Saturday 11 February 2017

एक फूल की स्मृति में जो बिना खिले ही मुरझा गया .....

ॐ ऐं सरस्वत्ये नमः .....बसंत पंचमी की शुभ कामनाएँ ........
एक फूल की स्मृति में जो बिना खिले ही मुरझा गया .....
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बसंत पंचमी का दिन पतझड़ के बाद नए फूल खिलने की शुरुआत करता है, लेकिन इस दिन एक फूल बिना खिले मुरझा गया। इसी दिन धर्मांधों ने 14 साल के मासूम हकीकत राय की नाजुक गर्दन धड़ से अलग कर दी थी बाल शहीद वीर हकीकत राय ने जान दे दी पर धर्म नहीं छोड़ा| वीर बालक हकीक़त राय को कत्ल कर दिया गया। वह शहीद हो गया, उसने अपना बलिदान दे दिया लेकिन धर्म से डिगा नहीं|
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हकीकत राय नाम का बालक था धर्म परायण और वीर। मुगल राज़ था। एक मदरसे मे पढता था वह वीर बालक| एक दिन साथ के कुछ मुस्लिम बच्चे उसे चिढ़ाने के लिए हिंदू देवी दुर्गा को गाली देने लगे| उस सहनशील बालक ने कहा अगर यह सब मैं बीबी फातिमा के लिए कहूँ तो तुम्हे कैसा लगेगा। इतना सुन कर हल्ला मच गया कि हकीकत ने गाली दी| बात बड़े काजी तक पहुँची| फ़ैसला सुनाया गया इस्लाम स्वीकार कर लो या मरो। उस बालक ने कहा मैंने गलत नही कहा मैं इस्लाम नही स्वीकार करूँगा। उसके पास भगवद्गीता थी जिसमें उसने पढ़ा था कि आत्मा अमर है| यह गीता का ज्ञान ही उसका संबल था|
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बाद में यह मामला स्यालकोट के शासक अमीर बेग की अदालत में पहुँचा। हकीकत राय ने दोनों जगह सही बात बता दी। मुल्लाओं की राय ली गई तो उन्होंने कहा कि हकीकत राय के मन में इस्लाम के अपमान का विचार आया, इसीलिए उसे मृत्युदण्ड दिया जाए।
लाहौर के सूबेदार की कचहरी में भी यही निर्णय बहाल रहा। तब मुल्लाओं ने कहा कि हकीकत राय इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले तो उसके प्राण बच सकते हैं। माता-पिता और पत्नी ने इसे मान लेने का अनुरोध किया, पर हकीकत राय इसके तैयार नहीं हुए। 1740 ई. में उनका कत्ल कर दिया गया|
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हकीकत राय का जन्म 1724 ई. में स्यालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम भागमल खत्री था। हकीकत राय बचपन से ही बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी माता गौराँ देवी अत्यंत धार्मिक स्त्री थीं। हकीकत राय की सगाई बटाला के कादी हट्टी मुहल्ला के रहने वाले उप्पल गौत्र के किशन सिंह खत्री की बेटी लक्ष्मी के साथ हुई थी। कुछ इतिहासकार उसका नाम सावित्री भी बताते हैं| उनकी अभी गौना नहीं हुआ था इसलिए लक्ष्मी अपने मायके में ही रह रही थी।
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जब हकीकत राय की शहादत की खबर बटाला पहुंची तो सारे शहर में शोक की लहर फैल गई। लक्ष्मी ने सती होने की इच्छा व्यक्त की। परिवार द्वारा काफी मनाने के बावजूद वो नहीं मानी और शहर से बाहर एक स्थान पर आकर सती हो गई। लाहौर से दो मील पूर्व की ओर हकीकत राय की समाधि बनी हुई थी जहाँ विभाजन से पूर्व हर वर्ष मेला भरा करता था बसंत पंचमी के दिन भारी संख्या में लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए नतमस्तक होते हैं।
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जय सनातन वैदिकी संस्कृति ! जय श्रीराम !

बसंत पंचमी की शुभ कामनाएँ ........


बसंत पंचमी की शुभ कामनाएँ ........
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सभी को बसंत पंचमी की शुभ कामनाएँ और अभिनन्दन .......
माँ सरस्वती की कृपा हम सब पर बनी रहे|

वसंत ऋतु में प्रकृति का कण-कण खिल उठता है| सारे प्राणी उल्लास से भर उठते हैं| आज माघ शुक्ल ५ को मनाया जाने वाला बसंत पंचमी का पर्व हमारे जन जीवन को सदा प्रभावित करता आया है| मुझे मेरे बचपन की एक बहुत अच्छी स्मृति है ..... बसंत पंचमी के दिन हर मंदिर में भजन-कीर्तन होते थे, गुलाल उडती थी, प्रसाद बँटता था, और सभी विद्यालयों में सरस्वति पूजा होती थी| अब वे सारे रीति-रिवाज धर्म-निरपेक्षता की भेंट चढ़कर समाप्त हो गए हैं|
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हमारे देश की संस्कृति, इतिहास और परम्पराओं में बसंत पंचमी का बड़ा महत्व रहा है| कुछ का यहाँ विवरण दे रहा हूँ .....
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लोक कथाओं में बसंत पंचमी के ही दिन बालक भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीराधा जी का शृंगार किया था| पूरी प्रकृति ही उस दिन अपने पूर्ण सौंदर्य में सँज-सँवर गयी थी|
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बसंत पंचमी का ही दिन था जब भगवान श्रीराम शबरी माँ की कुटिया में पधारे थे|
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वसंत पंचमी के ही दिन सन 1192 ई.में पृथ्वीराज चौहान ने तीर चलाकर मोहम्मद घोरी को मार गिराया था| उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं|
इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है| गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा| पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया| तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया .......
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण|
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान||
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की| उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा| इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया|
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वीर बालक हकीकत राय की ह्त्या आज बसंत पंचमी के ही दिन कर दी गयी थी| लाहौर निवासी वीर बालक हकीक़त राय एक विद्यालय का विद्यार्थी था जिसे एक मौलवी उस्ताद चलाते थे| एक दिन जब मौलवी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर हकीकत राय पढ़ता रहा| जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो हकीक़त राय ने उनको माँ दुर्गा की सोगंध दी| मुस्लिम बालकों ने माँ दुर्गा की हँसी उड़ाई| हकीकत ने कहा कि यदि मैं तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूँ, तो तुम्हें कैसा लगेगा?
बस फिर क्या था, मौलवी जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है| फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुंची| मुस्लिम शासन में वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी| आदेश हो गया कि या तो बालक हकीकत राय मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा| सरहिंद के नवाब ने तो उसे अपनी शहजादी के साथ निकाह और आधे राज्य का भी प्रस्ताव दिया पर वीर बालक हकीकत राय ने यह स्वीकार नहीं किया और अपने धर्म पर अडिग रहा| परिणामत: उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया|
उसके घरवालों ने भी उससे आग्रह किया कि प्राणरक्षा के लिए तुम मुसलमान बन जाओ पर हकीक़त राय ने एक हाथ में गीता ली और कहा कि मेरी आत्मा अमर है जिसे कोई नहीं मार सकता और मैं अपने स्वधर्म में ही मरना चाहूँगा| उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी| हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूं, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा, वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया।
यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को हुई थी| पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहां वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई जाती है| हकीकत लाहौर का निवासी था| अत: पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है|
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गुरू रामसिंह कूका का जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था| कुछ समय तो वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे| धीरे-धीरे इनके शिश्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ कहलाया|
गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे| उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी| प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गांव में मेला लगता था| 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया| उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंह में गोमांस ठूँस दिया। यह सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्य भड़क गये| उन्होंने उस गांव पर हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी अत: युध्द का पासा पलट गया|
इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के मुँह से बाँधकर खड़ाकर उड़ा दिया गया| शेष 18 को अगले दिन फांसी दे दी गयी| दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया| 14 साल तक वहाँ कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया|
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वसंत पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस भी है| निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी| वे अपने पैसे और वस्त्र खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे| इस कारण लोग उन्हें 'महाप्राण' कहते थे|

जय सनातन वैदिकी संस्कृति ! जय श्रीराम !