Friday 20 January 2017

चित्त की वृत्तियों का निरोध करना .....

चित्त की वृत्तियों का निरोध करना .....
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चित्त की वृत्ति दो रूपों --- श्वास-प्रश्वास और वासनाओं द्वारा व्यक्त होती हैं| वासनाएँ तो अति सूक्ष्म होती हैं जो पकड़ में नहीं आतीं| अतः स्थूल रूप श्वास-प्रश्वास के माध्यम से प्राण तत्व की चंचलता को स्थिर किया जाता है| प्राण तत्व के स्थिर होने पर मन और चित्त की वृत्तियाँ भी स्थिर यानि नियंत्रित हो जाती हैं|
एक सूक्ष्म प्राणायाम है जो सुषुम्ना नाड़ी में किया जाता है| इस से प्राण तत्व की चंचलता कम होती है| यह चित्त की वृत्तियों के निरोध का एक अति प्रभावशाली साधन है|
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चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग बताया गया है| चित्त की वृत्तियाँ अधोमुखी होती हैं, उनका अधोगमन रोक कर उन्हें ऊर्ध्वमुखी बनाना ही उनका निरोध है| चंचल मन सबसे बड़ी बाधा है जिस पर विजय पाई जाती है चंचल प्राण को स्थिर कर| प्राण तत्व तक पहुँचने के लिए श्वास-प्रश्वास एक माध्यम है| अजपाजाप इसमें बहुत सहायक है| पर बिना भक्ति के कोई एक क़दम भी नहीं चल सकता योग मार्ग पर|
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योग है .... महाशक्ति कुण्डलिनी का परमशिव से मिलन|
योग मार्ग में यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) और नियम (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान) पर जोर इसी लिए दिया है कि बिना सदाचार के की गयी साधना साधक को या तो विक्षिप्त कर देती है या आसुरी जगत का उपकरण बनाकर असुर बना देती है| यह एक दुधारी तलवार है| सदाचार पूर्वक की गयी साधना दैवीय जगत से जोड़ती है|
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परमात्मा के प्रति अहैतुकी परमप्रेम एक ऐसी शक्ति है जो सब बाधाओं के पार पहुंचा देती है|
सभी को शुभ कामनाएँ| आप सब के ह्रदय में प्रभु के प्रति प्रेम जागृत हो|
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
पौष शु. ११ वि.सं.२०७२| 20जनवरी2016.

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