Tuesday, 7 January 2025

मैं किन किन से मित्रता और प्रेम-व्यवहार करूँ/रखूँ ?

 (प्रश्न) : मैं किन किन से मित्रता और प्रेम-व्यवहार करूँ/रखूँ ?

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(उत्तर) : हमारे एकमात्र शाश्वत मित्र और संबंधी सिर्फ भगवान ही हो सकते हैं, अन्य कोई नहीं। उनका साथ कभी भी नहीं छूट सकता -- इस जन्म से पूर्व भी वे ही साथ थे, और मृत्यु के बाद भी वे ही साथ रहेंगे। उनसे यदि मित्रता है तो सारी सृष्टि स्वतः ही हमारी मित्र और संबंधी है। यह सारा विश्व और सारी सृष्टि वे स्वयं ही हैं। वे ही यह विश्व बन गए हैं।
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विष्णु सहस्त्रनाम का आरंभ "ॐ विश्वं विष्णु:" शब्दों से होता है। इन तीन शब्दों में ही सारा सार आ जाता है। आगे सब इन्हीं का विस्तार है। आध्यात्मिक दृष्टि से यह पूरी सृष्टि यानि सम्पूर्ण ब्रह्मांड ही विष्णु है। जो कुछ भी सृष्ट या असृष्ट है, वह सब विष्णु है। हम विष्णु में विष्णु को ढूंढ रहे हैं। ढूँढने वाला भी विष्णु है। एक महासागर की बूंद, महासागर को ढूंढ रही है। यह बूंद समर्पित होकर स्वयं महासागर हो जाती है।
"ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥१॥"
जिसका यज्ञ और आहुतियों के समय आवाहन किया जाता है उसे वषट्कार कहते हैं। भूतभव्यभवत्प्रभुः का अर्थ भूत, वर्तमान और भविष्य का स्वामी होता है। सब जीवों के निर्माता को भूतकृत् कहते हैं, और सभी जीवों के पालनकर्ता को भूतभृत्। आगे कुछ बचा ही नहीं है। "ॐ विश्वं विष्णु: ॐ ॐ ॐ" --- बस इतना ही पर्याप्त है पुरुषोत्तम के गहरे ध्यान में जाने के लिए॥
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ जनवरी २०२४

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