भारत की विकट स्थिति और भविष्य .....
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अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिस्थितियाँ बड़ी विकट होती हैं, जिनमें भारत जैसा देश अब तक सिर्फ परमात्मा की कृपा से ही बचा रहा है और भविष्य में भी परमात्मा की कृपा ही बचाएगी| एक अत्यधिक सशक्त आध्यात्मिक राष्ट्रवादी सत्ता की भारत में आवश्यकता है| विदेशों से आयातित कोई भी व्यवस्था भारत में सफल नहीं हो सकती|
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई किसी का शत्रु या मित्र नहीं होता| सब अपना अपना आर्थिक और वैचारिक हित देखते हैं| विदेशी शक्तियाँ अपने मोहरे यहाँ की सत्ता में बिठाने का निरंतर प्रयास करती रही हैं जो भारत का नहीं बल्कि उन का ही हित साधते रहें| पश्चिमी देशों में भारत के बारे में जो अध्ययन किया जाता है वह भारत के कल्याण के लिए नहीं, बल्कि भारत का शोषण कैसे कैसे किया जा सकता है, इसी पर विचार करने के लिए किया जाता है|
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अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर के अपनी व्यवस्था लागू की ताकि वैचारिक रूप से वे भारत पर राज्य करते रहें| वर्तमान में भी भारत के उच्चतम पदों पर आसीन प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारी स्वयं को अँगरेज़ से कम नहीं समझते, उनकी सोच व कार्यप्रणाली अभी भी अंग्रेजों की तरह है| एक सामान्य भारतीय तो उनके लिए कीड़े-मकोड़े से अधिक नहीं है| राजनेताओं को चोरी करना वे ही सिखाते हैं| वे स्वयं तो सुरक्षित रहते हैं, पर सारा दोष राजनेताओं पर लग जाता है| किसी भी राजनेता में साहस नहीं है कि उनकी व्यवस्था को बदल सके|
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वेटिकन, लन्दन और वाशिंगटन कभी भी नहीं चाहेंगे कि भारत में कोई राष्ट्रवादी सरकार रहे| वे अपनी पूरी शक्ति यह सुनिश्चित करने में लगा देंगे कि उनके भक्त ही भारत की सत्ता में रहें| भारत पर कोई हिन्दू राष्ट्रवादी शासन करे यह उन्हें स्वीकार्य नहीं है| वे किसी ईसाई और विचारों से अँगरेज़ के हाथों में ही भारत की सत्ता देखना चाहेंगे| कांग्रेस का राज उन्हीं का राज था| ऐसे ही मास्को और बीजिंग भी यही चाहेंगे कि उनके भक्त भारत पर राज्य करें| मुस्लिम देश भी यही चाहते हैं कि भारत पर इस्लामी शासन हो| भारत के अधिकांश लोग प्रायः बहुत भोले, भावुक और अदूरदर्शी होते हैं जिन का आसानी से भावनात्मक रूप से शोषण किया जा सकता है|
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अँगरेज़ जाति बड़ी धूर्त होती है (स्कॉटिश, आयरिश और वेल्श इतने धूर्त नहीं होते जितने इंग्लिश होते हैं)| भारत पर राज्य स्थापित करने से पूर्व उन्होंने भारत पर और भारत की कमजोरियों का पूरा अध्ययन किया| इंग्लैंड में जितने भी जेबकतरे, चोर और गुंडे बदमाश थे उनको भारत में कलेक्टर और बड़े बड़े अधिकारी बना कर भेज दिया जिन्होंने भारत को खूब लूटा| उनका हम अभी भी महिमामंडन और गुणगान कर रहे हैं| मेक्समूलर जैसे वेतनभोगी पादरियों को हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन करने में लगा दिया, सिर्फ यह पता करने के लिए कि हिन्दू धर्मग्रंथों में कहाँ कहाँ क्या क्या मिलावट और बदलाव किया जाए ताकि हिन्दुओं में फूट पड़ा जाए और वे आपस में लड़ते तो रहें ही, साथ साथ उनमें हीन भावना भी आ जाए|
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ऐसे ही अरब, तुर्क और मध्य एशिया से आये हमलावर थे जिन्होंने अपने जासूसों को साधू संतों के वेश में भारत में प्रवेश करा दिया जिनको हम साधू संत समझ कर सम्मान देते रहे पर उन्होंने भारत की पूरी कमजोरियों का अध्ययन किया, विदेशी आक्रमण की भूमिका बनाई और आक्रमणकारी सेनाओं का मार्गदर्शन किया| अभी भी भारत में जितने विदेशी साधू हैं उनमें से आधे तो विदेशी जासूस निकलेंगे|
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भारत की इलेक्ट्रॉनिक समाचार मिडिया और अंग्रेजी के अखबार विदेशियों के हाथ में बिके हुए ही हैं, वे भारत का नहीं बल्कि अपने विदेशी मालिकों का हित देखते हैं| अतः भारत की स्थिति बहुत नाजुक है और भगवान की कृपा से ही भारत जीवित है| भारत के जीवित रहने का उद्देश्य दैवीय है, लौकिक नहीं|
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भारत जीवित ही नहीं रहे बल्कि एक आध्यात्मिक राष्ट्र बनकर अपने द्वीगुणित परम वैभव को प्राप्त होकर पूरे विश्व का मार्गदर्शन करे, यह हमारी भगवान से प्रार्थना है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ मार्च २०१८
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अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय परिस्थितियाँ बड़ी विकट होती हैं, जिनमें भारत जैसा देश अब तक सिर्फ परमात्मा की कृपा से ही बचा रहा है और भविष्य में भी परमात्मा की कृपा ही बचाएगी| एक अत्यधिक सशक्त आध्यात्मिक राष्ट्रवादी सत्ता की भारत में आवश्यकता है| विदेशों से आयातित कोई भी व्यवस्था भारत में सफल नहीं हो सकती|
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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कोई किसी का शत्रु या मित्र नहीं होता| सब अपना अपना आर्थिक और वैचारिक हित देखते हैं| विदेशी शक्तियाँ अपने मोहरे यहाँ की सत्ता में बिठाने का निरंतर प्रयास करती रही हैं जो भारत का नहीं बल्कि उन का ही हित साधते रहें| पश्चिमी देशों में भारत के बारे में जो अध्ययन किया जाता है वह भारत के कल्याण के लिए नहीं, बल्कि भारत का शोषण कैसे कैसे किया जा सकता है, इसी पर विचार करने के लिए किया जाता है|
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अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर के अपनी व्यवस्था लागू की ताकि वैचारिक रूप से वे भारत पर राज्य करते रहें| वर्तमान में भी भारत के उच्चतम पदों पर आसीन प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारी स्वयं को अँगरेज़ से कम नहीं समझते, उनकी सोच व कार्यप्रणाली अभी भी अंग्रेजों की तरह है| एक सामान्य भारतीय तो उनके लिए कीड़े-मकोड़े से अधिक नहीं है| राजनेताओं को चोरी करना वे ही सिखाते हैं| वे स्वयं तो सुरक्षित रहते हैं, पर सारा दोष राजनेताओं पर लग जाता है| किसी भी राजनेता में साहस नहीं है कि उनकी व्यवस्था को बदल सके|
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वेटिकन, लन्दन और वाशिंगटन कभी भी नहीं चाहेंगे कि भारत में कोई राष्ट्रवादी सरकार रहे| वे अपनी पूरी शक्ति यह सुनिश्चित करने में लगा देंगे कि उनके भक्त ही भारत की सत्ता में रहें| भारत पर कोई हिन्दू राष्ट्रवादी शासन करे यह उन्हें स्वीकार्य नहीं है| वे किसी ईसाई और विचारों से अँगरेज़ के हाथों में ही भारत की सत्ता देखना चाहेंगे| कांग्रेस का राज उन्हीं का राज था| ऐसे ही मास्को और बीजिंग भी यही चाहेंगे कि उनके भक्त भारत पर राज्य करें| मुस्लिम देश भी यही चाहते हैं कि भारत पर इस्लामी शासन हो| भारत के अधिकांश लोग प्रायः बहुत भोले, भावुक और अदूरदर्शी होते हैं जिन का आसानी से भावनात्मक रूप से शोषण किया जा सकता है|
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अँगरेज़ जाति बड़ी धूर्त होती है (स्कॉटिश, आयरिश और वेल्श इतने धूर्त नहीं होते जितने इंग्लिश होते हैं)| भारत पर राज्य स्थापित करने से पूर्व उन्होंने भारत पर और भारत की कमजोरियों का पूरा अध्ययन किया| इंग्लैंड में जितने भी जेबकतरे, चोर और गुंडे बदमाश थे उनको भारत में कलेक्टर और बड़े बड़े अधिकारी बना कर भेज दिया जिन्होंने भारत को खूब लूटा| उनका हम अभी भी महिमामंडन और गुणगान कर रहे हैं| मेक्समूलर जैसे वेतनभोगी पादरियों को हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन करने में लगा दिया, सिर्फ यह पता करने के लिए कि हिन्दू धर्मग्रंथों में कहाँ कहाँ क्या क्या मिलावट और बदलाव किया जाए ताकि हिन्दुओं में फूट पड़ा जाए और वे आपस में लड़ते तो रहें ही, साथ साथ उनमें हीन भावना भी आ जाए|
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ऐसे ही अरब, तुर्क और मध्य एशिया से आये हमलावर थे जिन्होंने अपने जासूसों को साधू संतों के वेश में भारत में प्रवेश करा दिया जिनको हम साधू संत समझ कर सम्मान देते रहे पर उन्होंने भारत की पूरी कमजोरियों का अध्ययन किया, विदेशी आक्रमण की भूमिका बनाई और आक्रमणकारी सेनाओं का मार्गदर्शन किया| अभी भी भारत में जितने विदेशी साधू हैं उनमें से आधे तो विदेशी जासूस निकलेंगे|
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भारत की इलेक्ट्रॉनिक समाचार मिडिया और अंग्रेजी के अखबार विदेशियों के हाथ में बिके हुए ही हैं, वे भारत का नहीं बल्कि अपने विदेशी मालिकों का हित देखते हैं| अतः भारत की स्थिति बहुत नाजुक है और भगवान की कृपा से ही भारत जीवित है| भारत के जीवित रहने का उद्देश्य दैवीय है, लौकिक नहीं|
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भारत जीवित ही नहीं रहे बल्कि एक आध्यात्मिक राष्ट्र बनकर अपने द्वीगुणित परम वैभव को प्राप्त होकर पूरे विश्व का मार्गदर्शन करे, यह हमारी भगवान से प्रार्थना है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ मार्च २०१८