Monday, 24 December 2018

पिंड दान .....

पिंड दान ...... हमें इस देह में जीवित रहते हुए ही अपना स्वयं का पिंडदान भी कर देना चाहिए| मृत्यु के बाद घर वालों को यह कष्ट न दें तो यह एक बहुत बड़ा परोपकार होगा| अपने अंतिम संस्कार के लिए भी स्वयं का कमाया हुआ ही पर्याप्त धन, घर वालों के पास छोड़ देना चाहिए ताकि उन पर कोई भार न पड़े| केवल श्राद्ध करने से कोई मुक्ति नहीं मिलती है, अपना स्वयं का किया हुआ सत्कर्म ही अंततः काम आयेगा|
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यह देह रूपी जो वाहन भगवान ने दिया है, वह पिंड ही है, और इसे भगवान को अर्पण कर देना ही पिंडदान है| जिसने अपना जीवन, अपना अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) भगवान को अर्पित कर दिया उसका पिंडदान ही सच्चा है| यह पिंडदान ही सार्थक है| अपना अन्तःकरण पूर्ण रूप से परमात्मा को सौंप दें|
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भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं ....
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्‌| आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||"
अर्थात् मनुष्य को चाहिये कि वह अपने मन के द्वारा अपना जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन से उद्धार करने का प्रयत्न करे, और अपने को निम्न-योनि में न गिरने दे, क्योंकि यह मन ही जीवात्मा का मित्र है, और यही जीवात्मा का शत्रु भी है||

श्रुति भगवती भी कहती है .....
"एको हंसः भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्निः सलिले संनिविष्टः |
तमेव विदित्वा अतिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय || श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१५||"
परमात्मा को जानकर ही हम मृत्यु का उल्लंघन कर सकते हैं| परमात्मा को हमें स्वयं ही प्राप्त करना होगा| यह उनकी कृपा और अनुग्रह के द्वारा ही संभव है जो करुणावश वे स्वयं ही कर सकते हैं| अन्य कोई उसे प्रकाशित नहीं कर सकता|
श्रुति भगवती ने यहीं यह भी कहा है .....
"न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः|
तमेव भान्तमनुभाति सर्वं तस्य भासा सर्वमिदं विभाति||
श्वेताश्वतरोपनिषद:६:१४||"
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अपना अंतःकरण भगवान को सौंप दें, यही सबसे बड़ा पिंडदान है, यही सच्चा श्राद्ध है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१८

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