समाजवाद, मार्क्सवाद, गांधीवाद, सेकुलरवाद, पूंजीवाद आदि फालतू अनुपयोगी सिद्धान्त हमें पढ़ाये जाते हैं, लेकिन सनातन-धर्म (जो हमारा प्राण है), की अपरा-विद्या व परा-विद्या के सार्वभौम नियमों के बारे में कुछ भी नहीं पढ़ाया जाता| राजनीति राष्ट्र की सेवा का एक साधन है, कोई व्यवसाय नहीं|
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काल-चक्र की दिशा इस समय ऊर्ध्वगामी है| अनेक परिवर्तन होंगे| धर्म की पुनर्स्थापना व वैश्वीकरण होगा| हमारी रक्षा हमारा धर्म ही करेगा| हम अपने धर्म का पालन करें| यही भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है ---
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ||२:४०||"
अर्थात् "इसमें क्रमनाश और प्रत्यवाय दोष नहीं है| इस धर्म (योग) का अल्प अभ्यास भी महान् भय से रक्षण करता है||"
आरम्भ का नाम अभिक्रम है| इस कर्मयोगरूप मोक्षमार्ग में अभिक्रम का यानी प्रारम्भ का नाश नहीं होता| इसमें प्रत्यवाय (विपरीत फल) भी नहीं होता है| इस कर्मयोगरूप धर्म का थोड़ा सा भी अनुष्ठान (साधन) जन्ममरणरूप महान् संसारभय से रक्षा करता है|
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ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०२१