भगवान सत्यनारायण हैं .....
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असत्य वादन यानि झूठ बोलने से और दूसरों की निंदा करने से वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से किया गया कोई मंत्रपाठ, प्रार्थना या आराधना सफल नहीं होती है| वे दग्ध वाणी के शब्द चाहे बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति या परा, किसी भी स्तर के हों|
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जो सदा सत्य बोलते हैं उनके मुख से निकले वचन स्वतः ही सत्य हो जाते हैं| हमारे धर्म और संस्कृति में सत्य का सर्वाधिक महत्व इसी लिए है| इस विषय पर शास्त्रों में बहुत कुछ लिखा हुआ है| आध्यात्मिक अनुभव भी उन्हीं को होते हैं जो सत्य में जीते हैं|
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एकमात्र सत्य परमात्मा है| सत्य का साक्षात्कार ही परमात्मा का साक्षात्कार है|
मन में हम अनेक शुभ संकल्प कर लेते हैं पर भौतिक स्तर पर उनका क्रियान्वन नहीं करते इसलिए वे संकल्प मिथ्या और व्यर्थ हो जाते हैं| सभी संकल्पों को साकार रूप भी देना चाहिए, यह भी सत्य की साधना है| हमारे भौतिक अस्तित्व से अन्यों को लाभ पहुँचना चाहिए|
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हम अपने नित्य कर्मों का पालन करें, किसी को पीड़ित न करें, परोपकार के कार्य करें, और स्वयं के प्रति ईमानदार रहें| आत्मप्रशंसा, परनिंदा और असत्य बोलने से बचें| दूसरों का गला काटकर कोई बड़ा या महान नहीं बन सकता| वर्षा का जल पर्वत के शिखर से नीचे तालाब में आता है तो तालाब पर्वत के शिखर को दोष नहीं दे सकता| हमें स्वयं को ऊपर उठ कर सत्य में प्रतिष्ठित होना होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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असत्य वादन यानि झूठ बोलने से और दूसरों की निंदा करने से वाणी दग्ध हो जाती है| उस दग्ध वाणी से किया गया कोई मंत्रपाठ, प्रार्थना या आराधना सफल नहीं होती है| वे दग्ध वाणी के शब्द चाहे बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति या परा, किसी भी स्तर के हों|
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जो सदा सत्य बोलते हैं उनके मुख से निकले वचन स्वतः ही सत्य हो जाते हैं| हमारे धर्म और संस्कृति में सत्य का सर्वाधिक महत्व इसी लिए है| इस विषय पर शास्त्रों में बहुत कुछ लिखा हुआ है| आध्यात्मिक अनुभव भी उन्हीं को होते हैं जो सत्य में जीते हैं|
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एकमात्र सत्य परमात्मा है| सत्य का साक्षात्कार ही परमात्मा का साक्षात्कार है|
मन में हम अनेक शुभ संकल्प कर लेते हैं पर भौतिक स्तर पर उनका क्रियान्वन नहीं करते इसलिए वे संकल्प मिथ्या और व्यर्थ हो जाते हैं| सभी संकल्पों को साकार रूप भी देना चाहिए, यह भी सत्य की साधना है| हमारे भौतिक अस्तित्व से अन्यों को लाभ पहुँचना चाहिए|
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हम अपने नित्य कर्मों का पालन करें, किसी को पीड़ित न करें, परोपकार के कार्य करें, और स्वयं के प्रति ईमानदार रहें| आत्मप्रशंसा, परनिंदा और असत्य बोलने से बचें| दूसरों का गला काटकर कोई बड़ा या महान नहीं बन सकता| वर्षा का जल पर्वत के शिखर से नीचे तालाब में आता है तो तालाब पर्वत के शिखर को दोष नहीं दे सकता| हमें स्वयं को ऊपर उठ कर सत्य में प्रतिष्ठित होना होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||