Friday, 20 January 2017

निज विवेक से अपने अनुभूतिजन्य विचारों पर दृढ़ रहें .....

निज विवेक से अपने अनुभूतिजन्य विचारों पर दृढ़ रहें .....
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मैं अब तक जीवन में जितने भी लोगों से मिला हूँ, उन में से अधिकाँश में एक बात सामान्य देखी है कि उनकी चिंतनधारा दूसरों के विचारों के इर्दगिर्द ही सीमित रहती थी या है| स्वतंत्र विचारक बहुत कम नाममात्र के ही मिले हैं जीवन में| अधिकाँश लोग दूसरों का ही जीवन जीते हैं, स्वयं का नहीं| हमें अपनी मौलिकता को खोज कर उस पर दृढ़ रहना चाहिए|
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अपना चिंतन स्वतंत्र रहे| सत्य की खोज में हम स्वयं लगे रहें और निजानुभव से जिस भी सत्य का आभास हो उस पर दृढ़ता से डटे रहें| बहुत पहले की बात है, स्वामी रामतीर्थ का साहित्य पढ़ते पढ़ते एक पंक्ति पर कुछ देर के लिए मैं अटक गया था जिसका भावार्थ था कि परमात्मा को खोजते खोजते हम स्वयं को ही पा लेते हैं| वे स्वयं को सदा परमात्मा से अभिन्न मानते थे| अपने इस विचार पर वे सदा दृढ़ रहे, उन्होंने कभी यह सोचा भी नहीं कि अन्य लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं|
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जीवन में परम सत्य की खोज भी एक गहन अभीप्सा और तड़फ का परिणाम है जो सब में नहीं होती| धन्य हैं वे लोग जिनके हृदय में ऐसी प्रचंड अग्नि प्रज्ज्वलित हो रही है या है| यह कई जन्मों के अच्छे कर्मों से प्राप्त होती है| इसे दूसरों पर थोपा नहीं जा सकता| थोपने का प्रयास भी ना करें| अपना स्वयं का जीवन जीयें और यदि हमारे में कोई अच्छाई होगी तो दूसरे भी उसका अनुसरण करेंगे| दूसरों को अपना अनुयायी बनाने का प्रयास ना करें| यह बहुत बड़ी हिंसा है|
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जब हम स्वयं को अति महत्वपूर्ण मान लेते हैं और सोचते हैं कि हम ही सही हैं और अन्य सब गलत, और अन्य सब हमारी ही बात मानें, तब हम जाने अनजाने में मायावी यानि नकारात्मक शक्तियों के उपकरण बन जाते हैं|
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यह दुनिया हमारे बिना भी चल रही थी और हमारे बिना भी चलती रहेगी| हर पल हज़ारों लोग काल के गाल में समा रहे हैं, फिर भी हम स्वयं को अमर मान रहे हैं|
हम उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना हम स्वयं को मानते हैं| अब तक पता नहीं कितने लोग आये और चले गए, उन सब के बिना भी दुनियाँ चल रही है|
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यह सृष्टि परमात्मा की है और उसे हमारे सुझावों की आवश्यकता नहीं है| वह अपनी सृष्टि चलाने में सक्षम है| एकमात्र अच्छा कार्य जो हम कर सकते हैं वह है अपनी सर्वश्रेष्ठता यानि अपनी यथासंभव पूर्णता को पाने का प्रयास करते रहें| उस परम सत्य परमात्मा को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है उसे पाने का निरंतर प्रयास करना ही हमारा परम कर्तव्य और लक्ष्य हो सकता है|
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कुछ भी ना देखें, किसी ओर भी ना देखें, सिर्फ अपना लक्ष्य जो एकदम सामनें एक विराट ज्योति के रूप में परिलक्षित हो रहा है| उसी की ओर बढ़ते रहें| गिर भी जाएँ तो कोई बात नहीं, मर भी जाएँ तो कोई बात नहीं| न जाने कितनी बार मरे हैं, एक बार और सही| जीवन तो निरंतरता है, फिर मिल जाएगा| हार ना मानो, चलते रहो|
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इस बात का कोई महत्व नहीं है कि अपने साथ क्या होता है| महत्व सिर्फ और सिर्फ इसी बात का है कि हम अपने अनुभवों से क्या बनते हैं| इस तरह गिरते गिरते एक दिन हम पाएँगे की हम स्वयं परमात्मा के ह्रदय में हैं और उनके साथ एकाकार हैं|
उनको अपनी दृष्टी से कभी ओझल मत होने दो| बेशर्म होकर उनके पीछे पड़ जाओ|
एक दिन हम पायेंगे की वे स्वयं हमारे पीछे पीछे चल रहे हैं|
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संसार की दृष्टी में हम क्या हैं इसका कोई महत्व नहीं है| महत्व इसी बात का है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं|
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

2 comments:

  1. परमात्मा से परम प्रेम और परमात्मा की पूर्णता को पूर्ण समर्पण हमारा परम धर्म है| यही हमें आत्म-साक्षात्कार यानि आत्म-ज्ञान प्रदान करता है|

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  2. लोभ से बड़ी कोई बीमारी नहीं है. क्रोध से बड़ा कोई शत्रु नहीं है.
    दरिद्रता से बड़ा कोई दुःख नहीं है. विवेक से बड़ा कोई हर्ष नहीं है.
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    (यहाँ दरिद्रता से तात्पर्य भौतिक और आध्यात्मिक दोनों दरिद्रताओं से है)

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