Monday, 27 October 2025

सुषुम्ना के छः चक्रों में भागवत मन्त्र का जाप ....

 सुषुम्ना के छः चक्रों में भागवत मन्त्र का जाप .....


इस विषय पर मैं पूर्व में अनेक प्रस्तुतियाँ दे चुका हूँ | कुछ मित्रों ने जिज्ञासा व्यक्त की है अतः मैं उनकी जिज्ञासा को शांत करने मात्र के लिए नए सिरे से संक्षिप्त में पुनश्चः यह लघु लेख लिख रहा हूँ|
द्वादसाक्षरी भागवत मंत्र का जाप अति लाभप्रद और निरापद है| जितना अधिक जाप भक्ति से किया जाए उतना ही कम है|
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योग मार्ग की कुछ अति उन्नत साधनाओं में सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी के षट्चक्रों में इसके जाप का विधान है, जिसको सदा गोपनीय रखा गया है| ये साधनाएँ गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहियें क्योंकि इन साधनाओं से कुछ सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है| जब सूक्ष्म शक्तियाँ जागृत होती हैं, उस समय साधक के आचार-विचार यदि सही न हों तो वे लाभ के बजाय बहुत अधिक हानि पहुँचाती हैं|
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सामान्यतः योग साधक मूलाधार से सहस्त्रार तक मानसिक रूप से क्रमशः --- लं, वं, रं, यं, हं, ॐ,ॐ, इन बीज मन्त्रों के साथ आरोहण करते हैं और विपरीत क्रम से अवरोहण करते हैं|
पर उन्नत योगी मेरुदंड व मस्तिष्क के चक्रों में भागवत मन्त्र का मानसिक जाप करते हैं| इसके जप का क्रम इस प्रकार है .... पूर्ण प्रेम सहित .... भगवान वासुदेव का ध्यान करते हुए .... स्वाभाविक रूप से साँस लेते हुए सुषुम्ना नाडी में .... दृष्टी को भ्रूमध्य पर रखते हुए ....
ॐ ---- मूलाधार
न ----- स्वाधिष्ठान
मो ---- मणिपुर
भ ----- अनाहत
ग ----- विशुद्धि
व ----- सहस्त्रार (आज्ञा चक्र पर रुके बिना)
ते ----- आज्ञा
वा ----- विशुद्धि
सु ----- अनाहत
दे ----- मणिपुर
वा ----- स्वाधिष्ठान
य ----- मूलाधार ||
इस विधि से कम से कम १२ बार जप कर के आज्ञाचक्र पर ॐ का ध्यान करें|
पूरे मन्त्र का भी आज्ञाचक्र पर यथासंभव खूब जप करें| विशेष ध्यान की बात यह है कि अवरोहण के क्रम में आज्ञा, अनाहत और मूलाधार पर पूर्ण शक्ति से मानसिक रूप से प्रहार करते हैं, इससे तीनों ग्रंथियों का भेदन होता है| इसी की प्रतीक त्रिभंग मुद्रा है|
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दीक्षा देते समय सिद्ध गुरु की शक्ति सुषुम्ना का द्वार खोल देती है जिससे सुषुम्ना चैतन्य हो जाती है और प्राण प्रवाह सुषुम्ना में आरम्भ हो जाता है|
किन्हीं शक्तिपात संपन्न गुरु से दीक्षा लेकर यह साधना करनी चाहिए| उनकी कृपा प्राप्ति से आगे का मार्ग प्रशस्त हो जाता है|
इस विधि से साधना करने पर सामान्य से बारह गुणा अधिक फल मिलता है|
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इस विषय पर मेरी यह अंतिम प्रस्तुति है| इस विषय पर न तो और लिखूँगा, और न ही किसी के प्रश्न का कोई उत्तर दूँगा| सप्रेम सादर धन्यवाद!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ तत्सत्| २८ अक्टूबर २०१६

यह लेख प्रत्येक गौभक्त को अवश्य पढना चाहिए ---

 महेषभाई गजेरा

1966 का वह गो_हत्या बंदी आंदोलन, जिसमें हजारों साधुओं को इंदिरा सरकार ने गोलियों से भुनवा दिया था! आंखों देखा वर्णन!
देश के त्याग, बलिदान और राष्ट्रीय ध्वज में मौजूद 'भगवा' रंग से पता नहीं कांग्रेस को क्या एलर्जी है कि वह आजाद भारत में संतों के हर आंदोलन को कुचलती रही है। आजाद भारत में कांग्रेस पार्टी की सरकार भगवा वस्त्रधारी संतों पर गोलियां तक चलवा चुकी है! गो-रक्षा के लिए कानून बनाने की मांग लेकर जुटे हजारों साधु-संत इस गांलीकांड में मारे गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुए उस खूनी इतिहास को कांग्रेस ने ठीक उसी तरह दबा दिया, जिस कारण आज की युवा पीढ़ी उस दिन के खूनी कृत्य से आज भी अनजान है!
गोरक्षा महाभियान समिति के तत्कालीन मंत्रियों में से एक मंत्री और पूरी घटना के गवाह, प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक आचार्य सोहनलाल रामरंग के अनुसार, ''7 नवंबर 1966 की सुबह आठ बजे से ही संसद के बाहर लोग जुटने शुरू हो गए थे। उस दिन कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी, जिसे हम-आप गोपाष्ठमी नाम से जानते हैं। गोरक्षा महाभियान समिति के संचालक व सनातनी करपात्री जी महाराज ने चांदनी चैक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय के सातों पीठ के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, मध्व संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग व हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं को पंडित लक्ष्मीनारायण जी ने चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे। लालकिला मैदान से आरंभ होकर नई सड़क व चावड़ी बाजार से होते हुए पटेल चैक के पास से संसद भवन पहुंचने के लिए इस विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में अपने घरों से लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। हर गली फूलों का बिछौना बन गया था।''
आचार्य सोहनलाल रामरंग के अनुसार, '' यह हिंदू समाज के लिए सबसे बड़ा ऐतिहासिक दिन था। इतने विवाद और अहं की लड़ाई होते हुए भी सभी शंकराचार्य और पीठाधिपतियों ने अपने छत्र, सिंहासन आदि का त्याग किया और पैदल चलते हुए संसद भवन के पास मंच पर समान कतार में बैठे। उसके बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चैक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहा था। कम से कम 10 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी, जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गो हत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री। गो हत्या रोकने के लिए इंदिरा सरकार केवल आश्वासन ही दे रही थी, ठोस कदम कुछ भी नहीं उठा रही थी। सरकार के झूठे वादे से उकता कर संत समाज ने संसद के बाहर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया था।''
रामरंग जी के अनुसार, ''दोपहर एक बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब तीन बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा, 'यह सरकार बहरी है। यह गो हत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ और सारे सांसदों को खींच-खींच कर बाहर ले आओ, तभी गो हत्या बंदी कानून बन सकेगा।' ''
''इतना सुनना था कि नौजवान संसद भवन की दीवार फांद-फांद कर अंदर घुसने लगे। लोगों ने संसद भवन को घेर लिया और दरवाजा तोड़ने के लिए आगे बढ़े। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। नहीं भी तो कम से कम, पांच हजार लोग उस गोलीबारी में मारे गए थे।''
''बड़ी त्रासदी हो गई थी और सरकार के लिए इसे दबाना जरूरी था। ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा-सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा। जिन घायलों के बचने की संभावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई। हमें आखिरी समय तक पता ही नहीं चला कि सरकार ने उन लाशों को कहां ले जाकर फूंक डाला या जमीन में दबा डाला। पूरे शहर में कफ्र्यू लागू कर दिया गया और संतों को तिहाड़ जेल में ठूंस दिया गया। केवल शंकराचार्य को छोड़ कर अन्य सभी संतों को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। करपात्री जी महाराज ने जेल से ही सत्याग्रह शुरू कर दिया। जेल उनके ओजस्वी भाषणों से गूंजने लगा। उस समय जेल में करीब 50 हजार लोगों को ठूंसा गया था।''
रामरंग जी के अनुसार, ''शहर की टेलिफोन लाइन काट दी गई। 8 नवंबर की रात मुझे भी घर से उठा कर तिहाड़ जेल पहुंचा दिया गया। नागा साधु छत के नीचे नहीं रहते, इसलिए उन्होंने तिहाड़ जेल के अदंर रहने की जगह आंगन में ही रहने की जिद की, लेकिन ठंड बहुत थी। नागा साधुओं ने जेल का गेट, फर्निचर आदि को तोड़ कर जलाना शुरू किया। उधर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गुलजारीलाल नंदा पर इस पूरे गोलीकांड की जिम्मेवारी डालते हुए उनका इस्तीफा ले लिया। जबकि सच यह था कि गुलजारीलाल नंदा गो हत्या कानून के पक्ष में थे और वह किसी भी सूरत में संतों पर गोली चलाने के पक्षधर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गांधी को तो बलि का बकरा चाहिए था! गुलजारीलाल नंदा को इसकी सजा मिली और उसके बाद कभी भी इंदिरा ने उन्हें अपने किसी मंत्रीमंडल में मंत्री नहीं बनाया। तत्काल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व चीन से हार के बाद देश के रक्षा मंत्री बने यशवंत राव बलवतंराव चैहान को गृहमंत्री बना।