जब भी भगवान का स्मरण होता है, तब स्वतः ही मन इतना अधिक शांत, प्रेममय व आनंदमय हो जाता है कि उस स्थिति से बाहर आने का मन ही नहीं करता| लेकिन भगवान की माया अति प्रबल है जो विक्षेप उत्पन्न कर ही देती है|
एक न एक दिन तो करुणावश भगवान भी अपना अनुग्रह कर के अपनी माया के आवरण व विक्षेप से मुक्त कर ही देंगे| आज नहीं तो कल यह होना ही है, अतः कोई चिंता नहीं है| भगवान का काम ही है अनुग्रह करना| वे नहीं करेंगे तो और कौन करेगा? अन्य कोई विकल्प भी नहीं है| सारे तो वे ही हैं, और सब कुछ भी वे ही हैं|
भक्ति और श्रद्धा-विश्वास से सत्यनिष्ठापूर्वक भगवान के ध्यान से शरणागति व समर्पण का भाव उत्पन्न होता है, और चित्त समभाव में अधिष्ठित होने लगता है| उस समय इतनी अधिक शांति मिलती है कि किसी भी तरह की शब्द रचना बड़ी दुरूह हो जाती है|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जून २०२०