Wednesday 6 May 2020

जब आग लगी हो अंतर में ----

जब आग लगी हो अंतर में ---- तब हृदय में एक अदम्य, असीम-वेदना जागृत होती है जो व्यक्त नहीं हो पाती| वह वेदना कभी परमप्रेम, तो कभी आनंद बन जाती है| हृदय के गहनतम भाव व्यक्त नहीं होते| सारी अभिव्यक्तियाँ उस ज्वालामयी वेदना के स्फुर्लिंग मात्र हैं, और कुछ नहीं| परमप्रेम की यह पीड़ा, प्रेमास्पद की प्रत्यक्ष उपस्थिती ही शांत कर सकती है| सांसारिक दृष्टि से तो यह बेकार की बात है, इसीलिए एक कवि ने कहा है ....
"उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में,
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए |
खुली हवाओं में उड़ना तो उस की फ़ितरत है,
परिंदा क्यूं किसी शाख़-ए-शजर का हो जाए|"
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बृहदारण्यक उपनिषद में एक उपदेश ऋषि याज्ञवल्क्य ने राजा जनक को दिया था, जिसकी दक्षिणा स्वरुप राजा जनक ने अपना सारा राज्य और यहाँ तक कि स्वयं को भी अपने गुरु ऋषि याज्ञवल्क्य के श्रीचरणों में अर्पित कर दिया था| ऋषि याज्ञवल्क्य ने अंत में कहा कि "ब्रह्मज्ञ उस ब्रह्म को जानने के पश्चात किसी भी पाप से लिप्त नहीं होता है| वह शान्त, तपस्वी, विरक्त, सहिष्णु और एकाग्र-चित्त आत्मवत होकर आत्मा में ही परमात्मा को देखता है| उस को कोई पाप नहीं छू सकता| वह निर्मल सब पापों से परे संशय रहित बन जाता है| यह ब्रह्मलोक है, सम्राट् ! इस तक आप पहुंच गये हैं|"
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गीता में भगवान कहते हैं ...
"यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ| समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते||२:१५||"
अर्थात् हे पुरुषश्रेष्ठ ! दुख और सुख में समान भाव से रहने वाले जिस धीर पुरुष को ये व्यथित नहीं कर सकते हैं वह अमृतत्व (मोक्ष) का अधिकारी होता है||
""यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते| हत्वापि स इमाँल्लोकान्न हन्ति न निबध्यते" ||१८:१७||
अर्थात् जिस पुरुष में अहंकार का भाव नहीं है और बुद्धि किसी (गुण दोष) से लिप्त नहीं होती, वह पुरुष इन सब लोकों को मारकर भी वास्तव में न तो मारता है और न (पाप से) बँधता है|
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इसी सत्य को जीसस क्राइस्ट ने भी कहा है ... "But seek ye first the kingdom of God, and his righteousness; and all these things shall be added unto you." {Matthew 6:33 (KJV)}
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हमारा जीवन अनंत कालखंड में एक छोटा सा पड़ाव मात्र है| हम पूर्णरूपेण परमात्मा को समर्पित हों| गुरु महाराज ने तदाकार-वृत्ति, नाद-श्रवण और सूक्ष्म प्राणायाम का उपासना में बड़ा महत्त्व बताया है| इनके बिना कोई भी आध्यात्मिक साधना सफल नहीं होती| हमारी मुमुक्षा तीव्र होगी तभी आगे के द्वार खिलेंगे| मंद और अति मंद मुमुक्षा किसी काम की नहीं है| भगवान की परमकृपा हम सब पर हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ मार्च २०२०

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