Wednesday, 21 February 2018

मुक्ति की सोचें, बंधनों की नहीं .....

सावधान :--- इस जीवन में इस पृथ्वी पर, और इस जीवन के पश्चात् एक काल्पनिक स्वर्ग में मौज-मस्ती-मजा लेने की कामना या अपेक्षा घोर निराशाजनक, असत्य व महादुखदायी होगी| ऐसी कामनाएँ और अपेक्षाएँ महाबंधनकारी, झूठी और नर्क में धकेलने वाली हैं| इस खतरे से सावधान! अपनी इन्द्रियों को और मन को वश में रखें|
मुक्ति की सोचें, बंधनों की नहीं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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 क्या हमें पता है कि हमारी समस्याएँ और हमारी आवश्यकताएँ क्या हैं ? क्या हम अपनी समस्याओं का निदान और अपनी आवश्यकताओं की खोज सही स्थान पर कर रहे हैं ? कहीं हम विज्ञापनों को देखकर या दूसरों से बराबरी करने के लिए या दूसरों के गलत प्रभाव में आकर झूठी आवश्यकताओं का निर्माण तो नहीं कर रहे हैं ?

पूर्णता परमात्मा में ही है .....

पूर्णता परमात्मा में ही है अतः उनकी सृष्टि में भी कोई अपूर्णता नहीं हो सकती| फिर अज्ञान, अन्धकार, असत्य, पाप व दुःख के कारण क्या हैं? वेदान्त कहता है "एकोहं द्वितीयो नास्ति" अर्थात् मेंरे सिवाय अन्य कोई नहीं है| पूर्ण सत्यनिष्ठा से अवलोकन करने पर पाता हूँ कि कोई ऐसी बुराई या भलाई नहीं है जो मुझमें नहीं है| सारे अज्ञान-ज्ञान, अन्धकार-प्रकाश, असत्य-सत्य, पाप-पुण्य और दुःख-सुख का स्त्रोत मैं ही हूँ|
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यह सृष्टि परमात्मा के ही प्रकाश और अन्धकार से बनी है| हमारा कार्य परमात्मा के प्रकाश में वृद्धि करना ही है| उसके अन्धकार में वृद्धि करेंगे तो दंडस्वरूप अज्ञान और दुःख की प्राप्ति होगी ही|
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भगवान बड़े छलिया हैं| लीला रूपी इस सृष्टि की रचना कर वे स्वयं को ही छल रहे हैं| इसी में उनका आनंद है, और उनके आनंद में ही हमारा आनंद है| अतः यहाँ सिर्फ आत्मज्ञान रूपी प्रकाश की ही वृद्धि करो, आवरण और विक्षेप रूपी अन्धकार की नहीं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०१८

सुख, संपति, परिवार, और बड़ाई ..... ये सब भगवान की भक्ति में बाधक हैं ..

सुख, संपति, परिवार, और बड़ाई ..... ये सब भगवान की भक्ति में बाधक हैं| जिसे भी भगवान की उपासना करनी है, उसे इन सब का मोह त्यागना ही होगा| मैं इस समाज में अनुपयुक्त (Misfit) हूँ, पर फिर भी टिका हुआ और जीवित हूँ .....
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मैं जिस समाज में रहता हूँ, उस समाज में मनुष्य जीवन की सफलता व प्रगति का एकमात्र मापदंड है .... पास में रुपये पैसों का होना, चाहे वे किसी भी माध्यम से अर्जित किये गए हों| जिस व्यक्ति ने जितने अधिक रुपये व संपत्ति अर्जित की हैं वह व्यक्ति उतना ही अधिक सफल और बड़ा माना जाता है| हमारे समाज में पढाई-लिखाई का एकमात्र उद्देश्य है .... अधिक से अधिक रूपये बनाने की योग्यता प्राप्त करना| हमारे समाज में भगवान तो एक साधन मात्र है जिस की आराधना करने से खूब रुपया-पैसा, धन-संपत्ति, यश-कीर्ति, वैभव, व सांसारिक सफलता रूपी साध्य सिद्ध होते हैं| हमारे समाज में भक्ति का अर्थ है ..... सांसारिक मनोकामनाओं की पूर्ती के लिए भगवान को प्रसन्न करना ताकि जीवन सुचारू रूप से बिना विघ्न बाधाओं के चलता रहे| लोग भागवत आदि की कथाएँ करवाते हैं जो एक धार्मिक मनोरंजन मात्र हैं| हमारे समाज में परमात्मा से अहैतुकी प्रेम, समर्पण आदि की बातें सिर्फ एक मानसिक उन्माद मात्र हैं| समाज में बड़ी क्रूरता है, सारा प्रेम दिखावटी है| आर्थिक हित टकराते ही अच्छे से अच्छे आत्मीय भी शत्रु हो जाते हैं| चााहते सब हैं कि भगतसिंह जन्म ले, पर दुसरे के घर में, स्वयं के घर में नहीं| मैं किसी की निंदा नहीं कर रहा, एक वास्तविकता बता रहा हूँ|
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ऐसे समाज में रहकर आत्म-साक्षात्कार हेतु परमात्मा की साधना कितनी कठिन है इसकी आप कल्पना कर सकते हैं| मुँह के सामने तो सब बड़ी बड़ी मीठी मीठी बातें करते हैं पर पीठ फेरते ही तिरस्कार व अपमानजनक निंदनीय शब्दों का प्रयोग करने लगते हैं|
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पर जहाँ भी भगवान ने रखा है वहाँ सब तरह की विपरीतताओं के पश्चात भी मैं सुखी और प्रसन्न हूँ| किसी भी तरह की कोई शंका या संदेह मुझे नहीं है| मेरे विचार और सोच भी स्पष्ट है| किसी से मिलने की भी कोई इच्छा अब नहीं रही है| भगवान चाहे तो वे स्वयं ही किसी से मिला दें, पर चला कर मैं स्वयं अब किसी से भी नहीं मिलना चाहता|
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पूर्व जन्मों में कोई अच्छे कर्म नहीं किये थे, कोई मुक्ति का उपाय नहीं किया था, इसी लिए उन पूर्व जन्मों के कर्म फलों को भोगने के लिए यह जन्म लेना पड़ा| इसमें किसी अन्य का कोई दोष नहीं है| मेरे शाश्वत साथी भगवान जो सोचते हैं उसी का महत्त्व है, न कि नश्वर मनुष्यों का| मैं जहाँ भी हूँ वहीं परमात्मा हैं| वे मेरे ह्रदय में नहीं, उन्होंने ही मुझे अपने स्वयं के हृदय में बैठा रखा है| मैं परमात्मा के साथ एक हूँ और सदा रहूँगा| किसी से भी मेरी कोई अपेक्षा और कामना नहीं है|
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"सुख संपति परिवार बड़ाई, सब परिहरि करिहउँ सेवकाई |
ये सब रामभगति के बाधक, कहहिं संत तव पद अवराधक |"
सुख संपति परिवार और बड़ाई ..... ये सब राम भक्ति में बाधक हैं| जिसे भी भगवान की उपासना करनी है, उसे इन सब से मोह त्यागना ही होगा|
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आप सब में हृदयस्थ भगवान नारायण को नमन ! ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०१८

हमें पानीपत के तृतीय युद्ध वाली मानसिकता से बाहर आना ही होगा .....

हमें पानीपत के तृतीय युद्ध वाली मानसिकता से बाहर आना ही होगा .....
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पानीपत का तृतीय युद्ध अति शक्तिशाली मराठा सेना अपने सेनापति की अदूरदर्शिता और गलत निर्णय के कारण हारी थी| वह हिन्दुओं की एक अत्यंत भयावह पराजय थी| पर उससे हमने कोई सबक नहीं लिया, और वे ही भूलें हम अब तक करते आये हैं| चीन से युद्ध भी हम उसी भूल से हारे| कारगिल के युद्ध में भी वही भूल हमने नियंत्रण रेखा को पार नहीं कर के की,
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पानीपत के तृतीय युद्ध में अगर मराठा सेना आगे बढकर पहले आक्रमण करती तो निश्चित रूप से विजयी होतीं और पूरे भारत पर उनका राज्य होता| युद्धभूमि में जो पहले आगे बढकर आक्रमण करता है पलड़ा उसी का भारी रहता है| उनको पता था कि आतताई अहमदशाह अब्दाली कुछ अन्य नवाबों की फौजों के साथ सिर्फ विध्वंश और लूटने के उद्देश्य से आ रहा है| उन्हें आगे बढ़कर मौक़ा मिलते ही उसे नष्ट कर देना चाहिए था| अन्य हिन्दू राजाओं से भी सहायता माँगनी चाहिए थी| पर मराठा सेना उसके यमुना के इस पार आने की प्रतीक्षा करती रहीं| अब्दाली निश्चिन्त था कि जब तक मैं नदी के उस पार नहीं जाऊंगा मराठा सेना आक्रमण नहीं करेगी| उसने कब और कैसे नदी पार की मराठों को पता ही नहीं चला और ऐसे अवसर पर आक्रमण किया जब मराठा सेना असावधान और निश्चिन्त थीं| मराठों को सँभलने का अवसर भी नहीं मिला|
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कारगिल के युद्ध में भी वाजपेयी जी ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि हम काल्पनिक नियंत्रण रेखा को किसी भी स्थिति में पार नहीं करेंगे| पकिस्तान तो निश्चिन्त हो गया था कि भारत किसी भी परिस्थिति में नियंत्रण रेखा को पार नहीं करेगा| यह हमारी मुर्खता थी| यदि हमारी सेना नियंत्रण रेखा को पार कर के आक्रमण करती तो न तो हमारे इतने सैनिक मरते और न युद्ध इतना लंबा चलता|
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पकिस्तान भारत पर कभी भी आणविक आक्रमण कर सकता है| इस से पहिले कि पाकिस्तान भारत पर आक्रमण करे, भारत को उसके आणविक शस्त्रों का नाश कर उसको चार टुकड़ों में बाँट देना चाहिए| तभी भारत में शान्ति स्थापित हो सकती है|

१९ फरवरी २०१७

१८ फरवरी सन १९४६ का भारतीय इतिहास में वह अति महत्वपूर्ण दिवस .....

१८ फरवरी सन १९४६ का भारतीय इतिहास में वह अति महत्वपूर्ण दिवस .....
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१८ फरवरी १९४६ के दिन एक अति महत्वपूर्ण घटना भारत के इतिहास में हुई थी, जिसने भारत से अंग्रेजों को भागने को बाध्य कर दिया था| यह भारतीयों के जनसंहारकारी अंग्रेजी राज के कफन में आख़िरी कील थी| इस घटना के इतिहास को स्वतंत्र भारत में छिपा दिया गया और विद्यालयों में कभी पढ़ाया नहीं गया|
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अगस्त १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन पूर्ण रूपेण विफल हो गया था| अंग्रेजों ने उसे हिंसात्मक रूप से कुचल दिया था| गांधी जी की नीतियों ने पूरे भारत में एक भ्रम उत्पन्न कर दिया था और उनके द्वारा तुर्की के खलीफा को बापस गद्दी पर बैठाए जाने के लिए किये गए खिलाफत आन्दोलन ने भारत में विनाश ही विनाश किया| उसकी प्रतिक्रियास्वरूप केरल में मोपला विद्रोह हुआ और लाखों हिन्दुओं की हत्याएँ हुई| गाँधी ने उन हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी कहा| पकिस्तान की मांग भी भयावह रूप से तीब्र हो उठी|
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भारत स्वतंत्र हुआ इसका कारण था ..... द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात अंग्रेजी सेना की कमर टूट गयी थी और वह भारत पर नियंत्रण करने में असमर्थ थी| भारतीय सिपाहियों ने अन्ग्रेज़ अधिकारियों के आदेश मानने से मना कर दिया था और नौसेना ने विद्रोह कर दिया जिससे अँगरेज़ बहुत बुरी तरह डर गए और उन्होंने भारत छोड़ने में ही अपनी भलाई समझी| स्वतन्त्रता कोई चरखा कातने से या अहिंसात्मक सत्याग्रह से नहीं मिली जिसका झूठा इतिहास हमें पढ़ाया गया है|
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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस व आजाद हिन्द फौज द्वारा भारत की स्वतंत्रता के लिए शुरू किये गये सशस्त्र संघर्ष से प्रेरित होकर रॉयल इंडियन नेवी के भारतीय सैनिकों ने १८ फरवरी १९४६ को HMIS Talwar नाम के जहाज से मुम्बई में अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध मुक्ति संग्राम का उद्घोष कर दिया था| उनके क्रान्तिकारी मुक्ति संग्राम ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा प्रदान की|
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नौसैनिकों का यह मुक्ति संग्राम इतना तीव्र था कि शीघ्र ही यह मुम्बई से चेन्नई, कोलकात्ता, रंगून और कराँची तक फैल गया| महानगर, नगर और गाँवों में अंग्रेज अधिकारियों पर आक्रमण किये जाने लगे तथा कुछ अंग्रेज अधिकारियों को मार दिया गया और उनके घरों पर धावा बोला गया तथा धर्मान्तरण व राष्ट्रीय एकता विखण्डित करने के केन्द्र बने उनके पूजा स्थलों को नष्ट किये जाने लगा| स्थान - स्थान पर मुक्ति सैनिकों की अंग्रेज सैनिकों के साथ मुठभेड होने लगी| ऐसे समय में भारतीय नेताओं ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे उन वीर सैनिकों का कोई साथ नहीं दिया , जबकि देश की आम जनता ने उन सैनिकों को पूरा सहयोग दिया|
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नौसैनिकों के मुक्ति संग्राम की मौहम्मद अली जिन्ना, जवाहर लाल नेहरु और मोहनदास गाँधी ने निन्दा की व नौसैनिकों के समर्थन में एक शब्द भी नहीं कहा| क्या अपने देश की स्वतंत्रता के लिए उनका मुक्ति संग्राम करना बुरा था? जिन लोगों ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी, कोल्हू में बैल की तरह जोते गये , नंगी पीठ पर कोडे खाए, भारत माता की जय का उद्घोष करते हुए फाँसी के फंदे पर झूल गये, क्या इसमें उनका अपना कोई निजी स्वार्थ था ?
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भारतीय राष्ट्रीय नेताओं के विश्वासघात के कारण नौसैनिको का मुक्ति संग्राम हालाँकि कुचल दिया गया, लेकिन इसने ब्रिटिस साम्राज्य की जड़ें हिला दीं और अंग्रेजों के हृदयों को भय से भर दिया| अंग्रेजों को ज्ञात हो गया कि केवल गोरे सैनिको के भरोसे भारत पर राज नहीं किया किया जा सकता, भारतीय सैनिक कभी भी क्रान्ति का शंखनाद कर १८५७ का स्वतंत्रता समर दोहरा सकते है, और इस बार सशस्त्र क्रान्ति हुई तो उनमें से एक भी जिन्दा नहीं बचेगा, अतः अब भारत को छोडकर वापिस जाने में ही उनकी भलाई है|
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तत्कालीन ब्रिटिस हाई कमिश्नर जॉन फ्रोमैन का मत था कि १९४६ में रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह (मुक्ति संग्राम) के पश्चात भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो गई थी| १९४७ में ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड एटली ने भारत की स्वतंत्रता विधेयक पर चर्चा के दौरान टोरी दल के आलोचकों को उत्तर देते हुए हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा था कि ....
"हमने भारत को इसलिए छोडा , क्योंकि हम भारत में ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे थे|"
( दि महात्मा एण्ड नेता जी , पृष्ठ -१२५, लेखक - प्रोफेसर समर गुहा)
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नेताजी सुभाष से प्रेरणाप्राप्त इंडियन नेवी के वे क्रान्तिकारी सैनिक ही थे जिन्होंने भारत में अंग्रेजों के विनाश के लिए ज्वालामुखी का निर्माण किया था| इसका स्पष्ट प्रमाण ब्रिटिस प्रधानमंत्री लार्ड एटली और कोलकात्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.बी.चक्रवर्ती जो उस समय पश्चिम बंगाल के कार्यवाहक राज्यपाल भी थे के वार्तालाप से मिलता है|
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जब चक्रवर्ती ने एटली से सीधे-सीधे पूछा कि गांधी का "अंग्रेजों भारत छोडो आन्दोलन" तो १९४७ से बहुत पहले ही मुरझा चुका था तथा उस समय की भारतीय परिस्थिति में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे अंग्रेजों का भारत छोडना आवश्यक हो जाए, तब आपने ऐसा क्यों किया?
तब एटली ने उत्तर देते हुए कई कारणों का उल्लेख किया , जिनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारण इंडियन नेवी का विद्रोह ( मुक्ति संग्राम ) व नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के कार्यकलाप थे जिसने भारत की जल सेना , थल सेना और वायु सेना के अंग्रेजों के प्रति लगाव को लगभग समाप्त करके उनकों अंग्रेजों के ही विरूद्ध लडने के लिए प्रेरित कर दिया था|
अन्त में जब चक्रवर्ती ने एटली से अंग्रेजों के भारत छोडने के निर्णय पर गांधी जी के कार्यकलाप से पडने वाले प्रभाव के बारे मेँ पूछा तो इस प्रश्न को सुनकर एटली हंसने लगा और हंसते हुए कहा कि "गांधी जी का प्रभाव तो न्यूनतम ही रहा"|
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एटली और चक्रवर्ती का वार्तालाप निम्नलिखित तीन पुस्तकों में मिलता है -
1. हिस्ट्री ऑफ इंडियन इन्डिपेन्डेन्ट्स वाल्यूम - ३, लेखक - डॉ. आर. सी. मजूमदार |
2. हिस्ट्री ऑफ इंडियन नेशनल कांग्रेस , लेखिका - गिरिजा के. मुखर्जी |
3. दि महात्मा एण्ड नेता जी , लेखक - प्रोफेसर समर गुहा |
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पुनश्चः :- आज़ादी हमें कोई चरखा चलाकर या अहिंसा से नहीं मिली| इस आज़ादी के पीछे लाखों लोगों का बलिदान था| नेहरु और जिन्ना दोनों ही अंग्रेजों के हितचिन्तक थे जिन्हें गांधी की मूक स्वीकृति थी| भारत से अँगरेज़ गए और जाते जाते अपने ही मानस पुत्रों .... नेहरु और जिन्ना को सत्ता सौंप गए| जितना अधिकतम भारत का विनाश वे कर सकते थे उतना विनाश जाते जाते भी कर गए|
वन्दे मातरं | भारत माता की जय |
१९ फरवरी २०१७

शैतान यानि असुर एक वास्तविकता है जिसका मैं साक्षी हूँ .....

शैतान यानि असुर एक वास्तविकता है जिसका मैं साक्षी हूँ (The Devil exists, This is my testimony) .......
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हमारे अतृप्त अशांत मन के पीछे आसुरी शक्तियाँ हैं, जिनसे हमें मुक्त होना है| हमारा अतृप्त अशांत मन ही हमारी सब बुराइयों और सब पापों का कारण है|
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जिस तरह से दैवीय जगत होता है वैसे ही आसुरी और पैशाचिक जगत भी होते हैं जो हमारे जीवन पर निरंतर प्रभाव डालते रहते हैं| जैसे देवता हमारी सहायता करते हैं वैसे ही असुर भी निरंतर हमारे ऊपर अधिकार कर हमें बुराई की और धकेलने का प्रयास करते रहते हैं| कई बार हम ऐसे गलत कार्य कर बैठते हैं जिनका हमें स्वयं को भी विश्वास नहीं होता कि हमारे रहते हुए भी ऐसा क्यों हुआ| हमें पता भी नहीं चलता कि कब किसी आसुरी शक्ति ने हमें अपना उपकरण बना कर हमारा प्रयोग या उपयोग कर लिया|
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मैंने आज (१५ फरवरी २०१८ को) स्पष्ट रूप से एक दैवीय जगत को भी स्पष्ट अनुभूत किया है और आसुरी जगत को भी| कई बड़े बड़े शक्तिशाली असुर हैं जिनसे भगवान ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| मेरी रक्षा भी भगवान की कृपा से ही होती रही है अन्यथा असुरों ने मुझ पर अधिकार कर मुझे नष्ट करने का पूरा प्रयास किया है| आज तो प्रत्यक्ष रूप से मैंने एक अति शक्तिशाली असुर का अनुभव किया है| यह एक वर्जित विषय है जिसकी चर्चा का भी निषेध है, पर ये पंक्तियाँ एक अंतर्प्रेरणा से मैं लिख रहा हूँ|
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मैनें ३० जनवरी को एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था "शैतान क्या है? आज मैंने यह प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि Devil यानी शैतान एक वास्तविकता है| उस लेख को यहाँ पुनर्प्रस्तुत कर रहा हूँ और अंत में एक टिप्पणी जोड़ी है|
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(पुनर्प्रस्तुत लेख) शैतान क्या है .....
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शैतान (Satan या Devil) की परिकल्पना इब्राहिमी (Abrahamic) मजहबों (यहूदी, इस्लाम और ईसाईयत) की है| भारत में उत्पन्न किसी भी मत में शैतान की परिकल्पना नहीं है| शैतान .... इब्राहिमी मज़हबों में सबसे दुष्ट हस्ती का नाम है, जो दुनियाँ की सारी बुराई का प्रतीक है| इन मज़हबों में ईश्वर को सारी अच्छाई प्रदान की जाती है और बुराई शैतान को|
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हिन्दू परम्परा में शैतान जैसी चीज़ का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि हिन्दू मान्यता कहती है कि मनुष्य अज्ञान वश पाप करता है जो दुःखों की सृष्टि करते हैं| इब्राहिमी मतों के अनुसार शैतान पहले ईश्वर का एक फ़रिश्ता था, जिसने ईश्वर से ग़द्दारी की और इसके बदले ईश्वर ने उसे स्वर्ग से निकाल दिया| शैतान पृथ्वी पर मानवों को पाप के लिये उकसाता है|
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ईसाई मत में शैतान बुराई की व्यक्तिगत सत्ता का नाम है, जिसको पतित देवदूत. ईश्वर विरोधी दुष्ट, प्राचीन सर्प आदि कहा गया है| जहाँ ईसा मसीह अथवा उनके शिष्य जाते थे वहाँ वह अधिक सक्रिय हो जाता था क्योंकि ईसा मसीह उसको एक दिन पराजित करेंगे और उसका प्रभुत्व मिटा देंगे| अंततोगत्वा वह सदा के लिए नर्क में डाल दिया जाएगा|
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जिन हिन्दू संतों और विद्वानों ने ईसा मसीह और उनकी शिक्षाओं पर लेख लिखे हैं, उन्होंने मनुष्य की "काम वासना" को ही शैतान बताया है|
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सार की बात यह है कि अपना भटका हुआ, अतृप्त अशांत मन ही शैतान है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० जनवरी २०१८
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पुनश्चः :--- यह मेरी आज १५ फरवरी २०१८ की टिप्पणी है कि यदि मैं यह कहूँ कि हमारे अतृप्त और अशांत मन के पीछे आसुरी शक्तियाँ यानि शैतान है तो मैं गलत नहीं हूँ| शैतान है और मैं इसका साक्षी हूँ| जिन मनुष्यों को हम पापी या दुष्ट कहते हैं वे तो शैतान यानि आसुरी जगत के शिकार हैं, इसमें उनका क्या दोष? हम स्वयं आसुरी प्रभाव से पूर्णतः मुक्त होकर ही उनकी सहायता कर सकते हैं|
१५ फरवरी २०१८

परमात्मा से प्रेम करना हमारा स्वभाव है .....

परमात्मा से प्रेम करना हमारा स्वभाव है| अपने स्वभाव में बने रहना ही आनंद दायक है| चाहे कोई सा भी आध्यात्मिक मार्ग हो, सब का आधार परम प्रेम है| बिना परम प्रेम के एक इंच भी आगे प्रगति नहीं हो सकती| प्रेम प्रेम प्रेम और प्रेम ..... परमात्मा से प्रेम बस यही जीवन का सार है| हृदय में प्रेम हो तभी परमात्मा से मार्गदर्शन मिलता है, अन्यथा नहीं|
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अहंकार और प्रपञ्च से मोह करने वाला आत्मविरोधी-ब्रह्मविरोधी है| अहंकारी और प्रपंची ही दूसरों को ठगता है तथा दूसरों से ठगा जाता है| ऐसे व्यक्ति ही दूसरों को दुःख देते हैं और दूसरों से दुःख पाते हैं| 
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जो कुछ भी वेद विरुद्ध है, वह अमान्य है चाहे वह कितना भी आकर्षक और सुन्दर विचार हो| जो वेद सम्मत है, वही मान्य है| सारी आध्यात्मिक साधनाओं का स्त्रोत वेदों से है, बाकी सब उसी का विस्तार है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ फरवरी २०१८