सुषुम्ना के छः चक्रों में भागवत मन्त्र का जाप .....
इस विषय पर मैं पूर्व में अनेक प्रस्तुतियाँ दे चुका हूँ | कुछ मित्रों ने जिज्ञासा व्यक्त की है अतः मैं उनकी जिज्ञासा को शांत करने मात्र के लिए नए सिरे से संक्षिप्त में पुनश्चः यह लघु लेख लिख रहा हूँ|
द्वादसाक्षरी भागवत मंत्र का जाप अति लाभप्रद और निरापद है| जितना अधिक जाप भक्ति से किया जाए उतना ही कम है|
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योग मार्ग की कुछ अति उन्नत साधनाओं में सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी के षट्चक्रों में इसके जाप का विधान है, जिसको सदा गोपनीय रखा गया है| ये साधनाएँ गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहियें क्योंकि इन साधनाओं से कुछ सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है| जब सूक्ष्म शक्तियाँ जागृत होती हैं, उस समय साधक के आचार-विचार यदि सही न हों तो वे लाभ के बजाय बहुत अधिक हानि पहुँचाती हैं|
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सामान्यतः योग साधक मूलाधार से सहस्त्रार तक मानसिक रूप से क्रमशः --- लं, वं, रं, यं, हं, ॐ,ॐ, इन बीज मन्त्रों के साथ आरोहण करते हैं और विपरीत क्रम से अवरोहण करते हैं|
पर उन्नत योगी मेरुदंड व मस्तिष्क के चक्रों में भागवत मन्त्र का मानसिक जाप करते हैं| इसके जप का क्रम इस प्रकार है .... पूर्ण प्रेम सहित .... भगवान वासुदेव का ध्यान करते हुए .... स्वाभाविक रूप से साँस लेते हुए सुषुम्ना नाडी में .... दृष्टी को भ्रूमध्य पर रखते हुए ....
ॐ ---- मूलाधार
न ----- स्वाधिष्ठान
मो ---- मणिपुर
भ ----- अनाहत
ग ----- विशुद्धि
व ----- सहस्त्रार (आज्ञा चक्र पर रुके बिना)
ते ----- आज्ञा
वा ----- विशुद्धि
सु ----- अनाहत
दे ----- मणिपुर
वा ----- स्वाधिष्ठान
य ----- मूलाधार ||
इस विधि से कम से कम १२ बार जप कर के आज्ञाचक्र पर ॐ का ध्यान करें|
पूरे मन्त्र का भी आज्ञाचक्र पर यथासंभव खूब जप करें| विशेष ध्यान की बात यह है कि अवरोहण के क्रम में आज्ञा, अनाहत और मूलाधार पर पूर्ण शक्ति से मानसिक रूप से प्रहार करते हैं, इससे तीनों ग्रंथियों का भेदन होता है| इसी की प्रतीक त्रिभंग मुद्रा है|
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दीक्षा देते समय सिद्ध गुरु की शक्ति सुषुम्ना का द्वार खोल देती है जिससे सुषुम्ना चैतन्य हो जाती है और प्राण प्रवाह सुषुम्ना में आरम्भ हो जाता है|
किन्हीं शक्तिपात संपन्न गुरु से दीक्षा लेकर यह साधना करनी चाहिए| उनकी कृपा प्राप्ति से आगे का मार्ग प्रशस्त हो जाता है|
इस विधि से साधना करने पर सामान्य से बारह गुणा अधिक फल मिलता है|
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इस विषय पर मेरी यह अंतिम प्रस्तुति है| इस विषय पर न तो और लिखूँगा, और न ही किसी के प्रश्न का कोई उत्तर दूँगा| सप्रेम सादर धन्यवाद!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ तत्सत्|
२८ अक्टूबर २०१६