Wednesday, 6 May 2020

'हरिः' शब्द के बाद 'ॐ' क्यों लगाते हैं? ....

"हरिः ॐ" ..... किसी ने प्रश्न पूछा है कि 'हरिः' शब्द के बाद 'ॐ' क्यों लगाते हैं? पता नहीं इसका शास्त्रोक्त उत्तर क्या है, पर अपने अनुभवों से इसका उत्तर दे सकता हूँ| इसे वही समझ सकेगा जो ध्यान की गहराइयों में उतर चुका हो| शास्त्रज्ञ विद्वान मुझे क्षमा करें क्योंकि मुझे न तो शास्त्रों का ज्ञान है और न ही मुझ में कोई विद्वता है|
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'हरिः' शब्द का प्रयोग सामान्यतः भगवान श्रीकृष्ण के लिए ही किया जाता है| इसका अर्थ समझने के लिए "गोपाल सहस्त्रनाम" का स्वाध्याय कीजिये| तंत्र शास्त्रों में 'ह' 'र' और 'इ' आदि बीजों के अर्थ दिये हुए हैं| पर मैं यहाँ वह ही लिखूंगा जो मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया हो|
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'ह' और 'रिः' ये दोनों प्राण-तत्व के स्पंदन की अति सूक्ष्म ध्वनियाँ हैं जो खेचरी या अर्धखेचरी मुद्रा में गहरे ध्यान में ओंकार की ध्वनि से पूर्व सुनाई देती हैं| गहरे ध्यान के समय खेचरी या अर्ध-खेचरी मुद्रा में जब हम सांस लेते हैं तब हमारा गला स्वतः ही खुल कर खूब चौड़ा हो जाता है| उस समय हमारी सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी चैतन्य हो जाती है| सांस भीतर लेते समय हमें अनुभव होता है कि घनीभूत प्राण-ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में मूलाधार चक्र से ऊपर उठती हुई मार्ग के सभी चक्रों को भेदती हुई आज्ञाचक्र की ओर आरोहित हो रही है| उस समय एक अति सूक्ष्म ध्वनि सिर्फ स्वयं को ही सुनाई देती है| वह ध्वनि है ..... हSSSSSSSS|
आज्ञाचक्र से जब यह प्राण-ऊर्जा मूलाधार की ओर अवरोहित होती है तब एक अति सूक्ष्म ध्वनि स्वयं को ही सुनाई देती है ..... रिःइइइइइइइइइ|
गुरुकृपा से आज्ञाचक्र के भेदन के पश्चात ही ओंकार की ध्वनि यानि अनाहत नाद जिसे अनहद नाद भी कहते हैं, सुनाई देती है| फिर तो उसी को सुनते रहना चाहिए| सारी साधनाएं उसी में समाहित हैं| यह प्राण-ऊर्जा ही घनीभूत होकर कुंडलिनी महाशक्ति कहलाती है|
ह रिः और ॐ ..... इनको मिलाकर ही नवार्न मंत्र का 'ह्रीं' है जो महालक्ष्मी का और श्रीविद्या का बीज है|
ओंकार का ध्यान, साधक को आकाश-तत्व का बोध कराता है| हरिः से प्राण-तत्व का बोध होता है| पहले प्राण-तत्व है फिर आकाश-तत्व| शायद इसी लिए हरिः के बाद ॐ का उच्चारण होता है| मुझे तो यही समझ में आया है|
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प्राण-तत्व से जुड़ी हुई साधना, श्रौत्रीय ब्रहमनिष्ठ सिद्ध गुरु की आज्ञा से उनके आदेशानुसार ही करनी चाहिए, अन्यथा भटकने का डर है जिस से हानि भी हो सकती है|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ अप्रेल २०२०

1 comment:

  1. एकमुखी हनुमत्कवच में एक पंक्ति आती है जिसे अनेक श्रद्धालु अपने घर के मुख्य द्वार पर लिख कर रखते हैं ....
    "ॐ नमो हनुमते पवनपुत्राय वैश्वानरमुखाय पापदृष्टि-चोरदृष्टि हनुमदाज्ञास्फुर ॐ स्वाहा।"
    कहते हैं इस से घर में कोई चोर नहीं घुस सकता| पर जो घुस चुका है उसका क्या इलाज है?
    हमारा घर तो पूरा भारत है जहाँ पता नहीं कितने तस्कर, चोर-डाकू, और आतंकवादी नर-पिशाच घुसे हुए हैं जो इस राष्ट्र को नष्ट करना चाहते हैं| ये सब असत्य और अंधकार की शक्तियाँ हैं| हनुमान जी की शक्ति ही हम सब की और इस राष्ट्र की रक्षा करेगी| रामनवमी के शुभ अवसर पर भगवान श्रीराम और श्रीहनुमान जी को नमन| वे इस राष्ट्र की रक्षा करें|
    ॐ ॐ ॐ !!

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