तुम्हारा अकेले में मन नहीं लगता, इसलिये तुमने यह सृष्टि बनायी है ---
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तुम्हारा अकेले में मन नहीं लगता, इसलिये तुम ने इस सृष्टि को और हमें बना दिया है। तुम्हारे से प्रेम है, इसी लिये तुम्हें प्रेमवश यह उलाहना दे रहे हैं। परमात्मा का अकेले में मन नहीं लगता, इसी लिए उस ने यह सारा प्रपंच रचा है। हमारा प्रश्न तो यह है कि इस सृष्टि को तुम ने हमारे लिए बनाया है, या हमें इस सृष्टि के लिए बनाया है?
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मुझे तो लगता है कि वे ही हम सब और ये सब बन गए हैं। यह बहुत प्रसन्नता की बात है कि ईश्वर भी हमारी ही तरह बोर होते हैं, और उन्हें भी हमारे प्रेम की भूख लगती है। अब हमारा दायित्व बनता है कि हम उन्हें बोर भी न होने दें और भूखा भी न रखें।
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जब परमात्मा की अनुभूति हो जाये तब इधर-उधर की भागदौड़ बंद हो जानी चाहिए. उन्हीं की चेतना में रहें। मेरा कोई सिद्धान्त नहीं है, मेरा कोई मत या पंथ भी नहीं है, मेरा कोई धर्म नहीं है, और मेरा कोई कर्तव्य भी नहीं है। मेरा समर्पण सिर्फ और सिर्फ परमात्मा के लिए है। स्वयं परमात्मा ही मेरे सिद्धान्त, मत/पंथ, धर्म और कर्तव्य हैं। उन से अतिरिक्त मेरा कोई कुछ भी नहीं है। वे ही मेरे सर्वस्व हैं। मेरा कोई पृथक अस्तित्व भी नहीं है।
यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति॥
ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०२५
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