ॐ ऐं सरस्वत्ये नमः .....बसंत पंचमी की शुभ कामनाएँ ........
एक फूल की स्मृति में जो बिना खिले ही मुरझा गया .....
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बसंत पंचमी का दिन पतझड़ के बाद नए फूल खिलने की शुरुआत करता है, लेकिन इस दिन एक फूल बिना खिले मुरझा गया। इसी दिन धर्मांधों ने 14 साल के मासूम हकीकत राय की नाजुक गर्दन धड़ से अलग कर दी थी बाल शहीद वीर हकीकत राय ने जान दे दी पर धर्म नहीं छोड़ा| वीर बालक हकीक़त राय को कत्ल कर दिया गया। वह शहीद हो गया, उसने अपना बलिदान दे दिया लेकिन धर्म से डिगा नहीं|
एक फूल की स्मृति में जो बिना खिले ही मुरझा गया .....
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बसंत पंचमी का दिन पतझड़ के बाद नए फूल खिलने की शुरुआत करता है, लेकिन इस दिन एक फूल बिना खिले मुरझा गया। इसी दिन धर्मांधों ने 14 साल के मासूम हकीकत राय की नाजुक गर्दन धड़ से अलग कर दी थी बाल शहीद वीर हकीकत राय ने जान दे दी पर धर्म नहीं छोड़ा| वीर बालक हकीक़त राय को कत्ल कर दिया गया। वह शहीद हो गया, उसने अपना बलिदान दे दिया लेकिन धर्म से डिगा नहीं|
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हकीकत राय नाम का बालक था धर्म परायण और वीर। मुगल राज़ था। एक मदरसे मे पढता था वह वीर बालक| एक दिन साथ के कुछ मुस्लिम बच्चे उसे चिढ़ाने के लिए हिंदू देवी दुर्गा को गाली देने लगे| उस सहनशील बालक ने कहा अगर यह सब मैं बीबी फातिमा के लिए कहूँ तो तुम्हे कैसा लगेगा। इतना सुन कर हल्ला मच गया कि हकीकत ने गाली दी| बात बड़े काजी तक पहुँची| फ़ैसला सुनाया गया इस्लाम स्वीकार कर लो या मरो। उस बालक ने कहा मैंने गलत नही कहा मैं इस्लाम नही स्वीकार करूँगा। उसके पास भगवद्गीता थी जिसमें उसने पढ़ा था कि आत्मा अमर है| यह गीता का ज्ञान ही उसका संबल था|
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बाद में यह मामला स्यालकोट के शासक अमीर बेग की अदालत में पहुँचा। हकीकत राय ने दोनों जगह सही बात बता दी। मुल्लाओं की राय ली गई तो उन्होंने कहा कि हकीकत राय के मन में इस्लाम के अपमान का विचार आया, इसीलिए उसे मृत्युदण्ड दिया जाए।
लाहौर के सूबेदार की कचहरी में भी यही निर्णय बहाल रहा। तब मुल्लाओं ने कहा कि हकीकत राय इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले तो उसके प्राण बच सकते हैं। माता-पिता और पत्नी ने इसे मान लेने का अनुरोध किया, पर हकीकत राय इसके तैयार नहीं हुए। 1740 ई. में उनका कत्ल कर दिया गया|
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हकीकत राय का जन्म 1724 ई. में स्यालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम भागमल खत्री था। हकीकत राय बचपन से ही बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी माता गौराँ देवी अत्यंत धार्मिक स्त्री थीं। हकीकत राय की सगाई बटाला के कादी हट्टी मुहल्ला के रहने वाले उप्पल गौत्र के किशन सिंह खत्री की बेटी लक्ष्मी के साथ हुई थी। कुछ इतिहासकार उसका नाम सावित्री भी बताते हैं| उनकी अभी गौना नहीं हुआ था इसलिए लक्ष्मी अपने मायके में ही रह रही थी।
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जब हकीकत राय की शहादत की खबर बटाला पहुंची तो सारे शहर में शोक की लहर फैल गई। लक्ष्मी ने सती होने की इच्छा व्यक्त की। परिवार द्वारा काफी मनाने के बावजूद वो नहीं मानी और शहर से बाहर एक स्थान पर आकर सती हो गई। लाहौर से दो मील पूर्व की ओर हकीकत राय की समाधि बनी हुई थी जहाँ विभाजन से पूर्व हर वर्ष मेला भरा करता था बसंत पंचमी के दिन भारी संख्या में लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए नतमस्तक होते हैं।
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जय सनातन वैदिकी संस्कृति ! जय श्रीराम !
हकीकत राय नाम का बालक था धर्म परायण और वीर। मुगल राज़ था। एक मदरसे मे पढता था वह वीर बालक| एक दिन साथ के कुछ मुस्लिम बच्चे उसे चिढ़ाने के लिए हिंदू देवी दुर्गा को गाली देने लगे| उस सहनशील बालक ने कहा अगर यह सब मैं बीबी फातिमा के लिए कहूँ तो तुम्हे कैसा लगेगा। इतना सुन कर हल्ला मच गया कि हकीकत ने गाली दी| बात बड़े काजी तक पहुँची| फ़ैसला सुनाया गया इस्लाम स्वीकार कर लो या मरो। उस बालक ने कहा मैंने गलत नही कहा मैं इस्लाम नही स्वीकार करूँगा। उसके पास भगवद्गीता थी जिसमें उसने पढ़ा था कि आत्मा अमर है| यह गीता का ज्ञान ही उसका संबल था|
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बाद में यह मामला स्यालकोट के शासक अमीर बेग की अदालत में पहुँचा। हकीकत राय ने दोनों जगह सही बात बता दी। मुल्लाओं की राय ली गई तो उन्होंने कहा कि हकीकत राय के मन में इस्लाम के अपमान का विचार आया, इसीलिए उसे मृत्युदण्ड दिया जाए।
लाहौर के सूबेदार की कचहरी में भी यही निर्णय बहाल रहा। तब मुल्लाओं ने कहा कि हकीकत राय इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले तो उसके प्राण बच सकते हैं। माता-पिता और पत्नी ने इसे मान लेने का अनुरोध किया, पर हकीकत राय इसके तैयार नहीं हुए। 1740 ई. में उनका कत्ल कर दिया गया|
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हकीकत राय का जन्म 1724 ई. में स्यालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम भागमल खत्री था। हकीकत राय बचपन से ही बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी माता गौराँ देवी अत्यंत धार्मिक स्त्री थीं। हकीकत राय की सगाई बटाला के कादी हट्टी मुहल्ला के रहने वाले उप्पल गौत्र के किशन सिंह खत्री की बेटी लक्ष्मी के साथ हुई थी। कुछ इतिहासकार उसका नाम सावित्री भी बताते हैं| उनकी अभी गौना नहीं हुआ था इसलिए लक्ष्मी अपने मायके में ही रह रही थी।
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जब हकीकत राय की शहादत की खबर बटाला पहुंची तो सारे शहर में शोक की लहर फैल गई। लक्ष्मी ने सती होने की इच्छा व्यक्त की। परिवार द्वारा काफी मनाने के बावजूद वो नहीं मानी और शहर से बाहर एक स्थान पर आकर सती हो गई। लाहौर से दो मील पूर्व की ओर हकीकत राय की समाधि बनी हुई थी जहाँ विभाजन से पूर्व हर वर्ष मेला भरा करता था बसंत पंचमी के दिन भारी संख्या में लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए नतमस्तक होते हैं।
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जय सनातन वैदिकी संस्कृति ! जय श्रीराम !