Saturday, 1 February 2025

बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर नमन, और सभी का अभिनंदन ---

ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" !! विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री माता सरस्वती को 'बसंत पंचमी' (रविबार २ फरवरी २०२५) के शुभ अवसर पर नमन, और सभी का अभिनंदन !!
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लगता ही नहीं है कि बसंत ऋतू आ गयी है। प्रकृति का समय-चक्र और लोगों के विचार परिवर्तित हो गये हैं। पता नहीं असली बसंत कब आयेगा? हिमालय के पहाड़ों में अभी भी बर्फ गिर रही है, और वहाँ से यहाँ सीधी आने वाली ठंडी बर्फीली हवाओं ने इस मरुभूमि को बहुत अधिक ठंडा बना रखा है। बसंत पंचमी तक प्रकृति अपना शृंगार स्वयं कर लेती थी, लेकिन इसके कुछ भी लक्षण इस समय दिखायी नहीं दे रहे हैं।
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पचास-साठ वर्षों पूर्व तक बसंत-पंचमी के दिन हरेक मंदिर में खूब भजन-कीर्तन होते थे, और खूब गुलाल उड़ाई जाती थी, और प्रसाद बँटता था। सभी विद्यालयों, मंदिरों और अनेक घरों में पीले रंग के फूलों से भगवती सरस्वती की पूजा होती थी। स्त्री-पुरुष सब पीले रंग के कपड़े पहिनते थे। घर पर भोजन में पीले चावल बनते थे। अब भी बहुत लोग इस दिन भगवती सरस्वती की आराधना करते हैं।
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इसी दिन वीर बालक हकीकत राय का पुण्य स्मृति दिवस है। भारत के सभी बालक वीर हकीकत राय जैसे बनें।
बसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीराम भीलनी शबरी की कुटिया में पधारे थे।
बसंत पंचमी के दिन ही राजा भोज का जन्मदिवस था।
१८१६ ई.की बसंत पंचमी के दिन गुरु रामसिंह कूका का जन्म हुआ था। उनके ५० शिष्यों को १७ जनवरी १८७२ को मलेरकोटला में अंग्रेजों ने तोपों के मुंह से बांधकर उड़ा दिया, और बचे हुए १८ शिष्यों को फांसी दे दी। उन्हें मांडले की जेल में भेज दिया गया, जहाँ घोर अत्याचार सहकर १८८५ में उन्होने अपना शरीर त्याग दिया।
वसन्त पंचमी के ही दिन हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि पं.सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म १८९९ में हुआ था।
बसंत पंचमी को गंगा स्नान करने का भी महत्व है।
माघ के महीने में हुई वर्षा को भी शुभ माना जाता है| कहते हैं कि माघ के माह में हुई वर्षा के जल की एक-एक बूंद अमृत होती है।
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इस दिन से बसंत ऋतु का आगमन और शरद ऋतु की विदाई होती है। मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुई थीं। माँ सरस्वती को वागीश्वरी, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं।
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"या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥"
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सभी को मंगलमय शुभ कामना और नमन !!
कृपा शंकर
१ फरवरी २०२५
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(पुनश्च: -- जिन्हें पूजा करनी है, वे शुभ मुहूर्त की जानकारी अपने यहाँ के स्थानीय पंडित जी से प्राप्त करें।)

हमारी सारी अच्छाई/बुराई परमात्मा की है, हमारी नहीं --

 हमारी सारी अच्छाई/बुराई परमात्मा की है, हमारी नहीं --

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पूर्णता सिर्फ परमात्मा में है, हम उस पूर्णता के साथ एक होकर स्वयं भी पूर्ण हों
जहाँ पूर्णता है, वहाँ कोई कमी नहीं हो सकती। वह पूर्णता व्यक्त होती है, पूर्ण भक्ति और समर्पण से।
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हमारा परमप्रेम ही भक्ति है। उस परमप्रेम को हम जागृत करें, और पूर्णता को प्राप्त करें। परमात्मा बहुत ही स्वार्थी और ईर्ष्यालु प्रेमी है। जब कभी उनसे मिलेंगे तो सारी बात बताएँगे। हम उन की तरह स्वार्थी और ईर्ष्यालु नहीं बनें। जिन से प्रेम होता है उन्हीं को बुरा-भला कहा जाता है। हमारी सारी अच्छाई/बुराई परमात्मा की है, हमारी नहीं। जितना दुःखी हम उनके बिना हैं, वे भी उससे दुगुने दुःखी हमारे बिना हैं।
ॐ पूर्णमदः पूणमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ॐ ॐ ॐ॥
२ फरवरी २०२५

तुम्हारा अकेले में मन नहीं लगता, इसलिये तुमने यह सृष्टि बनायी है ---

 तुम्हारा अकेले में मन नहीं लगता, इसलिये तुमने यह सृष्टि बनायी है ---

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तुम्हारा अकेले में मन नहीं लगता, इसलिये तुम ने इस सृष्टि को और हमें बना दिया है। तुम्हारे से प्रेम है, इसी लिये तुम्हें प्रेमवश यह उलाहना दे रहे हैं। परमात्मा का अकेले में मन नहीं लगता, इसी लिए उस ने यह सारा प्रपंच रचा है। हमारा प्रश्न तो यह है कि इस सृष्टि को तुम ने हमारे लिए बनाया है, या हमें इस सृष्टि के लिए बनाया है?
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मुझे तो लगता है कि वे ही हम सब और ये सब बन गए हैं। यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि ईश्वर भी हमारी ही तरह बोर होते हैं, और उन्हें भी हमारे प्रेम की भूख लगती है। अब हमारा दायित्व बनता है कि हम उन्हें बोर भी न होने दें और भूखा भी न रखें।
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जब परमात्मा की अनुभूति हो जाये तब इधर-उधर की भागदौड़ बंद हो जानी चाहिए. उन्हीं की चेतना में रहें। मेरा कोई सिद्धान्त नहीं है, मेरा कोई मत या पंथ भी नहीं है, मेरा कोई धर्म नहीं है, और मेरा कोई कर्तव्य भी नहीं है। मेरा समर्पण सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के लिए है। स्वयं परमात्मा ही मेरे सिद्धान्त, मत/पंथ, धर्म और कर्तव्य हैं। उन से अतिरिक्त मेरा कोई कुछ भी नहीं है। वे ही मेरे सर्वस्व हैं। मेरा कोई पृथक अस्तित्व भी नहीं है।
यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति॥
ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०२५

परिस्थितियाँ बदल रही हैं। जिन कर्मफलों को भोगने के लिए मैंने यह जन्म लिया था, वे भी शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगी ---

 परिस्थितियाँ बदल रही हैं। जिन कर्मफलों को भोगने के लिए मैंने यह जन्म लिया था, वे भी शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगी। एक विशाल यज्ञ का मैं साक्षी हूँ, जो सूक्ष्म जगत में इस शरीर से बाहर बहुत ऊपर अनंत में हो रहा है। उस यज्ञ की ज्वाला अवर्णनीय ज्योतिर्मय है। उस यज्ञ का मैं साक्षी भी हूँ, और शाकल्य व श्रुवा भी हूँ। परमशिव को मेरे प्राणों की आहुति स्वयं भगवती दे रही है।

"ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना॥४:२४॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
भावार्थ -- अर्पण (अर्थात् अर्पण करने का साधन श्रुवा) ब्रह्म है और हवि (शाकल्य अथवा हवन करने योग्य द्रव्य) भी ब्रह्म है; ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा जो हवन किया गया है, वह भी ब्रह्म ही है। इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है॥
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करुणावश भगवती की महाशक्ति एक न एक दिन परमात्मा से योग करा ही देगी। कर्मों से मुक्ति मिले। किसी भी कर्मफल का कोई अवशेष न रहे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०२३