ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" !! विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री माता सरस्वती को 'बसंत पंचमी' (रविबार २ फरवरी २०२५) के शुभ अवसर पर नमन, और सभी का अभिनंदन !!
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लगता ही नहीं है कि बसंत ऋतू आ गयी है। प्रकृति का समय-चक्र और लोगों के विचार परिवर्तित हो गये हैं। पता नहीं असली बसंत कब आयेगा? हिमालय के पहाड़ों में अभी भी बर्फ गिर रही है, और वहाँ से यहाँ सीधी आने वाली ठंडी बर्फीली हवाओं ने इस मरुभूमि को बहुत अधिक ठंडा बना रखा है। बसंत पंचमी तक प्रकृति अपना शृंगार स्वयं कर लेती थी, लेकिन इसके कुछ भी लक्षण इस समय दिखायी नहीं दे रहे हैं।
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पचास-साठ वर्षों पूर्व तक बसंत-पंचमी के दिन हरेक मंदिर में खूब भजन-कीर्तन होते थे, और खूब गुलाल उड़ाई जाती थी, और प्रसाद बँटता था। सभी विद्यालयों, मंदिरों और अनेक घरों में पीले रंग के फूलों से भगवती सरस्वती की पूजा होती थी। स्त्री-पुरुष सब पीले रंग के कपड़े पहिनते थे। घर पर भोजन में पीले चावल बनते थे। अब भी बहुत लोग इस दिन भगवती सरस्वती की आराधना करते हैं।
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इसी दिन वीर बालक हकीकत राय का पुण्य स्मृति दिवस है। भारत के सभी बालक वीर हकीकत राय जैसे बनें।
बसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीराम भीलनी शबरी की कुटिया में पधारे थे।
बसंत पंचमी के दिन ही राजा भोज का जन्मदिवस था।
१८१६ ई.की बसंत पंचमी के दिन गुरु रामसिंह कूका का जन्म हुआ था। उनके ५० शिष्यों को १७ जनवरी १८७२ को मलेरकोटला में अंग्रेजों ने तोपों के मुंह से बांधकर उड़ा दिया, और बचे हुए १८ शिष्यों को फांसी दे दी। उन्हें मांडले की जेल में भेज दिया गया, जहाँ घोर अत्याचार सहकर १८८५ में उन्होने अपना शरीर त्याग दिया।
वसन्त पंचमी के ही दिन हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि पं.सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म १८९९ में हुआ था।
बसंत पंचमी को गंगा स्नान करने का भी महत्व है।
माघ के महीने में हुई वर्षा को भी शुभ माना जाता है| कहते हैं कि माघ के माह में हुई वर्षा के जल की एक-एक बूंद अमृत होती है।
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इस दिन से बसंत ऋतु का आगमन और शरद ऋतु की विदाई होती है। मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुई थीं। माँ सरस्वती को वागीश्वरी, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं।
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"या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥"
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सभी को मंगलमय शुभ कामना और नमन !!
कृपा शंकर
१ फरवरी २०२५
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(पुनश्च: -- जिन्हें पूजा करनी है, वे शुभ मुहूर्त की जानकारी अपने यहाँ के स्थानीय पंडित जी से प्राप्त करें।)
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