Saturday 2 June 2018

लोकतंत्र अंततः विफल होगा, कोई और ही व्यवस्था आयेगी .....

लोकतंत्र अंततः विफल होगा, कोई और ही व्यवस्था आयेगी .....
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लोकतंत्र में नेतृत्व को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता नहीं के बराबर है| एक नेता के लिए स्वतंत्र निर्णय लेना वास्तव में सर्वाधिक कठिन कार्य है| उसे हर समय चिंता रहती है कि मेरे मतदाता कहीं मेरे विरुद्ध न हो जाएँ और मैं कहीं अगला चुनाव हार न जाऊँ| चाहे वह कितना भी अच्छा काम करे, बुराई तो उसकी होगी ही| अतः वह लोक-लुभावन फैसले लेता है| साथ साथ अगला चुनाव जीतने के लिए और पिछले चुनाव में हुए खर्चे की पूर्ति के लिए रुपयों की व्यवस्था करने की चिंता में भी रहता है, जो सब घोटालों और भ्रष्टाचार की जड़ है|
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इसका कोई समाधान नहीं है| भारत की प्राचीन राज्य व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ थी|

१ जून २०१८

इस समय हमारा भारतीय समाज गतिहीन और निश्चेष्ट क्यों है ?.....

इस समय हमारा भारतीय समाज गतिहीन और निश्चेष्ट क्यों है ?.....
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यह एक गंभीर चिंतन का विषय है| इस समय कोई पथप्रदर्शक और मार्गदर्शक नहीं है| आत्मा की उन्नति ही वास्तविक उन्नति है ... यह बताने वाला कोई नहीं है| आत्मा की उन्नति होगी तो सारी ही उन्नति होगी| मेरे विचार से सामूहिक उन्नति कभी नहीं हो सकती|
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हर व्यक्ति स्वयं को महत्वपूर्ण समझे| इस भावना से कार्य करे कि मेरे ऊपर ही सारी सृष्टि का भार है| ये सारी भौतिक व्यवस्थाएँ जैसे समाजवाद, सेकुलरवाद आदि भ्रामक हैं| ये व्यक्ति को पिछलग्गू बनाती हैं| इनमें कोई सफल नहीं हो सकता| साम्यवाद और सेकुलरवाद की विफलता मैं प्रत्यक्ष देख चुका हूँ|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने हमें निमित्त मात्र बनकर, परमात्मा को कर्ता बनाकर कर्म करने को कहा है .....

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् |
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ||११:३३||
शंकर भाष्य के अनुसार इसका अर्थ है ..... "तस्मात् त्वम् उत्तिष्ठ भीष्मप्रभृतयः अतिरथाः अजेयाः देवैरपि अर्जुनेन जिताः इति यशः लभस्व केवलं पुण्यैः हि तत् प्राप्यते। जित्वा शत्रून् दुर्योधनप्रभृतीन् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम् असपत्नम् अकण्टकम् | मया एव एते निहताः निश्चयेन हताः प्राणैः वियोजिताः पूर्वमेव | निमित्तमात्रं भव त्वं हे सव्यसाचिन् सव्येन वामेनापि हस्तेन शराणां क्षेप्ता सव्यसाची इति उच्यते अर्जुनः||"
अर्थात् ..... क्योंकि ऐसा है --, इसलिये तू खड़ा हो और देवोंसे भी न जीते जानेवाले भीष्म द्रोण आदि महारथियोंको अर्जुनने जीत लिया ऐसे निर्मल यशको लाभ कर| ऐसा यश पुण्योंसे ही मिलता है| दुर्योधनादि शत्रुओंको जीतकर समृद्धिसम्पन्न निष्कण्टक राज्य भोग| ये सब ( शूरवीर ) मेरेद्वारा निःसन्देह पहले ही मारे हुए हैं अर्थात् प्राणविहीन किये हुए हैं| हे सव्यसाचिन् तू केवल निमित्तमात्र बन जा| बायें हाथसे भी बाण चलानेका अभ्यास होनेके कारण अर्जुन सव्यसाची कहलाता है|
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यह सोच भारत की प्राण है| पर दुर्भाग्य से धर्मनिरपेक्षता के तुष्टिकरण में हम भारत की आत्मा से दूर जा रहे हैं| इसी कारण हमारा समाज गतिहीन और निःचेष्ट है| हर एक व्यक्ति को अपनी प्रधानता का बोध हो| भगवान की कृपा हम सब पर हो|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ जून २०१८

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वय को यज्ञों में जप यज्ञ कहा है | अब प्रश्न यह उठता है कि हम इसे यज्ञ की भाँति कैसे करें ? .....

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वय को यज्ञों में जप यज्ञ कहा है | अब प्रश्न यह उठता है कि हम इसे यज्ञ की भाँति कैसे करें ? .....
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महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम् | यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः ||१०:२५||
शंकर भाष्य में इसका अर्थ दिया है ..... महर्षीणां भृगुः अहम् | गिरां वाचां पदलक्षणानाम् एकम् अक्षरम् ओंकारः अस्मि | यज्ञानां जपयज्ञः अस्मि ? स्थावराणां स्थितिमतां हिमालयः ||
अर्थात् ..... महर्षियोंमें मैं भृगु हूँ, वाणी सम्बन्धी भेदों में ... पदात्मक वाक्योंमें एक अक्षर ओंकार हूँ | यज्ञोंमें जपयज्ञ हूँ और स्थावरों में अर्थात् अचल पदार्थोंमें हिमालय नामक पर्वत हूँ ||
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अग्नि पुराण के अनुसार ..... जकारो जन्म विच्छेदः पकारः पाप नाशकः | तस्याज्जप इति प्रोक्तो जन्म पाप विनाशकः || इसका अर्थ है .... ‘ज’ अर्थात् जन्म मरण से छुटकारा, ‘प’ अर्थात् पापों का नाश ..... इन दोनों प्रयोजनों को पूरा कराने वाली साधना को ‘जप’ कहते हैं|
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मेरी सोच है कि कोई भी साधना जितने सूक्ष्म स्तर पर होती है वह उतनी ही फलदायी होती है| जितना हम सूक्ष्म में जाते हैं उतना ही समष्टि का कल्याण कर सकते हैं| जप यज्ञ भी सूक्ष्म में होना चाहिए | वह कैसे हो इसकी विधि मुझे समझ में तो पूरी तरह आ रही है पर उसे शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ हूँ| आप स्वयं ही अपने अंतर में इसका अर्थ स्पष्ट कीजिये| धन्यवाद!

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ जून २०१८

गर्मी का खूब आनंद लें .....

गर्मी का खूब आनंद लें .....

इस गर्मी के मौसम में प्रातःकाल साढ़े तीन बजे उठें और उषःपान व शौचादि से निवृत होकर चार बजे से साढ़े पाँच बजे तक बाहर खुले में बैठकर भगवान का ध्यान या नामजप करें| इतना आनंद आयेगा जो अवर्णनीय है| साढ़े पाँच से साढ़े छः बजे तक किसी बगीचे मे या बाहर कहीं शुद्ध हवा में लम्बे लम्बे साँस लेते हुए घूमने के लिए जाएँ| जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए| हर क्षण का आनंद लें| सुख और दुःख एक मानसिक अवस्था मात्र है| खूब प्रसन्न रहें और जीवन को आनंदमय बना लें|
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आजकल दिन में जहाँ तक हो सके धूप में बाहर ना निकलें| यदि निकलना ही पड़े तो सिर को मोटे सूती कपडे से अच्छी तरह ढक लें| छाते का भी प्रयोग करें| गर्म हवा से देह को बचाएं| सफ़ेद सूती वस्त्र पहिनें| नंगे पाँव गर्म भूमि पर न चलें| घर से बाहर लिकलने से पूर्व खूब पानी पीकर चलें| प्यास लगते ही खूब पानी पीएँ| अनावश्यक बाहर खुले में ना रहें| किसी को लू लग जाना एक मेडिकल आपत्काल होता है| तुरंत उपचार न मिलने से मृत्यु हो सकती है| इसलिए सभी को इसका प्राथमिक उपचार सीख लेना चाहिए|
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इस मौसम में छाछ, बील का शरबत, नीबुपानी, कच्चे आम का पना और तरबूज का सेवन बहुत लाभदायक और मजेदार भी होता है| प्याज भी दवा का काम करता है| राजस्थान और हरयाणा में छाछ और बाजरे के आटे से एक विशेष विधि से एक पेय बनाते हैं जिसे 'राबड़ी' कहते हैं| यह राबड़ी पीने से लू और गर्मी से रक्षा होती है| जितनी लू चलती है, खरबूजा उतना ही मीठा होता है| आजकल लू चल रही है तो खरबूजे भी बहुत मीठे आ रहे हैं| दूध और आम के रस को मिलाकर एक पेय 'अमरस' बनाया जाता है जिसको ठंडा कर के रात्रि में पीने का आनंद अमृततुल्य है|
 कृपा शंकर
३१ मई २०१८

हमारा मन शान्त, शुभ तथा कल्याणप्रद विचारों वाला हो .....

हमारा मन शान्त, शुभ तथा कल्याणप्रद विचारों वाला हो .....

सारी साधनाओं का और सारे दर्शन शास्त्रों का सार तत्व जो मुझे समझ में आया है, सरलतम और न्यूनतम शब्दों में वह है .... जैसे हमारे विचार हैं, जैसा हम सोचते हैं, वही हम बन जाते हैं| सारी सृष्टि हमारे ही विचारों का घनीभूत रूप है| हमारे सामूहिक संकल्प ही हमारे संसार का निर्माण करते हैं|

उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते, इसीलिए हम ईश्वर की उपासना करते हैं| हमारे संकल्प यदि शिव-संकल्प होंगे तो हम भी शिव होंगे|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० मई २०१८