कामनाओं से मुक्ति ही जीवनमुक्ति है .......
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निष्कामता हमारा स्वभाव ही बन जाए तो हम जीवनमुक्त ही हैं| आत्मा वास्तव में नित्य जीवनमुक्त है, सिर्फ अज्ञान का ही आवरण है| शिवभाव में स्थित होने से अज्ञान नहीं रहता|
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आजकल के मनोविज्ञान में यही सिखाया जाता है कि यदि मन में कोई कामना हो, और
जिस से किसी की कोई हानि नहीं हो तो वह कामना पूरी कर लेनी चाहिए, अन्यथा
मन कुंठित हो जाएगा| यह एक धोखा है|----------------------------------------
निष्कामता हमारा स्वभाव ही बन जाए तो हम जीवनमुक्त ही हैं| आत्मा वास्तव में नित्य जीवनमुक्त है, सिर्फ अज्ञान का ही आवरण है| शिवभाव में स्थित होने से अज्ञान नहीं रहता|
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कामना कभी भी तृप्त नहीं होती| कामनाओं का शमन होना चाहिए, न कि पूर्ती|
कामनाएँ ही सब बंधनों का कारण हैं| कामनाएँ छूटने पर ही जीवात्मा मुक्त होती है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्च: ---
शरीर में रहते-रहते हम जीवनमुक्त बनें| गीता में भगवान कहते हैं...
"अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्| यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः||८:५||"
अर्थात जो व्यक्ति अन्तकाल में (मरणकाल में) मुझ (परमेश्वर) का ही स्मरण करता हुआ शरीर,छोड़कर जाता है वह मेरे भाव (परम तत्त्व) को प्राप्त होता है| इस विषय में कोई संशय नहीं है|
"अन्तकाले च"| यहाँ "च" शब्द बड़ा महत्वपूर्ण है| इस चकार का अर्थ है .... जिसने जीवन भर भगवान का स्मरण किया है उसी को मृत्यु के समय मामेव यानि भगवान का स्मरण होगा, अन्य किसी को नहीं| अंत काल बड़ा भयंकर होता है| जिस संसार के साथ जीवन भर जुड़े रहे हैं, उसे छोडना बड़ा कष्टदायक होता है| यह बड़ा गंभीर विषय है जिस पर कृपा कर के विचार करें|
१० जनवरी २०२०