सभी समस्याओं का समाधान .....
.
मेरा अब तक का यह एक अनुभव है जो आप सब के साथ बाँट रहा हूँ| जीवन की किसी भी जटिल समस्या और बुराई का समाधान मात्र स्वयं के प्रयास से नहीं हो सकता| परमात्मा की करुणामयी कृपा का होना अति आवश्यक है| निष्काम भाव से परमात्मा के प्रति पूर्ण प्रेम, समर्पण और पुरुषार्थ ही सब समस्याओं का समाधान है| फिर योग-क्षेम का वहन वे ही करने के लिए वचनबद्ध हैं|
.
आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य के स्थान को स्थायी रूप से परमात्मा के लिए आरक्षित रखें| बार बार यह देखें कि देह में हमारी चेतना कहाँ है| जहाँ हमारी चेतना होगी वैसे ही विचार आयेंगे| यदि हमारी चेतना नाभि के नीचे है तो यह खतरे की घंटी है| प्रयास पूर्वक अपनी चेतना को नाभि से ऊपर ही रखें| कुछ प्राणायाम और योगासनों जैसे सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, महामुद्रा, मूलबन्ध उड्डियानबंध जलंधरबंध आदि का नियमित अभ्यास हमारी चेतना को बहुत अधिक प्रभावित करता है| मेरुदंड को सीधा रखकर बैठकर भ्रूमध्य में ध्यान और अजपाजप करने से चेतना ऊर्ध्वमुखी होती है| भागवत मन्त्र का यथासंभव हर समय मानसिक जाप हमारी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करता है|
.
लक्ष्य एक ही है ..... वह है ..... परमात्मा कि प्राप्ति| जब तक परमात्मा को उपलब्ध न हों तब तक इधर उधर ना देखें, अपने सामने अपने लक्ष्य को ही सदा रखें| शुभ कामनाएँ और प्रणाम! ॐ नमः शिवाय! ॐ ॐ ॐ!!
कृपा शंकर
२५ अक्तूबर २०१४
.
मेरा अब तक का यह एक अनुभव है जो आप सब के साथ बाँट रहा हूँ| जीवन की किसी भी जटिल समस्या और बुराई का समाधान मात्र स्वयं के प्रयास से नहीं हो सकता| परमात्मा की करुणामयी कृपा का होना अति आवश्यक है| निष्काम भाव से परमात्मा के प्रति पूर्ण प्रेम, समर्पण और पुरुषार्थ ही सब समस्याओं का समाधान है| फिर योग-क्षेम का वहन वे ही करने के लिए वचनबद्ध हैं|
.
आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य के स्थान को स्थायी रूप से परमात्मा के लिए आरक्षित रखें| बार बार यह देखें कि देह में हमारी चेतना कहाँ है| जहाँ हमारी चेतना होगी वैसे ही विचार आयेंगे| यदि हमारी चेतना नाभि के नीचे है तो यह खतरे की घंटी है| प्रयास पूर्वक अपनी चेतना को नाभि से ऊपर ही रखें| कुछ प्राणायाम और योगासनों जैसे सूर्य नमस्कार, पश्चिमोत्तानासन, महामुद्रा, मूलबन्ध उड्डियानबंध जलंधरबंध आदि का नियमित अभ्यास हमारी चेतना को बहुत अधिक प्रभावित करता है| मेरुदंड को सीधा रखकर बैठकर भ्रूमध्य में ध्यान और अजपाजप करने से चेतना ऊर्ध्वमुखी होती है| भागवत मन्त्र का यथासंभव हर समय मानसिक जाप हमारी किसी भी परिस्थिति में रक्षा करता है|
.
लक्ष्य एक ही है ..... वह है ..... परमात्मा कि प्राप्ति| जब तक परमात्मा को उपलब्ध न हों तब तक इधर उधर ना देखें, अपने सामने अपने लक्ष्य को ही सदा रखें| शुभ कामनाएँ और प्रणाम! ॐ नमः शिवाय! ॐ ॐ ॐ!!
कृपा शंकर
२५ अक्तूबर २०१४