जब तक कर्ताभाव है, कोई भी आध्यात्मिक सिद्धि नहीं मिल सकती ---
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जो भी साधना हम करते हैं वह हमारे स्वयं के लिये नहीं अपितु भगवान के लिये ही करते है। उसका उद्देश्य व्यक्तिगत मुक्ति नहीं, बल्कि "आत्म समर्पण" ही है। अपने समूचे ह्रदय और शक्ति के साथ अपने आपको भगवान के हाथों में सौंप दो। कोई शर्त मत रखो, कोई चीज़ मत मांगो, यहाँ तक कि योग में सिद्धि भी मत मांगो।
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