Sunday, 20 March 2022

बंद आँखों के अंधकार के पीछे क्या है? (२)

बंद आँखों के अंधकार के पीछे क्या है? (२)
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ये आँखें जब बंद होती हैं, चेतना सहस्त्रार-चक्र में रहती है, मेरुदंड उन्नत, ठुड्डी भूमि के समानान्तर, और दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर रहता है, तब इन आंखों के अंधकार के पीछे कोई अंधकार ही नहीं रहता| वहाँ तो मेरे स्थान पर, परम ज्योतिर्मय साक्षात् वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण अपनी मनमोहक छवि के साथ, पद्मासन में ध्यानस्थ बैठे हुए दिखाई देते हैं| मेरा साधना करने का, साधक होने का, या कुछ भी होने का भ्रम -- मिथ्या हो जाता है| भगवान अपनी साधना स्वयं ही करते हैं| मेरी भूमिका एक निमित्त मात्र से अधिक कुछ भी नहीं है|
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अब बस उन्हीं को देखता रहूँ, उनकी छवि को ही निहारता रहूँ, और कुछ भी नहीं| वे ही मेरे सर्वस्व हैं| यह अस्तित्व उन्हीं को समर्पित है| मैं कोई साधक नहीं, उनका एक अकिंचन सेवक मात्र हूँ| धन्य हैं मेरी गुरु-परंपरा के गुरु, जिन्होने मुझ अकिंचन पर असीम कृपा की है| आप सब की जय हो|
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ॐ स्वस्ति || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२० मार्च २०२१ समय २३:४८