईसाईयत छोड़कर हिन्दू बनेंगे। उनको हिन्दुत्व में स्वीकार करना ही होगा।
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इसमें समस्या कुछ भी नहीं है। सनातन हिन्दू धर्म के चार स्तम्भ हैं -- आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों का सिद्धान्त, पुनर्जन्म, और ईश्वर के अवतारों में आस्था। जो भी इनको मानता है, वह स्वतः ही हिन्दू है। हमें यह स्वीकार्य होगा, तभी हिन्दुत्व का वैश्वीकरण होगा। हमारे शास्त्रों में धर्म के लक्षण दिये हैं, जिनको धारण करना धर्म है, और उनका विलोम अधर्म है।
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सरकारों पर दबाव डालकर उन सब प्रावधानों को संविधान से हटवाना होगा जो हिंदुओं को अपने धर्म की शिक्षा नहीं देने देते। हिन्दू मंदिरों की सरकारी लूट को भी बंद करवाना होगा। समान नागरिक संहिता लागू करवानी होगी, व सारे हिन्दू विरोधी कानूनी प्रावधान हटवाने होंगे। जो देशद्रोही हैं, उनको मतदान के अधिकार से वंचित करना होगा, तभी यह तुष्टीकरण बंद होगा।
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हिन्दू बालकों को आठ वर्ष की आयु से ही हठयोग व ध्यान आदि की शिक्षा देनी होगी। उन्हें हिन्दू संस्कारों, व धर्म के लक्षणों का ज्ञान देना होगा। धर्मग्रंथों का ज्ञान कहानियों के माध्यम से देना होगा।
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गीता का ज्ञान देना इतना आसान नहीं है। गीता में तीन ही विषय है -- कर्म, भक्ति और ज्ञान। भक्ति और ज्ञान तो वे ही समझ सकते हैं जिनमें सतोगुण प्रधान है। जिनमें रजोगुण प्रधान है, वे कर्म को ही समझ सकते हैं। जिनमें तमोगुण प्रधान है, वे गीता को कभी भी नहीं समझ सकते। उन्हें अन्य ऊर्ध्वमुखी शिक्षाएं देनी होंगी।
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हम हर दृष्टिकोण से शक्तिशाली और सत्यनिष्ठ बनें। सत्यनिष्ठा ही धर्मनिष्ठा है। हम शक्तिशाली होंगे तो समाज भी शक्तिशाली होगा। समाज शक्तिशाली होगा तो राष्ट्र भी शक्तिशाली होगा। निरंतर ईश्वर की चेतना में रहें। सबका कल्याण होगा।
कोई चाहे या न चाहे, यह राष्ट्र धर्मनिष्ठ होगा। अधर्म का नाश होगा। असत्य का अंधकार स्थायी नहीं है। धर्म की विजय होगी।
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१ जुलाई २०२२
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