परिस्थितियाँ बदल रही हैं। जिन कर्मफलों को भोगने के लिए मैंने यह जन्म लिया था, वे भी शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगी। एक विशाल यज्ञ का मैं साक्षी हूँ, जो सूक्ष्म जगत में इस शरीर से बाहर बहुत ऊपर अनंत में हो रहा है। उस यज्ञ की ज्वाला अवर्णनीय ज्योतिर्मय है। उस यज्ञ का मैं साक्षी भी हूँ, और शाकल्य व श्रुवा भी हूँ। परमशिव को मेरे प्राणों की आहुति स्वयं भगवती दे रही है।
"ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
भावार्थ -- अर्पण (अर्थात् अर्पण करने का साधन श्रुवा) ब्रह्म है और हवि (शाकल्य अथवा हवन करने योग्य द्रव्य) भी ब्रह्म है; ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्मरूप कर्ता के द्वारा जो हवन किया गया है, वह भी ब्रह्म ही है। इस प्रकार ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ पुरुष का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है॥
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करुणावश भगवती की महाशक्ति एक न एक दिन परमात्मा से योग करा ही देगी। कर्मों से मुक्ति मिले। किसी भी कर्मफल का कोई अवशेष न रहे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०२३
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