इस समय राष्ट्र को ब्रह्मत्व की आवश्यकता है| स्वयं के शिवत्व को प्रकट
करें| वर्तमान नकारात्मक घटना क्रमों की पृष्ठभूमि में आसुरी शक्तियाँ हैं|
राक्षसों, असुरों और पिशाचों से मनुष्य अपने बल पर नहीं लड़ सकते| सिर्फ
ईश्वर ही रक्षा कर सकते हैं| अपने अस्तित्त्व की रक्षा के लिये हमें भगवान्
की शरण लेकर समर्पित होना ही होगा, अन्यथा नष्ट होने के लिये तैयार रहें|
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साधना ..... अपने आप को सम्पूर्ण ह्रदय और शक्ति के साथ भगवान के हाथों में सौंप देना है| कोई शर्त मत रखो, कोई चीज़ मत माँगो, यहाँ तक कि योग में सिद्धि भी मत माँगो| जो भी साधना या जो भी भक्तिभाव या जो भी पूजापाठ हम करते हैं वह हमारे लिये नहीं अपितु भगवान के लिये ही है| उसका उद्देश्य व्यक्तिगत मुक्ति नहीं है| उसका एकमात्र उद्देश्य है ---- "आत्म समर्पण"|
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भगवान का शाश्वत वचन है -- "मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि|"
यानी अपने आपको ह्रदय और मन से मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर जाएगा| "सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज | अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः|" समस्त धर्मों (सभी सिद्धांतों, नियमों व हर तरह के साधन विधानों का) परित्याग कर और एकमात्र मेरी शरण में आजा ; मैं तुम्हें समस्त पापों और दोषों से मुक्त कार दूंगा --- शोक मत कर|
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हम केवल उस यजमान की तरह हैं जो यज्ञ को संपन्न होते हुए देखता है; जिसकी उपस्थिति यज्ञ की प्रत्येक क्रिया के लिये आवश्यक है| सारे कर्म तो जगन्माता स्वयं करती हैं और यज्ञरूप में परमात्मा को अर्पित करती है| कर्ताभाव एक भ्रम है| जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, उन्हें वे वही चीज़ देते हैं जो वे माँगते हैं| परन्तु जो अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं| न केवल कर्ताभाव, कर्मफल आदि बल्कि कर्म तक को उन्हें समर्पित कर दो| साक्षीभाव या दृष्टाभाव तक उन्हें समर्पित कर दो| साध्य भी वे ही हैं, साधक भी वे ही हैं और साधना भी वे ही है| यहाँ तक कि दृष्य, दृष्टी और दृष्टा भी वे ही हैं|ॐ तत् सत्|
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
पौष शु. ११ वि.सं.२०७२| 20जनवरी2016.
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साधना ..... अपने आप को सम्पूर्ण ह्रदय और शक्ति के साथ भगवान के हाथों में सौंप देना है| कोई शर्त मत रखो, कोई चीज़ मत माँगो, यहाँ तक कि योग में सिद्धि भी मत माँगो| जो भी साधना या जो भी भक्तिभाव या जो भी पूजापाठ हम करते हैं वह हमारे लिये नहीं अपितु भगवान के लिये ही है| उसका उद्देश्य व्यक्तिगत मुक्ति नहीं है| उसका एकमात्र उद्देश्य है ---- "आत्म समर्पण"|
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भगवान का शाश्वत वचन है -- "मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि|"
यानी अपने आपको ह्रदय और मन से मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर जाएगा| "सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज | अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः|" समस्त धर्मों (सभी सिद्धांतों, नियमों व हर तरह के साधन विधानों का) परित्याग कर और एकमात्र मेरी शरण में आजा ; मैं तुम्हें समस्त पापों और दोषों से मुक्त कार दूंगा --- शोक मत कर|
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हम केवल उस यजमान की तरह हैं जो यज्ञ को संपन्न होते हुए देखता है; जिसकी उपस्थिति यज्ञ की प्रत्येक क्रिया के लिये आवश्यक है| सारे कर्म तो जगन्माता स्वयं करती हैं और यज्ञरूप में परमात्मा को अर्पित करती है| कर्ताभाव एक भ्रम है| जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, उन्हें वे वही चीज़ देते हैं जो वे माँगते हैं| परन्तु जो अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं| न केवल कर्ताभाव, कर्मफल आदि बल्कि कर्म तक को उन्हें समर्पित कर दो| साक्षीभाव या दृष्टाभाव तक उन्हें समर्पित कर दो| साध्य भी वे ही हैं, साधक भी वे ही हैं और साधना भी वे ही है| यहाँ तक कि दृष्य, दृष्टी और दृष्टा भी वे ही हैं|ॐ तत् सत्|
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
पौष शु. ११ वि.सं.२०७२| 20जनवरी2016.