स्वर्ग (जन्नत) की कल्पना एक नकारात्मक मनोरंजन मात्र है .....
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आजकल जन्नत यानि स्वर्ग में बहुत अधिक भीड़-भाड़ और धक्का-मुक्की चल रही है| वहाँ House Full है| जिसको देखो वो ही वहाँ जाने की व्यवस्था कर रहा है| वहाँ की हालत निश्चित रूप से जहन्नुम यानि नर्क से भी बुरी है| लोग उस काल्पनिक स्वर्ग में जाने के लिए एक-दूसरे की गर्दन काट रहे हैं, और खून-खराबा कर के अपने व दूसरों के वर्तमान को नर्क से भी बुरा बना रहे हैं| जन्नत और जहन्नुम (स्वर्ग और नर्क) दोनों ही हमारी मानसिक कल्पनाएँ हैं| हमारा मन ही इनका निर्माण करता है| ये मनोलोक हैं जिन की सृष्टि हमारे मन से होती हैं| आज तक कोई वहाँ से सचेतन रूप से बापस भी आया है क्या? मन को बहलाने के लिए ही हम इनकी कल्पनाएँ करते हैं जो हमारा एक नकारात्मक मनोरंजन मात्र है| जिन लोगों ने जन्नत और जहन्नुम का ठेका ले रखा है, भगवान उन ठेकेदारों से हमें बचाए|
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जीव, ईश्वर का अंश है, उस का लक्ष्य ईश्वर को प्राप्त करना होना चाहिए, न कि स्वर्ग या इससे मिलता-जुलता कुछ और| स्वर्ग प्राप्ति की कामना सबसे बड़ा धोखा और समय की बर्बादी है| जो भी समय मिले उसमें परमात्मा का स्मरण और ध्यान करना चाहिए| परमात्मा की चेतना में जो भी समय निकल जाए वो ही सार्थक है, बाकी सब मरुभूमि में गिरी हुई जल की कुछ बूंदों की तरह निरर्थक है| किसी भी तरह की कोई कामना का अवशेष नहीं रहना चाहिए| आत्मा नित्य मुक्त है, सारे बंधन अपने स्वयं के ही अपने स्वयं पर थोपे हुए हैं| इनसे मुक्त होना ही सार्थकता है|
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जन्नत की तलाश और ये बेहतरीन शेर... (साभार: अमर उजाला, काव्य डेस्क)
(1) हमें पीने से मतलब है जगह की क़ैद क्या 'बेख़ुद'
उसी का नाम जन्नत रख दिया बोतल जहाँ रख दी
- बेख़ुद देहलवी
(2) हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
- मिर्ज़ा ग़ालिब
(3) चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
- मुनव्वर राना
(4) जो और कुछ हो तेरी दीद के सिवा मंज़ूर
तो मुझ पे ख़्वाहिश-ए-जन्नत हराम हो जाए
- हसरत मोहानी
(5) फिर न आया ख़याल जन्नत का
जब तेरे घर का रास्ता देखा
- सुदर्शन फ़ाख़िर
(6) उनकी गली नहीं है न उनका हरीम है
जन्नत भी मेरे वास्ते जन्नत नहीं रही
- नादिर शाहजहाँ पुरी
(7) ख़्वाब हाय दिल नशीं का इक जहाँ आबाद हो
तकिया जन्नत भी उठा लाए अगर इरशाद हो
- मुजतबा हुसैन
(8) अपनी जन्नत मुझे दिखला न सका तू वाइज़
कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी
- फ़ानी बदायुनी
(9) प्यार का दोनों पे आख़िर जुर्म साबित हो गया
ये फ़रिश्ते आज जन्नत से निकाले जाएँगे
- आलोक यादव
(10) हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदों तुमको
ख़ुदा ने क्या तुम्हारे हाथ जन्नत बेच डाली है
- दाग़ देहलवी
(11) जन्नत से जी लरज़ने लगा जब से ये सुना
अहल-ए-जहाँ वहाँ भी मिलेंगे यहाँ के बाद
- अज्ञात
(12) मयख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
दुनिया यही कहेगी कि जन्नत में घर बना
- रियाज़ ख़ैराबादी
(13) इसी दुनिया में दिखा दें तुम्हें जन्नत की बहार
शैख़ जी तुम भी ज़रा कू-ए-बुताँ तक आओ
- अली सरदार जाफ़री
(14) गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तेरी जन्नत भी पाई जाती है
- जिगर मुरादाबादी
(15) हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की
- बेख़ुद देहलवी
(16) रौशनी वालों ने दोज़ख़ में बुलाया है मुझे
मेरी जन्नत के अँधेरों मेरा दामन पकड़ो
- अख़्तर जावेद
(17) बातें नासेह की सुनीं यार के नज़्ज़ारे किए
आँखें जन्नत में रहीं कान जहन्नम में रहे
- अमीर मीनाई
(18) पी शौक़ से वाइज़ अरे क्या बात है डर की
दोज़ख़ तेरे क़ब्ज़े में है जन्नत तेरे घर की
- शकील बदायुनी
(19) किस पे मरते हो आप पूछते हैं
मुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा
- मोमिन ख़ाँ मोमिन
(20) जन्नत की तस्वीर को देखो
आओ ज़रा कश्मीर को देखो
- नज़ीर बनारसी
(21) गली में उस की न फिर आते हम तो क्या करते
तबीअत अपनी न जन्नत के दरमियान लगी
- मोमिन ख़ाँ मोमिन
(22) करवट करवट है लहलहाती जन्नत
ये रात ये कुछ हिलते हुए रूप-कलस
- फ़िराक़ गोरखपुरी
(23) जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई
- दाग़ देहलवी