पूर्ण समर्पण ---
Tuesday, 7 January 2025
पूर्ण समर्पण ---
मैं किन किन से मित्रता और प्रेम-व्यवहार करूँ/रखूँ ?
(प्रश्न) : मैं किन किन से मित्रता और प्रेम-व्यवहार करूँ/रखूँ ?
जीसस क्राइस्ट के खतनोत्सव को हम नववर्ष के रूप में मना रहे हैं ---
आज जीसस क्राइस्ट के खतनोत्सव को हम नववर्ष के रूप में मना रहे हैं। जनवरी का महिना भगवान श्रीगणेश के नाम पर है। पूरे विश्व में भगवान श्रीगणेश की पूजा हुआ करती थी। रोम साम्राज्य में भगवान श्रीगणेश को "जेनस" कहते थे। वे सबसे बड़े रोमन देवता थे। अपने देवता जेनस के नाम पर रोमन साम्राज्य ने वर्ष के प्रथम माह का नाम "जनवरी" रखा। किसी भी शुभ कार्य के आरंभ से पूर्व बुद्धि के देवता "जेनस" की पूजा होती थी। जेनस से ही अंग्रेजी का "Genius" शब्द बना है। आंग्ल कलेंडर में पहले १० महीने हुआ करते थे और वर्ष का आरंभ मार्च से होता था। भारतीयों की नकल कर के रोमन साम्राज्य ने दो माह और जोड़ दिए। जेनस देवता के नाम पर जनवरी, और फेबुआ देवता के नाम पर फरवरी नाम के दो महीने और जोड़कर आंग्ल वर्ष को १२ माह का कर दिया गया।
जब तक कर्ताभाव है, कोई भी आध्यात्मिक सिद्धि नहीं मिल सकती ---
जब तक कर्ताभाव है, कोई भी आध्यात्मिक सिद्धि नहीं मिल सकती ---
जब तक हम इस भौतिक शरीर की चेतना में हैं तब तक हम पाशों में बंधे हुए पशु हैं ---
जब तक हम इस भौतिक शरीर की चेतना में हैं तब तक हम पाशों में बंधे हुए पशु हैं। पूर्ण भक्ति से परमात्मा की अनंतता का ध्यान और समर्पण ही हमें मुक्त कर सकता है। परमात्मा की ज्योतिर्मय अनंतता का ध्यान करें। सदा परमात्मा की चेतना में रहें। हमारे में लाखों कमियाँ होंगी, उन सभी अवगुणों व गुणों को परमात्मा में समर्पित कर दें। हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। परमात्मा को हम निरंतर स्वयं में व्यक्त करें। हम उनके साथ एक हैं, हम स्वयं परमशिव हैं। जिस ऊर्जा और प्राण से यह ब्रह्मांड निर्मित हुआ है वह ऊर्जा और प्राण हम स्वयं हैं। हम ही ऊर्जा का हर कण, उसका प्रवाह, गति, स्पंदन और आवृति हैं। हम ही इस सृष्टि के प्राण हैं। भगवान के प्रति हमारा समर्पण पूर्ण हो।
अनंत स्वरूप वेदान्त के सूर्य को प्रणाम ---
अनंत स्वरूप वेदान्त के सूर्य को प्रणाम ---
भगवान की कृपा से सब होगा, लेकिन प्रयास तो स्वयं को ही करना होगा ---
भगवान की कृपा से सब होगा, लेकिन प्रयास तो स्वयं को ही करना होगा। दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सातों दिन, अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) भगवान को ही निरंतर समर्पित रहे। यही साधना है, यही साध्य है। भगवान के सिवाय अन्य कुछ भी प्रिय न हो। गुरु रूप में भगवान हर समय हमारे साथ एक हैं, कहीं कोई भेद नहीं है। हम यह नश्वर देह नहीं, भगवान की सर्वव्यापी चेतना हैं। अपनी सर्वव्यापकता का ध्यान करें। .
समय के साथ साथ रुचियाँ भी बदलती रहती हैं ---
समय के साथ साथ रुचियाँ भी बदलती रहती हैं। आजकल वेदान्त-वासना इतनी अधिक प्रबल हो गयी हैं कि निरंतर सर्वव्यापी अनंत-ब्रह्म-चिंतन और ध्यान में ही आनंद आता है।
आध्यात्मिक साधना की पात्रता किसमें है, और किसमें नहीं ? ---
परमब्रह्म परमात्मा की ध्यान-साधना तभी करें जब आपका आचरण व विचार शुद्ध हों, और आप में परमात्मा को पाने की एक घनीभूत अभीप्सा हो। अन्यथा मत कीजिये, आपको कोई लाभ नहीं होगा, लाभ के स्थान पर हानि ही होगी। आपको मष्तिष्क की स्थायी गंभीर विकृति भी हो सकती है, आप विक्षिप्त भी हो सकते हैं, या आपको आसुरी जगत अपने नियंत्रण में लेकर एक भयानक असुर भी बना सकता है। इस स्थिति में आपका शरीर तो मनुष्य का ही रहेगा, लेकिन आपके विचार राक्षसी होंगे। अतः इस स्थिति से बचें।