Monday, 24 December 2018

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....
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ऐसे विद्यालयों में जहाँ विद्यार्थी, अध्यापक, प्रबंधक और मालिक आदि सभी हिन्दू हैं, वहाँ बड़ी धूमधाम से क्रिसमस मनाकर विदेशी संस्कृति का प्रचार प्रसार बड़ा अटपटा और विचित्र सा लगता है| क्या यह अज्ञान का प्रसार नहीं है? यह सांता क्लॉज़ नाम का फर्जी बूढ़ा जिसका जिक्र बाइबिल में कहीं भी नहीं है, भारत में कभी भी घुस नहीं सकता| वह अपनी स्लेज गाड़ी पर आता है जिसे रेनडियर खींचते हैं| भारत में इतनी बर्फ ही नहीं पड़ती जहाँ स्लेज गाड़ी चल सके| भारत में रेनडियर भी नहीं होते| अतः अपने बच्चों को सांता क्लॉज न बनाएँ| यदि उनके स्कूल वाले बनाते हैं तो सख्ती से उन्हें मना कर दें|
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यह ईसाईयत का एक सबसे बड़ा उपदेश है जिसकी उपेक्षा कर ईसाईयों ने सिर्फ मारकाट और नर संहार ही किये हैं ....
Sermon on the Mount ..... He said ..... "But seek ye first the kingdom of God, and His righteousness; and all these things shall be added unto you." Matthew 6:33 KJV.
अर्थात् .... पहिले परमात्मा के राज्य को ढूंढो, फिर अन्य सब कुछ तुम्हें स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा.
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ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....
"He that leadeth into captivity shall go into captivity: he that killeth with the sword must be killed with the sword.
Revelation 13:10 KJV."
उपरोक्त उद्धरण प्राचीन लैटिन बाइबल की Revelation नामक पुस्तक के किंग जेम्स वर्ज़न से लिया गया है| एक धर्मगुरु अपने एक नौकर के कान अपनी तलवार से काट देता है जिस पर जीसस क्राइस्ट ने उसे तलवार लौटाने को कहा और उपरोक्त बात कही|
(विडम्बना है कि उसी जीसस क्राइस्ट के अनुयायियों ने पूरे विश्व में सबसे अधिक अत्याचार और नर-संहार किये).
For all who will take up the sword, will die by the sword.
Live by the sword, die by the sword.
जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....
प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती| कर्मों का फल मिले बिना नहीं रहता|

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...
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भगवान के नाम पर शराब पी कर, मांस खा कर, और नाच गा कर क्रिसमस का त्यौहार मनाना यह स्पेन और पुर्तगाल की परम्परा है जो योरोप और अमेरिका में फ़ैली, अब भारत में बहुत अधिक लोकप्रिय हो गयी है| टर्की नाम की एक विशेष प्रकार की बतख का मांस और ब्रेड के सॉस को इस दिन चाव से खाया जाता है, और शराब पीकर नाच गा कर इस क्रिसमस के त्यौहार को मनाया जाता है| मेरे सभी मित्रों को जो ईसाई मतावलंबी हैं या ईसा मसीह में आस्था रखते हैं उनको यह कहना चाहता हूँ कि ..... आप लोग अपने मत में आस्था रखो पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्मांतरण यानि मत परिवर्तन मत करो, व हमारे साधू-संतों को प्रताड़ित मत करो| आप लोग हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण भी मत करो| स्वामी विवेकानंद के शब्दों में आप लोगों ने भारतवर्ष और हम हिन्दुओं को इतना अधिक बदनाम किया है और हमारे ऊपर इतना अत्याचार किया है कि यदि हम पूरे विश्व का कीचड़ भी तुम्हारे ऊपर फेंकें तो वह भी कम पड़ेगा|
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आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व कल्पना कीजिये कि विश्व में कितना अज्ञान और अन्धकार था| वह एक ऐसा समय था जब भारतवर्ष में ही वैदिक धर्म का ह्रास हो गया था, तब भारत से बाहर तो कितना अज्ञान रहा होगा ! वैदिक मत के स्थान पर प्रचलित बौद्ध मत में अनेक विकृतियाँ आ रही थीं| भारतवर्ष में वामाचार का प्रचलन बढ़ गया था और अधिकाँश लोगों के लिए इन्द्रीय सुखों की प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य रह गया था|
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उस समय के फिलिस्तीन की कल्पना कीजिये जो वास्तव में एक परम अज्ञान और घोर अन्धकार का केंद्र था| वहाँ कोई पढाई-लिखाई नहीं थी| कहीं भी आने जाने के लिए लोग गधे की सवारी करते थे| लोग रोमन साम्राज्य के दास थे| रोमन साम्राज्य का एकमात्र ध्येय .... दूसरों को गुलाम बनाना, भोग-विलास और इन्द्रीय सुखों की प्राप्ती था| आप वर्तमान में ही फिलिस्तीन की स्थिति देख लीजिये| जो लोग उस क्षेत्र में गए हैं वे कह सकते हैं, और मैं भी मेरे अनुभव से कह रहा हूँ कि वह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ के बारे में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं है| यही हालत आज पूरे अरब विश्व की है|
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उस समय एक ईश्वरीय चेतना ने वहाँ फिलिस्तीन के बैथलहम नगर में जन्म लिया जिसे समझने वाला वहाँ कोई नहीं था| वह चेतना भारत में आकर पल्लवित हुई और बापस अपने देश फिलिस्तीन गयी जहाँ उसे सूली पर चढ़ा दिया गया| बच कर वह चेतना बापस भारत आई और यहीं की होकर रह गयी|
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उस दिव्य चेतना के नाम पर एक मत चला जिसने पूरे विश्व में क्रूरतम हिंसा और अत्याचार किया| भारत में भी सबसे अधिक अति घोर अत्याचार और आतंक उस मत ने फैलाया और अभी भी फैला रहा है| देखा जाए तो उनके वर्तमान चर्चवादी मत और उनके मध्य कोई सम्बन्ध नहीं है| उन की मूल शिक्षाएं काल चक्र में लुप्त हो गयी हैं|
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क्राइस्ट एक चेतना है -- कृष्ण चैतन्य, आप उस चेतना में रहो| ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप भी ईश्वर की संतान हो| आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो, सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
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आने वाले नववर्ष के बारे में .... काल अनन्त है, आध्यात्मिक मानव के लिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है, जनवरी १, नववर्ष नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१८

मैं क्रिसमस पर ध्यान क्यों करता हूँ ? .....

मैं क्रिसमस पर ध्यान क्यों करता हूँ ? .....
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कल से ईसाईयों का दो दिन का क्रिसमस का पर्व है| मैं हिन्दू होकर भी क्रिसमस की पूर्वरात्री (२४ दिसंबर) को भगवान का गहनतम ध्यान करता हूँ, इसका कारण मेरा दृढ़ विश्वास है कि एक न एक दिन शीघ्र ही पूरे विश्व के ईसाई मतावलंबी सनातन हिन्दू धर्म को मानने लगेंगे| पूरे विश्व में अधिकाँश ईसाई मतावलंबी ईसाईयत से निराश होकर नास्तिक हो गए हैं| सिर्फ भारत में ही सनातन धर्म को नष्ट करने में उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा रखी है| भारत से बाहर बड़े से बड़े ईसाई धर्मगुरुओं की आस्था भी खंडित हो चुकी है| वे सिर्फ दिखावे के लिए ही बड़ी बड़ी बातें करते हैं, अन्दर से खोखले हैं| यह मेरा निजी अनुभव है| असत्य पर कभी गहरी नींव नहीं पडती|
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ईसाईयत का मुख्य आधार व मोड़-बिंदु ..... "Resurrection" यानी ईसा मसीह के पुनरोत्थान की अवधारणा है| भारतवर्ष में यह कोई चमत्कार नहीं है| भारत में अनेक संत-महात्मा पुनर्जीवित व दीर्घजीवी हुए हैं|
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अन्य कुछ भी उल्लेखनीय नहीं है| मदिरा पान, नाच-गाना, और मांसाहार से कोई धार्मिक नहीं बनता| |सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! अभिनन्दन में सब का करता हूँ, अतः पुनश्चः सभी श्रद्धालुओं को नमन !

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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१८
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पुनश्च: ----   मेरा अपना विचार ---
जीसस क्राइस्ट यानि ईसा मसीह एक सनातन धर्मावलम्बी संत थे। उन्होंने भारत में ही शिक्षा पाई और भारत में ही देह-त्याग किया। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का ही प्रचार-प्रसार किया था। २५ दिसंबर का उनके जन्म से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने अपने मत का प्रचार अपनी जन्म भूमि फिलिस्तीन में किया जो असत्य और अज्ञान के अंधकार में डूबा हुआ देश था। उनकी मूल शिक्षाएं असत्य और अज्ञान के अंधकार में खो गई हैं।
वर्तमान ईसाई मत का उनसे कोई संबंध नहीं है। वर्तमान ईसाई मत तो एक चर्चवाद है। ईसाई मतावलंबियों ने उनके नाम पर मानव इतिहास के नृशंसतम घृणित से घृणित अत्याचार और अधर्म के कार्य किए हैं। एक दिन ऐसा भी आयेगा जब सम्पूर्ण ईसाई जगत सनातन-हिन्दूधर्म को अपना लेगा। ईसाईयत को लोग धीरे धीरे छोड़ रहे हैं। यह कोई धर्म नहीं, अधर्म है। महादेव महादेव महादेव !! हर हर महादेव !!

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग २) .....
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ऐसे विद्यालयों में जहाँ विद्यार्थी, अध्यापक, प्रबंधक और मालिक आदि सभी हिन्दू हैं, वहाँ बड़ी धूमधाम से क्रिसमस मनाकर विदेशी संस्कृति का प्रचार प्रसार बड़ा अटपटा और विचित्र सा लगता है| क्या यह अज्ञान का प्रसार नहीं है? यह सांता क्लॉज़ नाम का फर्जी बूढ़ा जिसका जिक्र बाइबिल में कहीं भी नहीं है, भारत में कभी भी घुस नहीं सकता| वह अपनी स्लेज गाड़ी पर आता है जिसे रेनडियर खींचते हैं| भारत में इतनी बर्फ ही नहीं पड़ती जहाँ स्लेज गाड़ी चल सके| भारत में रेनडियर भी नहीं होते| अतः अपने बच्चों को सांता क्लॉज न बनाएँ| यदि उनके स्कूल वाले बनाते हैं तो सख्ती से उन्हें मना कर दें|
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यह ईसाईयत का एक सबसे बड़ा उपदेश है जिसकी उपेक्षा कर ईसाईयों ने सिर्फ मारकाट और नर संहार ही किये हैं ....
Sermon on the Mount ..... He said ..... "But seek ye first the kingdom of God, and His righteousness; and all these things shall be added unto you." Matthew 6:33 KJV.
अर्थात् .... पहिले परमात्मा के राज्य को ढूंढो, फिर अन्य सब कुछ तुम्हें स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा.
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ईसाईयत में कर्मफलों का सिद्धांत .....
"He that leadeth into captivity shall go into captivity: he that killeth with the sword must be killed with the sword.
Revelation 13:10 KJV."
उपरोक्त उद्धरण प्राचीन लैटिन बाइबल की Revelation नामक पुस्तक के किंग जेम्स वर्ज़न से लिया गया है| एक धर्मगुरु अपने एक नौकर के कान अपनी तलवार से काट देता है जिस पर जीसस क्राइस्ट ने उसे तलवार लौटाने को कहा और उपरोक्त बात कही|
(विडम्बना है कि उसी जीसस क्राइस्ट के अनुयायियों ने पूरे विश्व में सबसे अधिक अत्याचार और नर-संहार किये).
For all who will take up the sword, will die by the sword.
Live by the sword, die by the sword.
जो दूसरों को तलवार से काटते हैं वे स्वयं भी तलवार से ही काटे जाते हैं ....
प्रकृति किसी को क्षमा नहीं करती| कर्मों का फल मिले बिना नहीं रहता|

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...

क्रिसमस पर एक विशेष लेख (भाग १) ...
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भगवान के नाम पर शराब पी कर, मांस खा कर, और नाच गा कर क्रिसमस का त्यौहार मनाना यह स्पेन और पुर्तगाल की परम्परा है जो योरोप और अमेरिका में फ़ैली, अब भारत में बहुत अधिक लोकप्रिय हो गयी है| टर्की नाम की एक विशेष प्रकार की बतख का मांस और ब्रेड के सॉस को इस दिन चाव से खाया जाता है, और शराब पीकर नाच गा कर इस क्रिसमस के त्यौहार को मनाया जाता है| मेरे सभी मित्रों को जो ईसाई मतावलंबी हैं या ईसा मसीह में आस्था रखते हैं उनको यह कहना चाहता हूँ कि ..... आप लोग अपने मत में आस्था रखो पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्मांतरण यानि मत परिवर्तन मत करो, व हमारे साधू-संतों को प्रताड़ित मत करो| आप लोग हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण भी मत करो| स्वामी विवेकानंद के शब्दों में आप लोगों ने भारतवर्ष और हम हिन्दुओं को इतना अधिक बदनाम किया है और हमारे ऊपर इतना अत्याचार किया है कि यदि हम पूरे विश्व का कीचड़ भी तुम्हारे ऊपर फेंकें तो वह भी कम पड़ेगा|
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आज से दो हज़ार वर्ष पूर्व कल्पना कीजिये कि विश्व में कितना अज्ञान और अन्धकार था| वह एक ऐसा समय था जब भारतवर्ष में ही वैदिक धर्म का ह्रास हो गया था, तब भारत से बाहर तो कितना अज्ञान रहा होगा ! वैदिक मत के स्थान पर प्रचलित बौद्ध मत में अनेक विकृतियाँ आ रही थीं| भारतवर्ष में वामाचार का प्रचलन बढ़ गया था और अधिकाँश लोगों के लिए इन्द्रीय सुखों की प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य रह गया था|
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उस समय के फिलिस्तीन की कल्पना कीजिये जो वास्तव में एक परम अज्ञान और घोर अन्धकार का केंद्र था| वहाँ कोई पढाई-लिखाई नहीं थी| कहीं भी आने जाने के लिए लोग गधे की सवारी करते थे| लोग रोमन साम्राज्य के दास थे| रोमन साम्राज्य का एकमात्र ध्येय .... दूसरों को गुलाम बनाना, भोग-विलास और इन्द्रीय सुखों की प्राप्ती था| आप वर्तमान में ही फिलिस्तीन की स्थिति देख लीजिये| जो लोग उस क्षेत्र में गए हैं वे कह सकते हैं, और मैं भी मेरे अनुभव से कह रहा हूँ कि वह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ के बारे में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं है| यही हालत आज पूरे अरब विश्व की है|
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उस समय एक ईश्वरीय चेतना ने वहाँ फिलिस्तीन के बैथलहम नगर में जन्म लिया जिसे समझने वाला वहाँ कोई नहीं था| वह चेतना भारत में आकर पल्लवित हुई और बापस अपने देश फिलिस्तीन गयी जहाँ उसे सूली पर चढ़ा दिया गया| बच कर वह चेतना बापस भारत आई और यहीं की होकर रह गयी|
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उस दिव्य चेतना के नाम पर एक मत चला जिसने पूरे विश्व में क्रूरतम हिंसा और अत्याचार किया| भारत में भी सबसे अधिक अति घोर अत्याचार और आतंक उस मत ने फैलाया और अभी भी फैला रहा है| देखा जाए तो उनके वर्तमान चर्चवादी मत और उनके मध्य कोई सम्बन्ध नहीं है| उन की मूल शिक्षाएं काल चक्र में लुप्त हो गयी हैं|
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क्राइस्ट एक चेतना है -- कृष्ण चैतन्य, आप उस चेतना में रहो| ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप भी ईश्वर की संतान हो| आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो, सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
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आने वाले नववर्ष के बारे में .... काल अनन्त है, आध्यात्मिक मानव के लिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नववर्ष है, जनवरी १, नववर्ष नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१८

क्रिसमस पर सभी ईसाई श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ .....

क्रिसमस पर सभी ईसाई श्रद्धालुओं को शुभ कामनाएँ .....
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वर्तमान ईसाई मत एक चर्चवाद है, उसका ईसा मसीह यानि जीसस क्राइस्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है| कुछ वर्षों पूर्व अमेरिका में "द विन्सी कोड" नामक एक पुस्तक छपी थी, जिसके बाद पूरे विश्व में करोड़ों ईसाईयों की आस्था अपने मत से हट गयी| भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने उस पुस्तक पर तुरंत प्रतिबन्ध लगा दिया था| फिर भी भारत में लगता है उसका Ghost Edition (यानि चोरी-छिपे छद्म प्रकाशक के नाम से) छपा और बड़े शहरों के फुटपाथों पर वह पुस्तक चोरी-छिपे खूब बिकी| वह पुस्तक मैनें भी पढ़ी थी और मेरे जैसे सैंकड़ों लोगों ने पढ़ी| अवसर मिले तो आप भी पढ़िए|
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भारत से बाहर ईसाईयत प्रभावहीन होती जा रही है| उसकी धार समाप्त हो गयी है| ईसाईयत ने अपना पूरा जोर, पूरी शक्ति भारत और नेपाल में झोंक दी है| चीन में और सभी मुस्लिम देशों में ईसाई प्रचारक प्रवेश भी नहीं कर सकते| श्रीलंका जैसे देश ने भी उन पर प्रतिबन्ध लगा रखा है| पर विश्व में अनेक अति गुप्त ईसाई संस्थाएँ हैं जो घोर कुटिलता और हिंसा से अभी भी पूरे विश्व पर अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहती हैं| ऐसी संस्थाओं से हमें अति सचेत रहना है| भारत की रक्षा तो भगवान ने ही की है, अन्यथा भारत तो उनके द्वारा अब तक नष्ट हो चुका होता|
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मेरे कई ईसाई मित्र थे (रोमन कैथोलिक भी और प्रोटोस्टेंट भी) जिनके साथ मैं कई बार उनके चर्चों में गया हूँ और वहाँ की प्रार्थना सभाओं में भी भाग लिया है| दो बार इटली में वेनिस और कुछ अन्य नगरों में भी गया हूँ जहाँ खूब बड़े बड़े चर्च हैं जिनमें उपस्थिति नगण्य ही रहती है| यूरोप व अमेरिका के कई ईसाई पादरियों से भी मेरी मित्रता रही है| कुल मिलाकर मेरा अनुभवजन्य मत यही है कि जो जिज्ञासु ईसाई हैं उनको अपनी जिज्ञासाओं का समाधान सनातन हिन्दू धर्म में ही मिलता है, और इस बात की पूरी संभावना है कि विश्व के सारे समझदार ईसाई एक न एक दिन हिन्दू धर्म को ही अपना लेंगे| मुझे एक पूर्व ईसाई जिसने बाद में हिन्दू धर्म अपना कर संन्यास भी ले लिया था, ने बताया था कि यदि हिन्दू लोग जीसस क्राइस्ट को भी एक हिन्दू अवतार ही मान लें तो दुनियाँ के सारे समझदार ईसाई हिन्दू हो जायेंगे|
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उन सब को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ जो जीसस क्राइस्ट में विश्वास रखते हैं| उनको मैं यह निवेदन करता हूँ कि क्राइस्ट एक चेतना है -- कृष्ण चेतना| आप उस चेतना में रहो| ईश्वर को प्राप्त करना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| आप भी ईश्वर की संतान हो| आप जन्म से पापी नहीं हो| आप अमृतपुत्र हैं| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो, सर्वप्रथम ईश्वर का साम्राज्य ढूँढो अर्थात ईश्वर का साक्षात्कार करो फिर तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१८

पिंड दान .....

पिंड दान ...... हमें इस देह में जीवित रहते हुए ही अपना स्वयं का पिंडदान भी कर देना चाहिए| मृत्यु के बाद घर वालों को यह कष्ट न दें तो यह एक बहुत बड़ा परोपकार होगा| अपने अंतिम संस्कार के लिए भी स्वयं का कमाया हुआ ही पर्याप्त धन, घर वालों के पास छोड़ देना चाहिए ताकि उन पर कोई भार न पड़े| केवल श्राद्ध करने से कोई मुक्ति नहीं मिलती है, अपना स्वयं का किया हुआ सत्कर्म ही अंततः काम आयेगा|
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यह देह रूपी जो वाहन भगवान ने दिया है, वह पिंड ही है, और इसे भगवान को अर्पण कर देना ही पिंडदान है| जिसने अपना जीवन, अपना अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) भगवान को अर्पित कर दिया उसका पिंडदान ही सच्चा है| यह पिंडदान ही सार्थक है| अपना अन्तःकरण पूर्ण रूप से परमात्मा को सौंप दें|
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भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ....
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्‌| आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||"
अर्थात् मनुष्य को चाहिये कि वह अपने मन के द्वारा अपना जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन से उद्धार करने का प्रयत्न करे, और अपने को निम्न-योनि में न गिरने दे, क्योंकि यह मन ही जीवात्मा का मित्र है, और यही जीवात्मा का शत्रु भी है||

श्रुति भगवती भी कहती है .....
"एको हंसः भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्निः सलिले संनिविष्टः |
तमेव विदित्वा अतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय || श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१५||"
परमात्मा को जानकर ही हम मृत्यु का उल्लंघन कर सकते हैं| परमात्मा को हमें स्वयं ही प्राप्त करना होगा| यह उनकी कृपा और अनुग्रह के द्वारा ही संभव है जो करुणावश वे स्वयं ही कर सकते हैं| अन्य कोई उसे प्रकाशित नहीं कर सकता|
श्रुति भगवती ने यहीं यह भी कहा है .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः|
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति||
श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१४||"
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अपना अंतःकरण भगवान को सौंप दें, यही सबसे बड़ा पिंडदान है, यही सच्चा श्राद्ध है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१८

कमाई खुद की ही काम आयेगी, दूसरों की नहीं .....

कमाई खुद की ही काम आयेगी, दूसरों की नहीं .....
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पर्वतों पर चढ़ाई करने वालों को ही पर्वतों से आगे के दृश्य दिखाई देते हैं, सिर्फ कल्पनाओं में, सुनी-सुनाई बातों और दूसरों के अनुभवों में कुछ नहीं रखा है| स्वयं अपने परिश्रम से साधना के शिखर पर चढ कर परमात्मा की अनुभूतियों को प्राप्त करना होगा| जितना परिश्रम करोगे, परमात्मा से उतना ही अधिक पारिश्रमिक मिलेगा| बिना परिश्रम के कुछ भी नहीं मिलेगा| परमात्मा भी अपना अनुग्रह यानी कृपा उसी पर करते हैं जो परमप्रेममय होकर उनके लिए परिश्रम करता है| मेहनत करोगे तो मजदूरी भी मिलेगी| संसार भी हमें मेहनत के बदले मजदूरी देता है, तो फिर भगवान क्यों नहीं देंगे? संत तुलसीदास जी ने कहा है .....
"तुलसी विलम्ब न कीजिए भजिये नाम सुजान| जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान्||"
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अधिकांश लोग संत-महात्माओं के पीछे पीछे इसलिए भागते हैं कि संभवतः संत-महात्मा अपनी कमाई में से कुछ दे देंगे| पर ऐसा होता नहीं है| संत-महात्मा अधिक से अधिक हमें प्रेरणा दे सकते हैं, मार्गदर्शन कर सकते हैं, और सहायता कर सकते हैं| वे अपनी कमाई किसी को क्यों देंगे? मेहनत तो खुद को ही करनी होगी और मजदूरी भी खुद ही कमानी होगी, क्योंकि खुद की कमाई ही काम आयेगी, दूसरे की नहीं| मैं फिर से निवेदन कर रहा हूँ .... जगत मजूरी देत है, क्यों राखे भगवान !
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हरि ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१८
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पुनश्च:   ---

"तुलसी विलम्ब न कीजिए भजिये नाम सुजान| जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान्||"
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कमाई खुद की ही काम आयेगी, दूसरों की नहीं| जितना परिश्रम करोगे, परमात्मा से उतना ही अधिक पारिश्रमिक मिलेगा| बिना परिश्रम के कुछ भी नहीं मिलेगा| परमात्मा भी अपना अनुग्रह यानी कृपा उसी पर करते हैं जो परमप्रेममय होकर उनके लिए परिश्रम करता है| मेहनत करोगे तो मजदूरी भी मिलेगी| संसार भी हमें मेहनत के बदले मजदूरी देता है, तो फिर भगवान क्यों नहीं देंगे?
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अधिकांश लोग साधुओं व महात्माओं के पीछे पीछे इसलिए भागते हैं कि संभवतः संत-महात्मा अपनी कमाई में से कुछ दे देंगे| पर ऐसा होता नहीं है| संत-महात्मा अधिक से अधिक हमें प्रेरणा दे सकते हैं, मार्गदर्शन कर सकते हैं, और सहायता कर सकते हैं| वे अपनी कमाई किसी को क्यों देंगे? मेहनत तो खुद को ही करनी होगी और मजदूरी भी खुद ही कमानी होगी, क्योंकि खुद की कमाई ही काम आयेगी, दूसरे की नहीं|
२१ दिसंबर २०२१ 
अक्षर ब्रह्म का ध्यान .....
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भगवान गीता में कहते हैं ... "ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्| यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्||८:१३||
अर्थात् जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है वह परम गति को प्राप्त होता है|
 .
भगवान ने गीता में ओंकार को अक्षर ब्रह्म बताया है| श्रुति भगवती यानि सारे उपनिषद् ओंकार की महिमा से भरे पड़े हैं| योग सूत्रों में इसे परमात्मा का वाचक बताया है .... तस्य वाचकः प्रणवः||१:२७||
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इसलिए अपनी अपनी गुरु-परम्परानुसार गुरु के आदेश से गुरु की बताई हुई विधि से अक्षर ब्रह्म ओंकार का का निरंतर अनुस्मरण और नामजप करते रहना चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० दिसंबर २०१८