या तो अभी या फिर तीन-चार जन्मों के पश्चात .....
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यह मुझे ही नहीं सभी को जीवन में आध्यात्मिक दृष्टी से कई बार मार्ग दर्शन प्राप्त होता है जिसकी हम प्रायः उपेक्षा कर देते हैं| बार बार उपेक्षा कर देने पर अनेक कष्ट पाकर फिर कई जन्मों के पश्चात बापस उस चेतना में आते हैं जहाँ वह मार्गदर्शन मिलता है| पर तब तक कई जन्म व्यर्थ चले जाते हैं|
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हर निष्ठावान व्यक्ति के समक्ष दो मार्गों में से अनिवार्य रूप से एक मार्ग चुनने का विकल्प अवश्य आता है, जहाँ तटस्थ नहीं रह सकते| एक तो ऊर्ध्वगामी मार्ग है जो सीधा परमात्मा की ओर जाता है, दूसरा अधोगामी मार्ग है जो सांसारिक भोग विलास की ओर जाता है| अति तीव्र आकर्षण वाला यह अधोगामी मार्ग विष मिले हुए शहद की तरह है जो स्वाद में तो बहुत मीठा है पर अंततः कष्टमय और दुःखदायी है|
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योगमार्ग के अनुयायी हर उस साधक को जिसको कूटस्थ चैतन्य की अनुभूति होती है, ध्यान में उन सूक्ष्म लोकों का आभास या दर्शन अवश्य होता हैं जो उसके लिए कल्याणकारी हैं| साथ साथ एक अति प्रबल अधोगामी आकर्षण की भी अनुभूति होती है जो सांसारिक ऐश्वर्य का प्रलोभन देकर उस को अपनी ओर आकर्षित करता है| इस अधोगामी आकर्षण को ही अब्राहमिक मतों ने "शैतान" का नाम दिया है| "शैतान" कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि वासनाओं के प्रति वह अधोगामी आकर्षण ही है जिसे हम माया भी कह सकते हैं| इस माया की ओर आकर्षित होने वाले को तीन-चार जन्म व्यतीत हो जाने के पश्चात ही होश आता है और उसे वह विकल्प फिर मिलता है|
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यह संसार एक पाठशाला है जहाँ सब एक पाठ पढ़ने के लिए आते हैं| वह पाठ निरंतर पढ़ाया जा रहा है| जो उसे नहीं सीखते वे दुःख और कष्टों द्वारा उसे सीखने के लिए बाध्य कर दिए जाते हैं| संसार में दुःख और कष्ट आते हैं, उनका एक ही उद्देश्य है .... मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने को बाध्य करना|
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वह मार्गदर्शन सभी को मिलता है| कोई यदि यह कहे कि उसे कभी भी कोई मार्गदर्शन नहीं मिला है तो वह असत्य बोल रहा है|
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सभी का कल्याण हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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यह मुझे ही नहीं सभी को जीवन में आध्यात्मिक दृष्टी से कई बार मार्ग दर्शन प्राप्त होता है जिसकी हम प्रायः उपेक्षा कर देते हैं| बार बार उपेक्षा कर देने पर अनेक कष्ट पाकर फिर कई जन्मों के पश्चात बापस उस चेतना में आते हैं जहाँ वह मार्गदर्शन मिलता है| पर तब तक कई जन्म व्यर्थ चले जाते हैं|
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हर निष्ठावान व्यक्ति के समक्ष दो मार्गों में से अनिवार्य रूप से एक मार्ग चुनने का विकल्प अवश्य आता है, जहाँ तटस्थ नहीं रह सकते| एक तो ऊर्ध्वगामी मार्ग है जो सीधा परमात्मा की ओर जाता है, दूसरा अधोगामी मार्ग है जो सांसारिक भोग विलास की ओर जाता है| अति तीव्र आकर्षण वाला यह अधोगामी मार्ग विष मिले हुए शहद की तरह है जो स्वाद में तो बहुत मीठा है पर अंततः कष्टमय और दुःखदायी है|
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योगमार्ग के अनुयायी हर उस साधक को जिसको कूटस्थ चैतन्य की अनुभूति होती है, ध्यान में उन सूक्ष्म लोकों का आभास या दर्शन अवश्य होता हैं जो उसके लिए कल्याणकारी हैं| साथ साथ एक अति प्रबल अधोगामी आकर्षण की भी अनुभूति होती है जो सांसारिक ऐश्वर्य का प्रलोभन देकर उस को अपनी ओर आकर्षित करता है| इस अधोगामी आकर्षण को ही अब्राहमिक मतों ने "शैतान" का नाम दिया है| "शैतान" कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि वासनाओं के प्रति वह अधोगामी आकर्षण ही है जिसे हम माया भी कह सकते हैं| इस माया की ओर आकर्षित होने वाले को तीन-चार जन्म व्यतीत हो जाने के पश्चात ही होश आता है और उसे वह विकल्प फिर मिलता है|
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यह संसार एक पाठशाला है जहाँ सब एक पाठ पढ़ने के लिए आते हैं| वह पाठ निरंतर पढ़ाया जा रहा है| जो उसे नहीं सीखते वे दुःख और कष्टों द्वारा उसे सीखने के लिए बाध्य कर दिए जाते हैं| संसार में दुःख और कष्ट आते हैं, उनका एक ही उद्देश्य है .... मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने को बाध्य करना|
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वह मार्गदर्शन सभी को मिलता है| कोई यदि यह कहे कि उसे कभी भी कोई मार्गदर्शन नहीं मिला है तो वह असत्य बोल रहा है|
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सभी का कल्याण हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० दिसंबर २०१७
३० दिसंबर २०१७