Wednesday 21 February 2018

परमात्मा से प्रेम करना हमारा स्वभाव है .....

परमात्मा से प्रेम करना हमारा स्वभाव है| अपने स्वभाव में बने रहना ही आनंद दायक है| चाहे कोई सा भी आध्यात्मिक मार्ग हो, सब का आधार परम प्रेम है| बिना परम प्रेम के एक इंच भी आगे प्रगति नहीं हो सकती| प्रेम प्रेम प्रेम और प्रेम ..... परमात्मा से प्रेम बस यही जीवन का सार है| हृदय में प्रेम हो तभी परमात्मा से मार्गदर्शन मिलता है, अन्यथा नहीं|
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अहंकार और प्रपञ्च से मोह करने वाला आत्मविरोधी-ब्रह्मविरोधी है| अहंकारी और प्रपंची ही दूसरों को ठगता है तथा दूसरों से ठगा जाता है| ऐसे व्यक्ति ही दूसरों को दुःख देते हैं और दूसरों से दुःख पाते हैं| 
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जो कुछ भी वेद विरुद्ध है, वह अमान्य है चाहे वह कितना भी आकर्षक और सुन्दर विचार हो| जो वेद सम्मत है, वही मान्य है| सारी आध्यात्मिक साधनाओं का स्त्रोत वेदों से है, बाकी सब उसी का विस्तार है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१२ फरवरी २०१८

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