Wednesday, 26 February 2025

सनातन धर्म जिसे हम हिन्दुत्व कहते हैं, ही इस राष्ट्र की अस्मिता है जिसकी रक्षा करना हमारा दायीत्व है ---

सनातन धर्म जिसे हम हिन्दुत्व कहते हैं, ही इस राष्ट्र की अस्मिता है जिसकी रक्षा करना हमारा दायीत्व है ---
.
हमारे राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मांतक प्रहार हो रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम इतने सक्षम बनें कि राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा के लिए यदि शस्त्र भी धारण करने पड़ें, तो धारण करें, और अहंभाव से मुक्त होकर, युद्ध करते हुए शत्रुओं का संहार करें। यह हमारा धर्म है। अहंभाव से मुक्त होकर यदि हम राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए इस लोक का भी नाश कर देते हैं तो कोई पाप हमें नहीं लगेगा। गीता में भगवान कहते हैं --
"यस्य नाहङ्कृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते।
हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते॥१८:१७॥"
अर्थात् - जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है, और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न मरता है और न (पाप से) बँधता है॥
भगवान का आदेश है --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् - इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
.
पहले हम भीतर के शत्रुओं का नाश कर, परमात्मा को समर्पित होकर, उनके साथ एक होंगे तब हमारे में एक ब्रह्मतेज जागृत होगा। जब हमारे में ब्रह्मत्व जागृत होगा तो क्षत्रियत्व आदि अन्य सभी गुण भी राष्ट्र में जागृत होंगे। हमारे में भुवनभास्कर की सी प्रखरता होगी तो हमारे मार्ग में तिमिर का कोई अवशेष नहीं रहेगा। परमात्मा के अलावा हमारा साथ कोई नहीं देगा। किसी अन्य पर आश्रित न रहें।
.
हमारे विचार ऊर्जावान हैं, इनमें बहुत अधिक शक्ति है, ये ही हमारे कर्म हैं। चारों और का विश्व हमारे विचारों का ही घनीभूत रूप है। धन्य है भारत भूमि जहाँ महान तपस्वी योगी संत महात्मा जन्म लेते हैं। सुख, शांति और सुरक्षा -- परमात्मा की उपासना से ही मिलते हैं। अन्यत्र भटकाव ही भटकाव है। कुतर्की व अधर्मियों से दूर ही रहना ठीक है।
.
भारतवर्ष एक आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र बने, जहाँ की राजनीति सत्य सनातन धर्म हो। भारत माता अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान हों, और पूरे भारत में छाए हुए असत्य के अंधकार का पराभव हो। यही मेरे जैसे अनेक साधकों की आध्यात्मिक उपासना का उद्देश्य है। आत्मा नित्यमुक्त है, हमें कोई मुक्ति या मोक्ष नहीं चाहिए। जब तक हमारा संकल्प पूर्ण नहीं होता हम बार-बार इसी धरा पर जन्म लेंगे और इस संकल्प की पूर्ति के लिए उपासना करेंगे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर

२० जुलाई २०२२ 

No comments:

Post a Comment