हमारी सारी अच्छाई/बुराई परमात्मा की है, हमारी नहीं --
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पूर्णता सिर्फ परमात्मा में है, हम उस पूर्णता के साथ एक होकर स्वयं भी पूर्ण हों
जहाँ पूर्णता है, वहाँ कोई कमी नहीं हो सकती। वह पूर्णता व्यक्त होती है, पूर्ण भक्ति और समर्पण से।
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हमारा परमप्रेम ही भक्ति है। उस परमप्रेम को हम जागृत करें, और पूर्णता को प्राप्त करें। परमात्मा बहुत ही स्वार्थी और ईर्ष्यालु प्रेमी है। जब कभी उनसे मिलेंगे तो सारी बात बताएँगे। हम उन की तरह स्वार्थी और ईर्ष्यालु नहीं बनें। जिन से प्रेम होता है उन्हीं को बुरा-भला कहा जाता है। हमारी सारी अच्छाई/बुराई परमात्मा की है, हमारी नहीं। जितना दुःखी हम उनके बिना हैं, वे भी उससे दुगुने दुःखी हमारे बिना हैं।
ॐ पूर्णमदः पूणमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ ॐ ॐ ॐ॥
२ फरवरी २०२५
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