Friday, 29 December 2017

या तो अभी या फिर तीन-चार जन्मों के पश्चात .....

या तो अभी या फिर तीन-चार जन्मों के पश्चात .....
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यह मुझे ही नहीं सभी को जीवन में आध्यात्मिक दृष्टी से कई बार मार्ग दर्शन प्राप्त होता है जिसकी हम प्रायः उपेक्षा कर देते हैं| बार बार उपेक्षा कर देने पर अनेक कष्ट पाकर फिर कई जन्मों के पश्चात बापस उस चेतना में आते हैं जहाँ वह मार्गदर्शन मिलता है| पर तब तक कई जन्म व्यर्थ चले जाते हैं|
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हर निष्ठावान व्यक्ति के समक्ष दो मार्गों में से अनिवार्य रूप से एक मार्ग चुनने का विकल्प अवश्य आता है, जहाँ तटस्थ नहीं रह सकते| एक तो ऊर्ध्वगामी मार्ग है जो सीधा परमात्मा की ओर जाता है, दूसरा अधोगामी मार्ग है जो सांसारिक भोग विलास की ओर जाता है| अति तीव्र आकर्षण वाला यह अधोगामी मार्ग विष मिले हुए शहद की तरह है जो स्वाद में तो बहुत मीठा है पर अंततः कष्टमय और दुःखदायी है|
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योगमार्ग के अनुयायी हर उस साधक को जिसको कूटस्थ चैतन्य की अनुभूति होती है, ध्यान में उन सूक्ष्म लोकों का आभास या दर्शन अवश्य होता हैं जो उसके लिए कल्याणकारी हैं| साथ साथ एक अति प्रबल अधोगामी आकर्षण की भी अनुभूति होती है जो सांसारिक ऐश्वर्य का प्रलोभन देकर उस को अपनी ओर आकर्षित करता है| इस अधोगामी आकर्षण को ही अब्राहमिक मतों ने "शैतान" का नाम दिया है| "शैतान" कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि वासनाओं के प्रति वह अधोगामी आकर्षण ही है जिसे हम माया भी कह सकते हैं| इस माया की ओर आकर्षित होने वाले को तीन-चार जन्म व्यतीत हो जाने के पश्चात ही होश आता है और उसे वह विकल्प फिर मिलता है|
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यह संसार एक पाठशाला है जहाँ सब एक पाठ पढ़ने के लिए आते हैं| वह पाठ निरंतर पढ़ाया जा रहा है| जो उसे नहीं सीखते वे दुःख और कष्टों द्वारा उसे सीखने के लिए बाध्य कर दिए जाते हैं| संसार में दुःख और कष्ट आते हैं, उनका एक ही उद्देश्य है .... मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने को बाध्य करना|
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वह मार्गदर्शन सभी को मिलता है| कोई यदि यह कहे कि उसे कभी भी कोई मार्गदर्शन नहीं मिला है तो वह असत्य बोल रहा है|
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सभी का कल्याण हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
३० दिसंबर २०१७

३१ दिसंबर को निशाचर रात्री है, बच कर रहें .....

३१ दिसंबर को निशाचर रात्री है, बच कर रहें .....
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३१ दिसंबर की रात्री को अनेक लोगों द्वारा अत्यधिक मदिरापान, अभक्ष्य भोजन, फूहड़ नाच गाना, और अमर्यादित आचरण होता है | "निशा" रात को कहते हैं, और "चर" का अर्थ होता है चलना या खाना | जो लोग रात को अभक्ष्य भोजन करते हैं, या रात को अनावश्यक घूम कर आवारागर्दी करते हैं, वे निशाचर हैं | प्राचीन भारत में सिर्फ तामसिक असुर लोग ही रात को खाते थे | अन्य लोग रात को नहीं खाते थे | ३१ दिसंबर की रात को लगभग पूरी दुनिया निशाचर बन जाएगी | अतः बच कर रहें, सत्संग का आयोजन करें या भगवान का ध्यान करें |
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तीन चार साल पहिले हम चार-पाँच मित्रों ने ३१ दिसंबर की रात्री को कड़कड़ाती ठण्ड में श्मशान भूमि की नीरवता में रहकर तप करने वाले बाबा आनंदगिरी के साथ श्मशान भूमि के एक कमरे में सत्संग भजन व ध्यान किया था | वे भी बहुत प्रसन्न हुए | फिर दुबारा अगले वर्ष कोई मित्र तैयार नहीं हुआ |
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जिस रात भगवान का भजन नहीं होता वह राक्षस रात्री है, और जिस रात भगवान का भजन हो जाए वह देव रात्रि है | सबको शुभ कामनाएँ |


ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
३० दिसंबर २०१७

हमें भस्म क्यों धारण करनी चाहिए ? .....

ब्रह्माण्ड के स्वामी को भस्म सर्वाधिक प्रिय क्यों ? हमें भस्म क्यों धारण करनी चाहिए ?
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(यह लेख थोड़ा लंबा है जो पूरा पढ़कर ही समझ में आयेगा)
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एक बार जब भगवान शिव समाधिस्थ थे तब मनोभव (मन में उत्पन्न होने वाला) मतिहीन कंदर्प (कामदेव) ने अन्य देवताओं के उकसाने पर सर्वव्यापी भगवान शिव पर कामवाण चलाया | भगवान शिव ने जब उस मनोज (कामदेव) पर दृष्टिपात किया तब कामदेव भगवान शिव की योगाग्नि से भस्म हो गया | कामदेव के बिना तो सृष्टि का विस्तार हो नहीं सकता अतः उसकी पत्नी रति बहुत विलाप करने लगी जिससे द्रवित होकर आशुतोष भगवान शिव ने मनोमय (कामदेव) की भस्म का अपनी देह पर लेप कर लिया, जिस से कामदेव जीवित हो उठा |
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भगवती माँ छिन्नमस्ता, कामदेव और उसकी पत्नी रति को भूमि पर पटक कर उनकी देह पर पर नृत्य करती हैं | फिर वे अपने ही हाथों से अपनी स्वयं की गर्दन काट लेती हैं | उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएँ निकलती हैं जिनमें से मध्य की रक्तधारा का पान वे स्वयं करती हैं, और अन्य दो धाराओं का पान उनके दोनों ओर खड़ी वर्णिनी और डाकिनी करती हैं |
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(उपरोक्त दोनों का आध्यात्मिक अर्थ बहुत गहन है जिसे किसी सुपात्र को समझाने के लिए समय व बहुत धैर्य चाहिए | यहाँ फेसबुक पर यह बताना संभव नहीं है|)
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तपस्वी साधू लोग ठंडी और गर्मी से बचाव के लिए भस्म लेपन करते हैं | त्याग तपस्या और वैराग्य का प्रतीक यह भस्म स्नान रुद्रयामल तंत्र के अनुसार अग्नि-स्नान है जो भगवन शिव को सर्वाधिक प्रिय है | शैवागम के वर्णोद्धार तंत्र के अनुसार भस्म का "भ"कार स्वयं परमकुण्डलिनी है जो महामोक्षदायक और सर्व शक्तियों से युक्त है | स्म क्रियास्वरूप भूतकाल है |
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आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य की नाड़ी "उत्तरा सुषुम्ना" है जिस में प्रवेश कर कुंडलिनी, परमकुंडलिनी हो जाती है | योगमार्ग के साधक को अपनी चेतना निरंतर इसी उत्तरा सुषुम्ना में रखनी चाहिए और सहस्त्रार जो गुरुचरणों का प्रतीक है, पर ध्यान करना चाहिए| योगी के लिए आज्ञाचक्र ही उसका ह्रदय है | सहस्त्रार में स्थिति के पश्चात ही अन्य लोक भी दिखाई देने लगते हैं और अनेक सिद्धियाँ भी प्राप्त होने लगती हैं |
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ब्रह्माण्ड के स्वामी को भस्म सर्वाधिक प्रिय क्यों है ? यह योगाग्नि में जलकर भस्म हो कर परम पवित्र होने का सन्देश है | मृत्यु के पश्चात् देह को जलाने से सब कुछ नष्ट नहीं होता, भस्म शेष रह जाती है, जो हमारी नश्वर शाश्वत आत्मा की प्रतीक है | यह भस्म प्रदर्शित करती है कि संसार में सब कुछ नश्वर है, केवल भस्म अर्थात् आत्मा ही अमर, अजर और अविनाशी है | अतएव, भस्म (आत्मा) ही सत्य है और शेष सब मिथ्या | भगवान शिव देह पर भस्म धारण करते हैं क्योंकि उन के लिए एक आत्मा को छोड़कर संसार के अन्य सब पदार्थ निरर्थक हैं | यह भस्म ही हमें यह याद दिलाती है कि हमारा जीवन क्षणिक है | भगवान शिव पर भस्म चढ़ाना एवं भस्म का त्रिपुंड लगाना कोटि महायज्ञ करने के सामान होता है | भगवन शिव अपनी भक्त-वत्सलता प्रकट करते हैं अपने भक्तों के चिताभस्म को अपने श्रीअंग का भूषण बनाकर |
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कुछ शैव सम्प्रदायों के साधुओं के अखाड़ों में विभूति-नारायण की पूजा होती है | विभूति-नारायण ..... अखाड़े के गुरुओं की देह से उतरी हुई भस्म का गोला ही होता है, जिसे वेदी पर रखकर पूजा जाता है| कुछ वैष्णव सम्प्रदायों के वैरागी साधू भी देह पर भस्म ही लगा कर रखते हैं |
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"सोइ जानइ जेहि देहु जनाइ" भगवान जिसको कृपा कर के अपना ज्ञान देते है वो ही उन्हें जान सकता है | बाकी तो .... धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां .... वाली बात है | समस्त सृष्टि भगवान शिव का एक संकल्प मात्र यानि उनके मन का एक विचार ही है | भौतिक पदार्थों के अस्तित्व के पीछे एक ऊर्जा है, उस ऊर्जा के पीछे एक चैतन्य है, और वह परम चैतन्य ही भगवन शिव हैं | उनका न कोई आदि है और ना कोई अंत | सब कुछ उन्हीं में घटित हो रहा है और सब कुछ वे ही हैं | जीव की अंतिम परिणिति शिव है | प्रत्येक जीव का अंततः शिव बनना निश्चित है | उन्हें समझने के लिए जीव को स्वयं शिव होना पड़ता है | वे हम सब को ज्ञान, भक्ति और वैराग्य दें !
शिवमस्तु ! ॐ शिव ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
३१ मई २०१३

भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती .....

भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती .....
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इस विषय पर पुराणोक्त एक कथा है कि मतिहीन कामदेव ने ध्यानस्थ शिव जी को कामोद्दीप्त करने के लिए कामवाण चलाया था| जिस से शिव जी की समाधी भंग हुई और उनकी क्रोधाग्नि में कामदेव जल कर भस्म हो गया| कामदेव की पत्नी रति के करुण विलाप से द्रवित होकर आशुतोष भगवान शिव ने कामदेव के शरीर की भस्म को अपने शरीर पर लेप लिया और कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया| मनोभव यानि मन से उत्पन्न होने वाले कंदर्प यानि कामदेव की भस्म को अपनी देह पर रमाकर भगवान शिव ने सस्नेह घोषणा की कि 'आज से भक्त/अभक्त सबके देहावाशेषों की भस्म ही मेरा श्रेष्ठ भूषण होगी|' शैव ग्रंथों में लिखा है कि --- भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती| इसीलिए शिवभक्त भस्म, त्रिपुंड और रुद्राक्ष माला धारण करते हैं| यह कथा ब्रह्मचर्य और वैराग्य की महिमा को भी प्रकाशित करती है|
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भस्मलेप को अग्नि-स्नान माना जाता है| यामल तंत्र के अनुसार सात प्रकार के स्नानों में अग्नि-स्नान सर्वश्रेष्ठ है| भस्म देह की गन्दगी को दूर करता है| भगवान शिव ने अपने लिए आग्नेय स्नान को चुन रखा है| शैवागम के तन्त्र ग्रंथों में इस विषय पर एक बड़ा विलक्षण बर्णन है जो ज्ञान की पराकाष्ठा है| 'भ'कार शब्द की व्याख्या भगवान शिव पार्वती जी को करते हैं .....

"भकारम् श्रुणु चार्वंगी स्वयं परमकुंडली|
महामोक्षप्रदं वर्ण तरुणादित्य संप्रभं ||
त्रिशक्तिसहितं वर्ण विविन्दुं सहितं प्रिये|
आत्मादि तत्त्वसंयुक्तं भकारं प्रणमाम्यह्म्||"
महादेवी को संबोधित करते हुए महादेव कहते हैं कि हे (चारू+अंगी) सुन्दर देह धारिणी, 'भ'कार 'परमकुंडली' है| यह महामोक्षदायी है जो सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त है| इसमें तीनों देवों की शक्तियां निहित हैं|
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यहाँ 'परमकुंडली' का अर्थ बताना अति आवश्यक है| मूलाधार से आज्ञाचक्र तक का मार्ग अपरा सुषुम्ना है| जब कुण्डलिनी महाशक्ति गुरुकृपा से आज्ञाचक्र को भेद कर सहस्त्रार में प्रवेश करती है तब वह मार्ग उत्तरा सुषुम्ना है| अपरा सुषुम्ना में कुण्डलिनी जागती है, और उत्तरा सुषुम्ना के मार्ग में यह "परमकुंडली" कहलाती है|
महादेव 'भ'कार द्वारा उस महामोक्षदायी परमकुण्डली की ओर संकेत करते हुए ज्ञानी साधकों की दृष्टि आकर्षित करते हुए उन्हें कुंडली जागृत कर के उत्तरा सुषुम्ना की ओर बढने की प्रेरणा देते हैं कि वे शिवमय हो जाएँ|
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शिवमस्तु ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मई २०१३

अंत मति सो गति ....

अंत मति सो गति .....
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गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अंतकाल में भ्रूमध्य में ओंकार का स्मरण करो, निज चेतना को कूटस्थ में रखो आदि| अनेक महात्मा कहते हैं मूर्धा में ओंकार का निरंतर जप करो| योगी लोग कहते हैं कि आज्ञाचक्र के प्रति सजग रहो और ब्रह्मरंध्र में ओंकार का ध्यानपूर्वक जप करो आदि| इन सब के पीछे कारण हैं|
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मनुष्य जब स्वभाविक रूप से देहत्याग करता है यानी मरता है, उस से पहिले ही यह तय हो जाता है कि उसे कहाँ किस देह में और कैसे जन्म लेना है| इस देह को छोड़ने से पहिले ही दूसरी देह की भूमिका बन जाती है| अंत समय में जैसी मति होती है वैसी ही गति होती है| इस देह में ग्यारह छिद्र हैं जिनसे जीवात्मा का मृत्यु के समय निकास होता है ..... दो आँख, दो कान, दो नाक, एक पायु, एक उपस्थ, एक नाभि, एक मुख और एक मूर्धा| यह मूर्धा वाला मार्ग अति सूक्ष्म है और पुण्यात्माओं के लिए ही है| नरकगामी जीव पायु यानि गुदामार्ग से बाहर निकलता है| कामुक व्यक्ति मुत्रेंद्रियों से निकलता है और निकृष्ट योनियों में जाता है| नाभि से निकलने वाला प्रेत बनता है| भोजन लोलूप व्यक्ति मुँह से निकलता है, गंध प्रेमी नाक से, संगीत प्रेमी कान से, और तपस्वी व्यक्ति आँख से निकलता है| अंत समय में जहाँ जिसकी चेतना है वह उसी मार्ग से निकलता है और सब की अपनी अपनी गतियाँ हैं|
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जो ब्राह्मण संकल्प कर के और दक्षिणा लेकर भी यज्ञादि अनुष्ठान विधिपूर्वक नहीं करते/कराते वे ब्रह्मराक्षस बनते हैं| मद्य, मांस और परस्त्री का भोग करने वाला ब्राह्मण ब्रह्मपिशाच बनता है| इस तरह की कर्मों के अनुसार अनेक गतियाँ हैं| कर्मों का फल सभी को मिलता है, कोई इससे बच नहीं सकता|
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सबसे बुद्धिमानी का कार्य है परमात्मा से परम प्रेम, निरंतर स्मरण का अभ्यास और ध्यान | सभी को शुभ कामनाएँ | ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ दिसंबर २०१७

हृदयाकाशरूप ईश्वर से अभेद प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी उपलब्धि है .....

हृदयाकाशरूप ईश्वर से अभेद प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी उपलब्धि है .....
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बृहदारण्यक में राजा जनक को ऋषि याज्ञवल्क्य ने जो उपदेश दिए हैं, वे अति महत्वपूर्ण हैं| पर उनकी समाधि भाषा को कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है| हृदयाकाश रूप ईश्वर और उससे अभेद प्राप्त करने का उपदेश भी ऋषि याज्ञवल्क्य के उपदेशों में है| मेरे जैसे अकिंचन व्यक्ति में कुछ कुछ अति अल्प मात्रा में समझते हुए भी उसे व्यक्त करने की थोड़ी सी भी सामर्थ्य इस जन्म में तो नहीं है| उसके लिए और जन्म लेना पड़ेगा|
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मुझे कोई मोक्ष नहीं चाहिए, मैं नित्य मुक्त हूँ| आत्मा पर पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण जो अज्ञान रूपी आवरण पड़ा हुआ है, उस अज्ञान रूपी आवरण से मुक्त होने के लिए अभी और जन्म लेने ही पड़ेंगे| इस जन्म में तो यह संभव नहीं है| भगवान सनत्कुमार, ऋषि याज्ञवल्क्य व भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु, और नारद, जनक व अर्जुन जैसे शिष्य व वेदव्यास जैसी प्रतिभाएँ इस भारतवर्ष की पुण्यभूमि में ही अवतरित हुई हैं| उससे भी पूर्व जब ब्रह्मा जी ने ऋषि अथर्व को, और अथर्व ने अन्य ऋषियों को ब्रह्मज्ञान दिया वह भी क्या युग रहा होगा !
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मूर्धा का द्वार .... सुषुम्ना, ब्रह्मरंध्र और उससे परे का लोक सामने प्रकाशमान होकर प्रशस्त है| लगता है यह इस देह रूपी वाहन को कैसे त्यागा जाए इसकी तैयारी करने का आदेश है| अब बचा खुचा जीवन परमात्मा की चेतना में ही निकले, अन्य कोई कामना नहीं रही है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ दिसंबर २०१७

कुछ प्यार भरे सुझाव और अनुरोध .....

कुछ प्यार भरे सुझाव और अनुरोध .....
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(१) रात्री को सोने से पूर्व बिस्तर पर ही सीधे बैठकर कम से कम आधे घंटे तक परमात्मा का ध्यान करें और निश्चिन्त होकर जगन्माता की गोद में ऐसे ही सो जाएँ जैसे एक बालक अपनी माँ की गोद में सोता है| यदि ध्यान नहीं लगता है तो गायत्री मन्त्र का या द्वादशाक्षरी भागवत मन्त्र का या अन्य किसी गुरु-प्रदत्त मन्त्र का जाप करते रहें| अपनी सारी चिंताएँ जगन्माता को या अपने इष्ट देव/देवी को सौंप दें| जब तक नींद नहीं आये तब तक मन्त्र का जाप करते रहें| किसी भी तरह की चिंता को समीप न आने दें|
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(२) प्रातःकाल उठते ही थोड़ा जल पीएँ और लघुशंकादि से निवृत होकर फिर कम से कम आधे घंटे तक जैसा ऊपर बताया है वैसे ही परमात्मा का ध्यान करें|
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(३) पूरे दिन परमात्मा की स्मृति अपने चित्त में बनाए रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही फिर उस स्मृति को अपनी चेतना में स्थापित करें| एक बात याद रखें कि आप जो कुछ भी कर रहे हो वह परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही कर रहे हो| ऐसा कोई काम न करें जो भगवान को प्रिय न हो| धीरे धीरे भगवान स्वयं ही आपके माध्यम से कार्य करना आरम्भ कर देंगे|
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(४) जो भी आप भोजन कर रहे हो वह भगवान को निवेदित कर के इस भाव से ग्रहण करें कि साक्षात भगवान ही उसे ग्रहण कर रहे हैं| खाएँ वही जो भगवान को प्रिय है| भोजन से पूर्व गीता में दिया ब्रह्मार्पणम् वाला मन्त्र धीरे से अवश्य बोलें, और प्रथम ग्रास के साथ "ॐ प्राणाय स्वाहा" मन्त्र भी धीरे से अवश्य बोलें|
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उपरोक्त तो न्यूनतम धर्माचरण है जिसका पालन करने से निश्चित रूप से सभी का कल्याण होगा| ये पंक्तियाँ स्वयं जगन्माता की प्रेरणा से ही लिखी जा रही हैं| सभी का कल्याण हो|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५-१२-२०१७

सांता क्लॉज़ की वास्तविकता .....

सांता क्लॉज़ की वास्तविकता .....
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इस वर्ष पूरे भारत में अनेक हिन्दुओं ने क्रिसमस का पर्व ईसाईयों से भी अधिक उत्साह से मनाया| यह एक घोर आश्चर्य का विषय है कि भारत के प्रायः सभी हिन्दू विद्यालयों में जहाँ हिन्दू विद्यार्थी, हिन्दू अध्यापक, हिन्दू व्यवस्थापक और हिन्दू मालिक हैं, क्रिसमस का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया| मुस्लिमों ने अपने बालकों को इस उत्सव से दूर रखा पर हिन्दुओं ने नहीं| बच्चों को सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहनाई गयी, टॉफियाँ बाँटी गयी और भाषण दिया गया कि हमें ईसा मसीह के आदर्शों पर चलना चाहिए| कई हिन्दू दुकानदारों ने भी अपनी दुकानों पर सांता क्लॉज़ की बड़ी बड़ी फोटो लगाई या किसी आदमी को सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहनाकर बैठाया| कई महिलाओं ने भी अपना शौक पूरा करने के लिए सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहनी|
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वास्तविकता यह है कि सांता क्लॉज़ नाम का चरित्र कभी इतिहास में जन्मा ही नहीं| यह ईसा की चौथी शताब्दी में सैंट निकोलस नाम के एक ग्रीक पादरी के दिमाग की कल्पना थी जो एशिया माइनर (वर्तमान तुर्की) के म्यरा नामक स्थान में जन्मा था| इसके माँ-बाप दोनों ही बहुत अमीर थे जो अपनी मृत्यु से पूर्व इसके लिए बहुत सारा धन छोड़ गए थे|
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सन १८२३ ई.में सांता क्लॉज़ नाम की एक कविता अमेरिका और कनाडा में अति लोकप्रिय हुई, और उन्नीसवीं सदी में सांता क्लॉज़ के ऊपर लिखे गए कई गाने वहाँ अत्यधिक लोकप्रिय हुए| ठण्ड से पीड़ित स्केंडेनेवियन देशों .... नोर्वे, स्वीडन और डेनमार्क के, व अन्य ठन्डे ईसाई देशों के पादरियों ने ठण्ड से पीड़ित अपने देशों के बच्चों के मन को बहलाने के लिए सांता क्लॉज़ की कल्पना को खूब लोकप्रिय बनाया| बच्चों के मनोरंजन के लिए जैसे सुपरमैन, बैटमैन, स्पाइडरमैन, ग्रीन लैंटर्न, हल्क, डोनाल्ड डक, मिक्की माउस इत्यादि अनेकों कार्टून चरित्रों की कल्पना की गयी है वैसे ही संता क्लॉज़ भी एक काल्पनिक चरित्र है|
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भारत में इसकी लोकप्रियता का कारण बाजारवाद और अपने लोगों का विज्ञापनों से प्रभावित होना मात्र ही है| हम लोग एक आत्महीनता और हीन भावना से ग्रस्त हैं, अतः बेवश होकर बच्चों की खुशी के लिये प्रसन्न होने का नाटक कर के यह नाटक मनाते हैं| यदि यह एक बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन मात्र है वहाँ तक तो ठीक है, पर इसमें किसी पंथ विशेष की महानता का प्रचार नहीं होना चाहिए|
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अनेक लोगों ने बीयर या स्कॉच पी कर, कुछ ने तो सपरिवार डांस भी किया, पार्टी भी की और एक दूसरे को खूब बधाइयां भी दीं|

सभी को धन्यवाद|
२५ दिसंबर २०१७

क्रिसमस, बड़ा दिन, ईसा मसीह का जन्मदिन और उत्सव .......

क्रिसमस, बड़ा दिन, ईसा मसीह का जन्मदिन और उत्सव .......
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विश्व में २५ दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं| पर इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि ईसा मसीह का जन्म २५ दिसंबर को ही हुआ था| रोमन सम्राट कोंस्टेटाइन द ग्रेट के आदेश से ही २५ दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाना आरम्भ किया गया था| पर यह सम्राट स्वयं ईसाई नहीं था बल्कि सूर्य का उपासक एक pagan विधर्मी था| इसने ईसाईयत का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया| जब यह अपनी मृत्यु शैय्या पर असहाय था तब पादरियों ने बपतीस्मा पढ़कर बलात इसको ईसाई बना दिया| इस विषय के विद्वान् ही जानते होंगे या किसी को पता ही नहीं होगा कि ईसा मसीह का जन्म कब हुआ था| यह मैंने जिज्ञासावश ही लिखा है, किसी से मेरा कोई द्वेष नहीं है| सभी श्रद्धालुओं को मैं क्रिसमस की शुभ कामनाएँ अर्पित करता हूँ|
(पश्चिमी जगत के ही कुछ शोधकर्ता यह दावा भी कर रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट नाम का व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं| उन के अनुसार सैंट पॉल नाम के पादरी के मन की कल्पना और प्रचार ही जीसस क्राइस्ट की वास्तविकता है|)
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बड़ा दिन एक ज्योतिषीय घटना मात्र है| बचपन से २५ दिसंबर को ही मैं बड़ा दिन सुनता आया था, पर ज्योतिषीय दृष्टी से यह हमारे लिए बड़ा दिन नहीं है| इस दिन किसी जमाने में उत्तरी गोलार्ध में सबसे लम्बी रात, और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन होता था| पर आजकल ऐसा २१ दिसंबर के आगे पीछे होता है| अंग्रेजों के राज्य में क्रिसमस सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता था इसलिए इस दिन का नाम "बड़ा दिन" पड़ गया| ज्योतिषीय दृष्टी से तो यह छोटा दिन है क्योंकि इन दिनों उत्तरी गोलार्ध में दिन बहुत छोटे होते हैं और रात बहुत लम्बी होती है| उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन तो २१ जून के आगे पीछे होता है| "क्रिसमस" शब्द संभवतः "कृष्ण मास" से बना है| मुझे ज्योतिषीय गणना का ज्ञान नहीं है अतः इस विषय पर और नहीं लिख सकता| यह ज्योतिषियों का विषय है|
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भगवान की भक्ति एकांत में मन लगाकर होती है| सार्वजनिक रूप से करनी है तो भजन-कीर्तन व सामूहिक ध्यान द्वारा होती है| उसमें कोई नशा कर के नाच-गाना नहीं होता| नशे में नाचना-गाना एक मानसिक मनोरंजन मात्र है, कोई भक्ति नहीं| पर अधिकाँश श्रद्धालु क्रिसमस पर शराब पी कर, टर्की (एक प्रकार की बतख) का मांस ब्रेड सॉस के साथ खाकर, और नाच गा कर उत्सव मनाते हैं| यह मूल रूप से स्पेन और पुर्तगाल की परम्परा है जो आजकल भारत में खूब प्रचलित हो गयी है|
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सौभाग्य से मैंने दो-तीन बार ऐसे निष्ठावान श्रद्धालु, जन्म से ही ईसाई विदेशी भक्तों के साथ भी क्रिसमस मनाई है जिन्होनें पूरी रात भगवान का ध्यान किया और भजन गाये| कोई नशा नहीं, कोई मांसाहार नहीं, ऐसे आस्थावान भी होते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ दिसंबर २०१७

आज रात्री से ही यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा का ध्यान करें .....

आज रात्री से ही यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा का ध्यान करें .....
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हम परमात्मा की कृपा से ही जीवित हैं, अन्न-जल-वस्त्र-आवास आदि जैसे किसी बाहरी साधन मात्र से नहीं. यह सृष्टि परमात्मा की है हमारी नहीं, इसको चलाना उसी का कार्य है| हमारा कार्य है जहाँ भी उसने हमें नियुक्त किया है वहाँ उसके द्वारा दिए हुए कार्य को पूरी निष्ठा से उसी की चेतना में स्थित होकर यथासंभव पूर्णता से सम्पन्न करना| किसी भी प्रकार की किसी चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान का गीता में शाश्वत वचन है ....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते | तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||"
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हम भाग्यशाली हैं कि उसने हमारे ह्रदय में अपने प्रति परम प्रेम जागृत किया है और स्वयं को जानने की अभीप्सा उत्पन्न की है| जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उस से तो अच्छा है परमात्मा का निरंतर चिंतन करते हुए इस देह रूपी वाहन का ही त्याग कर दें| इस देह रूपी वाहन का क्या लाभ जिस पर यात्रा करते हुए हम अपने प्रियतम परमात्मा को न पा सकें? रही बात रक्षा की तो भगवान का रामायण में यह शाश्वत वचन भी है ...
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||"
अब भी यदि संदेह है तो उसका कोई उपचार नहीं है|
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परमात्मा को पाना हमारा सर्वोच्च यानी प्रथम अंतिम और एकमात्र कर्त्तव्य है| अन्य सारे कार्य उसी की भूमिका मात्र हैं| इस भौतिक देह में जन्म से पूर्व भी वह ही हमारे साथ था, और इस देह के शान्त होने के पश्चात भी सिर्फ वह शाश्वत मित्र ही हमारे साथ रहेगा| उसका साथ शाश्वत है| जो कुछ भी हमें प्राप्त है वह सब उसी का है| माँ-बाप, भाई-बहिनों, और सम्बन्धियों-मित्रों का प्यार ..... सब उसी का प्यार था जो इन सब के माध्यम से प्राप्त हुआ| वास्तव में वह स्वयं ही इन सब के रूपों में आया| हमारा ऐकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ उसी से है| वह ही हमारे ह्रदय में धड़क रहा है, वह ही हमारे फेफड़ों से सांस ले रहा है, वह ही इन आँखों से देख रहा है, वह ही इन पैरों से चल रहा है| जिस क्षण वह इस ह्रदय में धड़कना बन्द कर देगा उस क्षण से हमारा कुछ भी नहीं रहेगा| अतः जब तक होश है तब तक उस को पा लेना ही हमारा परम कर्त्तव्य है|
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इस दिशा में हम अभी से प्रयास करें| जितना आवश्यक है उतना विश्राम तो हम करें पर रात्री की नीरव शांति का समय अन्य सब अनावश्यक कार्यों को त्याग कर परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| कौन क्या कहता है इस का कोई महत्त्व नहीं है, हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं, सिर्फ इसी का महत्त्व है|
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अतः आज रात्री से ही यह शुभ कार्य करें| आज रात्री को आठ बजे से कल प्रातः छः बजे तक मौन रखें और यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| परमात्मा का आशीर्वाद सदा हमारे साथ है| सभी की रक्षा होगी|
ॐ तत्सत् ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१७

उपासना .....

उपासना :
पूर्ण प्रेमपूर्वक आराम से शान्त होकर किसी एकान्त व शान्त स्थान पर सीधे बैठकर भ्रूमध्य में परमात्मा की एक बार तो साकार कल्पना करें, फिर उसे समस्त सृष्टि में फैला दें. सारी सृष्टि उन्हीं में समाहित है और वे सर्वत्र हैं. उनके साथ एक हों, वे हमारे से पृथक नहीं हैं. स्वयं की पृथकता को उनमें समाहित यानि समर्पित कर दें. प्रयासपूर्वक निज चेतना को आज्ञाचक्र से ऊपर ही रखें. आध्यात्मिक दृष्टी से आज्ञाचक्र ही हमारा हृदय है, न कि भौतिक हृदय. आने जाने वाली हर साँस के प्रति सजग रहें. स्वयं परमात्मा ही साक्षात् प्रत्यक्ष रूप से हमारी इस देह से साँस ले रहे हैं. हमारी हर साँस सारे ब्रह्मांड की, सभी प्राणियों की, परमात्मा द्वारा ली जा रही साँस है. हम "यह देह नहीं, परमात्मा की सर्वव्यापकता हैं", यह भाव बनाए रखें. आने जाने वाली हर साँस के साथ यदि "हँ" और "सः" का मानसिक जप करें तो यह "अजपा-जप" है, और पृष्ठभूमि में सुन रही शान्त ध्वनि को सुनते हुए प्रणव का मानसिक जप करते रहें तो यह "ओंकार साधना" है. साधक, साधना और साध्य स्वयं परमात्मा हैं. वैसे ही उपासक, उपासना और उपास्य स्वयं परब्रह्म परमात्मा परमशिव हैं. किसी भी तरह का श्रेय न लें. कर्ता स्वयं भगवान परमशिव हैं. लौकिक और आध्यात्मिक दृष्टी से उपास्य के सारे गुण उपासक में आने स्वाभाविक हैं. परमात्मा ही एकमात्र कर्ता है, एकमात्र अस्तित्व भी उन्हीं का है.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ - १२ - २०१७

क्रिसमस पर धूमधाम ....


क्रिसमस के पर्व पर ईसाई देशों में, और भारत के भी ईसाई बहुल क्षेत्रों में बड़ी बहार रहती है| २४ दिसंबर की रात को श्रद्धालू रात भर खूब क्रिसमस के विशेष भजन (Carols) गाते हैं| इस दिन को अधिकांश लोग तो अपनी मनपसंद की खूब शराब पी कर और नाच गा कर मनाते हैं| यह नाचने और गाने की परम्परा स्पेन और पुर्तगाल से चली थी जो अब सारे ईसाई विश्व में प्रचलित है| इस दिन एक दूसरे को खूब उपहार भी देते हैं| समृद्ध लोग तो इस दिन Turkey नाम के एक पक्षी विशेष का मांस पका कर ब्रेड सॉस के साथ खाते हैं| क्रिसमस के दिन शराब पी कर Turkey नाम के पक्षी का मांस ब्रेड सॉस के साथ खाना एक ईसाई परम्परा है| इस दिन अच्छी से अच्छी शराब पीने और पिलाने को अधिकाँश ईसाई लोग अपनी शान मानते हैं|
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मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ और शराब नहीं पीता पर एक समुदाय विशेष के अमेरिकन और इटालियन मित्रों के साथ दो बार क्रिसमस मनाई है जिन्होनें एक दूसरे को खूब उपहार दिए और रात भर अपनी भाषाओं में खूब Carols गाये| इस समुदाय के लोग इस दिन एक तरह का सत्संग भी करते हैं जिसमें कुछ समय ध्यान साधना भी करते हैं|
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यूरोप में बेल्जियम व नीदरलैंड में और कनाडा में भी क्रिसमस मनाने का अवसर मिला है| यह दिन एक आस्था का दिन है जिसे शराब पी कर मौज मस्ती और नाच गा कर मनाते हैं|
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सभी ईसाई मित्रों को इस दिन की शुभ कामनाएँ|


२३ दिसंबर २०१७

भारत सरकार के समक्ष चुनौतियाँ .....

भारत सरकार के समक्ष चुनौतियाँ .....
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गुजरात के चुनाव भाजपा के लिए निद्रा से जगाने वाली एक चेतावनी है| सब कुछ अर्थव्यवस्था, विकास और नरेन्द्र मोदी ही नहीं हैं जो निःसंदेह भारत के अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं| पर यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें हिन्दुओं ने एक विशेष अपेक्षा के साथ चुना है| कांग्रेस का शासन हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरा और पूर्णतः दुर्भावनापूर्ण था| भाजपा को हिन्दुओं की इन अपेक्षाओं को पूर्ण करना ही पड़ेगा .....
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(१) हिन्दू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति, (२) हिन्दुओं को अपने शिक्षण संस्थानों में अपना धर्म पढ़ाने की छूट, (३) राम मंदिर का निर्माण, (४) धारा ३७० को हटाना, (५) सामान नागरिक संहिता, (६) सनातन संस्कृति का सम्मान, आदि आदि|
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सन २०१९ के आम चुनावों से पूर्व भाजपा सरकार को अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु हिन्दुओं की इन भावनाओं का सम्मान करते हुए उनकी अपेक्षाओं को पूर्ण करना ही होगा|
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सभी को यह पता है कि भारत की भ्रष्ट नौकरशाही और विदेशों से नियंत्रित प्रेस भारत में किसी भी प्रकार के विकास के विरुद्ध है| भारत में भारी भ्रष्टाचार अभी भी है, और हर कदम पर घूस देनी पड़ती है|
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साफ़ सुथरी सडकें और बड़ी बड़ी इमारतें ही विकास नहीं हैं| वास्तविक विकास है ..... भारत के नागरिकों का उन्नत चरित्रवान, राष्ट्रभक्त, और कर्तव्यनिष्ठ होना| विकास व्यक्ति के भीतर है, बाहर नहीं| निज आत्मा का विकास ही वास्तविक विकास है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ दिसंबर २०१७

मेरी आस्था अब बाहरी जगत से लगभग समाप्त हो चुकी है .....

मेरी आस्था अब बाहरी जगत से लगभग समाप्त हो चुकी है. किसी से भी अब कोई अपेक्षा, आशा और कामना नहीं रही है. एकमात्र आस्था परमात्मा में ही बची है. वह आस्था ही मेरा जीवन है. दिन प्रतिदिन अधिकाधिक अंतर्मुखी हो रहा हूँ. यह बाहर का जगत बड़ा ही निराशाजनक और दुःखदायी है. इसमें अब कोई रूचि नहीं है. एकमात्र सत्य परमात्मा ही है.
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मैं सिर्फ उन्हीं लोगों के संपर्क में रहना चाहता हूँ जिन्हें परमात्मा से प्रेम है, जो दिनरात निरंतर परमात्मा का चिंतन करते हैं और परमात्मा को पाना चाहते हैं. अन्यों से अब कोई लेना-देना नहीं है.
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एक आलोकमय सृष्टि मेरे समक्ष है जहाँ कोई अन्धकार नहीं है, प्रकाश ही प्रकाश है, वही मेरा गंतव्य है. भगवान श्रीकृष्ण के शब्दों में ....
"न तद भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः |
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ||"
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

२१ दिसंबर २०१७

गण, गणपति, पंचप्राण, दश महाविद्याएँ और कुण्डलिनी महाशक्ति .......

गण, गणपति, पंचप्राण, दश महाविद्याएँ और कुण्डलिनी महाशक्ति .......
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"ॐ नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमः" | वे कौन से गण हैं जिनके गणपति श्री गणेश जी हैं ? मेरी दृष्टि में इस का उत्तर है ..... पंच प्राण ही वे गण हैं जिनके अधिपति ॐकार रूप में श्री गणेश जी हैं | वे ही प्रथम पूज्य हैं |
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मेरी अनुभूति से ॐकार ही सर्वव्यापी प्राण तत्व है, यह ॐकार ही प्राण तत्व के रूप में परमात्मा की सर्वप्रथम अभिव्यक्ति है, और साकार रूप में संसारी लोगों के लिए ये ही श्रीगणेश जी हैं |
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जहाँ तक मैं समझता हूँ, ॐकार पर ध्यान ही प्राण तत्व की साधना है क्योंकि ॐकार ही समस्त सृष्टि का प्राण है | यह प्राण तत्व ही कुण्डलिनी महाशक्ति के रूप में मूलाधार चक्र में व्यक्त होता है और यह कुण्डलिनी ही सुषुम्ना मार्ग से सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्त्रार में प्रवेश कर अज्ञान का नाश करती है | प्राण का घनीभूत रूप ही कुण्डलिनी महाशक्ति है |
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सहस्त्रार ही श्रीगुरुचरण हैं, सहस्त्रार पर ध्यान ही श्रीगुरुचरणों का ध्यान है और सहस्त्रार में स्थिति ही श्रीगुरुचरणों में आश्रय है | सहस्त्रार से परे जो परब्रह्म यानि परमशिव हैं वे अनुभूतिगम्य और अनिर्वचनीय हैं |
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इन पंच प्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं |
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सार की बात यह है कि ॐकार से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, और आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है | ॐकार पर ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ साकार उपासना है |
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ दिसंबर २०१७

अपनी चेतना का सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विस्तार करें .....

धारणा व ध्यान :---
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अपनी चेतना का सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विस्तार करें .....

यह सम्पूर्ण अनन्त ब्रह्माण्ड मेरा घर है, सभी प्राणी मेरे साथ एक हैं, उनका कल्याण ही मेरा कल्याण है| पूरी समष्टि के साथ मैं एक हूँ, मैं किसी से पृथक नहीं हूँ, सभी मेरे ही भाग हैं, मैं यह देह नहीं, परमात्मा की अनंतता हूँ|
सम्पूर्ण समष्टि मैं स्वयं हूँ| यह सम्पूर्ण सृष्टि, सारा जड़ और चेतन मैं ही हूँ| यह पूरा अंतरिक्ष, पूरा आकाश मैं ही हूँ| सब जातियाँ, सारे वर्ण, सारे मत-मतान्तर, सारे सम्प्रदाय और सारे विचार व सिद्धांत मेरे ही हैं|

मैं अपना प्रेम सबके ह्रदय में जागृत कर रहा हूँ| मेरा अनंत प्रेम सबके ह्रदय में जागृत हो रहा है| मैं अनंत प्रेम हूँ| मैं इस सृष्टि की की आत्मा हूँ जो प्रत्येक अणु के ह्रदय में है|

मैं स्वयं ही परम प्रेम हूँ, मैं ही परमात्मा की सर्वव्यापकता हूँ, मैं ही सभी के हृदयों में धडकता हूँ| मैं परमात्मा के साथ एक हूँ, उनमें और मुझ में कोई भेद नहीं है|

सोsहं ! शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपया याद रखें ........ जन्म से कोई पापी नहीं है| आप पापी नहीं हैं| आप परमात्मा के दिव्य अमृत पुत्र हैं| जो परमात्मा का है वह आपका है, उस पर आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| किसी पिता का पुत्र भटक जाए तो पिता क्या प्रसन्न रह सकता है| भगवान भी आप के दूर जाने से व्यथित हैं| भगवान के पास सब कुछ है पर आपका प्रेम नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं| क्या आप अपना अहैतुकी प्रेम उन्हें बापस नहीं दे सकते? उन्होंने भी तो आप को हर चीज बिना किसी शर्त के दी है| आप अपना सम्पूर्ण प्रेम उन्हें बिना किसी शर्त के दें|
आप भिखारी नहीं हैं| आपके पास कोई भिखारी आये तो आप उसे भिखारी का ही भाग देंगे| पर अपने पुत्र को आप सब कुछ दे देंगे| वैसे ही परमात्मा के पास आप भिखारी के रूप में गए तो आपको भिखारी का ही भाग मिलेगा पर उसके दिव्य पुत्र के रूप में जाएंगे तो भगवान अपने आप को आप को दे देंगे|
मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही परमात्मा की प्राप्ति है| आप स्वयं को उन्हें सौंप दें, आप उनके हो जाएँ पूर्ण रूप से तो भगवन भी आपके हो जायेंगे पूर्ण रूप से| अपने ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम बिना किसी शर्त के उन्हें दो| ईश्वर को पाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है|

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
२० दिसंबर २०१७

आजकल सड़कों पर चलते हुए डर लगता है....

आजकल सड़कों पर चलते हुए डर लगता है....
(१) आवारा सांडों से ,
(२) तीब्र गति से चलते हुए दुपहिया वाहनों से.
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(१) गोसंवर्धन कानून सिर्फ देशी नस्ल की गायों के लिए ही होना चाहिए, विलायती नस्ल की गायों व सांडों के लिए नहीं| विलायती यानि विदेशी नस्ल (जो सूअर के जीन के साथ मिलाकर विकसित की गयी हैं) की गायों के बछड़े किसी काम के नहीं होते| गाँवों में वे खेती को हानि पहुँचाते हैं अतः किसान लोग पिकअप में भरकर या हाँक कर उन्हें नगरीय क्षेत्रों में छोड़ देते हैं| राजस्थान के हर नगर की सड़कें आवारा विलायती नस्ल के सांडों से भरी हुई है जिनसे दुर्घटनाएँ भी होती रहती हैं| पता ही नहीं चलता कि कब आकर वे टक्कर मार दें या वाहनों को तोड़ दें| अतः सडकों पर बहुत संभल कर चलना पड़ता है| वाहन भी बहुत संभल कर चलाना पड़ता है| सब्जी बेचने वाले बहुत अधिक त्रस्त रहते हैं| वे उन्हें लाठियों से मार मार कर भगाते रहते हैं| ये आवारा सांड गन्दगी में मुंह मारते घूमते रहते हैं और लोगों से मार खाते रहते हैं| ये किसी काम के नहीं होते अतः कोई गोशाला भी इन्हें नहीं रखती| इनके लिए विशेष बाड़े बनाने चाहियें या इनके लिए अभयारण्य हों जैसे बाघों के लिए हैं|
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(२) आजकल सडकें दुपहिया वाहनों से भरी हुई हैं| युवा लड़के और लड़कियाँ बहुत तीब्र गति से वाहन चलाते हैं| इनको अपने प्राणों की भी परवाह नहीं होती| लडकियाँ तो लड़कों से भी अधिक तीब्र गति से स्कूटी चलाती हैं| सड़कों पर इन्हें देखकर ही डर लगता है| बहुत अधिक संभल कर सड़क पार करनी पड़ती है| कुछ न कुछ सुव्यवस्था इनके लिए होनी ही चाहिए|


११ दिसंबर २०१७

अमेरिकी संस्कृति पूरे विश्व में क्यों छाई हुई है ? .....

अमेरिकी संस्कृति पूरे विश्व में क्यों छाई हुई है ? .....

अमेरिका एक व्यवसायिक देश है जो अपने आर्थिक और राजनीतिक हित के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है .... कहीं भी युद्ध करा सकता है, किसी की भी ह्त्या करा सकता है, और कहीं भी सत्ता परिवर्तन करा सकता है | वह न किसी का मित्र है और न किसी का शत्रु | जिस से उसका हित टकराता है उसका वह शत्रु है व जिस से उसको लाभ होता है वह उसका मित्र है|

मेरे दिमाग में चालीस वर्ष पूर्व एक प्रश्न था कि अमेरिकी संस्कृति पूरे विश्व पर हावी क्यों है ? इसका उत्तर भी मुझे अमेरिका जाकर ही मिला| सन १९७६ से सन १९८६ तक कई बार अमेरिका जाने का अवसर मिला|
अमेरिकी संस्कृति का एक सकारात्मक पक्ष भी है| वहाँ की सबसे बड़ी विशेषता है कि वहाँ मनुष्य की कार्यकुशलता पर ही पूरा जोर है और कार्यकुशलता का ही सम्मान है | जिस व्यक्ति में कार्यकुशलता नहीं होती उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है | जो व्यक्ति अपने कार्य में कुशल होता है उसको पूरा सम्मान मिलता है | अतः वे लोग अपने कार्य को पूरी कुशलता से करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अन्यथा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा और उनकी कहीं भी कोई पूछ नहीं होगी | किसी तरह का कोई आरक्षण नहीं है |
यही वहाँ की संस्कृति का एक सकारात्मक पक्ष है जिसके कारण अमेरिका पूरे विश्व पर हावी है|
पता नहीं वह दिन भारत में कब आयेगा जब यहाँ व्यक्ति की कार्यकुशलता का सम्मान होगा|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१० दिसंबर २०१७