Tuesday, 7 January 2025

समय के साथ साथ रुचियाँ भी बदलती रहती हैं ---

 समय के साथ साथ रुचियाँ भी बदलती रहती हैं। आजकल वेदान्त-वासना इतनी अधिक प्रबल हो गयी हैं कि निरंतर सर्वव्यापी अनंत-ब्रह्म-चिंतन और ध्यान में ही आनंद आता है।

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द्वैत और अद्वैत दर्शन में कोई भेद नहीं है, मूर्तिपूजा का भी मैं समर्थक हूँ। निराकार का अर्थ होता है कि सारे आकार परमात्मा के ही हैं। हर रचना साकार है। यह हमारे सोच-विचार, चिंतन और मनोदशा पर निर्भर है।
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जैसे पृथ्वी -- चंद्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है, वैसे ही सम्पूर्ण सृष्टि के साथ एकाकार कर के परमात्मा मुझे एक निमित्त बनाकर स्वयं ही अपना ध्यान स्वयं करते हैं। मैं, यानि यह व्यक्ति तो एक निमित्त मात्र है, परमात्मा का ध्यान ही जिसका कर्मयोग और समष्टि की सेवा है।
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सब में व्यक्त हो रहे अनंत सर्वव्यापी परमात्मा को नमन !!
हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जनवरी २०२५

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