Thursday 6 April 2017

इस दुःख रुपी संसार सागर के महाभय से रक्षा सिर्फ धर्म के पालन से ही होगी ...

इस दुःख रुपी संसार सागर के महाभय से रक्षा सिर्फ धर्म के पालन से ही होगी ...
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण का वचन है ---
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते |
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ||२:४०||
अर्थात इस महाभय से हमारी रक्षा थोड़ा बहुत धर्म का पालन ही करेगा|
जब भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है तो उसकी पालना हमें करनी ही होगी| अन्य सारे उपाय अति जटिल और कठिन है अतः सबसे सरल मार्ग के रूप में स्वाभाविक रूप से धर्म का पालन हमें करना ही चाहिए, तभी धर्म ही हमारी रक्षा करेगा| धर्म का पालन ही धर्म की रक्षा है और धर्म की रक्षा ही अपनी स्वयं की रक्षा है|
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वैसे तो महाभारत में "धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां" कहा गया है, पर भारतवर्ष पर इतनी तो कृपा है परमात्मा की कि भारत में एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी पता है कि धर्म और अधर्म क्या है| कभी कोई संशय हो तो निष्ठापूर्वक अपने हृदय से पूछिए, हमारा हृदय बता देगा कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है| हम अपने नित्य कर्मों का पालन करें, किसी को पीड़ित न करें, परोपकार के कार्य करें, और स्वयं के प्रति ईमानदार रहें, इतना ही पर्याप्त है| आत्मप्रशंसा, परनिंदा और असत्य बोलने से बचें| दूसरों का गला काटकर कोई बड़ा या महान नहीं बन सकता| वर्षा का जल पर्वत के शिखर से नीचे तालाब में आता है तो तालाब पर्वत के शिखर को दोष नहीं दे सकता| हमें स्वयं को ऊपर उठना होगा|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ अप्रेल २०१६



2 comments:

  1. जब बुद्धि जड़ हो जाए तो क्या करें ? .....
    .
    जीव ईश्वर का अंश है पर अपने प्रारब्ध कर्मफलों को भुगतने के लिए जड़बुद्धि भी हो जाता है| इसका समाधान प्रभु के श्रीचरणों की भक्ति ही है| अन्य कोई समाधान नहीं है|
    विषयों का आकर्षण इतना प्रबल है कि मनुष्य उसमें फंसे बिना नहीं रह सकता|
    वृद्धावस्था में प्रायः सभी की बुद्धि जड़ हो जाती है| अतः वृद्धावस्था में भगवान की शरणागत होना अति आवश्यक है|

    ॐ ॐ ॐ ||

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  2. अब न कुछ जानने की इच्छा है और न कुछ पाने की|
    समस्त ज्ञान और विभूतियों का स्त्रोत तो परमात्मा ही है|
    प्रभु को समर्पित होने से बड़ी कोई उपलब्धी नहीं है|
    ॐ ॐ ॐ ||

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