हे कूटस्थ सच्चिदानंद परब्रह्म परमशिव, आपको नमन ! आप सब नाम-रूपों से परे
सम्पूर्ण अस्तित्व हैं | यह "मैं" और "मेरा" रूपी पृथकता आपको समर्पित है |
और कुछ देने को हैं भी नहीं, सब कुछ तो आप ही हैं | ॐ ॐ ॐ !!
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नित्य नियमित ध्यान साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अन्यथा परमात्मा को पाने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है | मन पर निरंतर मैल चढ़ता रहता है जिस की नित्य नियमित सफाई आवश्यक है | साधना में कर्ताभाव न हो, कर्ता तो भगवान स्वयं ही हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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नित्य नियमित ध्यान साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अन्यथा परमात्मा को पाने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है | मन पर निरंतर मैल चढ़ता रहता है जिस की नित्य नियमित सफाई आवश्यक है | साधना में कर्ताभाव न हो, कर्ता तो भगवान स्वयं ही हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||