भगवान के ध्यान से क्या प्राप्त होता है ? ....
> मेरा उत्तर स्पष्ट है कि कुछ भी प्राप्त नहीं होता, जो कुछ पास में है वह भी चला जाता है| ध्यान साधना एक समर्पण की साधना है, कुछ प्राप्त करने की नहीं| यह अपना अहंकार और सर्वस्व परमात्मा में समर्पित करने का प्रयास है, बदले में कुछ प्राप्त करने का नहीं|
कुछ अभ्यास के पश्चात कर्ताभाव भी समाप्त हो जाता है| कुछ बनने की या कुछ पाने की कामना ही नष्ट हो जाती है| हाँ, एकमात्र फल जो मिलता है वह है .... संतुष्टि, प्रेम और आनंद| अन्य कुछ पाने की कामना भी मत करना, अन्यथा घोर निराशा प्राप्त होगी|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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> मेरा उत्तर स्पष्ट है कि कुछ भी प्राप्त नहीं होता, जो कुछ पास में है वह भी चला जाता है| ध्यान साधना एक समर्पण की साधना है, कुछ प्राप्त करने की नहीं| यह अपना अहंकार और सर्वस्व परमात्मा में समर्पित करने का प्रयास है, बदले में कुछ प्राप्त करने का नहीं|
कुछ अभ्यास के पश्चात कर्ताभाव भी समाप्त हो जाता है| कुछ बनने की या कुछ पाने की कामना ही नष्ट हो जाती है| हाँ, एकमात्र फल जो मिलता है वह है .... संतुष्टि, प्रेम और आनंद| अन्य कुछ पाने की कामना भी मत करना, अन्यथा घोर निराशा प्राप्त होगी|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....
> मानवीय चेतना से ऊपर उठ कर देवत्व में स्वयं को स्थापित करने का कोई न कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा| हमें अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाना ही पड़ेगा| वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की बुद्धि का तो खूब विकास हो रहा है पर अन्य सद् गुणों का अधिक नहीं| मूक और निरीह प्राणियों पर क्रूर अत्याचार और अधर्म का आचरण प्रकृति कब तक सहन करेगी? मनुष्य का लोभ और अहंकार अपने चरम पर है| कभी भी महाविनाश हो सकता है| धर्म का थोड़ा-बहुत आचरण ही इस महाभय से रक्षा कर सकेगा| हम स्वयं को यह शरीर समझ बैठे हैं यही पतन का सबसे बड़ा कारण है|
इस विषय पर कुछ मंथन अवश्य करें| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती, जो करेगा वह निश्चित रूप से भरेगा|
कर्मों का फल निश्चित रूप से सभी को मिलेगा|
राजनेताओं, न्यायाधीशों व अधिकारियों की सत्ता अंतिम नहीं है, उनका भी न्याय निश्चित रूप से होगा|
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हे देव शक्तियो, इस राष्ट्र से असत्य और अन्धकार का नाश करने में हमारी सहायता करो | ॐ ॐ ॐ
> मानवीय चेतना से ऊपर उठ कर देवत्व में स्वयं को स्थापित करने का कोई न कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा| हमें अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाना ही पड़ेगा| वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की बुद्धि का तो खूब विकास हो रहा है पर अन्य सद् गुणों का अधिक नहीं| मूक और निरीह प्राणियों पर क्रूर अत्याचार और अधर्म का आचरण प्रकृति कब तक सहन करेगी? मनुष्य का लोभ और अहंकार अपने चरम पर है| कभी भी महाविनाश हो सकता है| धर्म का थोड़ा-बहुत आचरण ही इस महाभय से रक्षा कर सकेगा| हम स्वयं को यह शरीर समझ बैठे हैं यही पतन का सबसे बड़ा कारण है|
इस विषय पर कुछ मंथन अवश्य करें| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती, जो करेगा वह निश्चित रूप से भरेगा|
कर्मों का फल निश्चित रूप से सभी को मिलेगा|
राजनेताओं, न्यायाधीशों व अधिकारियों की सत्ता अंतिम नहीं है, उनका भी न्याय निश्चित रूप से होगा|
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हे देव शक्तियो, इस राष्ट्र से असत्य और अन्धकार का नाश करने में हमारी सहायता करो | ॐ ॐ ॐ
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