Monday, 17 November 2025

मंत्रम् वा साधयामी, शरीरम् वा पातयामी ---

 मंत्रम् वा साधयामी, शरीरम् वा पातयामी ---

.
आजकल हरेक व्यक्ति आशंकित है कि कुछ न कुछ होने वाला है। हर व्यक्ति इसके लिए तैयारी कर रहा है, लेकिन उसे पता नहीं है कि क्या होने वाला है। व्यक्ति दिन प्रतिदिन स्वार्थी होता जा रहा है, इंद्रिय सुखों को अधिकाधिक भोगना चाहता है। छल-कपट और झूठ का सामान्य होना -- एक आने वाले विनाश की निशानी है। पता नहीं कमी स्वयं की है या अन्य किन्हीं कारणों की। लेकिन भगवान के वचनों पर विश्वास नहीं किया इसी लिए हमें ये सब दुःख और पीड़ाएँ हैं।
.
मुझे भगवान का स्पष्ट उपदेश और आदेश था कि --- "तुम्हारी एकमात्र समस्या -- ईश्वर की प्राप्ति है, अन्य कोई भी समस्या तुम्हारी नहीं है। सब समस्याएँ परमात्मा की हैं। अपनी चेतना को निरंतर कूटस्थ में रखो और हर समय परमात्मा का चिंतन करो।"
लेकिन मैं स्वयं निष्ठावान नहीं रह पाया। दूसरों को क्या दोष दूँ?
.
कहते हैं कि - "जागो तब सबेरा"। जो हुआ सो हुआ, अब यह आगे न हो। हे प्रभु अब सब कुछ आपका है, मेरा कुछ भी नहीं। मेरी बुराई-भलाई, बुरा-अच्छा, गलत-सही -- सब कुछ आपको समर्पण। या तो मेरा समर्पण ही सिद्ध हो या फिर यह भौतिक शरीर ही नष्ट हो। अब तुम्हारे बिना यहाँ और नहीं रह सकते। तुम्हें इसी क्षण प्रकट होना ही होगा।
ॐ तत्सत् !!ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ नवंबर २०२२

आध्यात्मिक साधना में आजकल उलटबाँसी गति हो रही है ---

 आध्यात्मिक साधना में आजकल उलटबाँसी गति हो रही है ---

.
लौकिक रूप से जो उल्टा है, वह स्वभाविक रूप से सीधा अनुभूत हो रहा है। बड़ी विचित्र सी स्थिति है। एक समय ऐसा भी आता है जब वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण की परमकृपा से यह स्वभाविक हो जाता है। वे स्वयं को पुरुषोत्तम के रूप में व्यक्त कर रहे हैं। वे ही एकमात्र पुरुष हैं। पुरुष शब्द का प्रयोग भगवान विष्णु के लिए होता है, लेकिन उन्हीं के अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण के लिए हम पुरुषोत्तम शब्द का प्रयोग एक विशेषण के रूप में करते हैं।
.
ध्यान साधना में ध्यान या तो शिव का होता है या विष्णु का। तत्व रूप से दोनों एक हैं, केवल उनकी अभिव्यक्तियाँ पृथक पृथक हैं। जो उनका ध्यान नियमित रूप से करते हैं, वे ही इस विषय को समझ सकेंगे। अतः इस विषय का समापन करते हुए अंत में यह कहना चाहता हूँ कि कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम के विराट स्वरूप का ध्यान करें। उनकी रश्मियों के सहारे उन तक पहुँच सकते हैं, और उनकी अनुभूतियाँ प्राप्त कर सकते हैं। ॐ तत्सत् !!
.
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥"
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥११:३९॥"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥११:४०॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
.
मैं आप सब में पुरुषोत्तम को नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१७ नवंबर २०२५