Friday 25 May 2018

स्वधर्म के अलावा अन्य सब भटकाव है, घूम-फिर कर वहीं आ जाता हूँ .....

स्वधर्म के अलावा अन्य सब भटकाव है, घूम-फिर कर वहीं आ जाता हूँ .....
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सारी बातें एक तरफ और मेरा स्वधर्म एक तरफ | स्वधर्म के अलावा अन्य सब भटकाव है| गुरुरूप परब्रह्म ने अवचेतन मन की उच्चतम प्रकृति में बहुत पहिले ही स्पष्ट कर दिया था कि तुम्हारा स्वधर्म क्या है और उस पर अडिग रहने का भी उपदेश भी दे दिया था| पर अवचेतन मन की ही निम्नतम प्रकृति ने भटकाना आरम्भ किया तो भटकते ही रहे, भटकते ही रहे और भटकते ही रहे| यह भटकाव समाप्त हुआ तो पाया कि वहीं पर खड़े हैं जहाँ से चलना आरम्भ किया था| सोच रहे थे कि भवसागर पार करना है, पर कहाँ है भवसागर? कोई भवसागर तो है ही नहीं, या तो वह कभी का पार हो गया या वह एक कल्पना ही थी! सब कुछ तो परमेष्ठी गुरु परमशिव हैं और मैं हूँ| अन्य कुछ है ही नहीं| यह द्वैतभाव भी समाप्त हो|
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हे परात्पर गुरु परमशिव, मेरा जीवन ऐसा मंगलमय बने कि मुझे आपकी सत्ता में और मुझ में कोई भेद न दिखाई दे| आपकी कृपा के बिना मैं एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकता, और न ही आपके रहस्य और गहराई को समझ सकता हूँ| मेरे अस्तित्व और दृष्टिपथ पर सदा आप ही आप रहें, अन्य कुछ भी मुझे दिखाई न दे|
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मह:, जन:, तप:, सत्यम् आदि लोकों, व चिदाकाश, दहराकाश, महाकाश, पराकाश और सूर्याकाश आदि सब से परे आपकी अनंत व पूर्ण ब्रह्ममय सत्ता से मैं एकाकार हूँ| कहीं कोई भेद नहीं है| शिवत्व में निरंतर स्थिति ही मेरा स्वधर्म है|
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शिवमस्तु ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ मई २०१८

गीता को कैसे समझें ..... .

गीता को कैसे समझें .....
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मेरी सीमित व अति अल्प बुद्धि से गीता को समझाने, और हमें समझ में आ जाए, इसकी जिम्मेदारी ऋषिकेश भगवान श्रीकृष्ण की है| हमारा काम तो उन को पूर्ण प्रेम से अपने ह्रदय में रखना और एक जिज्ञासा का होना है| बाकी काम वे ही करेंगे| पर थोड़ा सा पुरुषार्थ तो करना ही होगा|
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गीता की सैंकड़ों टीकाएँ हैं| उनमें से अनेक तो बहुत प्रसिद्ध हैं| जो प्राचीन टीकाएँ हैं जैसे शंकर भाष्य, रामानुज भाष्य और श्रीधर स्वामी की टीका आदि आदि, उनको समझने के लिए कोई समझाने वाला भी चाहिए| कोई दस-बारह प्रसिद्ध टीकाएँ तो मेरे पास भी हैं| हर भाष्यकार ने अपनी अपनी समझ से गीता पर विद्वतापूर्ण टीका की है| पर महत्वपूर्ण बात यह है कि भगवान श्रीकृष्ण के मन में क्या था? जो भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्यक्ष कृपा से समझ में आ जाए, वह ही ठीक है|
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सबसे अच्छा तो यह है कि गीता की उस प्रति से स्वाध्याय आरम्भ करें जिसमें पदच्छेद और अन्वय शब्दार्थ दिए हैं| साथ साथ संस्कृत भाषा के शुद्ध उच्चारण और अनुष्टुप छंद को कैसे पढ़ा जाए, सीखने के लिए किसी विद्वान् गीता मनीषी आचार्य की सहायता लें| किसी विद्वान आचार्य की एक बार तो सहायता लेनी ही पड़ेगी|
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गीता के स्वाध्याय से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें| फिर पदच्छेद व मूल श्लोक को पढ़ें और हर अन्वय के शब्दार्थ को समझें| जब समझ में आ जाए तब उस अर्थ का और भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान कर उनसे सही अर्थ समझाने की प्रार्थना करें| फिर जो भी समझ में आ जाए उसे भगवान के प्रसाद रूप में स्वीकार कर अगले श्लोक पर चले जायें| स्वाध्याय के अंत में भी भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें|
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जब गीता का सिर्फ पाठ करें तब भाषा का उच्चारण शुद्ध हो, और छंद को पढने का तरीका सही हो| ज़रा सा भी संदेह हो तो बड़ी विनम्रता से किसी विद्वान् आचार्य की सहायता लेने में संकोच न करें| अहंकार शुन्य तो होना ही पड़ेगा| समय हो तो गीता पाठ से पूर्व उसके माहात्म्य को भी अर्थ सहित पढ़ें|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ मई २०१८

उपासना .....

उपासना .....

एक ध्वनी ऐसी भी है जो किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती| परमात्मा की उस निःशब्द ध्वनी में तन्मय हो जाना स्वयं परम आनंदमय हो जाना है| मनुष्य मौज-मस्ती करता है सुख की खोज में| यह सुख की खोज, अचेतन मन में छिपी आनंद की ही चाह है| सांसारिक सुख की खोज कभी संतुष्टि नहीं देती, अपने पीछे एक पीड़ा की लकीर छोड़ जाती है| आनंद की अनुभूतियाँ होती हैं सिर्फ ..... परमात्मा के ध्यान में| परमात्मा ही आनंद है, परम प्रेम जिसका द्वार है|

गहन ध्यान में प्राण ऊर्जा का घनीभूत होकर ऊर्ध्वगमन, सुषुम्ना के सभी चक्रों की गुरु-प्रदत्त विधि से परिक्रमा, कूटस्थ में अप्रतिम ब्रह्मज्योति के दर्शन, ओंकार का नाद, सहस्त्रार में व उससे भी आगे सर्वव्यापी भगवान परमशिव की अनुभूतियाँ .... जो शाश्वत आनंद देती हैं, वह भौतिक जगत में असम्भव है| सभी पर परमात्मा की अपार परम कृपा हो| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर
२४ मई २०१८

भगवान तो मिले ही हुए हैं .....

भगवान तो मिले ही हुए हैं, बस शांत, मौन और एकांत में रहने का अभ्यास करो, इस से मन शांत होगा| तभी परमात्मा की उपस्थिति का आभास होगा| भगवान हमारे प्रेम के भूखे हैं, बाकी तो हमारे पास है ही क्या जो उन्हें दे सकें| शांत रहकर उन्हें प्रेम करो, कोई दिखावा या शोरगुल नहीं|

हमारी भक्ति हमारे और भगवान के मध्य का व्यक्तिगत मामला है, इसमें तीसरे व्यक्ति का क्या काम? तीसरे व्यक्ति को तो पता ही नहीं चलना चाहिए| अपनी भक्ति को गोपनीय रखें| जीवात्मा को वे स्वयं ही अपनी ओर खींच लेंगे| कुछ भी उछल-कूद, भाग-दौड़ व शोरगुल करने की आवश्यकता नहीं है|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ मई २०१८