Friday, 9 February 2018

कौन सी ऐसी बाधा है जो दूर नहीं हो सकती ? .....

कौन सी ऐसी बाधा है जो दूर नहीं हो सकती ? .....
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राष्ट्र में व्याप्त असत्य रूपी अन्धकार घनीभूत पीड़ा दे रहा है| भूतकाल तो हम बदल नहीं सकते, उसका रोना रोने से कोई लाभ नहीं है| वास्तव में यह हमारे भीतर का ही अंधकार है जो बाहर व्यक्त हो रहा है| इसे दूर करने के लिए तो स्वयं के भीतर ही प्रकाश की वृद्धि करनी होगी, तभी यह अन्धकार दूर होगा| इसके लिए आध्यात्मिक साधना द्वारा आत्मसाक्षात्कार करना होगा|
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परमात्मा ने अपनी परम कृपा कर के पूरी स्पष्टता से मुझे मेरी सारी कमियाँ और उन्हें दूर करने के उपाय भी बताए हैं, और उनका पालन करने या न करने की छूट भी दी है| पर जब स्वयं भगवान की ही आज्ञा है तो उस दिशा में अग्रसर भी होना ही होगा| यही राम काज है जिसे पूरा किये बिना कोई विश्राम नहीं हो सकता है|
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"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम"|
जब धनुर्धारी भगवान श्रीराम, सुदर्शन चक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण, और पिनाकपाणी देवाधिदेव महादेव स्वयं हृदय में बिराजमान हैं तब कौन सी ऐसी बाधा है जो पार नहीं हो सकती? जीवन की बची खुची सारी ऊर्जा एकत्र कर के "प्रबिसि नगर कीजे सब काजा हृदयँ राखि कोसलपुर राजा" करना ही होगा| तभी "गरल सुधा रिपु करहिं मिताई गोपद सिंधु अनल सितलाई" होगी|
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महादेव महादेव महादेव ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० फरवरी २०१८
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पुनश्चः : -- उपरोक्त लेख को लिखने के पश्चात् कुछ लिखने योग्य बचा ही नहीं है|

भूतकाल को नहीं बदल सकते, फिर उसे कोसने से कोई लाभ नहीं है .....

भूतकाल में जो भी हुआ है उसे तो हम बदल नहीं सकते, फिर उसे कोसने का कया लाभ? 
वर्तमान व भविष्य तो हमारा ही है जिसका हम अपने संकल्प से सृजन कर सकते हैं| वर्तमान में रहें, वर्तमान में ही रहें, वर्तमान में ही सदा रहें, फिर भविष्य वही होगा जैसा हम चाहेंगे| 

हमारी चेतना में कोई असत्य और अन्धकार न रहे| हमारा ज्योतिर्मय वर्तमान ही उज्ज्वलतम भविष्य का निर्माण करेगा|

ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करें| ओंकार की ध्वनी को सदा सुनें| कूटस्थ चैतन्य में स्थित रहें| सारी नकारात्मकता को भूलकर बार बार सदा चिंतन करें ....  सोहं सोहं सोहं ॐ ॐ ॐ !!

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
०८ फरवरी २०१

सभी प्रश्नों के उत्तर परमात्मा में हैं .....

सभी प्रश्नों के उत्तर परमात्मा में हैं .....
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आप एक बड़ा सा चार्ट पेपर लीजिये और उस पर कहीं भी एक पेंसिल की नोक को सिर्फ छूइए, उससे जो हल्का सा निशान पड़ेगा उस की पूरे चार्ट पेपर से तुलना कीजिये| इस पूरे ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी की स्थिति उस से अधिक नहीं है जो उस पेंसिल के निशान की उस चार्ट पेपर पर है| मनुष्य का अहंकार भी इस पृथ्वी पर उस पूरे चार्ट पेपर पर उस पेंसिल के धब्बे से छोटा ही है| पर जिस तरह जल की एक बूँद महासागर से मिल कर स्वयं भी महासागर ही बन जाती है, वैसे ही जीवात्मा भी परमात्मा में समर्पित होकर स्वयं परमात्मा ही बन जाती है|
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मनुष्य ..... परमात्मा की एक विशेष रचना है, और इस सृष्टि का भी एक विशेष उद्देश्य है| हर मनुष्य की एक शाश्वत जिज्ञासा होती है, अनेक प्रश्न मानस में उठते हैं जिनका कहीं समाधान नहीं होता| उनका समाधान सिर्फ परमात्मा में ही होता है| जैसे एक बालक पहली में, एक चौथी में, और एक कॉलेज में पढता है, सब की समझ अलग अलग होती है| वैसे ही आध्यात्मिक क्षेत्र में है| कौन व्यक्ति कौन से क्रम में है उसी के अनुसार उसकी समझ होती है|
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मेरे लिखने का यह उद्देश्य है कि मन में उठने वाली हर जिज्ञासा और हर प्रश्न का उत्तर परमात्मा स्वयं ही कृपा कर के दे देते हैं| परमात्मा ही कृपा कर के हमारी सब कमियाँ और उन का समाधान भी बता देते हैं| यह मेरा अनुभूत सत्य है| कृ का अर्थ है कृत्य यानि कुछ करना, और पा का अर्थ है पाना| कृपा का अर्थ है कुछ कर के पाना| भगवान की कृपा पाने के लिए भी कुछ तो करना ही होगा जो सभी जानते हैं|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ साकार रचनाएँ हैं, ज्योतिषांज्योति उस परम ज्योति के साथ एक एक हैं| आप सब को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ फरवरी २०१८