Monday, 27 January 2025

भगवान हमारी चेतना में हैं, कहीं बाहर नहीं, सारा ब्रह्मांड, सारी सृष्टि हमारी चेतना में है ---

 भगवान की बड़ी कृपा है कि मन में भटकाने वाले तरह तरह के विचार आने बंद हो गए हैं। पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म का भी अब कोई महत्व नहीं रहा है। आध्यात्मिक अनुभूतियाँ भी महत्वहीन हो गई हैं। भगवान हैं, इसी समय हैं, सर्वदा और सर्वत्र हैं; जो चेतना से कभी लुप्त नहीं होते। उनका आनंद अपने आप ही सर्वदा सर्वत्र व्याप्त हो रहा है, उनसे भी कुछ नहीं चाहिए। किसी से कुछ भी कोई अपेक्षा नहीं है। वे पूर्ण तृप्ति और पूर्ण संतुष्टि हैं।

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भगवान हमारी चेतना में हैं, कहीं बाहर नहीं। सारा ब्रह्मांड,सारी सृष्टि हमारी चेतना में है। भगवान कोई ऊपर से उतर कर आने वाली चीज नहीं है, हमें स्वयं को ही भगवान की चेतना में जाकर उनके साथ एक होना पड़ता है।
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व्यष्टि द्वारा समष्टि को समर्पण -- सबसे बड़ी साधना है। इससे चित्त सदा शांत और क्रियाशील रहेगा। प्रमाद ही मृत्यु है। अवचेतन मन को संस्कारित किये बिना हम भगवान की भक्ति, धारणा, ध्यान, समर्पण आदि कुछ भी नहीं कर सकते। इस के लिए आवश्यक है -- भगवान के साथ निरंतर सत्संग।
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प्रकृति अपने नियमों के अनुसार चल रही है। उन नियमों को न जानना हमारी अज्ञानता है। भगवान को सदा याद रखेंगे तो वे भी हमें सदा याद रखेंगे, मृत्यु के समय भी। भगवान यदि कहीं हैं तो वे हमारे हृदय में ही हैं, अन्यत्र कहीं भी नहीं। सारी सृष्टि ही हमारा हृदय है, जिसका केंद्र सर्वत्र है, लेकिन परिधि कहीं भी नहीं। वे एक श्रद्धा, विश्वास, निष्ठा और अनुभूति हैं। उन का अस्तित्व किसी के विश्वास/अविश्वास पर निर्भर नहीं है। वे अपरिभाष्य हैं, उन को किसी परिभाषा में नहीं बाँध सकते। वे हमारे अस्तित्व हैं, जिन्हें जाने बिना हमारा जीवन अतृप्त है। उन्हें जानने का प्रयास स्वयं को जानने का प्रयास है। उन की कृपा सभी प्राणियों पर निरंतर है। हम उन के साथ एक, और उन की पूर्णता हैं।
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ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जनवरी २०२४

सर्वाधिक महत्व एक ही बात का है -- वह है "निरंतर भगवान का स्मरण", प्रातःकाल उठते ही भगवान का कीर्तन और ध्यान करें ---

 (१) सर्वाधिक महत्व एक ही बात का है -- वह है "निरंतर भगवान का स्मरण"। गीता में भगवान कहते हैं --

"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
अर्थात् -- इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे॥
Therefore meditate always on Me, and fight; if thy mind and thy reason be fixed on Me, to Me shalt thou surely come.
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(२) प्रातःकाल उठते ही भगवान का कीर्तन और ध्यान करें। तत्पश्चात् दिन का आरंभ करें। रात्रीशयन से पूर्व भी भगवान का कीर्तन और ध्यान करें। परिणाम आप के जीवन को आनंदमय और धन्य बना देंगे।
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जीवन में सदा प्रसन्न रहें। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जनवरी २०२४