Friday, 17 November 2017

नित्य नियमित ध्यान साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है....

हे कूटस्थ सच्चिदानंद परब्रह्म परमशिव, आपको नमन ! आप सब नाम-रूपों से परे सम्पूर्ण अस्तित्व हैं | यह "मैं" और "मेरा" रूपी पृथकता आपको समर्पित है | और कुछ देने को हैं भी नहीं, सब कुछ तो आप ही हैं | ॐ ॐ ॐ !!
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नित्य नियमित ध्यान साधना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अन्यथा परमात्मा को पाने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है | मन पर निरंतर मैल चढ़ता रहता है जिस की नित्य नियमित सफाई आवश्यक है | साधना में कर्ताभाव न हो, कर्ता तो भगवान स्वयं ही हैं |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

जिसने काम जीता उसने जगत जीता .....

जिसने काम जीता उसने जगत जीता .....
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मन ही हमारे सभी बंधनों, और मन ही हमारे मोक्ष का कारण है | हमारा अति चंचल मन ही हमारे लिए एक दुःखरूपी संसार की सृष्टि कर देता है जिसमें हम फँसे हुए हैं | साधना के मार्ग पर मेरा अनेक सत्संगियों व साधकों से सत्संग हुआ है | अधिकांश साधकों ने बिना किसी झिझक के यह स्वीकार किया कि साधना के पथ पर उनकी सबसे बड़ी बाधा क्रमशः ..... मन में उत्पन्न होने वाली काम वासना, फिर प्रमाद और फिर अहंकार थी | मेरा भी यही मत है कि opposite sex के प्रति आकर्षण ही भक्ति में सबसे बड़ी बाधा है |
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इस से बचाव के लिए ..... सात्विक भोजन, निरंतर सत्संग, कुसंग का त्याग, दृढ़ संकल्प और इच्छा शक्ति अति आवश्यक है | पुराने संस्कार कभी भी जागृत हो सकते हैं अतः निरंतर सावधानी चाहिए | सावधानी हटी, दुर्घटना घटी | अपनी कमजोरियों को दूर करने के लिए भगवान से भी प्रार्थना करें | निष्ठावान भक्त की सहायता भगवान अवश्य करते हैं |
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यहाँ सभी पाठक परिपक्व और समझदार हैं, अपना भला-बुरा समझते हैं, अतः अधिक लिखना उचित नहीं है | सभी को शुभ कामनाएँ और नमन !
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१६ नवम्बर २०१७

पञ्चमुखी महादेव के आध्यात्मिक रूप का सारांश .....

पञ्चमुखी महादेव के आध्यात्मिक रूप का सारांश .....
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गहरे ध्यान में दीर्घ काल से साधनारत योगमार्ग के साधकों को आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में एक स्वर्णिम आभा के दर्शन होते हैं| फिर धीरे धीरे उस स्वर्णिम आभा के मध्य में एक नीले रंग का प्रकाश दिखाई देता है| फिर धीरे धीरे उस नीले रंग के प्रकाश के मध्य में एक सफ़ेद रंग का प्रकाश दिखाई देता है, जिसके मध्य में एक अत्यधिक चमकदार सफ़ेद रंग के ही पंचकोणीय नक्षत्र के दर्शन होने लगते हैं| उस पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र का दर्शन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है| उसी पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र का उन्नत योगी ध्यान करते हैं| वे उस ज्योतिर्मय नक्षत्र से भी परे जाने की साधना करते हैं|
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इस ज्योतिर्मय क्षेत्र को कूटस्थ कहते हैं और निज चेतना की उसमें स्थिति कूटस्थ चैतन्य कहलाती है| कूटस्थ चैतन्य में प्रणव ध्वनि ओंकार जिसे अनाहत नाद भी कहते हैं का स्वतः ही श्रवण होने लगता है जिसमें रम जाना राममय हो जाना है| ॐ ही कूटस्थ अक्षर ब्रह्म है| वह विराट श्वेत ज्योति ... ज्योतिर्मय ब्रह्म है, वही क्षीर सागर है जहाँ शेषाशायी भगवान विष्णु का निवास है|
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वह पञ्चकोणीय श्वेत नक्षत्र पंचमुखी महादेव हैं| उन्नत योगीगण उन्हीं का ध्यान करते हैं| प्राण ऊर्जा को मूलाधार चक्र से उठाकर अन्य सभी चक्रों को भेदते हुए सहस्त्रार तक लाना ही कुण्डलिनी का जागरण है, और उस महाशक्ति कुण्डलिनी का परमशिव से मिलन ही योग है|
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ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है ..... जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश| भगवान शिव पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले है| शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं ..... ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात|
भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व के अधिपति हैं| इसका अर्थ है सबके स्वामी|
पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व के अधिपति हैं|
दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व के अधिपति हैं|
उत्तरी मुख का नाम वामदेव है, जो जल तत्व के अधिपति हैं|
पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व के अधिपति हैं|
भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं|
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है| काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है| काल के पाँच अंग ..... तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं|
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है|
प्राण भी पांच ही हैं जो पञ्चप्राण कहलाते हैं|
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है..... शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर| नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं|
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है|
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शिव का अर्थ है ..... कल्याणकारी| शंभू का अर्थ है ..... मंगलदायक| शंकर का अर्थ है ..... शमनकारी और आनंददायक|
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है| इनमें कोई भेद नहीं है|
शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है| यही हमारा लक्ष्य है|
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ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ||
ॐ नमःशिवाय || ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
१६ नवम्बर २०१७

प्रसिद्धि की कामना ..... अपकीर्ति का द्वार है .....

प्रसिद्धि की कामना ..... अपकीर्ति का द्वार है .....
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हमारे मन में यदि यश की, प्रशंसा की और प्रसिद्धि की कामना है तो ये हमें निश्चित रूप से मिलेंगी पर साथ साथ इसका निश्चित दंड भी अपयश, निंदा, और अपकीर्ति (बदनामी) के रूप में भुगतना ही पड़ेगा| जो कुछ भी इस सृष्टि में हम प्राप्त करना चाहते हैं वह तो हमें मिलता ही है पर उसका विपरीत भी निश्चित रूप से मिलता है| यह प्रकृति का नियम है|
इस से बचने का एक ही उपाय है ..... हम कर्ताभाव, कामनाओं और अपेक्षाओं से मुक्त हों| इसके लिए हमें साधना/उपासना करनी ही पड़ेगी|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

सुख और शांति कहाँ मिलेंगी ? .....

सुख और शांति कहाँ मिलेंगी ? .....
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सुख और शांति ये दोनों मन की एक अवस्था मात्र है | बाहर कहीं भी सुख और शांति नहीं है | प्रारब्ध कर्मों का फल टल नहीं सकता, उसे तो भुगतना ही पड़ता है | कर्म जितने कट जाएँ उतना ही ठीक है | अपने मन को ही सुखी और शांत रहने का प्रशिक्षण देना पड़ता है | पतंग उड़ती है, उड़ती है और अनंत आकाश में उड़ते ही रहना चाहती है, पर कर्मों की डोर उसे खींच कर बापस ले आती है | प्रारब्ध कर्मों के फल को तो भुगतना ही पड़ेगा |
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अपने घर में एक अलग कमरे की या अलग कोने की व्यवस्था कर लो जहाँ कम से कम व्यवधान हो | वहीं नित्य नियमित बैठ कर अपने इष्ट देव का स्मरण , जप व ध्यान करो | जब भी मन अशांत हो वहाँ जा कर बैठ जाओ, शांति वहाँ अवश्य मिलेगी |
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वह स्थान ही हिमालय की गुफा होगी, वही काशी, मथुरा, वृन्दावन और तीर्थराज प्रयाग होगा, वही त्रिवेणी होगी | सामाजिकता अपने आप ही कम हो जायेगी और कामनाएँ भी समाप्त होने लगेंगी | स्वाध्याय के लिए रामचरितमानस और गीता .... ये दो ग्रन्थ ही पर्याप्त हैं | इनसे पूरा मार्गदर्शन मिल जाता है |
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भगवान परमशिव सबका कल्याण करेंगे | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा .....

सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा .....
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आज से २३७ वर्ष पूर्व १३ नवम्बर १७८० को गुजराँवाला पंजाब में एक महानतम हिन्दू वीर ने जन्म लिया जो बाद में महाराजा रणजीतसिंह जी (१३ नवम्बर १७८० ---- २७ जून १८३९) के नाम से प्रसिद्ध हुए| वे हिन्दू जाति के महानतम वीरों में से एक थे| उन को बारंबार नमन|
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महाराजा रणजीत सिंह जी सन १८१३ की एक रात्री में अपनी सेना के साथ अटक के किले पर अधिकार करने के लिए बढ़ रहे थे| मार्ग में एक बरसाती नदी थी जिसमें बाढ़ आई हुई थी| अटक के किले में पठान सिपाही निश्चिन्त होकर सो रहे थे | महाराजा रणजीतसिंह जी की सेना एक बार तो अटक गई| पर महाराजा रणजीत सिंह जी ने नदी के किनारे एक स्थान ढूँढा जहाँ पानी की गहराई कम थी, और ..... "सकल भूमि गोपाल की, तामें अटक कहाँ ? जाके मन में अटक है, सोई अटक रहा" ..... कहते हुए अपना घोड़ा नदी में उतार दिया और नदी के पार पहुँच गए| उनके पीछे पीछे उनकी सारी सेना भी नदी को पार कर गयी और अटक के किले को घेर लिया| पठान सिपाही महाराजा रणजीत सिंह जी की फौज को देखकर डर गए और किले को छोडकर भाग गए| बाद में उन्होंने वहाँ के प्रशासक जहाँदाद को एक लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि देकर अटक के किले और उसके आधीन सारी भूमि को अपने राज्य में मिला लिया|
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वे एक कुशल शासक तो थे ही, साथ साथ एक महान भक्त और योगी भी थे| वाराणसी के वर्तमान विश्वनाथ मंदिर (भग्नावशेषों पर जिसका पुनर्निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने किया था) के शिखर पर चढा हुआ सारा सोना महाराजा रणजीत सिंह जी ने दान में दिया था| उनकी राज्यव्यवस्था आदर्श थी| भारत माँ के इस वीर पुत्र को कोटि कोटि नमन !
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१३ नवम्बर २०१७