Wednesday, 21 February 2018

पूर्णता परमात्मा में ही है .....

पूर्णता परमात्मा में ही है अतः उनकी सृष्टि में भी कोई अपूर्णता नहीं हो सकती| फिर अज्ञान, अन्धकार, असत्य, पाप व दुःख के कारण क्या हैं? वेदान्त कहता है "एकोहं द्वितीयो नास्ति" अर्थात् मेंरे सिवाय अन्य कोई नहीं है| पूर्ण सत्यनिष्ठा से अवलोकन करने पर पाता हूँ कि कोई ऐसी बुराई या भलाई नहीं है जो मुझमें नहीं है| सारे अज्ञान-ज्ञान, अन्धकार-प्रकाश, असत्य-सत्य, पाप-पुण्य और दुःख-सुख का स्त्रोत मैं ही हूँ|
.
यह सृष्टि परमात्मा के ही प्रकाश और अन्धकार से बनी है| हमारा कार्य परमात्मा के प्रकाश में वृद्धि करना ही है| उसके अन्धकार में वृद्धि करेंगे तो दंडस्वरूप अज्ञान और दुःख की प्राप्ति होगी ही|
.
भगवान बड़े छलिया हैं| लीला रूपी इस सृष्टि की रचना कर वे स्वयं को ही छल रहे हैं| इसी में उनका आनंद है, और उनके आनंद में ही हमारा आनंद है| अतः यहाँ सिर्फ आत्मज्ञान रूपी प्रकाश की ही वृद्धि करो, आवरण और विक्षेप रूपी अन्धकार की नहीं|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०१८

1 comment:

  1. जो शिक्षा सिर्फ ज्ञान देती है वह शिक्षा नहीं है| ज्ञान के साथ साथ सद्आचरण भी सिखाये वह ही शिक्षा है| प्राचीन भारत के ब्राह्मण आचार्य पूज्य थे क्योंकि वे ब्रह्मआचरण यानि ब्रह्मचर्य भी सिखाते थे|

    ReplyDelete